Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

सेक्स पत्रकारिता / यौन सर्वेक्षण के बहाने

$
0
0


Print Friendly and PDF


2012.12.09
 
संजय कुमार 
 बाजारवाद के आगे आज सब कुछ गौण हो चुका है। आमखास इसकी गिरफ्त में हैं। मीडिया भी इससे अछूता नहीं। अपने को बाजार में बनाए रखने के लिए मीडिया बाजारवाद के झंडातले खड़ा हो कर हां में हां मिलाता मिलता है। भले ही इसके लिए उसे मापदण्ड, नीति व सिद्धांत को ताक पर ही क्यों न रखना पड़ा हो! बल्कि रख चुका है। बाजार में बने रहने के लिए आज मीडिया किसी हथकंडे को अपनाने से बाज नहीं आ रहा है। यह चिंता का विषय है। प्रिंट हो या इलैक्ट्रोनिक बाजारवाद के झंझावात में फंस कर अपने मूल्यों को तहस नहस करने में लगा हैं। और यह बार बार हो रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी व अंगे्रजी भाषा की दो पत्रिकाओं (इंडिया टुडे और आउटलुक) ने सेक्स व यौन सर्वेक्षण के नाम पर जो कुछ परोसा वह चर्चे में है। चर्चा है, सर्वेक्षण के बहाने अश्लील तस्वीरें छापने और एक दूसरे को पीछे छोड़ने की आपाधापी में पत्रकारिता के मूल्यों को शर्मषार करने का। सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरों को बड़े ही सहज ढंग से परोस गया है। सर्वेक्षण तो पाठकों के लिए कौतूहल का विषय है लेकिन तस्वीरों के पीछे मकसद साफ झलकता है। वह भी कवर पेज पर देकर पाठकों को लुभाने की दिशा में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है। सेटेलाइट टीवी के क्रांतिकारी हस्तक्षेप से टीवी पत्रकारिता की दशा व दिशा दोनों ही बदल गई है। परिवार के साथ टीवी देखने की बात पुरानी एवं बेमानी हो चुकी है (दूरदर्शन को छोड़ कर)। वजह साफ है सेटेलाइट चैनलों की टीआरपी का खेल। कार्यक्रम हो या खबर, सेक्स, अश्लीलता, हिंसा, अपराध आदि को परोसना, नियति बनती जा रही है। गिनाने के लिए कई उदाहरण पड़े है। इस मामले में प्रिंट ने सेटेलाइट चैनलों को भी पीछे छोड़ दिया है। ड्रांइग रूम में कभी अतिथियों को आर्कषित करने के मद्देनजर टेबल पर रखी जाने वाली पत्रिकाएं बेड रूम की शोभा बढ़ाने लगी है। बच्चे या जवान बेटे बेटियों की नजर से पत्रिका को हटाया जाने लगा है। सेक्स या यौन विषय पर चर्चा करने के मुद्दे को खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके बहाने पोर्नाग्राफी को बढ़ावा देना कहां तक उचित है ? सेक्स या यौन की चर्चा बेसक होनी चाहिये लेकिन क्या नग्न या फिर सेक्स करते हुए तस्वीरे छाप कर कौन सी शिक्षा देने की कोशिश की जा रही है ? क्या बिना तस्वीरों की बात बन सकती थी ? देना ही था तो रेखांकन चित्र से भी काम चल सकता था। यही काम अगर मीडिया के अलावे कोई संस्था या फिर किसी पार्लर या किसी आयोजन में होता हो मीडिया उसकी खिचांई करने से बाज नहीं आता ! मीडिया द्वारा सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरें छापना इस बात का द्योतक है कि इसके पीछे बाजार है और बाजार के लिए सेक्स बिकाउ है।
पे्रस नियमों की मीडिया द्वारा धज्जी उड़ाने का सिलसिला जारी है। बिना तस्वीर के काम चलने के बावजूद नियमों को ताख पर रख कर तस्वीरें छापी जा रही है। महिलाओं के चेहरे को छुपाया भी नहीं जाता। कई उदाहरण पड़े हैं जब मीडिया ने मापदण्डों को ताख पर रख, बस अपने को बाजार में बनाये रखने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में महिलाओं की अर्द्धनग्न तस्वीर छाप दी। पटना की सड़क पर एक महिला को अर्द्धनग्न करने की खबर बासी नहीं पड़ी है। मीडिया ने उस महिला की अर्द्धनग्न तस्वीर ही नहीं छापी बल्कि उसका सही नाम भी छाप कर अपनी पीठ खुद थपथपा ली ! सवाल उठता है कि जब देश समाज में किसी महिला के कपड़े उतारे जाते हैं या फिर जेंटस ब्यूटी पार्लर में महिलाएं देह व्यापार करती पकड़ी जाती हैं तो मीडिया के लिए महिलाएं खबर बनती है। और उसे समय व हालात का हवाला देकर प्रसारित एवं प्रकाशित कर दिया जाता है। लेकिन जब यह सब पूरे होषो-हवास में किया गया हो तो उसे क्या कहेगें? ऐसे में सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने पत्रिकाओं ने जो नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरें छापी उसे लेकर सवाल उठना लाजमी है ?

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>