Image may be NSFW.
Clik here to view.
read more
Image may be NSFW.
Clik here to view.![]()
Clik here to view.

-राजेश कुमार चौहान।।
प्रस्तुति- रिद्धि सिन्हा नुपूर
इंटरनेट की दुनिया में एक प्रकार का साम्यवाद कायम है। यहाँ हम सब एक समान हैं, इंटरनेट किसी के पैसे और रूतबे को नहीं पहचानता है, यह बस अपने यूजर को जानता है। इंटरनेट के लिए उसके सारे यूजर एक समान हैं वह किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। सोशल मीडिया वेबसाइट ने इस प्रक्रिया को और आसान बना दिया। एक समय था जब देश के प्रधानमंत्री की एक झलक पाने को पूरा देश बेताब रहता था, एक आज का दौर है जहाँ इंटरनेट के जरिए लोगों को प्रधानमंत्री के पल-पल की अपडेट मिल जाती है।
इन सब के बीच “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी के मसले पर एक ऐसी बहस ने जन्म लिया जिसमें इंटरनेट पर कहीं भी विचरण की आजादी पर एक तरह से लगाम लग सकती है। टेलिकॉम कंपनियाँ इंटरनेट पर यूजर की आजादी पर लगाम लगाना चाहती है। उसका तर्क है कि ऐसा करने से कुछ वेबसाइट के सर्फिंग पर पैसे ही नहीं चुकाने पड़ेंगे, लेकिन ऐसा होते ही कुछ साइटों तक यूजर की पहुँच ही मुश्किल हो जाएगी। फिलहाल किसी भी एेप को इस्तेमाल करने के लिए आपको एक ही इंटरनेट प्लान चाहिए होता है, लेकिन अगर ये लागू हुआ तो आपको एेप्स के लिए अलग प्लान लेना होगा। दरअसल टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि वॉइस कॉल देने वाली एेप्ससे उनका रेवेन्यू घटा है, इसलिए उनकी मांग हैं कि ये कमाई उन्हें मिले। इससे कंपनियों को तो फायदा होगा, लेकिन यूजर्स के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी। वहीं ये सर्विस प्री-पेड और पोस्ट-पेड दोनों पर लागू किए जाने की मांग है। दूरसंचार कंपनियाँ “नेट न्यूट्रेलिटी” को अलग तरीके से परिभाषित कर रही हैं।
ट्राई ने नेट न्यूट्रेलिटी के संबंध में दूरसंचार कंपनियों से 24 अप्रैल और यूजर्स से 8 मई तक सुझाव देने के लिए कहा है। इसके लिए आपको advqos@trai.gov.in साइट पर अपनी राय देनी है। कंपनियाँ नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर रोकेगी रास्ता “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी, अगर यह आजादी छीन जाए तो हमारे इंटरनेट इस्तेमाल करने पर इसका क्या असर पड़ेगा? जब हम एक बार कोई डाटा पैक डलवाते हैं उसमें पैसे देने के बाद हम व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी कोई भी इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल कर पाते हैं। हर सेवा की स्पीड एक जैसी होती है और हर सेवा के अलग से कोई पैसे नहीं देने पड़ते हैं। यानी कि इंटरनेट का पैक भरवा लिया तो जब तक डाटा है कहीं भी-कुछ भी एक्सेस करिये बिंदास। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि उनके मुनाफे पर सबसे ज्यादा नुकसान व्हाट्सएप जैसे वॉइस कॉलिंग कंपनी के बढ़ते इस्तेमाल के कारण हुआ है। इसलिए टेलिकॉम कंपनियां इंटरनेट की आजादी को नए तरह से पेश करना चाहती है जिसमें कुछ सेवाएं मुफ्त हो सकती हैं तो कुछ के लिए अलग से पैसे भी देने पड़ सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ सेवाओं के लिए ज्यादा स्पीड तो कुछ के लिए कम स्पीड का अधिकार भी कंपनियां अपने पास रखना चाहती हैं।
कंपनियाँ उन कुछ वेबसाइटों को सर्फ करने के लिए अलग से पैसे चार्ज करने के फिराक में है जिनसे हमारा पल-पल का रिश्ता बन चुका है। जैसे उदाहरण के लिए जब आप व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी ढेरों इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल करेंगे तो हर सेवा के लिए अलग अलग पैसे देने पड़ेंगे। इसे आप डीटीएच की तर्ज पर समझ सकते हैं कि यदि आपने किसी भी डीटीएच कंपनी में कोई पैक डलवाया है उसमें सारे चैनल आ रहे हैं लेकिन किसी स्पोर्ट्स के चैनल को देखने के लिए अलग से पैसे चुकाने पड़ते हैं। बदलाव का समर्थन करने वाली टेलीकॉम कंपनियों का तर्क है कि ऐसी स्थिति में मुफ्त इंटरनेट गरीब भी इस्तेमाल कर पाएंगे। लेकिन वो क्या इस्तेमाल कर पाऐंगे यह सोचने वाली बात है? दूसरा पक्ष यह है कि इस बदलाव से इंटरनेट की आजादी छिन जाएगी। यदि आपको यूट्यूब पर मुशायरा सुनने का मन हो गया तो उसके लिए आपको अलग से पैसे चुकाने होंगे।
दूसरी एक और समस्या जो सामने आई है वो है मोनोपॉली की, बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरसंचार कंपनी से समझौता कर उन्हें अपने उत्पाद के लिए इंटरनेट स्पीड तेज करने का प्रस्ताव करेगी और अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों की स्पीड धीमी कर दी जाएगी, ऐसा करने पर छोटी कंपनियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। अभी हाल ही में एयरटेल ने फ्लिपकार्ट से हाथ मिलाया है। ऐसे में एयरटेल के इंटरनेट कनेक्शन पर फ्लिपकार्ट तेज चलेगी और फ्लिपकार्ट की प्रतियोगी कंपनियां हो सकता है कि धीमी हो जाएं। ये भी मुमकिन है कि ऐसे में किसी दूसरे टेलिकॉम कंपनी के कनेक्शन से आप फ्लिपकार्ट तक पहुंच ही ना पाएं। इन सारे तर्कों के अलावे मुनाफे पर जो चर्चा हो रही है वहाँ क्या डाटा पैक के जरिए कंपनियाँ काफी कमा रही हैं, जो कमाई आने वाले समय में और बढ़ने वाली है। इसलिए नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर इंटरनेट के उपभोक्ता की आजादी छीनने का प्रयास सरासर बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाने की कोशिश है।
हालांकि, सरकार ने अब तक इस पर अपना रुख साफ नहीं किया है लेकिन टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद कह चुके हैं कि इंटरनेट इंसानी दिमाग की एक बेहतरीन खोज है। ये पूरी इंसानियत के लिए है ना कि कुछ लोगों के लिए, हमारी सरकार लोगोंके हित में इंटरनेट के इस्तेमाल में विश्वास रखती है। टेलिकॉम विभाग की एक समिति इस पूरे मामले को देखने के लिए बनाई गई है, यह समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगी। इससे पहले पूरी दुनिया में इस तरह के प्रयोग भी हो चुके हैं और बहस आज भी जारी है। भारत में यह फैसला ट्राई को लेना है, ट्राई ने इस बार फैसला लेने से पहले आपकी राय मांगी है। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों की यह लॉबिंग कामयाब रही तो इंटरनेट की आजादी खतरे में पड़ सकती है। ऐसा हुआ तो इंटरनेट पर बढ़ती लोअर मिड़ल क्लास आबादी पर ब्रेक लग जाएगा तब य़हाँ बिना दीवारों वाली दुनिया में भी उँच-नीच की दीवारें खड़ी हो जाएंगी
प्रस्तुति- रिद्धि सिन्हा नुपूर
इंटरनेट की दुनिया में एक प्रकार का साम्यवाद कायम है। यहाँ हम सब एक समान हैं, इंटरनेट किसी के पैसे और रूतबे को नहीं पहचानता है, यह बस अपने यूजर को जानता है। इंटरनेट के लिए उसके सारे यूजर एक समान हैं वह किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। सोशल मीडिया वेबसाइट ने इस प्रक्रिया को और आसान बना दिया। एक समय था जब देश के प्रधानमंत्री की एक झलक पाने को पूरा देश बेताब रहता था, एक आज का दौर है जहाँ इंटरनेट के जरिए लोगों को प्रधानमंत्री के पल-पल की अपडेट मिल जाती है।
इन सब के बीच “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी के मसले पर एक ऐसी बहस ने जन्म लिया जिसमें इंटरनेट पर कहीं भी विचरण की आजादी पर एक तरह से लगाम लग सकती है। टेलिकॉम कंपनियाँ इंटरनेट पर यूजर की आजादी पर लगाम लगाना चाहती है। उसका तर्क है कि ऐसा करने से कुछ वेबसाइट के सर्फिंग पर पैसे ही नहीं चुकाने पड़ेंगे, लेकिन ऐसा होते ही कुछ साइटों तक यूजर की पहुँच ही मुश्किल हो जाएगी। फिलहाल किसी भी एेप को इस्तेमाल करने के लिए आपको एक ही इंटरनेट प्लान चाहिए होता है, लेकिन अगर ये लागू हुआ तो आपको एेप्स के लिए अलग प्लान लेना होगा। दरअसल टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि वॉइस कॉल देने वाली एेप्ससे उनका रेवेन्यू घटा है, इसलिए उनकी मांग हैं कि ये कमाई उन्हें मिले। इससे कंपनियों को तो फायदा होगा, लेकिन यूजर्स के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी। वहीं ये सर्विस प्री-पेड और पोस्ट-पेड दोनों पर लागू किए जाने की मांग है। दूरसंचार कंपनियाँ “नेट न्यूट्रेलिटी” को अलग तरीके से परिभाषित कर रही हैं।
ट्राई ने नेट न्यूट्रेलिटी के संबंध में दूरसंचार कंपनियों से 24 अप्रैल और यूजर्स से 8 मई तक सुझाव देने के लिए कहा है। इसके लिए आपको advqos@trai.gov.in साइट पर अपनी राय देनी है। कंपनियाँ नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर रोकेगी रास्ता “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी, अगर यह आजादी छीन जाए तो हमारे इंटरनेट इस्तेमाल करने पर इसका क्या असर पड़ेगा? जब हम एक बार कोई डाटा पैक डलवाते हैं उसमें पैसे देने के बाद हम व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी कोई भी इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल कर पाते हैं। हर सेवा की स्पीड एक जैसी होती है और हर सेवा के अलग से कोई पैसे नहीं देने पड़ते हैं। यानी कि इंटरनेट का पैक भरवा लिया तो जब तक डाटा है कहीं भी-कुछ भी एक्सेस करिये बिंदास। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि उनके मुनाफे पर सबसे ज्यादा नुकसान व्हाट्सएप जैसे वॉइस कॉलिंग कंपनी के बढ़ते इस्तेमाल के कारण हुआ है। इसलिए टेलिकॉम कंपनियां इंटरनेट की आजादी को नए तरह से पेश करना चाहती है जिसमें कुछ सेवाएं मुफ्त हो सकती हैं तो कुछ के लिए अलग से पैसे भी देने पड़ सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ सेवाओं के लिए ज्यादा स्पीड तो कुछ के लिए कम स्पीड का अधिकार भी कंपनियां अपने पास रखना चाहती हैं।
कंपनियाँ उन कुछ वेबसाइटों को सर्फ करने के लिए अलग से पैसे चार्ज करने के फिराक में है जिनसे हमारा पल-पल का रिश्ता बन चुका है। जैसे उदाहरण के लिए जब आप व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी ढेरों इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल करेंगे तो हर सेवा के लिए अलग अलग पैसे देने पड़ेंगे। इसे आप डीटीएच की तर्ज पर समझ सकते हैं कि यदि आपने किसी भी डीटीएच कंपनी में कोई पैक डलवाया है उसमें सारे चैनल आ रहे हैं लेकिन किसी स्पोर्ट्स के चैनल को देखने के लिए अलग से पैसे चुकाने पड़ते हैं। बदलाव का समर्थन करने वाली टेलीकॉम कंपनियों का तर्क है कि ऐसी स्थिति में मुफ्त इंटरनेट गरीब भी इस्तेमाल कर पाएंगे। लेकिन वो क्या इस्तेमाल कर पाऐंगे यह सोचने वाली बात है? दूसरा पक्ष यह है कि इस बदलाव से इंटरनेट की आजादी छिन जाएगी। यदि आपको यूट्यूब पर मुशायरा सुनने का मन हो गया तो उसके लिए आपको अलग से पैसे चुकाने होंगे।
दूसरी एक और समस्या जो सामने आई है वो है मोनोपॉली की, बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरसंचार कंपनी से समझौता कर उन्हें अपने उत्पाद के लिए इंटरनेट स्पीड तेज करने का प्रस्ताव करेगी और अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों की स्पीड धीमी कर दी जाएगी, ऐसा करने पर छोटी कंपनियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। अभी हाल ही में एयरटेल ने फ्लिपकार्ट से हाथ मिलाया है। ऐसे में एयरटेल के इंटरनेट कनेक्शन पर फ्लिपकार्ट तेज चलेगी और फ्लिपकार्ट की प्रतियोगी कंपनियां हो सकता है कि धीमी हो जाएं। ये भी मुमकिन है कि ऐसे में किसी दूसरे टेलिकॉम कंपनी के कनेक्शन से आप फ्लिपकार्ट तक पहुंच ही ना पाएं। इन सारे तर्कों के अलावे मुनाफे पर जो चर्चा हो रही है वहाँ क्या डाटा पैक के जरिए कंपनियाँ काफी कमा रही हैं, जो कमाई आने वाले समय में और बढ़ने वाली है। इसलिए नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर इंटरनेट के उपभोक्ता की आजादी छीनने का प्रयास सरासर बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाने की कोशिश है।
हालांकि, सरकार ने अब तक इस पर अपना रुख साफ नहीं किया है लेकिन टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद कह चुके हैं कि इंटरनेट इंसानी दिमाग की एक बेहतरीन खोज है। ये पूरी इंसानियत के लिए है ना कि कुछ लोगों के लिए, हमारी सरकार लोगोंके हित में इंटरनेट के इस्तेमाल में विश्वास रखती है। टेलिकॉम विभाग की एक समिति इस पूरे मामले को देखने के लिए बनाई गई है, यह समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगी। इससे पहले पूरी दुनिया में इस तरह के प्रयोग भी हो चुके हैं और बहस आज भी जारी है। भारत में यह फैसला ट्राई को लेना है, ट्राई ने इस बार फैसला लेने से पहले आपकी राय मांगी है। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों की यह लॉबिंग कामयाब रही तो इंटरनेट की आजादी खतरे में पड़ सकती है। ऐसा हुआ तो इंटरनेट पर बढ़ती लोअर मिड़ल क्लास आबादी पर ब्रेक लग जाएगा तब य़हाँ बिना दीवारों वाली दुनिया में भी उँच-नीच की दीवारें खड़ी हो जाएंगी
संबंधित खबरें:
कृपया अपनी खबरें, सूचनाएं या फिर शिकायतें सीधे mediadarbar@gmail.com पर भेजें | इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख लेखकों, ब्लॉगरों और संवाद सूत्रों के निजी विचार हैं। मीडिया के हर पहलू को जनता के दरबार में ला खड़ा करने के लिए यह एक सार्वजनिक मंच है। पाठक चाहे आलेखों से सहमत हों या असहमत, किसी भी लेख पर टिप्पणी करने को स्वतंत्र हैं। हम उन टिप्पणियों को बिना किसी भेद-भाव के निडरता से प्रकाशित भी करते हैं चाहे वह हमारी आलोचना ही क्यों न हो। आपसे अनुरोध है कि टिप्पणियों की भाषा संयत एवं शालीन रखें -मॉडरेटर
Other articlesgo to homepage
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | फेसबुक पर इंतज़ार है डिसलाइक बटन का..(0)Share this on WhatsApp फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग आज फेसबुक पर लोगों से रूबरू हुए और उनके सवालों का जवाब दिया. उन्होंने एक प्रयोग के तौर पर सवाल-जवाब की प्रक्रिया फेसबुक पर शुरू की. फेसबुक पर उनसे कई लोग सवाल पूछ रहे हैं और उनके जवाबों को लाइक करने वालों की संख्या हजारों में |
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | समाज की दीवारों से टकराता सोशल मीडिया..(0)Share this on WhatsApp -दुर्गाप्रसाद अग्रवाल।। समाज और इसके मीडिया यानी सोशल मीडिया में इन दिनों एक और उफान आया हुआ है। हालांकि यह उफान अभी सोशल मीडिया की दीवारों से टकरा कर अपने जोर की आजमाइश ही कर रहा है, पर नई पीढ़ी की मानसिकता के बदलाव की तेज़ गति को देखते हुए लगता नहीं |
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | वर्ष 2014 का बिहारी पुुरस्कार श्री ओम थानवी को..(0)Share this on WhatsApp प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार श्री ओम थानवी की पुस्तक ’मुअनजोदड़ो’ को वर्ष 2014 के बिहारी पुरस्कार के लिए चुना गया है। के.के. बिरला फाउंडेशन के कार्यकलापों के अन्तर्गत डॉ. कृष्ण कुमार बिरला ने 1991 में बिहारी पुरस्कार की शुरूआत की। पुरस्कृत कृति ’मुअनजोदड़ो’ एक ऐसा यात्रा-वृ्त्तांत है जो सामान्य यात्रा-वृत्तांतों से |
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | दिवालिया होने कगार पर मगर निवेशकों का पैसा लुटाने में कोई शर्म नहीं..(0)Share this on WhatsApp -कुमार सौवीर।। पूरे पांच महीने हो गये हैं, मगर ऐयाश सुब्रत राय के सहारा इंडिया के कर्मचारियों को वेतन के नाम पर एक धेला तक नहीं थमाया गया है। मगर सहारा इंडिया के आला अफसरों ने अपनी एेश और कम्पनी की रकम को दोनों हाथों से लुटाने में कत्तई शर्म नहीं दिखायी |
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | बोली पर ब्रेक..(0)Share this on WhatsApp -तारकेश कुमार ओझा|| चैनलों पर चल रही खबर सचमुच शाकिंग यानी निराश करने वाली थी. राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मातहतों को आगाह कर दिया था कि गैर जिम्मेदाराना बयान दिए बच्चू तो कड़ी कार्रवाई झेलने को तैयार रहो. मैं सोच में पड़ गया. यदि सचमुच नेताओं की जुबान पर स्पीड ब्रेकर या |
देश
read moreताज़ा पोस्ट्स
- फेसबुक पर इंतज़ार है डिसलाइक बटन का..
- आखिर है क्या नेट न्यूट्रेलिटी..
- समाज की दीवारों से टकराता सोशल मीडिया..
- BJP के खिलाफ आज हो सकता है जनता दल परिवार..
- घर बचाने की जद्दो जहद में 800 वाल्मीकि बने मुस्लिम..
- गृह मंत्रालय द्वारा ग्रीनपीस पर भारतीयों से चंदा लेने पर रोक, ग्रीनपीस ने इसे संगठन को बंद करने की साजिश करार दिया..
- नेट न्यूट्रेलिटी और हम..
- बोको हराम की कैद में करीब दो हजार महिलाएं और लड़कियां..
- विदेशी निवेश की सीमा और नया नाम प्रेसटीट्यूट..
- वर्ष 2014 का बिहारी पुुरस्कार श्री ओम थानवी को..
- भगत सिंह के भतीजे ने किया दावा, भगत सिंह की भी हुई थी जासूसी..
- IB ने ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी से साझा की थी बोस के परिजनों की जासूसी की जानकारी..
- शिवसेना ने ओवैसी भाइयों को बताया संपोला..
- मंगलीपेठ में गरीब भी मनायेंगे अम्बेडकर जयंती..
- अब नहीं सोचेंगे, तो कब सोचेंगे..
- हजारीबाग-बरकाकाना रेल खंड पर आपस में स्वतः जुड़ रही हैं रेल पटरियां..
- IPL में फिक्सिंग..
- गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस के बैंक खाते सीज़ किये..
- आतंकी बता कर फ़र्ज़ी एनकाउंटर..
- सत्यम घोटाले में रामलिंगा राजू समेत 10 आरोपी दोषी करार, कल सजा मिलेगी..
- गृह मंत्रालय द्वारा फिर से फंड रोकने को ग्रीनपीस देगा कोर्ट में चुनौती..
- दिवालिया होने कगार पर मगर निवेशकों का पैसा लुटाने में कोई शर्म नहीं..
- ‘साहेब’ कोई किसान यूँ ही नहीं मरता..
- 1995 से लेकर अब तक 2 लाख 70 हज़ार 940 किसानों ने आत्महत्या की..
- ढह रहे हैं सुब्रतो राय के किले, सहारा कर्मचारी कर रहे हैं आत्महत्या..
- बोली पर ब्रेक..
- आम आदमी पार्टी और लोकतंत्र की चुनौतियाँ..
- जाके पाँव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई..
- नग्न हालत में मिले युवक युवती के शव, ऑनर किलिंग का शक़..
- बोली पर ब्रेक..
- प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को निकाला जायेगा आप से..
- फैब इंडिया हिडन कैमरा मामले में चारों आरोपियों को जमानत..
- फर्जी आईडी पर ट्रेनिंग लेने वाली IAS रूबी खुदकुशी की धमकी के बाद गिरफ्तार..
- फैब इंडिया के प्रबंध निदेशक विलियम बिसेल से भी होगी पूछताछ..
- इतिहास बोल रहा है, आप सुनेंगे क्या..
Contacts and informationमीडिया दरबार - जहाँ लगता है दरबार. आप ही राजा हैं इस दरबार के और कटघरे में है मीडिया. हम तो मात्र एक मंच हैं और मीडिया पर अपनी निगाह जमायें हैं, जहाँ भी मीडिया में कुछ गलत होता दिखाई देता है उसे हम आपके सामने रख देते हैं और चलाते हैं मुकद्दमा. जिसपर सुनवाई करते हैं आप, जहाँ न्याय करते हैं आप. जी हाँ, यह एक अलग किस्म का दरबार है. मीडिया दरबार... | Social networks | Most popular categories |
© 2014 All rights reserved.
Clik here to view.

0 comments
Add your comment