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नेट न्यूट्रेलिटी और हम..

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-राजेश कुमार चौहान।।

प्रस्तुति- रिद्धि सिन्हा नुपूर 
इंटरनेट की दुनिया में एक प्रकार का साम्यवाद कायम है। यहाँ हम सब एक समान हैं, इंटरनेट किसी के पैसे और रूतबे को नहीं पहचानता है, यह बस अपने यूजर को जानता है। इंटरनेट के लिए उसके सारे यूजर एक समान हैं वह किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। सोशल मीडिया वेबसाइट ने इस प्रक्रिया को और आसान बना दिया। एक समय था जब देश के प्रधानमंत्री की एक झलक पाने को पूरा देश बेताब रहता था, एक आज का दौर है जहाँ इंटरनेट के जरिए लोगों को प्रधानमंत्री के पल-पल की अपडेट मिल जाती है।
इन सब के बीच “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी के मसले पर एक ऐसी बहस ने जन्म लिया जिसमें इंटरनेट पर कहीं भी विचरण की आजादी पर एक तरह से लगाम लग सकती है। टेलिकॉम कंपनियाँ इंटरनेट पर यूजर की आजादी पर लगाम लगाना चाहती है। उसका तर्क है कि ऐसा करने से कुछ वेबसाइट के सर्फिंग पर पैसे ही नहीं चुकाने पड़ेंगे, लेकिन ऐसा होते ही कुछ साइटों तक यूजर की पहुँच ही मुश्किल हो जाएगी। फिलहाल किसी भी एेप को इस्तेमाल करने के लिए आपको एक ही इंटरनेट प्लान चाहिए होता है, लेकिन अगर ये लागू हुआ तो आपको एेप्स के लिए अलग प्लान लेना होगा। दरअसल टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि वॉइस कॉल देने वाली एेप्ससे उनका रेवेन्यू घटा है, इसलिए उनकी मांग हैं कि ये कमाई उन्हें मिले। इससे कंपनियों को तो फायदा होगा, लेकिन यूजर्स के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी। वहीं ये सर्विस प्री-पेड और पोस्ट-पेड दोनों पर लागू किए जाने की मांग है। दूरसंचार कंपनियाँ “नेट न्यूट्रेलिटी” को अलग तरीके से परिभाषित कर रही हैं।
ट्राई ने नेट न्यूट्रेलिटी के संबंध में दूरसंचार कंपनियों से 24 अप्रैल और यूजर्स से 8 मई तक सुझाव देने के लिए कहा है। इसके लिए आपको advqos@trai.gov.in साइट पर अपनी राय देनी है। कंपनियाँ नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर रोकेगी रास्ता “नेट न्यूट्रेलिटी” यानी कि नेट की आजादी, अगर यह आजादी छीन जाए तो हमारे इंटरनेट इस्तेमाल करने पर इसका क्या असर पड़ेगा? जब हम एक बार कोई डाटा पैक डलवाते हैं उसमें पैसे देने के बाद हम व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी कोई भी इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल कर पाते हैं। हर सेवा की स्पीड एक जैसी होती है और हर सेवा के अलग से कोई पैसे नहीं देने पड़ते हैं। यानी कि इंटरनेट का पैक भरवा लिया तो जब तक डाटा है कहीं भी-कुछ भी एक्सेस करिये बिंदास। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि उनके मुनाफे पर सबसे ज्यादा नुकसान व्हाट्सएप जैसे वॉइस कॉलिंग कंपनी के बढ़ते इस्तेमाल के कारण हुआ है। इसलिए टेलिकॉम कंपनियां इंटरनेट की आजादी को नए तरह से पेश करना चाहती है जिसमें कुछ सेवाएं मुफ्त हो सकती हैं तो कुछ के लिए अलग से पैसे भी देने पड़ सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ सेवाओं के लिए ज्यादा स्पीड तो कुछ के लिए कम स्पीड का अधिकार भी कंपनियां अपने पास रखना चाहती हैं।
कंपनियाँ उन कुछ वेबसाइटों को सर्फ करने के लिए अलग से पैसे चार्ज करने के फिराक में है जिनसे हमारा पल-पल का रिश्ता बन चुका है। जैसे उदाहरण के लिए जब आप व्हाट्सएप, फेसबुक, क्विकर, स्नैपडील, गूगल, यू ट्यूब जैसी ढेरों इंटरनेट सेवाएं इस्तेमाल करेंगे तो हर सेवा के लिए अलग अलग पैसे देने पड़ेंगे। इसे आप डीटीएच की तर्ज पर समझ सकते हैं कि यदि आपने किसी भी डीटीएच कंपनी में कोई पैक डलवाया है उसमें सारे चैनल आ रहे हैं लेकिन किसी स्पोर्ट्स के चैनल को देखने के लिए अलग से पैसे चुकाने पड़ते हैं। बदलाव का समर्थन करने वाली टेलीकॉम कंपनियों का तर्क है कि ऐसी स्थिति में मुफ्त इंटरनेट गरीब भी इस्तेमाल कर पाएंगे। लेकिन वो क्या इस्तेमाल कर पाऐंगे यह सोचने वाली बात है? दूसरा पक्ष यह है कि इस बदलाव से इंटरनेट की आजादी छिन जाएगी। यदि आपको यूट्यूब पर मुशायरा सुनने का मन हो गया तो उसके लिए आपको अलग से पैसे चुकाने होंगे।
दूसरी एक और समस्या जो सामने आई है वो है मोनोपॉली की, बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरसंचार कंपनी से समझौता कर उन्हें अपने उत्पाद के लिए इंटरनेट स्पीड तेज करने का प्रस्ताव करेगी और अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों की स्पीड धीमी कर दी जाएगी, ऐसा करने पर छोटी कंपनियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। अभी हाल ही में एयरटेल ने फ्लिपकार्ट से हाथ मिलाया है। ऐसे में एयरटेल के इंटरनेट कनेक्शन पर फ्लिपकार्ट तेज चलेगी और फ्लिपकार्ट की प्रतियोगी कंपनियां हो सकता है कि धीमी हो जाएं। ये भी मुमकिन है कि ऐसे में किसी दूसरे टेलिकॉम कंपनी के कनेक्शन से आप फ्लिपकार्ट तक पहुंच ही ना पाएं। इन सारे तर्कों के अलावे मुनाफे पर जो चर्चा हो रही है वहाँ क्या डाटा पैक के जरिए कंपनियाँ काफी कमा रही हैं, जो कमाई आने वाले समय में और बढ़ने वाली है। इसलिए नेट न्यूट्रेलिटी के नाम पर इंटरनेट के उपभोक्ता की आजादी छीनने का प्रयास सरासर बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाने की कोशिश है।
हालांकि, सरकार ने अब तक इस पर अपना रुख साफ नहीं किया है लेकिन टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद कह चुके हैं कि इंटरनेट इंसानी दिमाग की एक बेहतरीन खोज है। ये पूरी इंसानियत के लिए है ना कि कुछ लोगों के लिए, हमारी सरकार लोगोंके हित में इंटरनेट के इस्तेमाल में विश्वास रखती है। टेलिकॉम विभाग की एक समिति इस पूरे मामले को देखने के लिए बनाई गई है, यह समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगी। इससे पहले पूरी दुनिया में इस तरह के प्रयोग भी हो चुके हैं और बहस आज भी जारी है। भारत में यह फैसला ट्राई को लेना है, ट्राई ने इस बार फैसला लेने से पहले आपकी राय मांगी है। लेकिन टेलिकॉम कंपनियों की यह लॉबिंग कामयाब रही तो इंटरनेट की आजादी खतरे में पड़ सकती है। ऐसा हुआ तो इंटरनेट पर बढ़ती लोअर मिड़ल क्लास आबादी पर ब्रेक लग जाएगा तब य़हाँ बिना दीवारों वाली दुनिया में भी उँच-नीच की दीवारें खड़ी हो जाएंगी

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