मीडिया का मोदी इफेक्ट vs मोदी का मीडिया इफेक्ट
अनामी शरण बबल
धरती ने ली अंगडाई और हजारों ने जान गंवाई यानी भूकंप का असर मंद पड चुका है, मगर इसी के साथ मोदी पुराण का एक औरअध्याय प्रस्तुतहै, जिसमें मोदी जी ने मीडिया का मनचाहा प्रयोग किया। गुजरात सुपुत्र दबंग नरेन्द्र दामोदर मोदी जब भारत के प्रधान सेवक (? ) बने तो देश की अंधिकांश भोकाली मीडिया के मालिकों संपादको नें मोदी पुराण राग अलापना चालू करके मोदी का सबसे बडा भोंपू ( hmv) साबित करने दिखाने और बनने की होड में जुट गए। चूंकि मोदीकी इमेज जरा सख्त थी, इस कारण तमाम मीडिया भांपने के अंदाज में मोदी के पास मंडरा रही थी। मोदी पर मीडिया इफेक्ट का क्या असर हुआ यह अभी साफ नहीं हो पाया कि मोदी प्रेम में आकंठ तरबतर मीडिया अभी एक साल के बाद भी मोदी प्रेम में ही है, पर मोदी के मैनेजरों ने मीडिया और खासकर भोकाली मीडिया पर इस तरह का शिकंजा कसा जिससे भोकाली मीडिया पर मोदीकरण इस तरह हुआ कि यह अपनी भाषा ही भूल गयी। कमलिया पुराण के अनुसार चाल चलन चरित्र चेहरा और चंचलता को बिसरा कर मोदी के लिए भोकाली मीडिया मोदी इमेज डेवलपमेंट कंपेन में बिजी हो गए।
बराक भले ही अमरीका के मुखिया हो पर अपन मोदी जी भी एशिया के ( मान न मान मैं तेरा प्रधान) मुखिया मान कर ही काम कर रहे है। अभी नेपाल में ङरती ने क्या ली अंगडाई कि लाखों की जान पे बन आई है। इस विपदा पर कुछ भी कमेंट्स करना सवाल उठाना संदेह करना गोर पाप है. मैं खुद को पापी नहीं मानता कि संसद में जब धुर विरोधी भी जब तारीफ करते न थके हो, या देश की घर गृहस्थी देख रहे राजनाथ भी जब तारीफ करते हुए गंगा जल बहाने लगे हो तो मैं श्रीमान प्रधानसेवर पर कोई संदेह करूं। फिर जिस त्तत्परता और सजगता के साथ सेवक जी ने दामन थामा वह भी नौकरशाहों के लिए एक नसीहत ही है। नेपाल की पीडा से मेरा दिल भी किसी कमली नेता या विरोधी नेता से कम दुखी नहीं है, पर भूकंप के नाम पर की जा रही साईलेंट पोलटिक्स और खबरों को छिपाने दबाने की कुचेष्टा से प्रधानसेवक एंड कंपनी की नीयत पर एकबडा सवाल खडा हो जाता है।
भोकाली मीडिया की नजर में देश एक हंसता खेलता गाता पीता खुशहाल देश है। शक्तिमान बनने के करीब है और इतना सक्षम है कि बस वो दूसरों को भी बहुत कुछ दे सकती है।
नेपाल के साथ भारत के खडा होने और अरबों की मदद करने पर भी कोई आपति नहीं है । दुनिया के ज्यादातर देश एक दूसरों से मिलजुल कर ही काम चलाते निकालते और एक दूसरों को बनाते है। पर मीडिया मेंकाम से ज्यादा प्रचार और ध्यान खींचने में माहिर सेवक एंड कंपनी की इस नीयत पर भी इस समय मेरा मन सवाल उठाने का नहीं है।य़ मैं इस समय भोकाली मीडिया के मोदी मीडिया या कमलिया मीडिया बन जाने या फिर एक दूसरे से बडा चंपू बनन ेकी प्रवृति पर चिंचिच हूं। सरकारी रहमोकरम पर मीडिया के नेपाल टूर को देखकर मेरी परेशानी और बढ गयी है। नेपाव त्रासदी की ज्यादा से ज्यादा खबरों को देखकर नेपाल की पीडा से मन आहत है, मगर नेपाल के दुरस्थ में जाकर भी भओकाली रिपोर्टरों की खबरऔर चानलों पर बार बार पत्रकारों को दिखाकर अपनी इमेज चमकाया जा रहा है । मगर दिल्ली से लगे मेरठ हाथरस शामली मेवात झज्जर बागपत की तो बात भऊल जाइए दिल्ली में ही पूरी तरह दिल्ली की खबर कवर ना करने वाले भोकालियों के नेपाल प्रेम पर मन अभी तक संशंकित ही है।
. अपने अंशकालिक रिपोर्टरों को हर खबर पर 500 रुईया देने में 500 दिन लगाने वाले यही भोकाल मीडिया के लोग नेपाल से या भूकंप से इतने द्रवित क्यों हो गए कि फटाफट ( टीवी लैंग्वेज) अपने जिन रिपोर्टरों को बाहर नहीं भेजा सबको नेपाल भेज दिया। नेपाल गए तमाम धुरंधर मन लगाकर काम कर रहे है और एक से बढकर एक मार्मिक खबर भेज भी रहे है। इन खबरों को देखकर तो मन आहत है, पर मोदी जी ने अपनी ताकत नजाकत भाषाई शराफत से भारतमें इसी त्रासदी से प्रभावित इलाकों की खबर को ही भोकाली मीडिया के रूपहले पर्दे से लापता कर दिया। बिहार बंगाल यूपी सेवेन सिस्टर्स स्टेट समेत देश के कई हिस्सों में इसी विपदा से जूझ रहे हजारों लोगों को खबर बनने पर ही (अघोषित) पाबंदी लगा दी। देश के विभिन्न इलाकों में इस त्रासदी का क्या हाल है इसको जानने का मीडियाई अधिकार से भी ज्यादातर लोग वंचित है, क्योंकि नेपाल के ही इतने फूटेज और स्पेशल स्टोरी है कि इंडिया को कौन पूछे।
वेतन की कटौती या बिन बुलाए फोन पर ही दफ्तर न आने का फरमान सुनाकर नौकरी खत्म करने वाले भोकालियों के पास केवल एक ही रटा रटाया कुतर्क है कि एड नहीं है लाभ नहीं है भोकाल मास्टर घाटे में है लिहाजा बलि देनी पड रही है या मजबूरी है। दरिद्र राग के भोकाल गायकों के पास एकाएक करोडों रूपईया कहां से टपक पडा या टीआरपी रेटिंग में अईसा क्या उछाल मारा कति कुबेर अवतरित हुए और एक ही साथ आठ आठ रिपोर्टर यानी इतने ही कैमरामैन और हर टीम के साथ एक सहायक भी दें तो करीब 20-22 लोगों को नेपाल ता दौरा कराना और तमाम सुविधा प्रदान कराने का न्यूनतम खर्चा 25 -30 लाख तो आएगा ही (मन को दबाकर खर्चा लिख रहा हूं अन्यथा मार्केट की गरमी का अहसास मोदीजी जेटलीजी शाहजी आदि नेताओं से कम ज्ञान नहीं होने का दावा है) यह खर्च दोहरा होने से कतई कम नहीं होगा। खैर
पिछले साल मोदीजी अमरीका गए थे, मगर मोदी जी से एक सप्ताह पहले इंडियन भोकाली मीडिया के ज्यादातर स्मार्ट भोकालों को एक सप्ताह पहले ही भेज दिया गया था। इन भोकालों ने अमरीका में जाकर अईसा भोकाल मचाया कि बेचारका ओबामा भी दंग हैरान रह गए।य़ अमरीका में मोदी जी ने अईसा रोडशो किया कि अमरीकी भी मोदी मैजिक में खुद को भूला बैठे। भारतीय मूल के अमरीकी तो सही मायने में मोदी प्रेम में थोडा तोडा पगला से गए। मगर मोदी मैजिक और मोजी सेंस तो इस पर भारी है ही, मगर मीडिया को चाकर बनाकर अपने साथ घूम रहे प्रधानसेवक के काम और नाम का यह नजाकतभी कम नहीं रै। जापान भूटान पाकिस्तान भी गए मगर मीडिया को सरकारी मीडिया बनाकर ले गए , मगर अमरीका तो मोदी इमेज डेवलपर्स की तरह भोकालो ने भोकाल मचाया। मोदी द्वारा मीडिया के उपयोग पर समूचा विपक्ष हैरान पस्त त्रस्त है पर अपने लिए किसी को बताए बिना ही अपना बनाकर यूज कर लेना भी कोई सरल काम नहीं है कि धरना देने वाले सांसद एक बार में ही इस गूर को सीखले।
तो दोस्तों भारतीय त्रासदी को भारत से ही लापता रखने या कम दिखाने की यह मीडियाई चरित्र पर विचार होना जरूरी है। यदि अपने काम काज पर नजप डाले तो ( यदि समय हो तो ) मोदीजी आप खुद अपने आप अपना मूल्यांकन करे काम काज की समीक्षा करे और 11 माह की उपलब्धियों पर गौर करे तथा खुद ही बताइए कि कि इंडिया में कौन सी क्रांति आ गयी। देश कौन सा खुशहाल हो गया। देश बातों से आगे बढता तो 21वी सदी का सपना उछालने वाले दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो यह जुमला तभी उछाल दिया था जब आपके भगवाकरण का सही मायने में राजनीतिकभविष्य ही तय नहीं हो पाया था।
बहरहाल विविधताओं से भरे इस भारत देश में मोदी समान बहुत लोग ऐए और बहुत लोग आएंगे मगर देश और मीडिया का कैरेक्टर समान होना डरूरी है। खासकर भोकाली मीडिया के भोकालों को यह सोचना होगा कि वे अपनी ब्राडिंग के चक्कर में अपनमी साख और विश्वसनीयता पर ज्यादा जोर देना होगा , तभी मीडिया के प्रति लोग यकीन करेंगे, जिसपर लोग सवाल उठा रहे है? भोकाली मीडिया के मालिकों से ज्यादा भोकाल पत्रकारों की मौजूदा पीढी है जो सत्ता सरकार स्वयंभू मालिक और दर्शकों को एक साथ नाथने के फिराक में खुद कोल्हू का बैल बना खट रहाहै ौर मीडिया की साख रसातल में चली गयी, इस पर विचार करने का मौका भी नहीं , क्योंकि हाजिरी बचाते 2 खुद परिदृश्य से लापता हो चुका है मीडिया को जनता की नजर सि गिराकर.
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ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त कृष्णा मेनन ने बीबीसी हिंदी सेवा का उद्घाटन किया
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भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के साथ बीबीसी के रत्नाकर भारती
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