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समाचार लेखन के मुख्य तत्व

प्रस्तुति-- अमन कुमार हुमरा असद


 परिचय: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।
समाचार की परिभाषा
लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो :
नंद किशोर त्रिखा
किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा
समाचार के मूल्य
1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।
2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये।
3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।
4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।
6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली
ऐतिहासिक विकास
इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।
लेखन प्रक्रिया:
उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।स
माचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है।
समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है।
एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो।
अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
समाचार संपादन
समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
संपादन की प्रक्रिया-
रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है।
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन : रेडियो के किसी भी स्टेशन में खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है। यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।
संपादन के महत्वपूर्ण चरण
1. समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2. भाषा सहज और सरल हो।
3. समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6. समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7. कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8. रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
चाहिये ।
9. संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।
समाचार संपादन के तत्व
संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1. शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए।
2. शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3. शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
7. शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8. शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।
2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।
3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
2. समाचार नीति के अनुरूप हो।
3. समाचार तथ्याधारित हो।
4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
5. समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे पुष्ट बनाएँ।
6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस कर दें।
7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
13. समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए।
14. समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।
समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द
समाचार के स्रोत
कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका), ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है
(ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं।
(स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।
4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है।
11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

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