पत्रकारिता:
पत्रकारिता अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का अनुवाद है। ‘जर्नलिज्म’ शब्द मेंफ्रेंच शब्द ‘जर्नी’ या ‘जर्नल’ यानी दैनिक शब्द समाहित है। जिसका तात्पर्यहोता है, दिन-प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य। पहले के समय में सरकारीकार्यों का दैनिक लेखा-जोखा, बैठकों की कार्यवाही और क्रियाकलापों को जर्नलमें रखा जाता था, वहीं से पत्रकारिता यानी ‘जर्नलिज्म’ शब्द का उद्भव हुआ। 16वीं और 18 वीं सदी में पिरियोडिकल के स्थान पर डियूरलन और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग हुआ। बाद में इसे ‘जर्नलिज्म’ कहा जाने लगा। पत्रकारिताका शब्द तो नया है लेकिन विभिन्न माध्यमों द्वारा पौराणिक काल से हीपत्रकारिता की जाती रही है। जैसा कि विदित है मनुष्य का स्वभाव ही जिज्ञासुप्रवृत्ति का होता है। और इसी जिज्ञासा के चलते आरम्भ में ही उसने विभिन्नखोजों को भी अंजाम दिया। पत्रकारिता के उदभव और विकास के लिए इसीप्रवृत्ति को प्रमुख कारण भी माना गया है।
अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के चलते मनुष्य अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं कोजानने का उत्सुक रहता है। वो न केवल अपने आस पास साथ ही हर विषय को जाननेका प्रयास करता है। समाज में प्रतिदिन होने वाली ऐसी घटनाओं और गतिविधियोंको जानने के लिए पत्रकारिता सबसे बहु उपयोगी साधन कहा जा सकता है। इसीलिएपत्रकारिता को जल्दी में लिखा गया इतिहासभी कहा गया है। समाज से हर पहलू और आत्मीयता के साथ जुड़ाव के कारण ही पत्रकारिता कोकला का दर्जा भीमिला हुआ है। पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापकता लिए हुए है। इसेसीमित शब्दावली में बांधना कठिन है। पत्रकारिता के इन सिद्धान्तों कोपरिभाषित करना कठिन काम है, फिर भी कुछ विद्वानों ने इसे सरल रूप सेपरिभाषित करने का प्रयास किया है, जिससे पत्रकारिता को समझने में आसानीहोगी।
महात्मा गॉधी के अनुसार-पत्रकारिता का अर्थ सेवा करना है।
डॉ. अर्जुन तिवारी ने एनसाइक्लोपिडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है-
‘‘पत्रकारिता के लिए अंग्रेंजी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द का प्रयोग होता हैजो जर्नल’ से निकला है,जिसका शाब्दिक अर्थ ‘दैनिक’ है। दिन-प्रतिदिन केक्रिया-कलापों, सरकारी बैठकों का विवरण‘जर्नल’ में रहता था। 17वीं एवं 18वीं सदी में पिरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द‘डियूरनल’ ‘और’ ‘जर्नल’ शब्दों के प्रयोग हुए। 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना और विद्वत्तापूर्णप्रकाशन को भी इसी के अन्तर्गत माना गया। ‘जर्नल’ से बना‘जर्नलिज्म’अपेक्षाकृत व्यापक शब्द है। समाचार पत्रों एवं विविधकालिकपत्रिकाओं के सम्पादन एवं लेखन और तत्सम्बन्धी कार्यों को पत्रकारिता केअन्तर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कलाएवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है। समसामयिक गतिविधियों के संचारसे सम्बद्ध सभी साधन चाहे वे रेडियो हो या टेलीविजन इसी के अन्तर्गतसमाहित हैं।’’
डॉ.बद्रीनाथ कपूर के अनुसार‘‘पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित तथा सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश आदि देने का कार्य है।’’
हिन्द शब्द सागर के अनुसार‘‘ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है।’’
श्री रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर के अनुसार‘‘ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना ही पत्रकला है।’’
सी.जी.मूलर "सामयिक ज्ञान के व्यवसाय को पत्रकारिता मानते हैं। इसव्यवसाय में आवश्यक तथ्यों की प्राप्ति, सावधानी पूर्वक उनका मूल्यांकन तथाउचित प्रस्तुतीकरण होता है।
विखमस्टीड ने"पत्रकारिता को कला, वृत्ति और जन सेवा माना है।’’
मुद्रण तकनीक और समाचार पत्र:
पांचवीं शताब्दी ईसवी पूर्व में रोम में संवाद लेखक हुआ करते थे। मुद्रणकला के आविष्कार के बाद इसी तरह से लिखकर खबरों को पहुंचाया जाने लगा।मुद्रण के आविष्कार के बारे में तय तारीख के बारे में कहा जाना मुश्किल है, लेकिनईसा की दूसरी शताब्दी में इसके आविष्कार को लेकर कुछ प्रमाण मिले हैं। इस दौरान चीन में सर्वप्रथम कागज का निर्माण हुआ।सातवीं शताब्दी मे कागज के निर्माण की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया।कागज का आधुनिक रूप फ्रांस के निकोलस लुईस राबर्ट ने 1778 ई में बनाया। लकड़ी के ठप्पों सेछपाई का काम भी सबसे पहले पाँचवी तथा छठी शताब्दी में चीन में शुरू हुआ।इन ठप्पों का प्रयोग कपड़ो की रंगाई में होता था। भारत में छपाई का काम भीलगभग इसी दौरान आरंभ हो गया था। 11वीं सदी में चीन में पत्थर के टाइप बनाएगए ताकि अधिक प्रतियाँ छापी जा सके। 13वी-14वीं सदी में चीन ने अलग-अलगसंकेत चिन्हों को बनाने में सफलता प्राप्त कर ली।धातु टाइपों से पहली पुस्तक 1409 ईसवीं में छापी जाने के प्रमाण हैं।बाद में कोरिया से चीन होकर धातु टाइप यूरोप पहुँचा। 1500 ईसवीं तक पूरेयूरोप में सैकड़ों छापेखाने खुल गए थे, जिनसे समाचार पत्रों और पुस्तक काप्रकाशन होने लगा।नीदरलैंड से 1526 में न्यू जाइटुंग का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसके बाद लगभग एक शताब्दी तक कोई दूसरा समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ। दैनिक पत्रों के इतिहास मेंपहला अंग्रेजी दैनिक 11 मार्च 1709 को ‘डेली करंट’ प्रकाशित हुआ।
प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद काफी समय तक किताबें और सरकारीदस्तावेज़ ही उनमें मुद्रित हुआ करते थे। सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध मेंपूरा यूरोप युद्धों को झेल रहा था, सामंतवाद लगातार अपनी शक्ति खो रहा था।अनेक विचारधाराएं उत्पन्न हो रहीं थी। उद्यमी व्यक्ति अनेक पीढ़ियों तकअपने समकालीन लोगों में ग्रन्थकार, घटना लेखक, सार लेखक, समाचार लेखक, समाचार प्रसारक,रोजनामचा नवीस, गजेटियर के नाम से जाने जाते थे। इस दौरान ‘आक्सफोर्ड गजट’ और फिर ‘लंदन गजट’ निकले जिनके बारे में पेपीज ने लिखाथा, 'बहुत सुन्दर समाचारों से भरपूर और इसमें कोई टिप्पणी नहीं।'इसमें सन् 1665 और उसके बाद तक समाचार प्रकाशित होते थे। तीस वर्ष बाद ‘समाचारपुस्तिका’ शब्द का लोप हो गया और अब उसके पाठक उसे समाचार पत्र कहने लगे। समाचार पत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख सन् 1670 में मिलता है। इस प्रकार के समाचार-लेखकों का महत्व आने वाले समय में लम्बी अवधि तक बना रहा।
भारत में पुर्तगाली मिशनरियों द्वारा स्थापित प्रेस में धार्मिक पुस्तकोंका प्रकाशन ज्यादा होता था। 1558 में तमिलनाडु में और 1602 में मालाबार केतिनेवली में दूसरी प्रेस लगाई गई। बाद में 1679 में बिचुर में एक प्रेस कीस्थापना हुई जिसमें तमिल-पोर्तुगीज शब्दकोष छापा गया। फिर कोचीन और मुबंईमें भी ऐसे प्रेस स्थापित किए गए।ब्रिटिश भारत में सबसे पहले अंग्रेजी प्रेस की स्थापना 1674 में बम्बई में हुई थी।इसके बाद 1772 में चेन्नई और 1779 में कोलकता में सरकारी छापेखाने कीस्थापना हुई। सन् 1772 तक मद्रास और अठारहवीं सदी के अंत तक भारत के लगभगज्यादातर नगरों में प्रेस स्थापित हो गए थे।
हिकी'ज बंगाल गजट: भारत में पहला समाचार पत्र
भारत मे सर्वप्रथम जेम्स आगस्ट्स हिक्की ने "हिकी'ज बंगाल गजट"के नाम सेअखबार निकाल कर पत्रकारिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की। इस अखबार मेभ्रष्टाचार और शासन की निष्पक्ष आलोचना होने के कारण सरकार ने इसकेप्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया।‘जैम्स हिक्की’ द्वारा 29 जनवरी 1780 कोबंगाल गजट या ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’नामक साप्ताहिक पत्र प्रारम्भ कियागया। वस्तुतः इसी दिन से भारत में पत्रकारिता का विधिवत् प्रारम्भ हुआ। यहपत्र राजनीतिक और आर्थिक विषयों का साप्ताहिक है और इसका सम्बन्ध हर दल सेहै, मगर यह किसी दल के प्रभाव में नहीं आएगा। स्वयं के बारे में हिक्की कीधारणा थी-‘‘मुझे अखबार छापने का विशेष चाव नहीं है, न मुझमें इसकीयोग्यता है। कठिन परिश्रम करना मेरे स्वभाव में नहीं है, तब भी मुझे अपनेशरीर को कष्ट देना स्वीकार है ताकि मैं मन और आत्मा की स्वाधीनता प्राप्तकर सकूं।"दो पृष्ठों के तीन कालम में दोनों ओर से छपने वाले इस अखबारके पृष्ठ 12 इंच लंबे और 8 इंच चौड़े थे। इसमें हिक्की का विशेष स्तंभ ‘एपोयट्स’ कार्नर होता था। इसके बाद 1780 में इंडिया गजट का प्रकाशन हुआ। 50 वर्षों तक प्रकाशित होने वाले इस अखबार में ईस्ट इंडिया कंपनी कीव्यावसायिक गतिविधियों के समाचार दिए जाते थे। कलकत्ता में पत्रकारिता केविकास के जो प्रमुख कारण थे उसमें से एक था वहां बंदरगाह का होना। इसकेअलावा कलकत्ता अंग्रेजो का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र भी था। एक और कारण यहथा कि पश्चिम बंगाल से ही आजादी के ज्यादातर आंदोलन संचालित हो रहे थे।18वींशताब्दी के अंत तक बंगाल से कलकत्ता कोरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिएंटल स्टारतथा मुंबई से बंबई हेराल्ड अखबार 1790 में प्रकाशित हुआ, और चेन्नई सेमद्रास कोरियर आदि समाचार पत्रप्रकाशित होने लगे। इन समाचार पत्रों कीविशेषता यह थी कि इनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग था। मद्राससरकार ने समाचार पत्रों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े फैसले भी लिए। मुबंई औरमद्रास से शुरू हुए पत्रों की उग्रता हिक्की की तुलना में कम थी। हालांकिवे भी कंपनी शासन के पक्षधर नहीं थे।मई 1799 में सर वेलेजली ने सबसे पहले प्रेस एक्ट बनायाजो कि भारतीय पत्रकारिता जगता का पहला कानून था। एक प्रमुख बात जो देखनेको मिली वो थी अखबारों को शुरू करने वाले लोगों की कठिनाई। बंगाल जर्नल केसंपादक बिलियम डुएन को भी पूर्ववत् संपादकों की तरह ही भारत छोड़ना पड़ा।
हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव (1826-1867)
उदन्त मार्तण्ड: हिन्दी पत्रकारिता का आरंभ30 मई 1826 ई.सेहिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ द्वारा हुआ जो कोलकाता सेकानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित किया गया था। श्रीशुक्ल पहले सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उन्होंने उसे छोड़कर समाचार पत्र काप्रकाशन करना उचित समझा। हालांकि हिन्दी में समाचार पत्र का प्रकाशन करनाएक मुस्किल काम था, क्योंकि उस दौरान इस भाषा के लेखन में पारंगत लोगउन्हें नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने अपने प्रवेशांक में लिखा था कि‘‘यह उदन्त मार्तण्ड’हिन्दुस्तानिया के हित में पहले-पहल प्रकाशित है, जोआज तक किसी ने नहीं चलाया। अंग्रेजी, पारसी और बंगला में समाचार का कागजछपता है उसका सुख उन बोलियों को जानने वालों को ही होता है और सब लोग पराएसुख से सुखी होते हैं। इससे हिन्दुस्तानी लोग समाचार पढ़े और समझ लें, पराईअपेक्षा न करें और अपनी भाषा की उपज न छोड़े।....’’ उदंत मार्तण्ड कामूल्य प्रति अंक आठ आने और मासिक दो रुपये था। क्योंकि इस अखबार को सरकारविज्ञापन देने में उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाती थी।यह दुर्भाग्य ही था किहिन्दी पत्रकारिता का उदय के साथ ही आर्थिक संकट से भी इसको रूबरू होनापड़ा। यह पत्र सरकारी सहयोग के अभाव और ग्राहकों की कमी के कारण कम्पनीसरकार के प्रतिबन्धों से अधिक नहीं लड़ पाया। लेकिन आर्थिक संकट और बंगालमें हिन्दी के जानकारों की कमी के चलते आखिरकार ठीक 18 महीने के पश्चात सन् 1827 में इसे बंद करना पड़ा। तमाम कारणों के बाद भी केवल 18 माह तक चलनेवाले इस अखबार ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा देने का काम तो कर हीदिया। उन्होंने अपने अंतिम पृष्ठ में लिखा-
"आज दिवस को उग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त।
अस्तांचल को जात है दिनकर अब दिन अंत।"
आर्थिक संकटों के चलते ज्यादातर हिन्दी समाचार पत्रों को काफी कठिनाइयाँ आईऔर उनमें ज्यादातर बंद करने पड़े। हिन्दी पत्रों की इस श्रंखला में श्रीभारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘कवि वचन सुधा’और‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’तथाबालबोधिनी कोलकाता के ‘भारतमित्र’ प्रयोग के‘हिन्दी प्रदीप’, कानपुर के‘ब्राह्मण’ जैसे पत्रों ने हिन्दी पत्रकारिता की एक नई परंपरा स्थापित की।उस समय हिन्दी के पत्र साहित्यिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण कोप्रसारित करने अथवा प्रभावित करने के उद्देश्य से निकाले जाते थे और इसअर्थ में वे देश के अन्य समाचार पत्रों से भिन्न नहीं थे, क्योंकि उस समयपत्रकारिता इतनी कठिन थी। शिक्षा के अभाव में उद्योग समाप्त हो रहे थे। जब विश्व में कहीं लड़ाई होती थी तो उसकासीधा प्रभाव समाचार पत्रों पर पड़ताथा। युद्ध के दौरान ‘राजस्थान समाचार’ को दैनिक पत्र का दर्जा प्राप्त होगया, परन्तु जब युद्ध बन्द हो गया तो वह दैनिक भी बंद हो गया। कोलकाता के‘भारतमित्र’ का भी दो बार दैनिक के रूप में प्रकाशन हुआ था परन्तु वह अल्पअवधि तक ही जीवित रह सका। कानपुर के श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का‘प्रताप’, काशी का ‘आज’, प्रयाग का ‘अभ्युदय’ दिल्ली से स्वामी श्रद्धानन्दका ‘अर्जुन’ और फिर उनके पुत्र पं. इन्द्र विद्यावाचस्पति का ‘वीर अर्जुन’ ऐसे पत्र थे, जो निश्चित उद्देश्यों और विचारों को लेकर प्रकाशित किए गएथे। स्वाधीनता के समय तक दिल्ली में अनेक दैनिक पत्र थे। इनमें ‘वीरअर्जुन’ सबसे पुराना था। 1936 ई. में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के साथ इसकाहिन्दी संस्करण‘हिन्दुस्तान’ भी प्रकाशित हुआ। मार्च 1947 ई. में ‘नवभारत’, ‘विश्वमित्र’ और एक दैनिक पत्र‘नेताजी’ के नाम से प्रकाशित हुूआ था।उद्योग की दौड़ में इनमें से केवल दो पत्र‘हिन्दुस्तान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ ही रह गए। ‘वीर अर्जुन’ कई हाथों मेंं बिका, और लोकप्रिय हुआ, लेकिन उसकापुराना व्यक्तित्व और महत्व समाप्त हो गया। स्वाधीनता से पूर्व हिन्दी केअनेक दैनिक और साप्ताहिक पत्र विद्यमान थे। इनमें दिल्ली का ‘वीर अर्जुन’, आगरा का ‘सैनिक’, कानपुर का ‘प्रताप’ वाराणसी का संसार, पटना काराष्ट्रवाणी और नवशक्ति साप्ताहिक पत्र थे। मध्य प्रदेश में खण्डवा काकर्मवीर राष्ट्रीय चेतना से ओत प्रोतलेखन के लिए प्रसिद्ध था। इलाहाबाद कीइंडियन प्रेस से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पत्र देशदूत था, जो हिन्दीका एक सचित्र साप्ताहिक पत्र था। उस समय के पत्रों में चाहे वह सैनिक, प्रताप, अभ्यूदय अथवा आज जो भी हो उनमें राजनीतिक विचार एवं साहित्यिकसामग्री भरपूर मात्रा में थी। यशपाल की कहानियाँ सर्वप्रथम कानपुर केसाप्ताहिक पत्र प्रताप में प्रकाशित हुई थी। उस समय हिन्दी में कुछ उच्चकोटि के मासिक पत्र भी थे जो विभिन्न स्थानों से प्रकाशित होते थे। हिन्दीपत्रकारिता में हिन्दी के कवियों, लेखकों, आलोचकों को मुख्य रूप सेप्रोत्साहन दिया जाता था। हिन्दी पत्र का संपादक हिन्दी के विकास से जुड़ीगतिविधियों को प्रोत्साहन देना अपना कत्र्तव्य समझता था। उस समय की भाषामें इन्द्रजी का वीर अर्जुन, गणेश जी और उनके बाद नवीन जी का प्रताप, पराड़कर जी का आज, पं. माखनलाल चतुर्वेदी का कर्मवीर, प्रेमचंद जी का हंस औरपं. बनारसी दास चतुर्वेदी का विशाल भारत था
हिन्दी पत्रकारिता के विकास युग
आदि युग-हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव काल अर्थात् 30 मई 1826 को पं.जुगल किशोर शुक्ल द्वारा उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन आरंभ करने से 1872 तकउसका आदि युग रहा। भारतीयपत्रकारिता के उस आरंभिक युग में पत्रकारिता काउद्देश्य जनमानस में जागरुकता पैदा करना था। इस दौरान 1857 की क्रांति काप्रभाव भी लोगों पर देखने को मिला । भारतेन्दु युग- हिन्दी साहित्य के समानही हिन्दी पत्रकारिता मे भी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपना एक अलग ही स्थानहै। भारतेन्दु जी ने 1868 से ही पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना आरंभ कर दियाथा। पत्रकारों के इस युग में पत्रकारिता का उद्देश्य जनता में राष्ट्रीयएकता की भावना जागृत करना था। भारतेन्दु युग 1900 ई. सन माना जाता है। इसदौरान महिलाओं की समस्याओं पर आधारित बालबोधनी पत्रिका का भी प्रकाशन किया।मालवीय युग- 1887 में कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने मालवीय जी किसंपादकत्व में ‘हिन्दोस्थान’ नाम समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया था। बादमें मालवीय जी ने स्वयं ‘अभ्युदय’ नामक पत्रिका निकाली। बालमुकुन्द गुप्त, अमृतलाल चक्रवर्ती, गोपाल राम गहमरी आदि उस युग के प्रमुख संपादक थे। 1890 से 1905 तक के राजनैतिक परिवर्तन वाले युग में पत्रकारिता कालक्ष्य भीराजनैतिक समझ को जागृत करना था।
द्विवेदी युग-पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा 1903 में सरस्वतीका प्रकाशन करने के साथ ही पत्रकारिता को एक नया स्वरूप मिल गया। इस दौरानपत्रकारिता का विस्तार भी तेजी से हुआ। द्विवेदी युग का समय 1905 से 1920 माना जाता है। द्विवेदी युग में देश के कोने-कोने से पत्र-पत्रिकाओं का बड़ीतादाद में प्रकाशन होने लगा।
गांधी युग-मोहनदास करमचन्द गांधी अर्थात महात्मा गांधी का हिन्दीपत्रकारिता बड़ा योगदान रहा है। गांधी युग 1920 से 1947 तक माना जाता है। इसदौर में स्वतंत्रता आंदोलनो में भी तेजी आई थी आजादी को प्राप्त करने कीहोड़ में इन आंदोलनो के साथ पत्रकारिताभी काफी विकसीत होने लगी।इनमहत्वपूर्ण वर्षो में ही हिन्दी और भारतीय पत्रकारिता के मानक निर्धारितहुए। उन्हीं वर्षों में ही विश्व पत्रकारिता जगत मे भारतीय पत्रकारिता कीविशेष पहचान बनी। शिवप्रसाद गुप्त, गणेशशंकर विद्यार्थी, अम्बिका प्रसादवजपेयी,माखनलाल चतुर्वेदी, बाबूराम विष्णु पराड़कर आदि स्वनामधन्य पत्रकारउसी युग के हैं। कर्मवीर, प्रताप, हरिजन, नवजीवन, इंडियन ओपीनियन आदिदर्जनों पत्र पत्रिकाओं ने उस युग में स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई उर्जाप्रदान की ।
आधुनिक युग-स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक के वर्षों की हिन्दीपत्रकारिता की विकास यात्रा को आधुनिक युग में रखा जाता है। इस युग मेंपत्रकारिता के विषय क्षेत्र का विस्तार और नए आयामों का उद्भव हुआ हैआधुनिक दौर में भाषा और खबरों के चयन में भी काफी परिवर्तन देखने का मिलरहे हैं। खासतौर पर अखबारों की खबर पर समाज की आधुनिक सोच का प्रभाव भीपूरी तरह से देखने को मिल रहा है। इतना ही नहीं अखबारों में प्रबंधन औरविज्ञापन के बड़ते प्रभाव का असर भी हो रहा है। हर दिन नए नए अखबार एक नएस्वरूप में लोगों के सामने अ रहे है। खोजी पत्रकारिता का समावेश भी तेजी सेअखबारों को अपना चपेटे में ले रहा है। ज्यादातर अखबार इंटरनेट पर भी अपनेसारे संस्करण उपलब्ध करा रहे हैं। अन्य किताबों से संकलित करके पिछले कईसालों पुराने समाचार पत्र के विकास को जानने का प्रयास किया है। कुछ ऐसेअखबार और उनके प्रकाशन के वर्षो का विवरण हम छात्रों की सुविधा के लिए देरहें है।
एक शताब्दी से अधिक पुराने समाचार पत्र
1 बाम्बे समाचार, गुजराती दैनिक, बंबई 1822
2 क्राइस्ट चर्च स्कूल (बंबई शिक्षा समिति की पत्रिका) 1825
द्विभाषी वार्षिक पत्र, बंबई
3 जाम-ए-जमशेद, गुजराती दैनिक, बंबई 1832
4 टाइम्स आफ इंडिया अंग्रेजी दैनिक, बंबई 1838
5 कैलकटा रिव्यू, अंग्रेजी त्रैमासिक कलकत्ता 1844
6 तिरुनेलवेलि डायोसेजन मैगजीन, तमिल मासिक तिरुनेलवेलि 1849
7 एक्जा़मिनर, अंग्रेज़ी साप्ताहिक, बंबई 1850
8 गार्जियन, अंग्रेज़ी पाक्षिक, मद्रास 1851
9 ए इंडियन, पुर्तगाली साप्ताहिक, मारगांव 1861
10 बेलगाम समाचार, 10 मराठी साप्ताहिक बेलगाम 1863
11 न्यू मेन्स ब्रैड्शा, अंग्रेज़ी मासिक कलकत्ता 1865
12 पायनीयर, अंग्रेज़ी दैनिक, लखनऊ 1865
13 अमृत बाजार पत्रिका, अंग्रेज़ी दैनिक कलकत्ता 1868
14 सत्य शोधक, मराठी साप्ताहिक, रत्नगिरी 1871
15 बिहार हैरॉल्ड, अंग्रेज़ी साप्ताहिक, पटना 1874
16 स्टेट्समैन, (द) अंग्रेज़ी दैनिक, कलकत्ता 1875
17 हिन्दू, अंग्रेज़ी दैनिक, मद्रास 1878
18 प्रबोध चंद्रिका, मराठी साप्ताहिक, जलगांव 1880
19 केसरी, मराठी दैनिक पुणे 1881
20 आर्य गजट, उर्दू साप्ताहिक, दिल्ली 1884
21 दीपिका, मलयालम दैनिक, कोट्टायम 1887
22 न्यू लीडर,अंग्रेजी साप्ताहिक, मद्रास 1887
23 कैपिटल, अंग्रेजी साप्ताहिक, कलकत्ता 1888
प्रमुख प्रकाशन समूह और उनकी पत्रिकाएं :
1-बेनट कॉलमेन एण्ड कम्पनी लि. (पब्लिक लि.)- टाइम्स आफ इंडिया , इकोनेमिक टाइम्स (अंग्रेजी दैनिक 1961), नवभारत टाइम्स (हिन्दीदैनिक,1950), महाराष्ट्र टाइम्स (मराठी दैनिक,1972), सांध्य टाइम्स (हिन्दी दैनिक,1970), धर्मयुग(हिन्दी पाक्षिक,1957), टाइम्स आफ इंडिया (गुजराती दैनिक,1989)
2-इंडियन एक्सप्रेस (प्रा. लि. कम्पनी)- लोकसत्ता (मराठीदैनिक,1948), इंडियन एक्सप्रेस (अंग्रेजी दैनिक1953) फाइनेशियल एक्सप्रेस (अंग्रेजी दैनिक 1977), लोक प्रभा (मराठी साप्ताहिक 1974), जनसत्ता (हिन्दी 1983), समकालीन(गुजराती दैनिक 1983) स्क्रीन (अंग्रेजी साप्ताहिक,1950), दिनमानी (तमिल दैनिक,1957)
3-आनन्द बाजार पत्रिका(प्रा.लि.)- आनन्द बाजार पत्रिका (बंगालीदैनिक ,1920), बिजनेस स्टैण्डर्ड (अंग्रेजी दैनिक 1976), टेलीग्राफ (अंगे्रजी दैनिक1980), संडे (अंग्रेजी साप्ताहिक1979), आनन्द कोष (बंगालीपाक्षिक 1985),स्पोर्ट्स वल्र्ड (अंग्रेजी साप्ताहिक,1978) बिजनेस वल्र्ड (अंग्रेजी पाक्षिक,1981)
4-मलायालम मनोरमर लि. (पब्लिक लि.)- मलयालम मनोरमा (दैनिक,1957)द वीक (अंगे्रजी दैनिक1982), मलयालम मनोरमा (मलसालम साप्ताहिक,1951)
5- अमृत बाजार पत्रिका प्रा. लि.- अमृत बाजार पत्रिका (अंगे्रजीदैनिक1868), युगान्तर(बंगाली दैनिक,1937), नारदन इंडिया पत्रिका(अंगे्रजीदैनिक1959), (हिन्दी दैनिक 1979)
6-हिन्दी समाचार लि(पब्लिक लि.)- हिन्दी समाचार (उर्दू दैनिक,1940 ,) पंजाब केसरी (हिन्दी दैनिक,1965)
7- स्टेट्मैन लिमिटेड (प्रा. लि.)-स्टेट्मैन (अंगे्रजी दैनिक1875)
8- मातृभूमि प्रिंटिंग एण्ड पब्लिशिंग कम्पनी लि.(प्रा. लि.)- मातृभूमि डेली (मलयांलम दैनिक ,1962), चित्रभूमि (मलयालम साप्ताहिक11- उषोदया पब्लिकेशन प्रा. लि.-
रानी मुथु (तमिल मासिक 1969), इन्दू (तेलगु दैनिक 1973), न्यूज टाइम्स (अंगे्रजी दैनिक1984)
12- कस्तूरी एण्ड संस लिमेटेड (प्रा. लि.)- हिन्दू (अंगे्रजी दैनिक 1878), स्पोटर्स स्टार (अंगे्रजी साप्ताहिक 1878), फ्रंट लाइन (अंग्रेजी पाक्षिक)
13-द प्रिंटर्स (मैसूर लिमिटेड)- दक्खन हैरल्ड(अंगे्रजी दैनिक 1948), प्रजावागी (कन्नड़ दैनिक 1948), सुधा (कन्न्ड साप्ताहिक 1948), मयुर (कन्न्ड मासिक 1968)
14-सकाल पेपर्स (प्रा. लि.)- सकाल (मराठी दैनिक,1948), संडे सकाल(मराठी साप्ताहिक 1980), साप्ताहिक सकाल (मराठी साप्ताहिक 1987), अर्धमानियन (मराठी साप्ताहिक 1992),
15-मैं जागरण प्रकाशन प्रा.लि.- जागरण (हिन्दी दैनिक 1947)
16-द ट्रिब्यून ट्रस्ट- (अंगे्रजी दैनिक 1957), ट्रब्यून (हिन्दी दैनिक 1978), ट्रब्यून (पंजाबी दैनिक 1978)
17-लोक प्रकाशन (प्रा. लि.)- गुजरात समाचार (गुजराती दैनिक 1932)
18-सौराष्ट्र ट्रस्ट- जन्म भूमी (गुजराती दैनिक, 1934), जन्मभूमीप्रवासी (गुजराती दैनिक 1939), फुलछाव (गुजराती दैनिक ,1952), कच्छमित्र(गुजराती साप्ताहिक ,1957), व्यापार (सप्ताह में दो बार,गुजराती, 1948)
19-ब्लिट्ज पब्लिकेशन्स(प्रा. लि.)- ब्लिट्ज न्यूज मैगजीन (अंगे्रजीसाप्ताहिक,1957), ब्लिट्ज (उर्दू साप्ताहिक,1963), ब्लिट्ज (हिन्दीसाप्ताहिक 1962), सीने ब्लिट्ज (अंगे्रजी साप्ताहिक)
20-टी. चन्द्रशेखर रेड्डी तथा अन्य (साझेदारी)- दक्खन क्रोनिकल (अंगे्रजी दैनिक 1938),आंध्रभूमी (तेलगु दैनिक, 1960),आंध्र भूमी सचित्र बार पत्रिका (तेलगु साप्ताहिक 1977)
21-संदेश लिमिटेड (पब्लिक लिमिटेड)- संदेश (गुजराती दैनिक 1923), श्री (गुजराती साप्ताहिक 1962), धर्म संदेश (गुजराती पाक्षिक1965)
पत्रकारिता के प्रकार : ग्रामीण पत्रकारिता, आर्थिक, खेल, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, फोटो, खोजी, अनुसंधान, वृत्तांत, अपराध।
पत्रकारिता के गुर
जानिये और जुड़िये पत्रकारिता के मिशन से....
Wednesday, 25 December 2013
समाचार पत्रों पर अलग-अलग समयों में लगाए गए प्रतिबन्ध
1857 ई. के संग्राम केबाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अब वेअधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गये। इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल के ग्रास बन गये थे, वहीं दूसरी ओर जनवरी, 1877 में दिल्ली में हुए 'दिल्ली दरबार'पर अंग्रेज़ सरकार ने बहुत ज़्यादा फिजूलख़र्ची की। परिणामस्वरूप लॉर्ड लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृति के ख़िलाफ़ भारतीय अख़बारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। लिंटन ने 1878 ई. में 'देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम'द्वारा भारतीय समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी।
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट'तत्कालीन लोकप्रियएवं महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश'को लक्ष्य बनाकरलाया गया था। दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश'पर लागू होसका। लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाज़ार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा कीथी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी। सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर आदि के ख़िलाफ़ मुकदमें चलाये गये। इस अधिनियम के तहतसमाचार पत्रों को न्यायलय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। वर्नाक्यूलरप्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम'भी कहा गया है। इस घृणितअधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।
समाचार पत्र अधिनियम
लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 'बंगाल विभाजन'के कारण देश में उत्पन्न अशान्ति तथा 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस'में चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अख़बारों के द्वारा सरकार कीआलोचना का अनुपात बढ़ने लगा। अतः सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई.का समाचार पत्र अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई किजिस अख़बार के लेख में हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने वसम्पत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। अधिनियम में दी गई नई व्यवस्था केअन्तर्गत 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की सुविधा दी गई। इसअधिनियम द्वारा नौ समाचार पत्रों के विरुद्व मुकदमें चलाये गये एवं सात केमुद्रणालय को जब्त करने का आदेश दिया गया।
1910 ई.के 'भारतीय समाचार पत्र अधिनियम'में यह व्यवस्था थी कि समाचार पत्र केप्रकाशक को कम से कम 500 रुपये और अधिक से अधिक 2000 रुपये पंजीकरण जमानतके रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा, इसके बाद भी सरकार को पंजीकरणसमाप्त करने एवं जमानत जब्त करने का अधिकार होगा तथा दोबारा पंजीकरण के लिएसरकार को 1000 रुपये से 10000 रुपये तक की जमानत लेने का अधिकार होगा।इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नज़र में किसी आपत्तिजनक साम्रगी कोप्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं अख़बारकी समस्त प्रतियाँ जब्त करने का अधिकार होगा। अधिनियम के शिकार समाचार पत्रदो महीने के अन्दर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।
अन्य अधिनियम
प्रथम विश्वयुद्ध के समय 'भारत सुरक्षा अधिनियम'पास कर राजनीतिक आंदोलन एवं स्वतन्त्र आलोचना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1921 ई.सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी'नियुक्त की गई। समिति के ही सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियमों कोसमाप्त किया गया। 1931 ई. में 'इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट'लागू हुआ। इस अधिनियम द्वारा 1910 ई. के प्रेस अधिनियम को पुनः लागू कर दिया गया। इस समय गांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार को दबाने के लिए इस अधिनियम को विस्तृत कर 'क्रिमिनल अमैंडमेंट एक्ट'अथवा 'आपराधिक संशोधित अधिनियम'लागू किया गया। मार्च, 1947 में भारत सरकार ने 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी'की स्थापना समाचार पत्रों से जुड़े हुए क़ानून की समीक्षा के लिए किया।
भारत में समाचार पत्रों एवं प्रेस के इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक ओर लॉर्ड वेलेज़ली, लॉर्ड मिण्टो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग तथालॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर लॉर्ड बैंटिक, लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकॉफ़, लॉर्ड मैकाले एवं लॉर्ड रिपनजैसेलोगों ने प्रेस की आज़ादी का समर्थन किया। 'हिन्दू पैट्रियाट'के सम्पादक'क्रिस्टोदास पाल'को 'भारतीय पत्रकारिता का ‘राजकुमार’ कहा गया है।
विश्व व भारत में पत्रकारिता का इतिहास
विश्व में पत्रकारिता का आरंभ सन131-59 ईस्वी पूर्वरोम में हुआ था। पहला दैनिक समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जूलियस सीजर को दिया जाता है। उनके पहले समाचार पत्र का नाम था"Acta Diurna" (एक्टा डाइएर्ना) (दिन की घटनाएं)।इसे इसे वास्तवमें यह पत्थर की या धातु की पट्टी होता था जिस पर समाचार अंकित होते थे।ये पट्टियां रोम के मुख्य स्थानों पर रखी जाती थीं, और इन में वरिष्ठअधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों कीलड़ाइयों के परिणामों के बारे में सूचनाएं मिलती थीं।
मध्यकाल में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में 'सूचना-पत्र'निकलने लगे। उनमें कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचारलिखे जाते थे। लेकिन ये सारे ‘सूचना-पत्र ‘ हाथ से ही लिखे जाते थे। 1439 में योहानेस गुटेनबर्ग ने धातु के अक्षरों से छापने की मशीन का आविष्कार किया। उन्होंने 1450 के आस पास प्रथम मुद्रित पुस्तक ‘कांस्टेंन मिसल’ तथा एकबाइबिल भी छापी, जो 'गुटेनबर्ग बाइबल'के नाम से प्रसिद्ध है। इस केफलस्वरूप किताबों का ही नहीं, अखबारों का भी प्रकाशन संभव हो गया।
16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, योहन कारोलूसनाम का कारोबारी धनवान ग्राहकों के लिये सूचना-पत्र लिखवा कर प्रकाशित करताथा। लेकिन हाथ से बहुत सी प्रतियों की नकल करने का काम महंगा भी था औरधीमा भी। तब वह छापे की मशीन ख़रीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापने लगा।समाचार-पत्र का नाम था‘रिलेशन’। यह विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है।
भारत में पत्रकारिता का आरंभ:
भारतमें समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ हीप्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेयपुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों नेभारत की पहली पुस्तक छापी। छापे की पहली मशीन भारत में 1674 में पहुंचायी गयी थी। 1684 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत की पहली पुस्तक की छपाईकी थी। 1684 ई. में ही कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस(मुद्रणालय) की स्थापना की। मगरभारत का पहला अख़बार इस के 100 साल बाद, 1776 (कहीं 1766 भी लिखा गया है) में प्रकाशित हुआ। इस काप्रकाशक ईस्ट इंडिया कंपनी का भूतपूर्व अधिकारी विलेम बॉल्ट्सथा। यह अख़बार स्वभावतः अंग्रेजी भाषा में निकलता था तथा कंपनी व सरकार के समाचार फैलाता था।
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भारत का सब से पहला अख़बार, 29 जनवरी 1780 में कलकत्ता से शुरू हुआ जेम्स ओगस्टस हीकी का अख़बार 'हिकी'ज बंगाल गजट'और 'दि आरिजिनल कैलकटा जनरल एड्वरटाइजर' था।अख़बारमें दो पन्ने थे, और इस में ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों कीव्यक्तिगत जीवन पर लेख छपते थे। जब हीकी ने अपने अख़बार में गवर्नर कीपत्नी का आक्षेप किया तो उसे 4 महीने के लिये जेल भेजा गया और 500 रुपये काजुरमाना लगा दिया गया। लेकिन हीकी ने शासकों की आलोचना करने से परहेज नहींकिया। और जब उस ने गवर्नर और सर्वोच्च न्यायाधीश की आलोचना की तो उस पर 5000 रुपये का जुरमाना लगाया गया और एक साल के लिये जेल में डाला गया। इसतरह उस का अख़बार भी बंद हो गया।
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रासकैरियर', 'मद्रास गजट'; बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट'आदि। 1818 ई. मेंब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम'ने 'कलकत्ता जनरल'का सम्पादनकिया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्बके स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम काही दिया हुआ है। हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्णस्थान है। 1790 के बाद भारत में अंग्रेजी भाषा की और कुछ अख़बार स्थापितहुए जो अधिकतर शासन के मुखपत्र थे। पर भारत में प्रकाशित होनेवालेसमाचार-पत्र थोड़े-थोड़े दिनों तक ही जीवित रह सके।
1816 में पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट'नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था।
1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व में बंगाली भाषा मेंपहला मासिक पत्र 'दिग्दर्शन'का प्रकाशन किया गया। जो भारतीय भाषा में पहला समाचार-पत्र भी था।
राजा राममोहन राय ने भारतीय भाषा (बंगाली) में पहले साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘संवादकौमुदी’ (बुद्धि का चांद) का 1819 में, 'समाचार चंद्रिका'का मार्च 1822 में और अप्रैल 1822 में फ़ारसी भाषा में'मिरातुल'अख़बार' एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगजीन'का प्रकाशन किया।
1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक‘मुंबईना समाचार’प्रकाशित होने लगा, जो दस वर्ष बाद दैनिक हो गया और गुजराती के प्रमुख दैनिक के रूप मेंआज तक विद्यमानहै।भारतीय भाषा का यह सब से पुराना समाचार-पत्र है।
उदंत मार्तंड |
1826 में कानपुर निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से ‘उदंत मार्तंड’नाम से हिंदी के प्रथम समाचार-पत्र का प्रकाशनप्रारंभ किया।यहसाप्ताहिकपत्र 1827 तक चला और पैसे की कमी के कारण बंद हो गया। इसके अंतिम अंक में लिखा है- उदन्त मार्तण्ड की यात्रा- मिति पौष बदी १ भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन् १८२७ ।
आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त
अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त ।
गिल क्राइस्ट नाम ने अंग्रेज की भी कलकत्ता में हिंदी का श्रीगणेश करने वाले विद्वानों में गिनती की जाती हैं।
1830 में राजा राममोहन राय ने द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के साथ बड़ा हिंदी साप्ताहिक‘बंगदूत’का कोलकाता से प्रकाशन शुरू किया। वैसे यहबहुभाषीय पत्रथा, जो अंग्रेजी, बंगला, हिंदी और फारसी में निकलता था।बम्बई से 1831 ई. में गुजराती भाषा में 'जामे जमशेद'तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार'एवं 'अख़बारे सौदागार'का प्रकाशन हुआ।
1833 में भारत में 20 समाचार-पत्र थे, 1850 में 28 हो गए, और 1953 में 35 हो गये। इस तरह अख़बारों की संख्या तो बढ़ी, पर नाममात्र को ही बढ़ी। बहुतसे पत्र जल्द ही बंद हो गये। उन की जगह नये निकले। प्रायः समाचार-पत्र कईमहीनों से ले कर दो-तीन साल तक जीवित रहे।
उस समय भारतीय समाचार-पत्रों की समस्याएं समान थीं। वे नया ज्ञान अपनेपाठकों को देना चाहते थे और उसके साथ समाज-सुधार की भावना भी थी। सामाजिकसुधारों को लेकर नये और पुराने विचारवालों में अंतर भी होते थे। इस के कारणनये-नये पत्र निकले। उन के सामने यह समस्या भी थी कि अपने पाठकों को किसभाषा में समाचार और विचार दें। समस्या थी-भाषा शुद्ध हो या सब के लिये सुलभहो? 1846 में राजा शिव प्रसाद ने हिंदी पत्र ‘बनारस अख़बार’का प्रकाशन शुरू किया। राजा शिव प्रसाद शुद्ध हिंदी का प्रचार करते थे औरअपने पत्र के पृष्ठों पर उन लोगों की कड़ी आलोचना की जो बोल-चाल कीहिंदुस्तानी के पक्ष में थे। लेकिन उसी समय के हिंदी लखक भारतेंदुहरिशचंद्र ने ऐसी रचनाएं रचीं जिन की भाषा समृद्ध भी थी और सरल भी। इस तरहउन्होंने आधुनिक हिंदी की नींव रखी है और हिंदी के भविष्य के बारे में होरहे विवाद को समाप्त कर दिया।1868 में भरतेंदु हरिशचंद्र ने साहित्यिक पत्रिका ‘कविवच सुधा’निकालना प्रारंभ किया।1854 मेंहिंदी का पहला दैनिक समाचार पत्र 'सुधा वर्षण’निकला।१८६८ में देश का पहला सांध्य समाचार पत्र 'मद्रास मेल'शुरू हुआ।
अंग्रेज़ों द्वारा सम्पादित समाचार पत्र | ||
समाचार पत्र | स्थान | वर्ष |
टाइम्स ऑफ़ इंडिया | 1861 ई. | |
स्टेट्समैन | 1878 ई. | |
इंग्लिश मैन | कलकत्ता | - |
फ़्रेण्ड ऑफ़ इंडिया | - | |
मद्रास मेल | 1868 ई. | |
पायनियर | 1876 ई. | |
सिविल एण्ड मिलिटरी गजट | - |
प्रतिबन्ध
समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 में लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम'औरजॉन एडम्सद्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम'लागू कियेगये। इनके कारणराजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बारबन्द हो गया।लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया।कार्यवाहक गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ ने 1823 के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता'भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकाले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचारपत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँअंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारीसुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता की भूमिका
जेम्स अगस्टन हिक्की ने 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगालगजट कलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था - सभी के लियेखुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं ।
अपने निर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को इस्ट इंडियाकंपनी का कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू आलोचनाका पुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली। हिक्की ने अपना उद्देश्यही घोषित किया था -अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता के लिये अपने शरीरको बंधन में डालने में मुझे मजा आता है। समाचार पत्र की शुरूआत विद्रोह कीघोषणा से हुई।
हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया।
उत्तरी अमेरिका निवासी विलियम हुआनी ने हिक्की की परंपरा को समृद्ध किया। 1765 में प्रकाशित बंगाल जनरल जो सरकार समर्थक था 1791 में हुमानी केसंपादक बन जाने के बाद सरकार की आलोचना करने लगा। हुमानी की आक्रामक मुद्रासे आतंकित होकर सरकार ने उसे भारत से निष्कासित कर दिया।
जेम्स बंकिघमको प्रेस की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता था। उन्होंने 2 अक्टूबर 1818 को कलकत्ता से अंग्रजी का'कैलकटा जनरल'प्रकाशित किया। जो सरकारी नीतियों का निर्भीक आलोचक था। पंडित अंबिकाप्रशाद ने लिखा किइस पत्र की स्वतंत्रता व उदारता पहले किसी पत्र में नही देखी गयी। कैलकटाजनरल उस समय के एंग्लोइंडियन पत्रों को प्रचार प्रसार में पीछे छोड़ दियाथा। एक रूपये मूल्य के इस अखबार का दो वर्ष में सदस्य संख्या एक हजार सेअधिक हो गयी थी।सन् 1823 में उन्हें देश निकाला दे दिया गया। हालांकिइंगलैंड जाकर उन्होंने आरियंटल हेराल्ड निकाला जिसमें वह भारतीय समस्याओंऔर कंपनी के हाथों में भारत का शासन बनाये रखने के खिलाफ लगातार अभियानचलाता रहा।
1861 के इंडियन कांउसिल एक्ट के बाद समाज के उपरी तबकों में उभरी राजनीतिकचेतना से भारतीय व गैरभारतीय दोनों भाषा के पत्रों की संख्या बढ़ी। 1861 में बंबई में टाइम्स आफ इंडिया की 1865 में इलाहाबाद में पायनियर 1868 मेंमद्रास मेल की 1875 में कलकत्ता स्टेटसमैन की और 1876 में लाहौर में सिविलऐंड मिलटरी गजट की स्थापना हुई।ये सभी अंग्रेजी दैनिक ब्रिटिश शासनकाल में जारी रहे।
टाइम्स आफ इंडियाने प्रायः ब्रिटिश सरकार की नीतियों का समर्थन किया। पायोनियरने भूस्वामी और महाजनी तत्वों का पक्ष तो मद्रास मेल यूरोपीय वाणिज्य समुदाय का पक्षधर था। स्टेटसमैनने सरकार और भारतीय राष्ट्रवादियों दोनों का ही आलोचना की थी। सिविल एण्ड मिलिटरी गजट ब्रिटिश दाकियानूसी विचारों का पत्र था। स्टेटसमैन, टाइम्स आफ इंडिया, सिविल एंड मिलिटरी गजट, पायनियर और मद्रास मेलजैसे प्रसिद्ध पत्र अंग्रेजी सरकार और शासन की नीतियों एवं कार्यक्रम का समर्थन करते थे।
अमृत बाजार पत्रिका, बांबे क्रानिकल, बांबे सेंटिनल, हिन्दुस्तानटाइम्स, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, फ्री प्रेस जनरल, नेशनल हेराल्ड व नेशनलकालअंग्रेजी में छपने वाले लक्ष्य प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी दैनिक और साप्ताहिक पत्र थे।हिन्दू लीडर, इंडियन सोशल रिफार्मर व माडर्न रिव्यूउदारपंथी राष्ट्रीयता की भावना को अभिव्यक्ति देते थे।
इंडियन नेशनल कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों को राष्ट्रीय पत्रों नेपूर्ण और उदारपंथी पत्रों ने आलोचनात्मक समर्थन दिया था। डान मुस्लिम लीगके विचारों का पोषक था। देश के विद्यार्थी संगठनों के अपने पत्र थे जैसेस्टूडेंट और साथी। भारत के राष्ट्रीय नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1874 मेंबंगाली ( अंग्रेजी ) पत्र का प्रकाशन व संपादन किया। इसमें छपे एक लेख केलिये उन पर न्यायालय की अवज्ञा का अभियोग लगाया गया था। उन्हें दो महीने केकारावास की सजा मिली थी। बंगाली ने भारतीय राजनीतिक विचारधारा के उदारवादीदल के विचारों का प्रचार किया था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की राय पर दयालसिंह मजीठिया ने1877 में लाहौर में अंग्रेजी दैनिक ट्रिब्यून की स्थापनाकी। पंजाब की उदारवादी राष्ट्रीय विचारधारा का यह प्रभावशाली पत्र था।
लार्ड लिटन के प्रशासनकाल में कुछ सरकारी कामों के चलते जनता की भावनाओं कोचोट पहुंची, जिससे राजनीतिक असंतोष बढ़ा और अखबारों की संख्या में वृद्धिहुई। 1878 में मद्रास में वीर राधवाचारी और अन्य देशभक्त भारतीयों नेअंग्रेजी सप्ताहिक हिन्दू की स्थापना की। 1889 से यह दैनिक हुआ। हिन्दू कादृष्टिकोण उदारवादी था। लेकिन इसने इंडियन नेशनल कांग्रेस की राजनीति कीआलोचना के साथ ही उसका समर्थन भी किया। राष्ट्रीय चेतना का समाज सुधार केक्षेत्र में भी प्रसार हुआ। बंबई में 1890 में इंडियन सोशल रिफार्मरअंग्रेजी साप्ताहिक की स्थापना हुई। समाज सुधार ही इसका मुख्य लक्ष्य था।
1899 में सच्चिदानंद सिन्हा ने अंग्रेजी मासिक हिन्दुस्तान रिव्यू कीस्थापना की। इस पत्र का राजनैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण उदारवादी था।
1900 के बाद
1900 में जी ए नटेशन ने मद्रास से इंडियन रिव्यू का और 1907 में कलकत्ता से रामानन्द चटर्जी ने मॉडर्न रिव्यू का प्रकाशन शुरू किया।
मॉडर्न रिव्यू देश का सबसे अधिक विख्यात अंग्रेजी मासिक सिद्ध हुआ। इसमेंसामाजिक राजनीतिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विषयों पर लेख निकलते थे औरअंतराष्ट्रीय घटनाओं के विषय में भी काम की खबरें होती थी। इसने इंडियननेशनल कांग्रेस में प्रायः दक्षिणपंथियों का समर्थन किया।
1913 में बी जी हार्नीमन के संपादकत्व में फिरोजशाह मेहता ने बांबे क्रानिकल निकाला।
1918 में सर्वेंटस आफ इंडिया सोसाइटी ने श्रीनिवास शास्त्री के संपादकत्वमें अपना मुखपत्र सर्वेंट आफ इंडिया निकालना शुरू किया। इसने उदारवादीराष्ट्रीय दृष्टिकोण से देश की समस्याओं का विश्लेषण और समाधान प्रस्तुतकिया। 1939 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
1919 में गांधी ने यंग इंडियाका संपादन किया और इसके माध्यम सेअपने राजनीतिक दर्शन कार्यक्रम और नीतियों का प्रचार किया। 1933 के बादउन्होंने हरिजन ( बहुत सी भाषाओं में प्रकाशित साप्ताहिक ) का भी प्रकाशनशुरू किया।
पंडित मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इलाहाबाद से इंडीपेंडेंट ( अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरू किया।
स्वराज पार्टी के नेता ने दल के कार्यक्रम के प्रचार के लिये1922 में दिल्ली में के एम पन्नीकर के संपादकत्व में हिन्दुस्तान टाइम्स ( अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरूकिया। इसी काल में लाला लाजपत राय के फलस्वरूप लाहौर से अंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक प्यूपल का प्रकाशन शुरू किया गया।
1923 के बाद धीरे - धीरे समाजवादी, साम्यवादी विचार भारत में फैलने लगे।वर्कर्स एंड प्लेसंट पार्टी आफ इंडिया का एक मुखपत्र मराठी साप्ताहिकक्रांति था। मर्ट कांसपीरेसी केस के एम जी देसाई और लेस्टर हचिंसन केसंपादकत्व में क्रमशः स्पार्क और न्यू स्पार्क ( अंग्रेजी साप्ताहिक )प्रकाशित हुआ। मार्क्सवाद का प्रचार करना और राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवंकिसानों मजदूरों के स्वतंत्र राजनीतिक आर्थिक संघर्षों को समर्थन प्रदानकरना इनका उद्देश्य था।
1930 और 1939 के बीच मजदूरों किसानों के आंदोलनों का विस्तार हुआ और उनकीताकत बढ़ी। कांग्रेस के नौजवानों के बीच समाजवादी साम्यवादी विचार विकसितहुए। इस तरह स्थापित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने आधिकारिक पत्र के रूप मेंकांग्रेस सोशलिस्ट का प्रकाशन किया।
कम्युनिस्ट के प्रमुख पत्र नेश्नल फ्रंट और बाद में प्युपलस् वार थे। ये दोनों अंग्रेजी सप्ताहिक पत्र थे।
एम एन रॉय के विचार अधिकारिक साम्यवाद से भिन्न थे। उन्होंने अपना अलग दल कायम किया जिसका मुखपत्र था इंडीपेंडेंट इंडिया।
राजा राममोहन राय
राजा राममोहन राय ने सन् 1821 में बंगाली पत्र संवाद कौमुदी को कलकत्ता सेप्रकाशित किया। 1822 में फारसी भाषा का पत्र मिरात उल अखबार और अंग्रेजीभाषा में ब्रेहेनिकल मैगजीन निकाला।
राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी में बंगला हेराल्ड निकाला। कलकत्ता से 1829 में बंगदूत प्रकाशित किया जो बंगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषाओं में छपताथा।
संवाद कौमुदी और मिरात उल अखबार भारत में स्पष्ट प्रगतिशील राष्ट्रीय औरजनतांत्रिक प्रवृति के सबसे पहले प्रकाशन थे। ये समाज सुधार के प्रचार औरधार्मिक-दार्शनिक समस्याओं पर आलोचनात्मक वाद-विवाद के मुख्य पत्र थे।
राजा राममोहन राय की इन सभी पत्रों के प्रकाशन के पीछे मूल भावना यह थी ...मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि जनता के सामने ऐसे बौध्दिक निबंध उपस्थितकरूं जो उनके अनुभव को बढ़ावें और सामाजिक प्रगति में सहायक सिध्द हो। मैंअपनी शक्ति भर शासकों को उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही परिचय देनाचाहता हूं और प्रजा को उनके शासकों द्वारा स्थापित विधि व्यवस्था से परिचितकराना चाहता हूं ताकि जनता को शासन अधिकाधिक सुविधा दे सके। जनता उन उपायोसे अवगत हो सके जिनके द्वारा शासकों से सुरक्षा पायी जा सके और अपनी उचितमांगें पूरी करायी जा सके।
दिसंबर 1823 में राजा राममोहन राय ने लार्ड एमहस्ट को पत्र लिखकर अंग्रेजीशिक्षा के प्रसार हेतु व्यवस्था करने का अनुरोध किया ताकि अंग्रेजी कोअपनाकर भारतवासी विश्व की गतिविधियों से अवगत हो सके और मुक्ति का महत्वसमझे।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
विष्णु शास्त्री चिपलणकर और लोकमान्य तिलक ने मिलकर 1 जनवरी 1881 से मराठी में केसरी और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक पत्र निकाले।
तिलक और उनके साथियों ने पत्र दृ प्रकाशन की उदघोषणा में कहा - हमारा दृढ़निश्चय है कि हम हर विषय पर निष्पक्ष ढंग से तथा हमारे दृष्टिकोण से जोसत्य होगा उसका विवेचन करेंगे। निःसंदेह आज भारत में ब्रिटिश शान मेंचाटुकारिता की प्रवृति बढ़ रही है। सभी ईमानदार लोग यह स्वीकार करेंगे कियह प्रवृति अवांछनीय तथा जनता के हितों के विरूद्ध है। इस प्रस्तावितसमाचारपत्र (केसरी) में जो लेख छपेंगे वे इनके नाम के ही अनुरूप होंगे।
केसरी और मराठा ने महाराष्ट्र में जनचेतना फैलाई तथा राष्ट्रीय स्वाधीनताआंदोलन के इतिहास में स्वर्णिम योगदान दिया। उन्होंने भारतीय जनता को दीनदृ हीन व दब्बूपक्ष की प्रवृति से उठ कर साहसी निडर व देश के प्रतिसमर्पित होने का पाठ पढ़ाया। बस एक ही बात उभर कर आती थी -स्वराज्य मेराजन्मसिद्ध अधिकार है।
सन् 1896 में भारी आकाल पड़ा जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई। बंबई में इसीसमय प्लेग की महामारी फैली। अंग्रज सरकार ने स्थिति संभालने के लिये सेनाबुलायी। सेना घर दृ घर तलाशी लेना शुरू कर दिया जिससे जनता में क्रोध पैदाहो गया। तिलक ने इस मनमाने व्यवहार व लापरवाही से क्षुब्ध होकरकेसरी के माध्यम से सरकार की कड़ी आलोचना की। केसरी में उनके लिखे लेख केकारण उन्हें 18 महीने कारावास की सजा दी गयी।
महात्मा गांधी
गांधीजी ने 4 जून 1903 में इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया।जिसके एक ही अंक से अंग्रेजी हिन्दी तमिल गुजराती भाषा में छः कॉलमप्रकाशित होते थे। उस समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में रहते थे।
अंग्रेजी में यंग इंडिया और जुलाई 1919 से हिन्दी - गुजराती में नवजीवन का प्रकाशन आरंभ किया।
इन पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जनमानस तक पहुंचाया। उनकेव्यक्तित्व ने जनता पर जादू सा कर दिया था। उनकी आवाज पर लोग मर - मिटने कोतैयार हो गये।
इन पत्रों में प्रति सप्ताह महात्मा गांधी के विचार प्रकाशित होते थे।ब्रिटिश शासन द्वारा पारित कानूनों के कारण जनमत के अभाव में ये पत्र बंदहो गये। बाद में उन्होंने अंग्रेजी में हरिजन और हिन्दी में हरिजन सेवक तथागुजराती में हरिबन्धु का प्रकाशन किया तथा ये पत्र स्वतंत्रता तक छापतेरहे।
अमृत बाजार पत्रिका
सन् 1868 में बंगाल के छोटे से गांव अमृत बाजार से हेमेन्द्र कुमार घोष, शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष के संयुक्त प्रयास से एक बांगला साप्ताहिकपत्र अमृत बाजार पत्रिका शुरू हुआ। बाद में कलकत्ता से यह बांगला औरअंग्रेजी दोनों भाषाओं में छपने लगी।
1878 के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिये इसे पूर्णतः अंग्रेजीसाप्ताहिक बना दिया गया। सन् 1891 में अंग्रेजी दैनिक के रूप में इसकाप्रकाशन शुरु हुआ।
अमृत बाजार पत्रिका ने तगड़े राष्ट्रीय विचारों का प्रचार किया और यहअत्याधिक लोकप्रिय राष्ट्रवादी पत्र रहा है। सरकारी नीतियों की कटू आलोचनाके कारण इस पत्र का दमन भी हुआ। इसके कई संपादकों को जेल की भी सजा भुगतनीपड़ी।
जब ब्रिटिश सरकार ने धोखे से कश्मीर मे राजा प्रताप सिंह को गद्दी से हटादिया और कश्मीर को अपने कब्जे में लेना चाहा तो इस पत्रिका ने इतना तीव्रविरोध किया कि सरकार को राजा प्रताप सिंह को राज्य लौटाना पड़ा।
पयामे आजादी
स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी 1857 को दिल्लीसे पयामे आजादी पत्र प्रारंभ किया। शोले की तरह अपनी प्रखर व तेजस्वनीवाणी से जनता में स्वतंत्रता की भावना भर दी। अल्पकाल तक जीवित रहे इस पत्रसे घबराकर ब्रिटिश सरकार ने इसे बंद कराने में कोई कसर नही छोड़ी।
पयामे आजादी पत्र से अंग्रेज सरकार इतनी आतंकित हुई कि जिस किसी के पास भीइस पत्र की कॉपी पायी जाती उसे गद्दार और विद्रोही समझ कर गोली से उड़ादिया गया। अन्य को सरकारी यातनायें झेलनी पड़ती थी। इसकी प्रतियां जब्त करली गयी फिर भी इसने जन दृ जागृति फैलाना जारी रखा।
युगांतर
जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है -जहां तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध है भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरु हुआ।
वारिन्द्र घोष का पत्र युगांतर वास्तव में युगान्तरकारी पत्र था। कोई जाननही पाता था कि इस पत्र का संपादक कौन है। अनेक व्यक्तियों ने ससमय अपनेआपको पत्र का संपादक घोषित किया और जेल गये। दमनकारी कानून बनाकर पत्र कोबंद किया गया।
चीफ जस्टिस सर लारेंस जैनिकसन ने इस पत्र की विचारधारा के बारे में लिखाथा- इसकी हर एक पंक्ति से अंग्रेजों के विरुध्द द्वेष टपकता है। प्रत्येकशब्द में क्रांति के लिये उत्तेजना झलकती है।
युगांतर के एक अंक में तो बम कैसे बनाया जाता है यह भी बताया गया था।सन् 1909 में इसका जो अंतिम अंक प्रकाशित हुआ उस परइसका मुल्य था- फिरंगदि कांचा माथा ( फिरंगी का तुरंत कटा हुआ सिर )
एक से अधिक भाषा वाले भाषाई पत्र
हिन्दु मुसलमान दोनों सांप्रदायिकता के खतरे को समझते थे। उन्हें पता था किसाम्प्रदायिकता साम्राज्यवादियों का एक कारगर हथियार है। पत्रकारिता केमाध्यम से सामप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ लड़ाई तेज की गयी थी। भाषाईपृथकतावाद के खतरे को देखते हुए एक से अधिक भाषाओं में पत्र निकाले जातेथे। जिसमें द्विभाषी पत्रों की संख्या अधिक थी।
हिन्दी और उर्दू पत्र
मजहरुल सरुर, भरतपुर 1850, पयामे आजादी, दिल्ली 1857, ज्ञान प्रदायिनी, लाहौर 1866, जबलपुर समाचार, प्रयाग 1868, सरिश्ते तालीम, लखनऊ 1883, रादपूताना गजट, अजमेर 1884, बुंदेलखंड अखबार, ललितपुर 1870, सर्वाहित कारक, आगरा 1865, खैर ख्वाहे हिन्द, मिर्जापुर 1865, जगत समाचार, प्रयाग 1868, जगत आशना, आगरा 1873, हिन्दुस्तानी, लखनऊ 1883, परचा धर्मसभा, फर्रुखाबाद 1889, समाचार सुधा वर्षण, हिन्दी और बांगला, कलकत्ता 1854, हिन्दी प्रकाश, हिन्दी उर्दू गुरुमुखी, अमृतसर 1873, मर्यादा परिपाटी समाचार, संस्कृतहिन्दी, आगरा 1873
1846 में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन् भी हिन्दु हेरोल्ड की भांति पांचभाषाओं हिन्दी फारसी अंग्रेजी बांगला और उर्दू में निकलता था।
1870 में नागपुर से हिन्दी उर्दू मराठी में नागपुर गजट प्रकाशित होता था।
बंगदूत बांगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषओं में छपता था।
गुजराती
- बंबई में देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान 1822 में गुजराती मेंबांबे समाचार शुरु किया जो आज भी दैनिक पत्र के रुप में निकलता है।
- 1851 में बंबई में गुजराती के दो और पत्रों रस्त गोफ्तार और अखबारेसौदागर की स्थापना हुई। दादाभाई नौरोजी ने रस्त गोफ्तार का संपादन किया। यहगुजराती भाषा का प्रभावशाली पत्र था।
- 1831 में बंबई से पी एम मोतीबाला ने गुजराती पत्र जामे जमशेद शुरु किया
मराठी
- सूर्याजी कृष्णजी के संपादन में 1840 में मराठी का पहला पत्र मुंबई समाचार शुरु हुआ।
- 1842 में कृष्णजी तिम्बकजी रानाडे ने पूना से ज्ञान प्रकाश पत्र प्रकाशित किया।
- 1879 दृ 80 में बुरहारनपुर से मराठी साप्ताहिक पत्र सुबोध सिंधु का प्रकाशन लक्ष्मण अनन्त प्रयागी द्वारा होता था।
- मध्य भारत में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का विकास मराठी पत्रों के सहारे ही हुआ था।
हिन्दी पत्रकारिता
हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है। हिन्दीपत्रकारिता के आदि उन्नायक जातीय चेतना, युगबोध और अपने महत् दायित्व केप्रति पूर्ण सचेत थे। कदाचित् इसलिए विदेशी सरकार की दमन-नीति का उन्हेंशिकार होना पड़ा था, उसके नृशंस व्यवहार की यातना झेलनी पड़ी थी। उन्नीसवींशताब्दी में हिन्दी गद्य-निर्माण की चेष्ठा और हिन्दी-प्रचार आन्दोलनअत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों में भयंकर कठिनाइयों का सामना करते हुए भीकितना तेज और पुष्ट था इसका साक्ष्य ‘भारतमित्र’ (सन् 1878 ई, में) ‘सारसुधानिधि’ (सन् 1879 ई.) और ‘उचितवक्ता’ (सन् 1880 ई.) के जीर्ण पृष्ठों परमुखर है। हिन्दी पत्रकारिता में अंग्रेजी पत्रकारिता के दबदबे को खत्म करदिया है। पहले देश-विदेश में अंग्रेजी पत्रकारिता का दबदबा था लेकिन आजहिन्दी भाषा का परचम चंहुदिश फैल रहा है।
हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ
हिन्दी के साप्ताहिक पत्रों में साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्म-युग, दिनमान, रविवार एवं सहारा समय प्रमुख हैं। हिन्दुस्तान का सम्पादन, सम्पादिका मृणालपाण्डेय जी ने किया एवं धर्मयुग का सर्वप्रथम सम्पादन डॉ. धर्मवीर भारतीजी ने किया। धर्मयुग ने जन सामान्य में अपनी लोकप्रियता इतनी बना रखी थी किहर प्रबुद्ध पाठक वर्ग के ड्राइंग रूप में इसका पाया जाना गर्व की बातमाने जाने लगी थी। कुछ दिनों तक गणेश मंत्री (बम्बई) ने भी इसका सम्पादनकिया। कुछ आर्थिक एवं आपसी कमियों के अभाव के कारण इसका सम्पादन कार्य रूकगया। दिनमान´ का सम्पादन घनश्याम पंकज जी कर रहे थे साथ ही रविवार कासम्पादन उदय शर्मा के निर्देशन में आकर्षक ढंग से हो रहा था। इसी समयव्यंग्य के क्षेत्र में 'हिन्दी शंकर्स वीकली´ का सम्पादन हो रहा था।'वामा´ हिन्दी की मासिक पत्रिका महिलापयोगी का सम्पादन विमला पाटिल केनिर्देशन में हो रहा था। इण्डिया टुडे´ पहले पाक्षिक थी, परन्तु आज यहीसाप्ताहिक रूप में अपनी ख्याति बनाये हुये है। अन्य मासिक पत्रिकाओं में'कल्पना´, 'अजन्ता´, 'पराग´, 'नन्दन´, 'स्पतुनिक´, 'माध्यम´, 'यूनेस्कोदूत´, 'नवनीत (डाइजेस्ट)´, 'ज्ञानोदय´, 'कादम्बिनी´, 'अछूते´, 'सन्दर्भ´, 'आखिर क्यों´, 'यूथ इण्डिया´, 'जन सम्मान´, 'अम्बेडकर इन इण्डिया´, 'राष्ट्रभाषा-विवरण पत्रिका´, 'पर्यावरण´, 'डाइजेस्ट आखिर कब तक?´, 'वार्तावाहक´ आदि अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है।
Labels: Acta Diurna, Hindi Journalism, History of Journalism, Johannes Gutenberg, Journalism, Julius Caesar, Patrakarita, Patrkarita ka itihas, Udant Martand, उदंत मार्तंड
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मेरे बारे में
Nainital, Uttarakhand., Uttarakhand, India
Navin Joshi (born 26th November 1972) is a Media personality, journalist, author and Renowned Photo Journalist at Nainital, Uttarakhand, working with Rashtriya Sahara. Earlier he worked for Dainik Jagran for Five years. He is also a well known Kumaoni Poet Navin Joshi 'Navendu', his Kumaoni Poetry book "Ugadhi aankonk sween" is in Press. As a Photo Journalist, his Photographs presented in various exhibitions, including Nainital Rajbhawan and awarded by than Governor of Uttarakhand Mrs. Margret Alwa. He also got International Prize for Photography (http://www.panoramio.com/winners/?date=1-2010) He is the Son of Famous Hindi/Kumaoni Poet, writer & Editor Sri Damodar Joshi 'Dewanshu'' and Former Principal in Education Department Uttarakhand. He was born at Toli, Bageshwar. he studied initially at Naini, Jageshwar (Almora), and than GIC Almora, Diploma in Mechanical Engineering from Govt. Polytechnic Nainital, Graduation, PG Diploma and Masters Digree (With Gold Medal) in Journalism and Mass Communication from Kumaon University Nainital. He has been consistently writing, apart from working in media for Rashtriya Sahara and various Magazines.
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हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ |
हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय कोदिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिकउद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितोंका समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार कियेऔर अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राममोहन राय ने कई पत्रशुरू किये। जिसमें अहम हैं-साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’। बंगाल गजटभारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है।इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे। इसके अलावा राजा राममोहनराय ने मिरातुल, संवाद कौमुदी, बंगाल हैराल्ड पत्र भी निकाले और लोगों मेंचेतना फैलाई। 30 मई 1826 को कलकत्ता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले ‘उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है।
काल विभाजन:
वास्तवमें हिंदी पत्रकारिता का तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर काल विभाजन करनाकुछ कठिन कार्य है। सर्वप्रथम राधाकृष्ण दास ने ऐसा प्रारंभिक प्रयास कियाथा। उसके बाद ‘विशाल भारत’ के नवंबर 1930 के अंक में विष्णुदत्त शुक्ल नेइस प्रश्न पर विचार किया, किन्तु वे किसी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचे।गुप्त निबंधावली में बालमुकुंद गुप्त ने यह विभाजन इस प्रकार किया –
वास्तवमें हिंदी पत्रकारिता का तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर काल विभाजन करनाकुछ कठिन कार्य है। सर्वप्रथम राधाकृष्ण दास ने ऐसा प्रारंभिक प्रयास कियाथा। उसके बाद ‘विशाल भारत’ के नवंबर 1930 के अंक में विष्णुदत्त शुक्ल नेइस प्रश्न पर विचार किया, किन्तु वे किसी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचे।गुप्त निबंधावली में बालमुकुंद गुप्त ने यह विभाजन इस प्रकार किया –
- प्रथम चरण – सन् 1845 से 1877
- द्वितीय चरण – सन् 1877 से 1890
- तृतीय चरण – सन् 1890 से बाद तक
डॉ. रामरतन भटनागर ने अपने शोध प्रबंध ‘द राइज एंड ग्रोथ आफ हिंदी जर्नलिज्म’ काल विभाजन इस प्रकार किया है–
- आरंभिक युग 1826 से 1867
- उत्थान एवं अभिवृद्धि
- प्रथम चरण (1867-1883) भाषा एवं स्वरूप के समेकन का युग
- द्वितीय चरण (1883-1900) प्रेस के प्रचार का युग
- विकास युग
- प्रथम युग (1900-1921) आवधिक पत्रों का युग
- द्वितीय युग (1921-1935) दैनिक प्रचार का युग
- सामयिक पत्रकारिता – 1935-1945
उपरोक्त में से तीन युगों के आरंभिक वर्षों में तीन प्रमुख पत्रिकाओं काप्रकाशन हुआ, जिन्होंने युगीन पत्रकारिता के समक्ष आदर्श स्थापित किए। सन् 1867 में ‘कविवचन सुधा’, सन् 1883 में ‘हिन्दुस्तान’ तथा सन् 1900 में‘सरस्वती’ का प्रकाशन है।
- काशी नागरीप्रचारणी द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी साहित्य के वृहत इतिहास’ के त्रयोदय भागके तृतीय खंड में यह काल विभाजन इस प्रकार किया गया है –
1. प्रथम उत्थान – सन् 1826 से 1867
2. द्वितीय उत्थान – सन् 1868 से 1920
3. आधुनिक उत्थान – सन् 1920 के बाद
- ‘ए हिस्ट्री आफ द प्रेस इन इंडिया’ में श्री एस नटराजन ने पत्रकारिता का अध्ययन निम्न प्रमुख बिंदुओं के आधार पर किया है –
1. बीज वपन काल
2. ब्रिटिश विचारधारा का प्रभाव
3. राष्ट्रीय जागरण काल
4. लोकतंत्र और प्रेस
- डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने ‘हिंदी पत्रकारिता’ का अध्ययन करने की सुविधा की दृष्टि से यह विभाजन मोटे रूप से इस प्रकार किया है –
1. भारतीय नवजागरण और हिंदी पत्रकारिता का उदय (सन् 1826 से 1867)
2. राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति- दूसरे दौर की हिंदी पत्रकारिता (सन् 1867-1900)
3. बीसवीं शताब्दी का आरंभ और हिंदी पत्रकारिता का तीसरा दौर – इस काल खण्ड का अध्ययन करते समय उन्होंने इसे तिलक युग तथा गांधी युग में भी विभक्त किया।
- डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘पत्रकारिता के विविध रूप’ में विभाजन के प्रश्न पर विचार करते हुए यह विभाजन किया है –
1. उदय काल – (सन् 1826 से 1867)
2. भारतेंदु युग – (सन् 1867 से 1900)
3. तिलक या द्विवेदी युग – (सन् 1900 से 1920)
4. गांधी युग – (सन् 1920 से 1947)
5. स्वातंत्र्योत्तर युग (सन् 1947 से अब तक)
- डॉ. सुशील जोशी ने काल विभाजन कुछ ऐसा प्रस्तुत किया है –
1. हिंदी पत्रकारिता का उद्भव – 1826 से 1867
2. हिंदी पत्रकारिता का विकास – 1867 से 1900
3. हिंदी पत्रकारिता का उत्थान – 1900 से 1947
उक्त मतों की समीक्षा करने पर स्पष्ट होता है कि हिंदी पत्रकारिता का कालविभाजन विभिन्न विद्वानों पत्रकारों ने अपनी-अपनी सुविधा से अलग-अलग ढंग सेकिया है। इस संबंध में सर्वसम्मत काल निर्धारण अभी नहीं किया जा सका है।किसी ने व्यक्ति विशेष के नाम से युग का नामकरण करने का प्रयास किया है तो किसी ने परिस्थिति अथवा प्रकृति के आधार पर। इनमें एकरूपता का अभाव है।
हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867)
कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता कीविकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है। पंडित युगल किशोर शुक्ल केसंपादन में प्रकाशित इस समाचार पत्र ने हालांकि आर्थिक अभावों के कारण जल्दही दम तोड़ दिया, पर इसने हिंदी अखबारों के प्रकाशन का जो शुभारंभ किया वहकारवां निरंतर आगे बढ़ा है। साथ ही हिंदी का प्रथम पत्र होने के बावजूद यहभाषा, विचार एवं प्रस्तुति के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बन गया।
कलकत्ता का योगदान
पत्रकारिता जगत में कलकत्ता का बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।प्रशासनिक, वाणिज्य तथा शैक्षिक दृष्टि से कलकत्ता का उन दिनों विशेष महत्वथा। यहीं से 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने ‘बंगदूत’ समाचार पत्र निकाला जो बंगला, फ़ारसी, अंग्रेज़ी तथा हिंदी में प्रकाशित हुआ। बंगला पत्र ‘समाचार दर्पण’ के 21 जून 1834 के अंक ‘प्रजामित्र’ नामक हिंदी पत्र के कलकत्ता से प्रकाशित होने कीसूचना मिलती है। लेकिन अपने शोध ग्रंथ में डॉ. रामरतन भटनागर ने उसकेप्रकाशन को संदिग्ध माना है। ‘बंगदूदत’ के बंद होने के बाद 15 सालों तकहिंदी में कोई पत्र न निकला।
हिंदी पत्रकारिता का उत्थान काल (1900-1947)
सन 1900 का वर्ष हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। 1900 में प्रकाशित सरस्वती पत्रिका]अपने समय की युगान्तरकारी पत्रिका रही है। वह अपनी छपाई, सफाई, कागज औरचित्रों के कारण शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई। इसे बंगाली बाबू चिन्तामणि घोषने प्रकाशित किया था तथा इसे नागरी प्रचारिणी सभा का अनुमोदन प्राप्त था।इसके सम्पादक मण्डल में बाबू राधाकृष्ण दास, बाबू कार्तिका प्रसाद खत्री, जगन्नाथदास रत्नाकर, किशोरीदास गोस्वामी तथा बाबू श्यामसुन्दरदास थे। 1903 मेंइसके सम्पादन का भार आचार्य महावर प्रसाद द्विवेदी पर पड़ा। इसका मुख्यउद्देश्य हिंदी-रसिकों के मनोरंजन के साथ भाषा के सरस्वती भण्डार कीअंगपुष्टि, वृद्धि और पूर्ति करन था। इस प्रकार 19वी शताब्दी में हिंदीपत्रकारिता का उद्भव व विकास बड़ी ही विषम परिस्थिति में हुआ। इस समय जो भीपत्र-पत्रिकाएं निकलती उनके सामने अनेक बाधाएं आ जातीं, लेकिन इन बाधाओंसे टक्कर लेती हुई हिंदी पत्रकारिता शनैः-शनैः गति पाती गई।
हिंदी पत्रकारिता का उत्कर्ष काल (1947 से प्रारंभ)
अपने क्रमिक विकास में हिंदी पत्रकारिता के उत्कर्ष का समय आज़ादी के बादआया। 1947 में देश को आज़ादी मिली। लोगों में नई उत्सुकता का संचार हुआ।औद्योगिक विकास के साथ-साथ मुद्रण कला भी विकसित हुई। जिससे पत्रों कासंगठन पक्ष सुदृढ़ हुआ। रूप-विन्यास में भी सुरूचि दिखाई देने लगी। आज़ादीके बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व उन्नति होने पर भी यह दुख का विषयहै कि आज हिंदी पत्रकारिता विकृतियों से घिरकर स्वार्थसिद्धि और प्रचार कामाध्यम बनती जा रही है। परन्तु फिर भी यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता हैकि भारतीय प्रेस की प्रगति स्वतंत्रता के बाद ही हुई। यद्यपिस्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता ने पर्याप्त प्रगति कर ली है किन्तु उसकेउत्कर्षकारी विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं भी कम नहीं हैं।
प्रतिबंधित पत्र-पत्रिकाएँ
भारत केस्वाधीनता संघर्ष में पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका रही है। आजादी केआन्दोलन में भाग ले रहा हर आम-ओ-खास कलम की ताकत से वाकिफ था। राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, बाल गंगाधर तिलक, पंडित मदनमोहन मालवीय, बाबा साहब अम्बेडकर, यशपाल जैसेआला दर्जे के नेता सीधे-सीधे तौर पर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे औरनियमित लिख रहे थे। जिसका असर देश के दूर-सुदूर गांवों में रहने वालेदेशवासियों पर पड़ रहा था। अंग्रेजी सरकार को इस बात का अहसास पहले से हीथा, लिहाजा उसने शुरू से ही प्रेस के दमन की नीति अपनाई। 30 मई 1826 को कलकत्ता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले ‘उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी कापहला समाचार पत्र माना जाता है। अपने समय का यह ख़ास समाचार पत्र था, मगरआर्थिक परेशानियों के कारण यह जल्दी ही बंद हो गया। आगे चलकर माहौल बदला औरजिस मकसद की खातिर पत्र शुरू किये गये थे, उनका विस्तार हुआ। समाचारसुधावर्षण, अभ्युदय, शंखनाद, हलधर, सत्याग्रह समाचार, युद्धवीर, क्रांतिवीर, स्वदेश, नयाहिन्दुस्तान, कल्याण, हिंदी प्रदीप, ब्राह्मण,बुन्देलखण्ड केसरी, मतवालासरस्वती, विप्लव, अलंकार, चाँद, हंस, प्रताप, सैनिक, क्रांति, बलिदान, वालिंट्यर आदि जनवादी पत्रिकाओं ने आहिस्ता-आहिस्ता लोगों में सोये हुएवतनपरस्ती के जज्बे को जगाया और क्रांति का आह्नान किया।
नतीजतन उन्हें सत्ता का कोपभाजन बनना पड़ा। दमन, नियंत्रण के दुश्चक्र सेगुजरते हुए उन्हें कई प्रेस अधिनियमों का सामना करना पड़ा। ‘वर्तमान पत्र’ में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारालिखा ‘राजनीतिक भूकम्प’ शीर्षक लेख, ‘अभ्युदय’ का भगत सिंह विशेषांक, किसान विशेषांक, ‘नया हिन्दुस्तान’ के साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और फॉसीवादीविरोधी लेख, ‘स्वदेश’ का विजय अंक, ‘चॉंद’ का अछूत अंक, फॉंसी अंक, ‘बलिदान’ का नववर्षांक, ‘क्रांति’ के 1939 के सितम्बर, अक्टूबर अंक, ‘विप्लव’ का चंद्रशेखर अंक अपने क्रांतिकारी तेवर और राजनीतिक चेतना फैलानेके इल्जाम में अंग्रेजी सरकार की टेढ़ी निगाह के शिकार हुए और उन्हेंजब्ती, प्रतिबंध, जुर्माना का सामना करना पड़ा। संपादकों को कारावास भुगतनापड़ा।
गवर्नर जनरल वेलेजली
भारतीय पत्रकारिता की स्वाधीनता को बाधित करने वाला पहला प्रेस अधिनियमगवर्नर जनरल वेलेजली के शासनकाल में 1799 को ही सामने आ गया था। भारतीयपत्रकारिता के आदिजनक जॉन्स आगस्टक हिक्की के समाचार पत्र ‘हिक्की गजट’ कोविद्रोह के चलते सर्वप्रथम प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। हिक्की को एक सालकी कैद और दो हजार रूपए जुर्माने की सजा हुई। कालांतर में 1857 में गैंगिंकएक्ट, 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1908 में न्यूज पेपर्स एक्ट (इन्साइटमेंट अफैंसेज), 1910 में इंडियन प्रेस एक्ट, 1930 में इंडियन प्रेसआर्डिनेंस, 1931 में दि इंडियन प्रेस एक्ट (इमरजेंसी पावर्स) जैसे दमनकारीक़ानून अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करने केउद्देश्य से लागू किए गये। अंग्रेजी सरकार इन काले क़ानूनों का सहारा लेकरकिसी भी पत्र-पत्रिका पर चाहे जब प्रतिबंध, जुर्माना लगा देती थी।आपत्तिजनक लेख वाले पत्र-पत्रिकाओं को जब्त कर लिया जाता। लेखक, संपादकोंको कारावास भुगतना पड़ता व पत्रों को दोबारा शुरू करने के लिए जमानत कीभारी भरकम रकम जमा करनी पड़ती। बावजूद इसके समाचार पत्र संपादकों के तेवरउग्र से उग्रतर होते चले गए। आजादी के आन्दोलन में जो भूमिका उन्होंने खुदतय की थी, उस पर उनका भरोसा और भी ज्यादा मजबूत होता चला गया। जेल, जब्ती, जुर्माना के डर से उनके हौसले पस्त नहीं हुये।
बीसवीं सदी की शुरुआत
बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक में सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन केप्रचार प्रसार और उन आन्दोलनों की कामयाबी में समाचार पत्रों की अहमभूमिका रही। कई पत्रों ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रवक्ता का रोल निभाया। कानपुर से 1920 मेंप्रकाशित ‘वर्तमान’ ने असहयोग आन्दोलन को अपना व्यापक समर्थन दिया था।पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा शुरू किया गया साप्ताहिक पत्र ‘अभ्युदय’ उग्रविचारधारा का हामी था। अभ्युदय के भगत सिंह विशेषांक में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, मदनमोहन मालवीय, पंडित जवाहरलाल नेहरू के लेख प्रकाशित हुए। जिसके परिणामस्वरूप इन पत्रों को प्रतिबंध- जुर्माना का सामना करना पड़ा। गणेश शंकर विद्यार्थी का‘प्रताप’, सज्जाद जहीर एवं शिवदान सिंह चैहान के संपादन में इलाहाबाद सेनिकलने वाला ‘नया हिन्दुस्तान’ राजाराम शास्त्री का ‘क्रांति’ यशपाल का‘विप्लव’ अपने नाम के मुताबिक ही क्रांतिकारी तेवर वाले पत्र थे। इन पत्रोंमें क्रांतिकारी युगांतकारी लेखन ने अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ा दी थी।अपने संपादकीय, लेखों, कविताओं के जरिए इन पत्रों ने सरकार की नीतियों कीलगातार भतर्सना की। ‘नया हिन्दुस्तान’ और ‘विप्लव’ के जब्तशुदा प्रतिबंधितअंकों को देखने से इनकी वैश्विक दृष्टि का पता चलता है।
‘चाँद’ का फाँसी अंक
फाँसीवाद के उदय और बढ़ते साम्राज्यवाद, पूंजीवाद पर चिंता इन पत्रों में साफ़ देखी जा सकती है। गोरखपुर सेनिकलने वाले साप्ताहिक पत्र ‘स्वदेश’ को जीवंतपर्यंत अपने उग्र विचारों औरस्वतंत्रता के प्रति समर्पण की भावना के कारण समय-समय पर अंग्रेजी सरकारकी कोप दृष्टि का शिकार होना पड़ा। खासकर विशेषांक विजयांक को। आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा संपादित ‘चाँद’ के फाँसी अंक की चर्चा भी जरूरी है। काकोरी के अभियुक्तों को फांसी के लगभग एक साल बाद, इलाहाबाद सेप्रकाशित चॉंद का फाँसी अंक क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास की अमूल्य निधिहै। यह अंक क्रांतिकारियों की गाथाओं से भरा हुआ है। सरकार ने अंक की जनतामें जबर्दस्त प्रतिक्रिया और समर्थन देख इसको फौरन जब्त कर लिया औररातों-रात इसके सारे अंक गायब कर दिये। अंग्रेज हुकूमत एक तरफ क्रांतिकारीपत्र-पत्रिकाओं को जब्त करती रही, तो दूसरी तरफ इनके संपादक इन्हें बिनारुके पूरी निर्भिकता से निकालते रहे। सरकारी दमन इनके हौसलों पर जरा भी रोकनहीं लगा सका। पत्र-पत्रिकाओं के जरिए उनका यह प्रतिरोध आजादी मिलने तकजारी रहा।
हिंदी पत्रकारिता का उत्कर्ष काल
हिंदी पत्रकारिता का उत्कर्ष काल (1947 से प्रारंभ)
अपनेक्रमिक विकास में हिंदी पत्रकारिता के उत्कर्ष का समय आजादी के बाद आया । 1947 में देश को आजादी मिली । लोगों में नई उत्सुकता का संचार हुआ ।औद्योगिक विकास के साथ-साथ मुद्रण कला भी विकसित हुई । जिससे पत्रों कासंगठन पक्ष सुदृढ़ हुआ । रूप-विन्यास में भी सुरूचि दिखाई देने लगी ।
आजादी के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व उन्नति होने पर भी यहदुख का विषय है कि आज हिंदी पत्रकारिता विकृतियों से घिरकर स्वार्थसिद्धिऔर प्रचार का माध्यम बनती जा रही है । परन्तु फिर भी यह निर्विवाद रूप सेकहा जा सकता है कि भारतीय प्रेस की प्रगति स्वतंत्रता के बाद ही हुई ।
यद्यपिस्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता ने पर्याप्त प्रगति कर ली है किन्तु उसकेउत्कर्षकारी विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं भी कम नहीं हैं ।पत्रकारिता एक निष्ठापूर्ण कर्म है और पत्रकार एक दायित्वशील व्यक्ति होताहै । अतः यदि हमें स्वच्छ पत्रकारिता को विकसित करना है तो पत्रकारिता केक्षेत्र में हुई अनधिकृत घुसपैठ को समाप्त करना होगा, उसे जीवन मूल्यों सेजोड़ना होगा, उसे आचरणिक कर्मों का प्रतीक बनाना होगा और प्रचारवादीमूल्यों को पीछे धकेल कर पत्रकारिता को जीवन, समाज, संस्कृति और कला कास्वच्छ दर्पण बनाना होगा, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों कोअतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान को समेटते हुए भविष्य का दिशानिर्देशन भीकरना चाहिए ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के आसपास यानी दो-चार वर्षआगे-पीछे कई दैनिक, साप्ताहिक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ । जिसमें कुचतो निरंतर प्रगति कर रही हैं तथा कुछ बंद हो गई हैं ।
प्रमुख पत्रोंमें नवभारत टाइम्स (1947), हिन्दुस्तान (1936), नवभारत (1938), नई दुनिया (1947), आर्यावर्त (1941), आज (1920), इंदौर समाचार (1946), जागरण (1947), स्वतंत्र भारत (1947), युगधर्म (1951), सन्मार्ग (1951), वीर-अर्जुन (1954), पंजाब केसरी (1964), दैनिक ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका (1956), अमर उजाल (1948), दैनिक भास्कर (1958), तरूण भारत (1974), नवजीवन (1974), स्वदेश (1966), देशबंधु (1956), जनसत्ता 1903), रांची एक्सप्रेस, प्रभातखबर आदि शामिल हैं ।
इसमें तरूण भारत और युगधर्म का प्रकाशन बंद होचुका है । शेष निरन्तर प्रगति कर रहे हैं । साप्ताहिक पत्रों में ब्लिट्ज(1962), पाञ्चजन्य (1947), करंट, चौथी दुनिया (1986), संडे मेल (1987), संडे आब्जर्वर (1947), दिनमान टाइम्स (1990) प्रमुख रहे । इनमें सेपाञ्चजन्य के अलावा सभी बंद हो चुके हैं ।
प्रमुख पत्रिकाओं मेंधर्मयुग (1950), साप्ताहिक हिन्दुस्तान (1950), दिनमान (1964), रविवार (1977), अवकाश 1982), खेल भारती (1982), कल्याण (1926), माधुरी (1964), पराग (1960), कादम्बिनी (1960), नन्दन (1964), सारिका (1970), चन्दामा (1949), नवनीत (1952), सरिता (1964), मनोहर कहानियां (1939), मनोरमा (1924), गृहशोभा, वामा, गंगा (1985), इंडिया टुडे (1986), माया हैं । इनमेंसे दिनमान, रविवार, अवकाश, पराग, गंगा, माधुरी अब बंद हो चुकी हैं । इनमेंसे दिनमान ने नई प्रवृत्तियां प्रारंभ की थी । अतिथि सम्पादक की परम्पराप्रारम्भ की, जिसमें कई राजनेता, साहित्यकार व कलाप्रेमी अतिथि सम्पादक बने। वहीं रविवार खोजपूर्ण रिपोर्टिंग के
अपनेक्रमिक विकास में हिंदी पत्रकारिता के उत्कर्ष का समय आजादी के बाद आया । 1947 में देश को आजादी मिली । लोगों में नई उत्सुकता का संचार हुआ ।औद्योगिक विकास के साथ-साथ मुद्रण कला भी विकसित हुई । जिससे पत्रों कासंगठन पक्ष सुदृढ़ हुआ । रूप-विन्यास में भी सुरूचि दिखाई देने लगी ।
आजादी के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व उन्नति होने पर भी यहदुख का विषय है कि आज हिंदी पत्रकारिता विकृतियों से घिरकर स्वार्थसिद्धिऔर प्रचार का माध्यम बनती जा रही है । परन्तु फिर भी यह निर्विवाद रूप सेकहा जा सकता है कि भारतीय प्रेस की प्रगति स्वतंत्रता के बाद ही हुई ।
यद्यपिस्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता ने पर्याप्त प्रगति कर ली है किन्तु उसकेउत्कर्षकारी विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं भी कम नहीं हैं ।पत्रकारिता एक निष्ठापूर्ण कर्म है और पत्रकार एक दायित्वशील व्यक्ति होताहै । अतः यदि हमें स्वच्छ पत्रकारिता को विकसित करना है तो पत्रकारिता केक्षेत्र में हुई अनधिकृत घुसपैठ को समाप्त करना होगा, उसे जीवन मूल्यों सेजोड़ना होगा, उसे आचरणिक कर्मों का प्रतीक बनाना होगा और प्रचारवादीमूल्यों को पीछे धकेल कर पत्रकारिता को जीवन, समाज, संस्कृति और कला कास्वच्छ दर्पण बनाना होगा, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों कोअतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान को समेटते हुए भविष्य का दिशानिर्देशन भीकरना चाहिए ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के आसपास यानी दो-चार वर्षआगे-पीछे कई दैनिक, साप्ताहिक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ । जिसमें कुचतो निरंतर प्रगति कर रही हैं तथा कुछ बंद हो गई हैं ।
प्रमुख पत्रोंमें नवभारत टाइम्स (1947), हिन्दुस्तान (1936), नवभारत (1938), नई दुनिया (1947), आर्यावर्त (1941), आज (1920), इंदौर समाचार (1946), जागरण (1947), स्वतंत्र भारत (1947), युगधर्म (1951), सन्मार्ग (1951), वीर-अर्जुन (1954), पंजाब केसरी (1964), दैनिक ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका (1956), अमर उजाल (1948), दैनिक भास्कर (1958), तरूण भारत (1974), नवजीवन (1974), स्वदेश (1966), देशबंधु (1956), जनसत्ता 1903), रांची एक्सप्रेस, प्रभातखबर आदि शामिल हैं ।
इसमें तरूण भारत और युगधर्म का प्रकाशन बंद होचुका है । शेष निरन्तर प्रगति कर रहे हैं । साप्ताहिक पत्रों में ब्लिट्ज(1962), पाञ्चजन्य (1947), करंट, चौथी दुनिया (1986), संडे मेल (1987), संडे आब्जर्वर (1947), दिनमान टाइम्स (1990) प्रमुख रहे । इनमें सेपाञ्चजन्य के अलावा सभी बंद हो चुके हैं ।
प्रमुख पत्रिकाओं मेंधर्मयुग (1950), साप्ताहिक हिन्दुस्तान (1950), दिनमान (1964), रविवार (1977), अवकाश 1982), खेल भारती (1982), कल्याण (1926), माधुरी (1964), पराग (1960), कादम्बिनी (1960), नन्दन (1964), सारिका (1970), चन्दामा (1949), नवनीत (1952), सरिता (1964), मनोहर कहानियां (1939), मनोरमा (1924), गृहशोभा, वामा, गंगा (1985), इंडिया टुडे (1986), माया हैं । इनमेंसे दिनमान, रविवार, अवकाश, पराग, गंगा, माधुरी अब बंद हो चुकी हैं । इनमेंसे दिनमान ने नई प्रवृत्तियां प्रारंभ की थी । अतिथि सम्पादक की परम्पराप्रारम्भ की, जिसमें कई राजनेता, साहित्यकार व कलाप्रेमी अतिथि सम्पादक बने। वहीं रविवार खोजपूर्ण रिपोर्टिंग के
स्वतंत्र प्रेस के पहले नायक हिकी

विनय मिश्र।
जेम्स अगस्टस हिकी भारत के प्रथम पत्रकार थे, जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। उनकेबाद यह सूची लंबी है। हजारों पत्रकारों ने विदेशी और देसी शासन के खिलाफसंघर्ष जारी रखा, ताकि कलम स्वतंत्र रहे। आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवसपर भारत में स्वतंत्र प्रेस के अगुआ हिकी के बहाने महान कलमवीरों को हमारीश्रद्धाजलि..।
प्रेस की स्वतंत्रता पर बहस बड़ी पुरानी है। शायद इस बहस की उम्र उतनीहै, जितनी प्रेस की है। भारत में समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिएसंघर्ष आज से लगभग 232 साल पहले कोलकाता में समाचार पत्र के प्रकाश के साथही शुरू हुआ था। उस संघर्ष के नायक थे बंगाल गजट के संस्थापक-संपादक जेम्सअगस्टस हिकी। वो थे तो ब्रिटिश नागरिक, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार केदमनकारी उपायों के खिलाफ उन्होंने डटकर संघर्ष किया।
भारत का पहला समाचार पत्र
बंगाल गजट दो पन्नों का साप्ताहिक था, जो पहली बार कोलकता में शनिवार 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित हुआ। इसके संस्थापक-संपादक-प्रकाशक हिकी काडिक्शनरी आफ नेशनल बायोग्राफी में जिक्र नहीं है। यह भी नहीं पता कि वे कहापैदा हुए। बंगाल आबीचुअरी में भी उनका जिक्र नहीं है। हा, एचई ए काटन कीपुस्तककलकत्ता ओल्ड एंड न्यू [1907] में इतना जरूर उल्लेख है कि भारत मेंउनका कार्यकाल लालबाजार की जेल में समाप्त हो गया।
उनके साहस के चर्चे अवश्य कई किताबों में मिलते हैं। बस्तीड ने पहलेभारतीय समाचार पत्र का जीवन और मृत्यु शीर्षक पुस्तक का एक अध्याय हिकी केबारे में लिखा है और उन्हें भारतीय प्रेस का अगुआ बताया है। मार्गरेटबर्न्स ने अपनी पुस्तक भारतीय प्रेस - भारत में जनमत के विकास का इतिहास [1940] में इस व्यक्ति के बारे में लिखा है कि उसने बड़ा साहस दिखाया औरबहुत कुछ खोया। लेकिन उनका नाम अमर रहेगा। आज हिकी अमर हैं, लेकिन उनकाचित्र धूमिल रह गया।
दरअसल हिकी के चार पृष्ठों के 12 स्तंभ कंपनी सरकार के सिरदर्द थे।प्रत्येक पृष्ठ पर तीन स्तंभ होते थे। उसमें कंपनी के सर्वोच्च अधिकारी तकके खिलाफ तीखे व्यंग्य प्रकाशित किए जाते थे। तीखे व्यंग्य कभी-कभी अश्लीलभी हो गए। हेस्टिंग्स और इंपे जैसे अधिकारियों के खिलाफ गाली-गलौज वालीआलोचना के पक्ष में हिकी ने सफाई दी थी कि - पत्र का संपादक यह मानकर चलताहै कि एक-एक नागरिक और स्वतंत्र सरकार के लिए समाचार पत्र की आजादी आवश्यकहै।
प्रजा को अपने सिद्धात और मत व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता होनीचाहिए और उस आजादी पर अंकुश लगानेवाला प्रत्येक कार्य दमनकारी और समाज केलिए घातक कहलाएगा।
जून 1781 में हेस्टिंग्स ने इंपे को आदेश दिया कि हिकी को गिरफ्तार करलिया जाये। तुरंत हिकी को सशस्त्र बल ने घेर लिया, हालाकि वे डरे नहीं।उन्होंने साहसपूर्वक कहा कि आप मुझे इस तरह घसीटकर नहीं ले जा सकते।उन्होंने गिरफ्तारी का वारंट भी दिखाने को कहा, लेकिन अदालत उठ चुकी थी।उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अगले दिन उच्चतम न्यायालय ने गवर्नर जनरल द्वारा उस पर लगाए गए आरोप कोलेकर जवाब-तलब किया। जब वह अपनी जमानत के लिए 80 हजार रुपये नहीं दे सके, तो जेल भेज दिया गया। अगले वर्ष हिकी को एक वर्ष जेल की सजा दी गई और 2 हजार रुपये का जुर्माना किया गया।
संपादक के जेल जाने के बाद कुछ समय तक तो गजट निकलता रहा। लेकिन मार्च 1782 में एक आदेश द्वारा प्रेस को जब्त कर लिया गया। और इस प्रकार भारत कापहला समाचार पत्र और स्वतंत्र प्रेस का अगुआ बंद हो गया। हिकी ने साहस केसाथ लोहा लिया और उनका प्रेस तभी बंद हुआ, जब उसे जब्त कर लिया गया।
उस समय भी उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता की बात कही थी, जबकि वह जेल में थे और अपने बीवी बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ थे।
-क्यों मनाया जाता है प्रेस स्वतंत्रता दिवस :-
प्रत्येक वर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस कीघोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार इस दिन प्रेस की स्वतंत्रता केसिद्धात, प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्याकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरीतत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओंको श्रद्धाजलि देने का दिन है।
पत्रकारिता का इतिहास
SC ने कोयला घोटाले में सिन्हा से मांगा जवाब
कोयला घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने…बड़ी खबर: अटक सकती है 72,825 शिक्षक भर्ती!
उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी मिलना बेहद…- होम
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पत्रकारिता का इतिहास
Added by टीम द सिविलियन on March 18, 2013.
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता की भूमिका

जेम्सअगस्टन हिक्की ने 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगाल गजटकलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था – सभी के लिये खुलाफिर भी किसी से प्रभावित नहीं । अपनेनिर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को इस्ट इंडिया कंपनीका कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू आलोचना कापुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली। हिक्कीने अपना उद्देश्य ही घोषित किया था – अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता केलिये अपने शरीर को बंधन में डालने में मुझे मजा आता है। समाचार पत्र कीशुरूआत विद्रोह की घोषणा से हुई। हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। उत्तरीअमेरिका निवासी विलियम हुआनी ने हिक्की की परंपरा को समृद्ध किया। 1765 में प्रकाशित बंगाल जनरल जो सरकार समर्थक था 1791 में हुमानी के संपादक बनजाने के बाद सरकार की आलोचना करने लगा। हुमानी की आक्रामक मुद्रा से आतंकितहोकर सरकार ने उसे भारत से निष्कासित कर दिया। जेम्स बंकिघम ने 2 अक्टूबर 1818 को कलकत्ता से अंग्रजी का कैलकटा जनरल प्रकाशित किया। जो सरकारी नीतियों का निर्भीक आलोचक था। पंडित अंबिकाप्रशाद ने लिखा कि इस पत्र की स्वतंत्रता व उदारता पहले किसी पत्र में नही देखी गयी। कैलकटाजनरल उस समय के एंग्लोइंडियन पत्रों को प्रचार प्रसार में पीछे छोड़ दियाथा। एक रूपये मुल्य के इस अखबार का दो वर्ष में सदस्य संख्या एक हजार सेअधिक हो गयी थी। जेम्सबंकिघम को प्रेस की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता था। सन् 1823 मेंउन्हें देश निकाला दे दिया गया। हालांकि इंगलैंड जाकर उन्होंने आरियंटलहेराल्ड निकाला जिसमें वह भारतीय समस्याओं और कंपनी के हाथों में भारत काशासन बनाये रखने के खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा। 1961 के इंडियन कांउसिल एक्ट के बाद समाज के उपरी तबकों में उभरी राजनीतिकचेतना से भारतीय व गैरभारतीय दोनों भाषा के पत्रों की संख्या बढ़ी। 1861 में बंबई में टाइम्स आफ इंडिया की 1865 में इलाहाबाद में पायनियर 1868 मेंमद्रास मेल की 1875 में कलकत्ता स्टेटसमैन की और 1876 में लाहौर में सिविलऐंड मिलटरी गजट की स्थापना हुई। ये सभी अंग्रेजी दैनिक ब्रिटिश शासनकालमें जारी रहे। टाइम्स आफ इंडिया ने प्रायः ब्रिटिश सरकार की नीतियों का समर्थन किया। पायोनियर ने भूस्वामी और महाजनी तत्वों का पक्ष तो मद्रास मेल ने यूरोपीय वाणिज्य समुदाय का पक्षधर था। स्टेटसमैन ने सरकार और भारतीय राष्ट्रवादियों दोनों का ही आलोचना की थी। सिविल एण्ड मिलिटरी गजट ब्रिटिश दाकियानूसी विचारों का पत्र था। स्टेटसमैनटाइम्स आफ इंडिया सिविल एण्ड मिलिटरी गजट पायनियर और मद्रास मेल जैसेप्रसिद्ध पत्र अंग्रेजी सरकार और शासन की नीतियों एवं कार्यक्रम का समर्थनकरते थे। अमृतबाजार पत्रिका बांबे क्रानिकल बांबे सेंटिनल हिन्दुस्तान टाइम्सहिन्दुस्तान स्टैंडर्ड फ्री प्रेस जनरल नेश्नल हेराल्ड नेश्नल काल अंग्रेजीमें छपने वाले लक्ष्य प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी दैनिक और साप्ताहिक पत्र थे।हिन्दू लीडर इंडियन सोशल रिफार्मर माडर्न रिव्यू उदारपंथी राष्ट्रीयता कीभावना को अभिव्यक्ति देते थे। इंडियन नेशनल कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों को राष्ट्रीय पत्रों ने पूर्ण और उदारपंथी पत्रों ने आलोचनात्मक समर्थन दिया था। डान मुस्लिम लीग के विचारों का पोषक था। देश के विद्यार्थी संगठनों के अपने पत्र थे जैसे स्टूडेंट और साथी। सुरेंद्रनाथ बनर्जी का बंगाली ( 1879 अंग्रेजी में ) भारतके राष्ट्रीय नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1874 में बंगाली ( अंग्रेजी )पत्र का प्रकाशन व संपादन किया। इसमें छपे एक लेख के लिये उनपर न्यायालय कीअवज्ञा का अभियोग लगाया गया था। उन्हें दो महीने के कारावास की सजा मिलीथी। बंगाली ने भारतीय राजनीतिक विचारधारा के उदारवादी दल के विचारों काप्रचार किया था। सुरेन्द्रनाथबनर्जी की राय पर दयाल सिंह मजीठिया ने 1877 में लाहौर में अंग्रेजी दैनिकट्रिब्यून की स्थापना की। पंजाब की उदारवादी राष्ट्रीय विचारधारा का यहप्रभावशाली पत्र था। लार्डलिटन के प्रशासनकाल में कुछ सरकारी कामों के चलते जनता की भावनाओं को चोटपहुंची जिससे राजनीतिक असंतोष बढ़ा और अखबारों की संख्या में वृद्धि हुई। 1878 में मद्रास में वीर राधवाचारी और अन्य देशभक्त भारतीयों ने अंग्रेजीसप्ताहिक हिन्दू की स्थापना की। 1889 से यह दैनिक हुआ। हिन्दु का दृष्टिकोणउदारवादी था। लेकिन इसने इंडियन नेश्नल कांग्रेस की राजनीति की आलोचना केसाथ ही सका समर्थन भी किया। राष्ट्रीयचेतना का समाज सुधार के क्षेत्र में भी प्रसार हुआ। बंबई में 1890 मेंइंडियन सोशल रिफार्मर अंग्रेजी साप्ताहिक की स्थापना हुई। समाज सुधार हीइसका मुख्य लक्ष्य था। 1899 में सच्चिदानंद सिन्हा ने अंग्रेजी मासिक हिन्दुस्तान रिव्यू की स्थापनाकी। इस पत्र का राजनैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण उदारवादी था। 1900 के बाद 1900 में जी ए नटेशन ने मद्रास से इंडियन रिव्यू का और 1907 में कलकत्ता से रामानन्द चटर्जी ने मॉडर्न रिव्यू का प्रकाशन शुरू किया। मॉडर्नरिव्यू देश का सबसे अधिक विख्यात अंग्रेजी मासिक सिद्ध हुआ। इसमें सामाजिकराजनीतिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विषयों पर लेख निकलते थे और अंतराष्ट्रीयघटनाओं के विषय में भी काम की खबरें होती थी। इसने इंडियन नेश्नल कांग्रेसमें प्रायः दक्षिणपंथियों का समर्थन किया। 1913 में बी जी हार्नीमन के संपादकत्व में फिरोजशाह मेहता ने बांबे क्रानिकल निकाला। 1918 में सर्वेंटस आफ इंडिया सोसाइटी ने श्रीनिवास शास्त्री के संपादकत्व मेंअपना मुखपत्र सर्वेंट आफ इंडिया निकालना शुरू किया। इसने उदारवादीराष्ट्रीय दृष्टिकोण से देश की समस्याओं का विश्लेषण और समाधान प्रस्तुतकिया। 1939 में इसका प्रकाशन बंद हो गया। 1919 में गांधी ने यंग इंडिया का संपादन किया और इसके माध्यम से अपने राजनीतिकदर्शन कार्यक्रम और नीतियों का प्रचार किया। 1933 के बाद उन्होंने हरिजन (बहुत सी भाषाओं में प्रकाशित साप्ताहिक ) का भी प्रकाशन शुरू किया। पंडित मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इलाहाबाद से इंडीपेंडेंट ( अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरू किया। स्वराजपार्टी के नेता ने दल के कार्यक्रम के प्रचार के लिये 1922 में दिल्ली मेंके एम पन्नीकर के संपादकत्व में हिन्दुस्तान टाइम्स ( अंग्रेजी दैनिक ) काप्रकाशन शुरू किया। इसी काल में लाला लाजपत राय के फलस्वरूप लाहौर सेअंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक प्युपल का प्रकाशन शुरू किया गया। 1923 के बाद धीरे – धीरे समाजवादी, साम्यवादी विचार भारत में फैलने लगे।वर्कर्स एंड प्लेसंट पार्टी आफ इंडिया का एक मुखपत्र मराठी साप्ताहिकक्रांति था। मर्ट कांसपीरेसी केस के एम जी देसाई और लेस्टर हचिंसन केसंपादकत्व में क्रमशः स्पार्क और न्यू स्पार्क ( अंग्रेजी साप्ताहिक )प्रकाशित हुआ। मार्क्सवादका प्रचार करना और राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं किसानों मजदूरों के स्वतंत्रराजनीतिक आर्थिक संघर्षों को समर्थन प्रदान करना इनका उद्देश्य था। 1930 और 1939 के बीच मजदूरों किसानों के आंदोलनों का विस्तार हुआ और उनकी ताकतबढ़ी। कांग्रेस के नौवजवानों के बीच सामाजवादी साम्यवादी विचार विकसित हुए।इस तरह स्थापित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने अधिकारिक पत्र के रूप मेंकांग्रेस सोशलिस्ट का प्रकाशन किया। कम्युनिस्ट के प्रमुख पत्र नेश्नल फ्रंट और बाद में प्युपलस् वार थे। ये दोनों अंग्रेजी सप्ताहिक पत्र थे। एम एन रॉय के विचार अधिकारिक साम्यवाद से भिन्न थे। उन्होंने अपना अलग दल कायम किया जिसका मुखपत्र था इंडीपेंडेंट इंडिया। राजा राममोहन राय राजाराममोहन राय ने सन् 1821 में बंगाली पत्र संवाद कौमुदी को कलकत्ता सेप्रकाशित किया। 1822 में फारसी भाषा का पत्र मिरात उल अखबार और अंग्रेजीभाषा में ब्रेहेनिकल मैगजीन निकाला। राजाराममोहन राय ने अंग्रेजी में बंगला हेराल्ड निकाला। कलकत्ता से 1829 मेंबंगदूत प्रकाशित किया जो बंगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषाओं में छपता था। संवादकौमुदी और मिरात उल अखबार भारत में स्पष्ट प्रगतिशील राष्ट्रीय औरजनतांत्रिक प्रवृति के सबसे पहले प्रकाशन थे। ये समाज सुधार के प्रचार औरधार्मिक – दार्शनिक समस्याओं पर आलोचनात्मक वाद – विवाद के मुख्य पत्र थे। राजाराममोहन राय की इन सभी पत्रों के प्रकाशन के पीछे मूल भावना यह थी … मेराउद्देश्य मात्र इतना है कि जनता के सामने ऐसे बौध्दिक निबंध उपस्थित करूंजो उनके अनुभव को बढ़ावें और सामाजिक प्रगति में सहायक सिध्द हो। मैं अपनीशक्ति भर शासकों को उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही परिचय देना चाहताहूं और प्रजा को उनके शासकों द्वारा स्थापित विधि व्यवस्था से परिचित करानाचाहता हूं ताकि जनता को शासन अधिकाधिक सुविधा दे सके। जनता उन उपायो सेअवगत हो सके जिनके द्वारा शासकों से सुरक्षा पायी जा सके और अपनी उचितमांगें पूरी करायी जा सके। दिसंबर 1823 में राजा राममोहन राय ने लार्ड एमहस्ट को पत्र लिखकर अंग्रेजी शिक्षाके प्रसार हेतु व्यवस्था करने का अनुरोध किया ताकि अंग्रेजी को अपनाकरभारतवासी विश्व की गतिविधियों से अवगत हो सके और मुक्ति का महत्व समझे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक विष्णु शास्त्री चिपलणकर और लोकमान्य तिलक ने मिलकर 1 जनवरी 1881 से मराठी में केसरी और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक पत्र निकाले। तिलकऔर उनके साथियों ने पत्र – प्रकाशन की उदघोषणा में कहा – हमारा दृढ़निश्चय है कि हम हर विषय पर निष्पक्ष ढंग से तथा हमारे दृष्टिकोण से जोसत्य होगा उसका विवेचन करेंगे। निःसंदेह आज भारत में ब्रिटिश शान मेंचाटुकारिता की प्रवृति बढ़ रही है। सभी ईमानदार लोग यह स्वीकार करेंगे कियह प्रवृति अवांछनीय तथा जनता के हितों के विरूद्ध है। इस प्रस्तावितसमाचारपत्र (केसरी) में जो लेख छपेंगे वे इनके नाम के ही अनुरूप होंगे। केसरीऔर मराठा ने महाराष्ट्र में जनचेतना फैलाई तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनके इतिहास में स्वर्णिम योगदान दिया। उन्होंने भारतीय जनता को दीन – हीन वदब्बू पक्ष की प्रवृति से उठ कर साहसी निडर व देश के प्रति समर्पित होनेका पाठ पढ़ाया। बस एक ही बात उभर कर आती थी -स्वराज्य मेरा जन्मसिद्धअधिकार है। सन्1896 में भारी आकाल पड़ा जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई। बंबई में इसीसमय प्लेग की महामारी फैली। अंग्रज सरकार ने स्थिति संभालने के लिये सेनाबुलायी। सेना घर – घर तलाशी लेना शुरू कर दिया जिससे जनता में क्रोध पैदाहो गया। तिलक ने इस मनमाने व्यवहार व लापरवाही से क्षुब्ध होकरकेसरी के माध्यम से सरकार की कड़ी आलोचना की। केसरी में उनके लिखे लेख केकारण उन्हें 18 महीने कारावास की सजा दी गयी। महात्मा गांधी गांधीजीने 4 जून 1903 में इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया। जिसकेएक ही अंक से अंग्रेजी हिन्दी तमिल गुजराती भाषा में छः कॉलम प्रकाशित होतेथे। उस समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। अंग्रेजी में यंग इंडिया और जुलाई 1919 से हिन्दी – गुजराती में नवजीवन का प्रकाशन आरंभ किया। इनपत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जनमानस तक पहुंचाया। उनके व्यक्तित्वने जनता पर जादू सा कर दिया था। उनकी आवाज पर लोग मर – मिटने को तैयार होगये। इनपत्रों में प्रति सप्ताह महात्मा गांधी के विचार प्रकाशित होते थे।ब्रिटिश शासन द्वारा पारित कानूनों के कारण जनमत के अभाव में ये पत्र बंदहो गये। बाद में उन्होंने अंग्रेजी में हरिजन और हिन्दी में हरिजन सेवक तथागुजराती में हरिबन्धु का प्रकाशन किया तथा ये पत्र स्वतंत्रता तक छापतेरहे। अमृत बाजार पत्रिका सन् 1868 में बंगाल के छोटे से गांव अमृत बाजार से हेमेन्द्र कुमार घोष, शिशिरकुमार घोष और मोतीलाल घोष के संयुक्त प्रयास से एक बांगला साप्ताहिक पत्रअमृत बाजार पत्रिका शुरू हुआ। बाद में कलकत्ता से यह बांगला और अंग्रेजीदोनों भाषाओं में छपने लगी। 1878 के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिये इसे पूर्णतः अंग्रेजीसाप्ताहिक बना दिया गया। सन् 1891 में अंग्रेजी दैनिक के रूप में इसकाप्रकाशन शुरु हुआ। अमृतबाजार पत्रिका ने तगड़े राष्ट्रीय विचारों का प्रचार किया और यह अत्याधिकलोकप्रिय राष्ट्रवादी पत्र रहा है। सरकारी नीतियों की कटू आलोचना के कारणइस पत्र का दमन भी हुआ। इसके कई संपादकों को जेल की भी सजा भुगतनी पड़ी। जबब्रिटिश सरकार ने धोखे से कश्मीर मे राजा प्रताप सिंह को गद्दी से हटादिया और कश्मीर को अपने कब्जे में लेना चाहा तो इस पत्रिका ने इतना तीव्रविरोध किया कि सरकार को राजा प्रताप सिंह को राज्य लौटाना पड़ा। पयामे आजादी स्वतंत्रताआंदोलन के अग्रणी नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी 1857 को दिल्ली से पयामेआजादी पत्र प्रारंभ किया। शोले की तरह अपनी प्रखर व तेजस्वनी वाणी से जनतामें स्वतंत्रता की भावना भर दी। अल्पकाल तक जीवित रहे इस पत्र से घबराकरब्रिटिश सरकार ने इसे बंद कराने में कोई कसर नही छोड़ी। पयामेआजादी पत्र से अंग्रेज सरकार इतनी आतंकित हुई कि जिस किसी के पास भी इसपत्र की कॉपी पायी जाती उसे गद्दार और विद्रोही समझ कर गोली से उड़ा दियागया। अन्य को सरकारी यातनायें झेलनी पड़ती थी। इसकी प्रतियां जब्त कर लीगयी फिर भी इसने जन – जागृति फैलाना जारी रखा। युगांतर जगदीशप्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है – जहां तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध हैभारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरुहुआ। वारिन्द्रघोष का पत्र युगांतर वास्तव में युगान्तरकारी पत्र था। कोई जान नही पाताथा कि इस पत्र का संपादक कौन है। अनेक व्यक्तियों ने ससमय अपने आपको पत्रका संपादक घोषित किया और जेल गये। दमनकारी कानून बनाकर पत्र को बंद कियागया। चीफजस्टिस सर लारेंस जैनिकसन ने इस पत्र की विचारधारा के बारे में लिखा था – इसकी हर एक पंक्ति से अंग्रेजों के विरुध्द द्वेष टपकता है। प्रत्येक शब्दमें क्रांति के लिये उत्तेजना झलकती है। युगांतरके एक अंक में तो बम कैसे बनाया जाता है यह भी बताया गया था। सन् 1909 मेंइसका जो अंतिम अंक प्रकाशित हुआ उस पर इसका मुल्य था – फिरंगदि कांचा माथा ( फिरंगी का तुरंत कटा हुआ सिर ) एक से अधिक भाषा वाले भाषाई पत्र हिन्दुमुसलमान दोनों सांप्रदायिकता के खतरे को समझते थे। उन्हें पता था किसाम्प्रदायिकता साम्राज्यवादियों का एक कारगर हथियार है। पत्रकारिता केमाध्यम से सामप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ लड़ाई तेज की गयी थी। भाषाईपृथकतावाद के खतरे को देखते हुए एक से अधिक भाषाओं में पत्र निकाले जातेथे। जिसमें द्विभाषी पत्रों की संख्या अधिक थी। हिन्दी और उर्दू पत्र मजहरुल सरुर, भरतपुर 1850 पयामे आजादी, दिल्ली 1857 ज्ञान प्रदायिनी, लाहौर 1866 जबलपुरसमाचार, प्रयाग 1868 सरिश्ते तालीम, लखनऊ 1883 रादपूताना गजट, अजमेर 1884 बुंदेलखंड अखबार, ललितपुर 1870 सर्वाहित कारक, आगरा 1865 खैर ख्वाहे हिन्द, मिर्जापुर 1865 जगत समाचार, प्रयाग 1868 जगत आशना, आगरा 1873 हिन्दुस्तानी, लखनऊ 1883 परचा धर्मसभा, फर्रुखाबाद 1889 समाचार सुधा वर्षण, हिन्दी और बांगला, कलकत्ता 1854 हिन्दी प्रकाश, हिन्दी उर्दू गुरुमुखी, अमृतसर 1873 मर्यादा परिपाटी समाचार, संस्कृत हिन्दी, आगरा 1873 1846 में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन् भी हिन्दु हेरोल्ड की भांति पांचभाषाओं हिन्दी फारसी अंग्रेजी बांगला और उर्दू में निकलता था। 1870 में नागपुर से हिन्दी उर्दू मराठी में नागपुर गजट प्रकाशित होता था। बंगदूत बांगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषओं में छपता था। गुजराती बंबईमें देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान 1822 में गुजराती में बांबेसमाचार शुरु किया जो आज भी दैनिक पत्र के रुप में निकलता है। 1851 में बंबई में गुजराती के दो और पत्रों रस्त गोफ्तार और अखबारे सौदागर कीस्थापना हुई। दादाभाई नौरोजी ने रस्त गोफ्तार का संपादन किया। यह गुजरातीभाषा का प्रभावशाली पत्र था। 1831 में बंबई से पी एम मोतीबाला ने गुजराती पत्र जामे जमशेद शुरु किया। मराठी सूर्याजी कृष्णजी के संपादन में 1840 में मराठी का पहला पत्र मुंबई समाचार शुरु हुआ। 1842 में कृष्णजी तिम्बकजी रानाडे ने पूना से ज्ञान प्रकाश पत्र प्रकाशित किया। 1879 – 80 में बुरहारनपुर से मराठी साप्ताहिक पत्र सुबोध सिंधु का प्रकाशन लक्ष्मण अनन्त प्रयागी द्वारा होता था। मध्य भारत में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का विकास मराठी पत्रों के सहारे ही हुआ था। |
स्वतंत्र भारत में पत्रकारिता की भूमिकाहिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता की प्रमुख प्रवृतियांप्रमुख समाचार पत्र समूहद हिन्दू:सन 1878 में हिन्दू साप्ताहिक शुरू हुआ जो 1889 में दैनिक समाचारपत्र हो गया।हिन्दू स्वतंत्र संपादकीय और संतुलित समाचार के लिए काफी लोकप्रिय है। यहखबर जुटाने, पृष्ठ रचना और मुद्रण के लिए आधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करताहै। यह समाचारपत्र तेरह केंद्रों में छपता है। इसका मुख्य संस्करण चेन्नईमें है।समाचारपत्र देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें। http://www.thehindu.com/ टाइम्स आफ इंडियाइंडियन एक्सप्रेसहिन्दुस्तान टाइम्स समूहदैनिक जागरणअमर उजालादैनिक भास्करप्रभात खबरराजस्थान पत्रिकाबिजनेस स्टैंडर्डप्रमुख संपादकमहावीर प्रसाद द्विवेदीगणेश शंकर विद्यार्थीबाबूराव विष्णु पराड़करबनारसी दास चतुर्वेदीअज्ञेयरघुवीर सहायराजेंद्र माथुरप्रभाष जोशीसुरेंद्र प्रताप सिंहभारत में रेडियोभारतमें सबसे पहले रेडियो का प्रसारण 1923 मं कोलकाता के एक क्लब द्वारा कियागया था। इसके बाद बंबई रेडियो क्लब द्वारा रेडियो प्रसारण किया गया जो 1926 में इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी बनाकर किया गया। 1936 में इसका नाम बदलकरआकाशवाणी कर दिया।1947 में आजादी के समय भारत में कुल 6 रेडियो स्टेशन मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ और चंडीगढ़ काम कर रहे थे। आज रेडियो स्टेशन की संख्या 200 सेअधिक हो गयी है। 1956 में विविध भारती का आगमन हुआ। वर्तमान में विविधभारती के 43 केन्द्र है। इस समय रेडियो की पहुंच 92 फीसदी भारतीय भू – भागऔर 98 फीसदी भारतीय जनता तक है। भारत में दूरदर्शन भारतमें टेलिविजन का प्रसारण सितंबर 1959 में एक प्रायोजिक परियोजना के रुपमें दिल्ली में एक केन्द्र खोलकर किया गया। प्रारंभ में टेलिविजन मेंशैक्षणिक कार्यक्रम का प्रसारण होता था बाद में समाचार व मनोरंजन के लियेकिया गया। 1982 में रंगीन टेलीविजन का प्रसारण आरंभ हुआ। 15 अगस्त 1984 कोसंपूर्ण देश में एक साथ दैनिक – राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसारण आरंभहुआ। प्रसार भारती कानून रेडियोऔर दूरदर्शन को स्वायत्त देने वाले वर्तमान प्रसार भारती कानून का मूल नामप्रसार भारती (भारती प्रसारण निगम) विधान 1990 था। इसमें कुल चार अध्यायथे जो कुल 35 धाराओं – उपधाराओं में बंटे थे। अधिनियम के अनुसार रेडियो – दूरदर्शन का प्रबंधन एक निगम द्वारा किया जायेगा और यह निगम एक 15 सदस्यीयबोर्ड (परिषद) द्वारा संचालित होगा। परिषद में एक अध्यक्ष, एक कार्यकारीसदस्य, एक कार्मिक सदस्य, छह अंशकालिक सदस्य, एक – एक पदेन महानिदेशक (आकाशवाणी और दूरदर्शन), सूचना और प्रसारण मंत्रालय का एक प्रतिनिधि औरकर्मचारियों के दो प्रतिनिधियों का प्रावधान था। अध्यक्ष व अन्य सदस्यों कीनियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी। प्रावधानोंके अनुसार यह प्रसार भारती बोर्ड सीधे संसद के प्रति उत्तरदायी होगा औरसाल में एक बार यह अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगा।अधिनियम में प्रसार भारती बोर्ड की स्वायत्ता के लिये दो समितियों का भीप्रावधान था – संसद समिति और प्रसार परिषद। संसदीय समिति में लोक सभा के 15 और राज्य सभा के 7 सदस्य होंगे जबकि प्रसार भारती परिषद में 11 सदस्यहोंगे जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे। अधिनियम के अनुसार प्रसार भारती के निम्न उद्देश्य 1 देश की एकता और अखंडता तथा संविधान में वर्णित लोकतंत्रात्मक मुल्यों को बनाये रखना। 2 सार्वजनिक हित के सभी मामलों की सत्य व निष्पक्ष जानकारी, उचित तथा संतुलित रुप में जनता को देना। 3 शिक्षा तथा साक्षरता की भावना का प्रचार – प्रसार करना। 4 विभिन्न भारतीय संस्कृतियों व भाषाओं के पर्याप्त समाचार प्रसारित करना। 5 स्पर्धा बढ़ाने के लिये खेल – कूद के समाचारों को भी पर्याप्त स्थान देना। 6 महिलाओं की वास्तविक स्थिति तथा समस्याओं को उजागर करना। 7 युवा वर्ग की आवश्यकताओं पर ध्यान देना। 8 छुआछूत – असमानता तथा शोषण जैसी सामाजिक बुराईयों का विरोध करना और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन देना। 9 श्रमिकों के अधिकार की रक्षा करना। 10 बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना। |
पत्रकारिता का इतिहास
समाचार पत्र का इतिहास
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