( सर मॉर्क टली अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले एक मशहूर पत्रकार है। हीहीसी हिन्दी न्यूज सर्विस के दक्षिण एशिया प्रमुख टली भारत में ही रहते थे और एकसप्ताह में केवल घूमना और सबसे पहले बीबीसी के लिए न्यूज देना ही इनका काम होता था। लगातार बातचीत होने वाले इनकी मित्रमंडली मे तमाम देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से लेकर समाज की मुख्यधारा में सबसे पीछे रह गए लोग शामिल थे ( और आज भी है) सर मॉर्कटली जिस सहजता सरलता और स्नेहपूर्वक मुझसे मिले और बहुत सारी पारिवारिक बातें भी हुई। उसके मद्देनजर यह मेरी उच्चश्रृंखलता ही मानी जाएगी कि मैने जिस अंदाज में लेख लिख मारा मानो वे मेरे लंगोटिया यार हो। मगर यही तो र मॉर्क टली की सबसे बड़ी खासियत ौर ताकत हैं कि वे एक पत्रकार से भी बड़े और रल ह्रदय से लैस एक भावुक इंसान है। और इसी छवि के साथ कज्ञ दक से भारत में रह रहे है. अमूमन भारत में इसी तरह के लोगो को महान भी कहते और मानते है। जिनमें रत्तीभर भी घंमड़ ना हो एेसी ही शांति के दूत की तरह मेरे मन में अंकित सर श्री मॉर्क टली पर मेरा एक छोटा सा संस्मरण । )
करीब 12-13 साल पहले की बात । जब मैं एक बार बीबीसी न्यूज रेडियों के दक्षिण एशिया न्यूजब्यूरो हेड सर मार्क टली से मिलने के लिए समय लेकर उनके घर जा ही धमका। क्या शाानदार हिन्दी हैं उनकी । फिर केवल सर टली की ही क्यों उनकी पत्नी (उनका नाम इस समय मैं भूल रहा हूं मगर मैं अपनी डायरी में से नाम तलाश कर जरूर लिखूंगा) की हिन्दी भी बहुत अच्छी ती।कासकर बोलने का मीठा अंदाज से लगता मानो हर शब्द में गुड़ की सोंधी सी मिठास छलक रही हो। दोनों ने मेरा खिलखिलाकर स्वागत किया और एकदम घरेलू सदस्य सा एकदम सहज होकर बातें की। मैं हिन्दी बोलने में थोड़ा हिचक भी रहा था पर मेरी दुविधा भांपकर सर टली बोले मैं केवल हिन्दी में बात करूंगा यदि आपको हिन्दी नहीं आती है तो अंग्रेजी में बोल कते हैं, मगर मेरा जवाब केवल हिन्दी में ही रहेगा। मुस्कुराते हुए सर टली ने कहा कि मुझे किसी हिन्दी जानने वाले भारतीय से अंग्रेजी में बात करने की तबियत ही नहीं करती। मेरे मन का झिझक और संकोच पूरी तरहखत्म हो गयी थी और एक साथ हम तीनो खिलखिला कर बातचीत में लग गए। करीब एक घंटे की मुलाकात में भारत, धर्म दर्शन भक्ति संतमत साहित्य कविता भारतीय सिनेमा से लेकर क्रिकेट और आतंकवाद आदि तमाम मुद्दो पर बातचीत से ज्यादा जिरह होती रही। खासकर दिवंगत प्रधानमंत्री स्रीमती गांधी की हत्या पंजाब के खूनी मंजर समेत म्यांगमार में तानासाही सत्ता और पाकिस्तान में दिवंगत राष्ट्रपति भुट्टो की फांसी देने की घटना का भी आंखो देखा हाल बयान करके मंत्र मुग्घ कर दिया। भारत के बारे में भी सर टली का ज्ञान अतुलनीय साथा। शायद बड़े बड़े फन्नेमार भारतीय ज्ञाता भी उनके सामने ज्यादा देर तक ना टिक पाए।
बीच में मैने उनसे पूछा कि टली साहब आप इंडिया में ही क्यों रह गए ? क्या आज कभी मन करता है कि काश आप वापस इंग्लैंड ही लौट जाते ?
मेरे मन में मार्क टली के अलावा बीबीसी के तेजतर्रार खबरची सतीश जैकब के लिए भी बडी आस्था और सम्मान है। जब पंजाब जल रहा था ( उस समय भारत में तमाम खबरिया न्यूज चैनलों की पैदाइश भी नहीं हुई थी, और तब खबर माने जो बीबीसी बताए ही सही और सच माना जाता था।) मेरे सवाल पर सर टली ने लंबी आह भरी, और बोले कि यार भारत छोड़कर जाऊंगा भी तो कहां ? एकदम मुठ्ठी ताने टली ने हंसकर कहा कि इंडिया जैसा देश पूरे संसार में नहीं है। आप यहां पर अकेला नहीं रह सकते, लोग आपके साथ जबरन संवाद करना चाहते हैं बोलना चाहते है, जुड़ना चाहते है। उन्होने कहा कि आप लोगों पर विश्वास करके तो देखिए अपना नुकसान सहकर भी वे लोग आपकी कसौटी पर खरा ही साबित होंगे। उन्होने कहा कि मेरे तो इंडिया में हजारों दोस्त हैं जो मेरे फोन नहीं करने पर या फोन नहीं आने पर शिकायत करते हैं। लोगों को पता लग जाए कि टली बीमार है तो घर में दर्जनों लोग हाल चाल लेने आ जाते है। कितना अपनापन प्यार और एक दूसरो को लेकर मन में चिंता रहती है। और यह सब केवल इंडिया में ही संभव है। अलबता पाकिस्तान में रह रहे अपने सैकड़ो मित्रों को भी वे याद करना नहीं भूलते। बकौल टली एक रेखा बना देने से भारत पाक अलग देश नहीं हो गए है, दोनो तरफ के लोगों में आपसी प्यार ललक और खैरियत की चिंता रहती है।. सर टली ने कहा कि मैं अपने दोस्तों के इस अनमोल खजाने को छोड़कर कहां जाउंगा। आज भारत ही मेरा मुल्क हैं, क्योंकि हम प्यार करना जानते है। बकौल टली भारत में रहने का केवल यही लालच है कि जब मेरी मौत भी आएगी तो मेरे चाहने वाले मुझे प्यार करते रहेंगे। मुझे भी एक भारतीय परिवार का हिस्सा माना जाएगा। यह भूमि ही इतनी सुदंर औरप्यारी हैं कि इसको छोड़कर जाने की कहीं तबियत नहीं करती।
इसी दौरान श्रीमती टली सामान्य शिष्टाचार वश हम तीनों के लिए चाय के संग कुछ नमकीन और मिठाईयां लेकर आती है। मै उनकी तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कि आप अपने नाम के साथ टली क्यों नहीं जोड़ती? सवाल सुनते ही मानो उन्हें किसी बिच्छू ने काट खाया हो। एकदम सावधान मुद्रा में खड़ी होकर बोली नईईईईईईई। मैं क्यों टली को नाम के साथ लेकर चलूं। टली ही जब मेरा है,तो फिर नाम को बिगाड़ने की क्या जरूरत है। मैं उनसे और बाते करना चाह रहा था, मगर उन्होने कहा कि अभी आप टली से बात करे फिर कभी मेरे से बात करने आइए तो हमलोग बहुत सारी बातें करेंगे। फिर मुस्कुराते हुए वे चली गयी। ताकि बात में कोई खलल ना हो।
सक्रिय पत्रकारिता से सर टली को अलग हुए करीब दो दशक से भी ज्यादा समय हो चुका है। बकौल टली इसके बावजूद आज भी मेरे नंबर पर (जबकि नंबर तो कई बदल गये है फिर भी) दूर दराज इलाके से कोई फोन आता है तो सामने वाला बंदा बताता है टली साहेब आपको याद है न जब 1982 में आप खड़गपुर में आए थे या 1984 में जब अयोध्या में आए थे तो मैंने ही आपको अपनी मोटरसाईकिल पर बैठाकर फैजाबाद ले गया था। या फिर कोई फोन बनारस से कि टली साहब आपको याद है न जब आप गंगा में नहा रहे थे तो मैं ही आपके सामान की देखभाल कर रहा था। इसी तरह की अमूमन किसी घटना या शहर की याद दिलाते हुए ज्यादातर लोग एकाएक फोन करके यह मानते हैं कि टली को सब याद ही होगा। लाचारगी से हंसते हुए सर टली ने कहा कि एकाएक तो मुझे किसी घटने की याद नहीं आती, मगर सामने वाले का मन रखना पड़ता है। खड़े होकर फिर खिलखिला कर बोले कि जब वाकई में उसकी याद मेरे मन में घूमने लगती है तो इधर से मैं ही फोन करके उसका हाल चाल पूछ लेता हूं।
ज्यादातर लोग तो मेरे फोन करने से ही इस कदर निहाल हो जाते हैं मानो उन्हें कोई खजाना मिल गया हो। संबंधों में इतनी उर्जा इतनी तपिश और रिश्ते को बनाए रखने का इतना मोह केवल भारत में ही मुमकिन है और मुझे भारतवासी होने पर गर्व है।
मित्रों, अब कुछ मेरी बात भी। मैं सर मार्क टली का कोई किस्सा नहीं सुना रहा था, कि आपलोग दीवाने हुए जा रहे है। मै इसके बहाने यह बताना चाह रहा हूं कि भले ही मैं सर मार्क टली जैसा पत्रकारों का पत्रकार ना बन सकूं (क्योंकि यह अब मेरे हाथ में हैं भी नहीं) पर मैं भी एक नेकदिल निहायत शरीफ ( शरीफा जैसा पिलपिला भी नहीं) और मस्त आदमी जरूर बनना चाहता हूं। मैं खुद अपने सहित सबों से प्यार करता हूं। पेड़ पौधों से लेकर जीव जंतु पशु तक और मजदूर से लेकर अपंग और समाज के सबसे नीचले पायदान पर खडे रामू से लेकर काकू तक मेरे प्यार के सागर में समा जाते है। अपने तमाम सगे संबंधियों रिश्तेदारों नातेदारों सहित दूर दराज के सगों समेत अडोस पडोस के लोगों से भी मैं दिल (फेक कर नहीं) खोलकर ही प्यार करता हूं। ( मैं नफरत भी करता हूं लोगों से मगर किससे यह फिर कभी लिखा जाएगा)
अपने बारे में मैं अपनी ही एक कविता का सहारा ले रहा हूं जिसे मैंने करीब 25-30 साल पहले ही कभी लिखी थी।
मैं अकेला नहीं/
मैं कभी अकेला नही होता /
जो खामोश रह जाऊं /
खामोशी से सह जाऊं सबकुछ /
मेरे भीतर बसते हैं करोड़ो लोग /
फिर भला,
मैं कैसे रह सकता हूं खामोश।
तो मेरे तमाम मित्रगण मैं भी अपने दोस्तों का रसिक हूं, रसिया हूं, मगर,(छलिया नहीं)। मैं आदमी को आदमी की तरह प्यार करता हूं। और दोस्तों के बारे में मशहूर पत्रकार सर मार्क टली की ये अनमोल बाते मुझे सदैव प्रेरित करती है।
अनामी शरण बबल
बीच में मैने उनसे पूछा कि टली साहब आप इंडिया में ही क्यों रह गए ? क्या आज कभी मन करता है कि काश आप वापस इंग्लैंड ही लौट जाते ?
मेरे मन में मार्क टली के अलावा बीबीसी के तेजतर्रार खबरची सतीश जैकब के लिए भी बडी आस्था और सम्मान है। जब पंजाब जल रहा था ( उस समय भारत में तमाम खबरिया न्यूज चैनलों की पैदाइश भी नहीं हुई थी, और तब खबर माने जो बीबीसी बताए ही सही और सच माना जाता था।) मेरे सवाल पर सर टली ने लंबी आह भरी, और बोले कि यार भारत छोड़कर जाऊंगा भी तो कहां ? एकदम मुठ्ठी ताने टली ने हंसकर कहा कि इंडिया जैसा देश पूरे संसार में नहीं है। आप यहां पर अकेला नहीं रह सकते, लोग आपके साथ जबरन संवाद करना चाहते हैं बोलना चाहते है, जुड़ना चाहते है। उन्होने कहा कि आप लोगों पर विश्वास करके तो देखिए अपना नुकसान सहकर भी वे लोग आपकी कसौटी पर खरा ही साबित होंगे। उन्होने कहा कि मेरे तो इंडिया में हजारों दोस्त हैं जो मेरे फोन नहीं करने पर या फोन नहीं आने पर शिकायत करते हैं। लोगों को पता लग जाए कि टली बीमार है तो घर में दर्जनों लोग हाल चाल लेने आ जाते है। कितना अपनापन प्यार और एक दूसरो को लेकर मन में चिंता रहती है। और यह सब केवल इंडिया में ही संभव है। अलबता पाकिस्तान में रह रहे अपने सैकड़ो मित्रों को भी वे याद करना नहीं भूलते। बकौल टली एक रेखा बना देने से भारत पाक अलग देश नहीं हो गए है, दोनो तरफ के लोगों में आपसी प्यार ललक और खैरियत की चिंता रहती है।. सर टली ने कहा कि मैं अपने दोस्तों के इस अनमोल खजाने को छोड़कर कहां जाउंगा। आज भारत ही मेरा मुल्क हैं, क्योंकि हम प्यार करना जानते है। बकौल टली भारत में रहने का केवल यही लालच है कि जब मेरी मौत भी आएगी तो मेरे चाहने वाले मुझे प्यार करते रहेंगे। मुझे भी एक भारतीय परिवार का हिस्सा माना जाएगा। यह भूमि ही इतनी सुदंर औरप्यारी हैं कि इसको छोड़कर जाने की कहीं तबियत नहीं करती।
इसी दौरान श्रीमती टली सामान्य शिष्टाचार वश हम तीनों के लिए चाय के संग कुछ नमकीन और मिठाईयां लेकर आती है। मै उनकी तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कि आप अपने नाम के साथ टली क्यों नहीं जोड़ती? सवाल सुनते ही मानो उन्हें किसी बिच्छू ने काट खाया हो। एकदम सावधान मुद्रा में खड़ी होकर बोली नईईईईईईई। मैं क्यों टली को नाम के साथ लेकर चलूं। टली ही जब मेरा है,तो फिर नाम को बिगाड़ने की क्या जरूरत है। मैं उनसे और बाते करना चाह रहा था, मगर उन्होने कहा कि अभी आप टली से बात करे फिर कभी मेरे से बात करने आइए तो हमलोग बहुत सारी बातें करेंगे। फिर मुस्कुराते हुए वे चली गयी। ताकि बात में कोई खलल ना हो।
सक्रिय पत्रकारिता से सर टली को अलग हुए करीब दो दशक से भी ज्यादा समय हो चुका है। बकौल टली इसके बावजूद आज भी मेरे नंबर पर (जबकि नंबर तो कई बदल गये है फिर भी) दूर दराज इलाके से कोई फोन आता है तो सामने वाला बंदा बताता है टली साहेब आपको याद है न जब 1982 में आप खड़गपुर में आए थे या 1984 में जब अयोध्या में आए थे तो मैंने ही आपको अपनी मोटरसाईकिल पर बैठाकर फैजाबाद ले गया था। या फिर कोई फोन बनारस से कि टली साहब आपको याद है न जब आप गंगा में नहा रहे थे तो मैं ही आपके सामान की देखभाल कर रहा था। इसी तरह की अमूमन किसी घटना या शहर की याद दिलाते हुए ज्यादातर लोग एकाएक फोन करके यह मानते हैं कि टली को सब याद ही होगा। लाचारगी से हंसते हुए सर टली ने कहा कि एकाएक तो मुझे किसी घटने की याद नहीं आती, मगर सामने वाले का मन रखना पड़ता है। खड़े होकर फिर खिलखिला कर बोले कि जब वाकई में उसकी याद मेरे मन में घूमने लगती है तो इधर से मैं ही फोन करके उसका हाल चाल पूछ लेता हूं।
ज्यादातर लोग तो मेरे फोन करने से ही इस कदर निहाल हो जाते हैं मानो उन्हें कोई खजाना मिल गया हो। संबंधों में इतनी उर्जा इतनी तपिश और रिश्ते को बनाए रखने का इतना मोह केवल भारत में ही मुमकिन है और मुझे भारतवासी होने पर गर्व है।
मित्रों, अब कुछ मेरी बात भी। मैं सर मार्क टली का कोई किस्सा नहीं सुना रहा था, कि आपलोग दीवाने हुए जा रहे है। मै इसके बहाने यह बताना चाह रहा हूं कि भले ही मैं सर मार्क टली जैसा पत्रकारों का पत्रकार ना बन सकूं (क्योंकि यह अब मेरे हाथ में हैं भी नहीं) पर मैं भी एक नेकदिल निहायत शरीफ ( शरीफा जैसा पिलपिला भी नहीं) और मस्त आदमी जरूर बनना चाहता हूं। मैं खुद अपने सहित सबों से प्यार करता हूं। पेड़ पौधों से लेकर जीव जंतु पशु तक और मजदूर से लेकर अपंग और समाज के सबसे नीचले पायदान पर खडे रामू से लेकर काकू तक मेरे प्यार के सागर में समा जाते है। अपने तमाम सगे संबंधियों रिश्तेदारों नातेदारों सहित दूर दराज के सगों समेत अडोस पडोस के लोगों से भी मैं दिल (फेक कर नहीं) खोलकर ही प्यार करता हूं। ( मैं नफरत भी करता हूं लोगों से मगर किससे यह फिर कभी लिखा जाएगा)
अपने बारे में मैं अपनी ही एक कविता का सहारा ले रहा हूं जिसे मैंने करीब 25-30 साल पहले ही कभी लिखी थी।
मैं अकेला नहीं/
मैं कभी अकेला नही होता /
जो खामोश रह जाऊं /
खामोशी से सह जाऊं सबकुछ /
मेरे भीतर बसते हैं करोड़ो लोग /
फिर भला,
मैं कैसे रह सकता हूं खामोश।
तो मेरे तमाम मित्रगण मैं भी अपने दोस्तों का रसिक हूं, रसिया हूं, मगर,(छलिया नहीं)। मैं आदमी को आदमी की तरह प्यार करता हूं। और दोस्तों के बारे में मशहूर पत्रकार सर मार्क टली की ये अनमोल बाते मुझे सदैव प्रेरित करती है।
अनामी शरण बबल