Anami Sharan Babalबाजार आदि मात्र एक बहाना है। मीडिया मालिकों को अपनी आय बढ़ते या बड़ाने में हर्ज नहीं केवल पत्रकारों को रकम देने में एक हजार समस्याएं खड़ी हो जाती है। बाजार की गिरफ्त तो एक बहाना है संपादक के नाम पर तमाम अकबार गदहों को संपादक ( ओह) चापलूस नौकर बना रखा है, जो मालिक हित पर ज्यादा जोर देता है। तो इस तरह के पिठ्ठू नालायक नाकाबिल और स्वार्थी संपादक से क्या उम्मीद है कि वो पत्रकारिता की सेवा करेगा। एक समय था कि मीडिया मालिक भीसंपादकों की बातों का सम्मान करते थे, मगर आज तो संपादक मालिकों के यहां हाजिरी बजाने और अपने मातहत कर्मचारियों के पैर काटने की जुगत में लगा रहने वाला खूंखार किस्म का जंतु हो गया है। फिर मालिकों में भी कितना बदलाव आया है? पहले लोग मीडिया में ईमानदारी थी पत्रकारों का सम्मान था और संपादक की गरिमा थी।एर पत्रकार किसी बड़े से बड़े नेता के शिलाफ भी कुछ लिख देता था तो मालिक से लेकर संपादक तक उसके साथ खड़े हो जाते थे, मगर आज बड़ा नेता तो दूर कोई गली मोहल्ला का नेता भी सीधे मालिक का धौंस मारता है, और कमाल की बात मीडिया मालिक हाथ जोडे दरबारी की तरह उसके घर जाकर चाकरी करने लगता है, और नेता ( नेटा) के कहने पर पत्रकार को निकाल बाहर कर दिया जाता है। पहले मालिको में एक गौरव होता था पर आज मीडिया में ज्यादातर चोर घुसखोर बेईमान बिल्डर माफिया ठेकेदार या गलत शलत काम करने वाले ही मीडिया के मालिकों में शुमार होने लगे है। तो इनसे क्या उम्मीद की जाए। न्यूज से ज्यादा पत्रकारों से अपने लिए अपने हित के लिए काम कराना इनकी फितरत है। पहले कोई बिल्डर मीडिया से डरताथा पर आज वही पेपर निकालता है। कुछ पेपर वाले भी बिल्डर बनकर गलत शलत काम करने में हिचक नहीं रहे। कोई अखबार पत्रकारों सेकेवल विज्ञापन वसूलने में लगा है। तो इस तरह के भ्रष्
Anami Sharan Babalक्षमा करे आलेख अभी हाकी है। / भ्रष्ट चोर बेईमान मालिकों द्वारा बाजारवाद का नाम देकर अपना लाभ बढाने और पत्रकारों को पैसा देने के नाम पर बाजार वाद घाटे का रोना रोने का बहाना है। इस तरह के बेईमान मीडिया युग में बाजारवाद तो महज एक बहाना है । और बाजारवाद 2 के नारे को प्रचारित करना भी एक तरह से मीडिया का षड़यंत्र है