नगर सुदंरियों से अपनी प्रेमकहानी- 1
कोठेवाली मौसियों के बीच मैं बेटा
अनामी शरण बबल
एक पत्रकर के जीवन की भी अजीब नियति होती है। जिससे मिलने के लिए लोग आतुर होते हैं तो वह पत्रकारों से मिलने को बेताब होता है। और जिससे मिलने के लिए लोग दिन में भागते है तो उससे मिलने मिलकर हाल व्यथा जानने के लिए एक पत्रकार बेताब सा होता है। अपन भी इतने लंबे पत्रकारीय जीवन में मुझे भी चोर लुटेरो माफिय़ाओं इलाके के गुंड़ो पॉकेटमारो, दलालों रंडियों कॉलगर्लों तक से टकराने का मौका मिल। इनसे हुए साबका के कुछ संयोग रहे कि वेश्याओं या कॉलगर्लों को छोड़ भी दे तो बाकी धंधे के दलालों समेत कई चोर पॉकेटमार आज भी मेरे मूक मित्र समान ही है। बेशक मैं खुद नहीं चाहता कि इनसे मुलाकात हो मगर यदा कदा जब कभी भी राह में ये लोग टकराए तो कईयों की हालत में चमत्कारी परिवर्तन हुआ और जो कभी सैकड़ों के लिए उठा पटक करते थे वही लोग आज लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। कई बार तो इन दोस्तों ने मदद करने या कोई धंधा चालू करने के लिए ब्याज रहित पैसा भी देने का भरोसा दिय। मगर मैं अपने इन मित्रों के इसी स्नेह पर वारे न्यारे सा हो जाता हूं।
मगर यह संस्मरण देहव्यापार में लगी या जुड़ी सुंदरियों पर केंद्रित हैं, जिनसे मैं टकराया और वो आज भी मेरी यादों में है। कहनियं कई हैं लिहजा मैं इसकी एक सीरिज ही लिखने वाला हूं। मगर मैं यह संस्मरण 1989 सितम्बर की सुना रहा हूं । मेरी कोठेवाली मौसियां अब कैसी और कहां है यह भी नहीं जानता और इनके सूत्रधार मामाश्री प्रदीप कुमार रौशन के देहांत के भी चार साल हो गए है। तभी एकाएक मेरे मन में यह सवाल जागा कि इस संस्मरण को क्यों न लिखू ? मैं औरंगाबाद बिहार के क्लब रोड से कथा आरंभ कर रहा हूं ,जहां पर इनके कोठे पर या घर पर जाने का एक मौका मुझे अपने शायर मामा प्रदीप कुमार रौशन के साथ मिला था। मुझे एक छोटा सा ऑपरेशन कराना था और एकाएक डॉक्टर सुबह की शिफ्ट में नहीं आए तो उनके सहायक ने कहा कि शाम को आइए न तब ऑपरेशन भी हो जाएगा। मैं अपने बराटपुर वाले ननिहाल लौटना चाह रहा था कि एकएक मेरे मामा ने कहा कि यदि तुम वास्तव में पत्रकार हो और किसी से नहीं कहोगे तो चल आज मैं कुछ उन लोगों से मुलकात कराता हूं जिनसे लोग भागते है। मैं कुछ समझा नहीं पर मैने वादा किया चलो मामा जब आप मेरे साथ हो तो फिर डरना क्या। पतली दुबली गलियों से निकालते हुए मेरे मामा जी एक दो मंजिल मकान के सामने खड़े थे। दरवाजा खटखटाने से पहले ही दो तीन महिलाएं बाहर निकल आयी और कैसे हो रौशन भईया बड़े दिनों के बाद चांद इधर निकला है। क्या बात है सब खैरियत तो है न ? मेरे उपर सरसरी नजर डालते हुए दो एक ने कह किस मेमने को साथ लेकर घूम रहे हो रौशन भाई। अपने आप को मेमना कहे जाने पर मेरे दिल को बड़ा ठेस सा लगा और मैने रौशन जी को कहा चलो मामा कहां आ गए चिडियाघर में। जहां पर इनकी बोलचाल में केवल पशु पक्षियों के ही नाम है। यह सुनते ही सबसे उम्रदराज महिला ने मेरा हाथ को पकड़ ली हाय रे मेरे शेर नाराज हो रहे हो क्या। अरे रौशन भाई किस पिंजड़े से बाहर निकाल कर ला रहे हो बेचारे को। मान मनुहार और तुनक मिजाजी के बीच मैं अंदर एक हॉल में आ गया। जहां पर सोफा और बैठने के लिए बहुत सारे मसनद रखे हुए थे। मैं यहां पर आ तो गया था पर मन में यह भान भी नहीं था कि इन गाने बजाने वालियों के घर का मैं अतिथि बना हुआ हूं। जहां पर हमारे मामा जी के पास आकर करीब एक दर्जन लड़कियों ने बहुत दिनों के बाद आने का उलाहना भी दे रही थी। इससे लग तो यही रहा था कि यहां के लिए वे घरेलू सदस्य से थे। सब आकर इनसे घुल मिल भी रही थी और सलाम भी कह रही थी। । और मैं अवाक सा इन नगर सुदंरियों के पास में ही खड़ा इनकी मीठी मीठी बाते सुन रहा था। दस पांच मिनट में रौशन जी को लेकर उनकी उत्कंठा और मेल जोल का याराना कम हुआ तो निशाने पर मैं था। लगभग सबो का यही कहना था कि रौशन भाई किस बच्चे को लेकर घूम रहे हो। यह संबोधन मेरे लिए बेमौत सा था। पूरे 24 साल का नौजवान होने के बाद भी अपने लिए बच्चा सुनना लज्जाजनक लग रहा था। मैने तुरंत प्रतिवाद किया कि मैं बच्चा या मेमना नहीं पूरे 24 साल का हूं जी। मेरी बात सुनते ही पूरे घर में ठहाकों की गूंज फैल गयी। मैने फिर कहा कि अभी मैं जरा अपने मामा के साथ हूं इसलिए जरा हिचक रहा हूं .....। जब तक मैं आगे कुछ बोलता इससे पहले ही एक 25-26 साल की सुदंर सी लडकी मेर नकल करने लगी नहीं तो मैं सबको बताता कि जवानी दीवानी क्या चीज होती है। लड़की के नकल पर मैं भी जरा शरमा सा गया और घर में एकबार फिर हंसी के ठहाके गूंजने लगी। हंसी ठहाको से भरे इस मीठे माहौल में मामा ने सबको बताया कि यह मेरा भांजा है। इसके बाद तो मानो मेरी शामत ही आ गयी या उनकी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। अब तक मेरे से हंसी मजाक चुहल सी कर रही तमाम देवियां मेरे उपर प्यार जताने दिखाने लगी। कोई अपनी ओढनी से तो कोई अपने पल्लू से मेरे को पोछनें में लग गयी । भांजा सुनते ही मानो वे अपने आपको मेरी मौसी सी समझने लगी। अरे बेटा आया है रे बेटा। मैं पूरे माहौल से अचंभित उनकी खुशियों को देखकर भी अपन दुर्गति पर अधिक उबल नहीं पा रहा था। सयानी से लेकर कम उम्र वाली लड़कियां भी एकएक मेरी मौसी बनकर मेरे को बालक समान समझने लगी, और करीब एक दर्जन इन मौसियों के बीच में लाचार सा घिरा रहा। इस कोठे पर बेटा आया है यह खबर शायद आस पास के कोठे में भी फैला दी गयी हो । फिर क्या था मै मानो चिडियाघर का एक दर्शनीय पशु समान सा हो गया था और हर उम्र की करीब 30-32 महिलाएं मेरा दर्शन करके निहाल सी हो रही थी। सबों का एक ही कहना था रौशन भाई हम कोठेवालियं बड़भागन मानी जाती है यदि कभी कोठे पर रिश्ते में कोई बेटा आ जाए। आपने तो हमलोगों के जन्म जन्म के पाप काट दिए। अपनी आंखों से आरती उतार उतार कर मेरे पर न्यौछावर करती तमाम औरतों के बीच मैं मानो एक खिलौना सा बन गया था। कहीं से लड्डु की एक थाली आ गयी और तब तो मेरा तमाशा ही बन गया। सबों ने मुझे एक एक लड्डु चखने को कहा और मेरे चखे लड्डु को वे लोग पूरे मनोयोग से प्रसाद की तरह खाने लगी। लड्डु खाकर निहाल सी हो रही ये कोठेवालियों ने फिर मुझे नजराना देना भी शुरू कर दिया। मैं एकदम अवाक सा क्या करूं कुछ समझ और कर भी नहीं पा रहा था। और देखते देखते मेरे हाथ में कई सौ रूपये आ गए। मेरी दुविधा को देखते हुए एक उम्रदराज महिला ने कहा कि बेटा सब रख लो,यह नेग है और कोई एक पैसा भी वापस नहीं लेगी। उसी महिला ने फिर कहा कि बताया जाता हैं कि किसी कोठेवाली के कोठे पर यदि रिश्ते में कोई बेटा बिना ग्राहक बने आता है तो वेश्याओं को इस योनि से मुक्ति मिल जाती है। रौशन भाई हमलोगों के भाई हैं और तुम इनके भांजा हो इस तरह तो हम सब के भी तुम बहिन बेटा हुए। तो हम मौसियों के उद्धार के लिए ही मानो तुम आए हो। हम इससे कैसे चूक सकते हैं भला। एकाएक मौसी बन गयी इन कोठेवालियों के स्नेह और दंतकथाओं को सुनकर मैं क्या करू यह तय नही कर पा रहा था। करीब दो घंटे तक चले इस नाटक का मैं हीरो बना अपनी दुर्गति पर शर्मसार सा था। मैने महसूस किया कि न केवल मेरे गालों पर बल्कि हाथ पांव छाती से लेकर बांहों पर भी सैकड़ों पप्पियों के निशान मुझे लज्जित के साथ साथ रोमंचित भी कर रहे थे। बालकांड खत्म होने के बाद पिर पाककला की बेला आ गयी। मेरे पसंद पर बार बार जोर दिया जाने लगा। मैने हथियार डालते हुए कहा कि क्या खाओगे ? यह दुनिया का सबसे कठिन सवाल होता है आप जो बना दोगी सारा और सब खा जाउंगा मेरी मौसियों। पूरे उत्साह और उमंग के साथ इतराती इठलाती कुछ गाती चेहरे पर मुस्कान बिखेरे ये एकाध दर्जन बालाओं को लग रहा था कि मैं कोई देवदूत सा हूं। चहकती महकती इन्हें देखकर मैंने कहा कि अब बस भी करो मेरी मौसियों इतनी तैयारी क्यों भाई । एक जगह तुमलोग बैठो तो सही ताकि सबकी सूरत मैं अपनी आंखों में उतार सकूं ताकि कहीं कभी धोखा न हो जाए। मेरी बात पर सब हंसने लगी और मेरी नकल उतारने वाली मौसी पूरे अदांज में बोली हाय रे हाय। बच्चा मेमना नहीं है बेटा पूरा जवान लौंडा है। देख रही हो न हम मौसियों पर ही लाईन देने लगा। मैने तुरंत जोडा ये लाईन देना क्या होता है मौसी। इस पर एक साथ हंसती हुई मेरी कई कोठेवाली मौसियां मुझ पर ही झपटी साले यह भी हमें ही बताना होगा क्या। फिर मेरे मामा की तरफ मुड़ते हुए कई मौसियों ने कहा कि रौशन भाई इसकी शादी करा दो। नहीं तो यह लाईन देता ही फिरेगा। हंसी मजाक प्यार स्नेह और ठिटोली के बीच मैने कोठेवाली मौसियों से कहा कि आपलोग का सारा प्यार और सामान तो ले ही रहा हूं पर यह पैसे रख लीजिए। इस पर बमकती हुई कईयों ने कहा कि बेटा फिर न कहना। जीवन भर के पुण्य का प्रताप है कि आज यहां पर तुम हो। हम सब धन्य हो गए तुम्हें देखकर अपने बीच बैठाकर पाकर बेटा। इनके वात्सल्य को देखकर मेरा मन भी पुलकित सा हो उठा। 24 साल के होने के बाद भी इन लोगों के बीच मैं एकदम बालक सा ही हो गया था, तभी तो मेरी कोठेवाली मौसियों ने मुझसे जिस तरह चाहा प्रेम किया। और स्नेह की बारिश की।
खाने पीने की बेला एक बार फिर मेरे लिए जी का जंजाल सा हो गया। मेरी तमाम मौसियों की इच्छा थी कि आधी कचौड़ी खाकर मैं लौटा दूं। आधी कचौड़ी को वे इस तरह ले रही थी मानो कहीं का प्रसाद हो। आधी कचौड़ी खाते खाते मैं पूरी तरह बेहाल हो उठा। मुझसे खाया न जाए फिर भी जबरन मेरे मुंह में कचौड़ी ठूंसने और आधा कौर वापस लेने का यह सिलसिला भी काफी लंबे समय तक चला। तब कहीं जाकर खाने से मुक्ति मिली।
इसके बाद आरंभ हुआ मेरे जाने का विदाई का समय । तमाम मेरी कोठेवाली मौसियों के रोने का रुदन राग शुरू हो गया। चारो तरफ लग रहा था मानो कोई मातम सा हो। कोई मुझे पकड़े हैं तो कोई अपने से लिपटाएं रो रही है। एक साथ कई कई मौसियां मेरे को पकड़े रो रही है नहीं जाओ बेटा अभी और रूक कर जाना। लग रहा था मानो शादी के बाद लड़की ससुराल जाने से पहले अपने घर वालों के साथ विलाप कर रही हो । बस अंतर इतना था कि मैं रो नहीं रहा था। तभी मेरी नजर नकल करने वाली मौसी पर पड़ी। मैं उसकी तरफ ही गया और हाथ पकड़कर बोला तुम तो न मेरे से लिपट रही हो न रो ही रही हो. क्या बात है मौसी।. इस पर वह एकाएक फूट सी पडी और मेरा हाथ पकड़कर वह जोर जोर से रोने लगी। इतना प्यार और इतना स्नेह को देखकर मैं भी रूआंसा सा हो गया और इनको प्रणाम करने से खुद को रोक नहीं सका। सभी मौसियों के पांव छूने लगा। मेरे द्वारा पैर छूने पर वे सब निहाल सी हो गयी। कुछ उम्र दराज मौसियों ने कहा बेटा फिर कभी आना। एक बार ही तुम आए मगर हम सबों का दिल चुराकर ले जा रहे हो। इस पर मैं भी चुहल करने से बाज नहीं आया। नहीं मौसी दिल को तो अपने ही पास ही रखो चुराना ही पड़ेगा तो एक साथ तुम सबों को चुरा कर अपने पास रख लूंगा। मैंने तो यह मजाक में यह कहा था मगर मेरी बात सुनकर मेरी सारी कोठेवाली मौसियां फफक पड़ी। और मैं एक बार फिर नजराने और प्यार के पप्पियों के चक्रव्यूह में घिर गया। मेरे द्वारा उन तमम मौसियों के पैर छूना इतना रास आया कि मैं उनका हुआ या नहीं यह मैं नहीं कह सकता, पर वे तमाम कोठेवाली मौसियां मेरी होकर मेरे दिल में ही बस गयी।
कोठेवाली मौसियों के बीच मैं बेटा
अनामी शरण बबल
एक पत्रकर के जीवन की भी अजीब नियति होती है। जिससे मिलने के लिए लोग आतुर होते हैं तो वह पत्रकारों से मिलने को बेताब होता है। और जिससे मिलने के लिए लोग दिन में भागते है तो उससे मिलने मिलकर हाल व्यथा जानने के लिए एक पत्रकार बेताब सा होता है। अपन भी इतने लंबे पत्रकारीय जीवन में मुझे भी चोर लुटेरो माफिय़ाओं इलाके के गुंड़ो पॉकेटमारो, दलालों रंडियों कॉलगर्लों तक से टकराने का मौका मिल। इनसे हुए साबका के कुछ संयोग रहे कि वेश्याओं या कॉलगर्लों को छोड़ भी दे तो बाकी धंधे के दलालों समेत कई चोर पॉकेटमार आज भी मेरे मूक मित्र समान ही है। बेशक मैं खुद नहीं चाहता कि इनसे मुलाकात हो मगर यदा कदा जब कभी भी राह में ये लोग टकराए तो कईयों की हालत में चमत्कारी परिवर्तन हुआ और जो कभी सैकड़ों के लिए उठा पटक करते थे वही लोग आज लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। कई बार तो इन दोस्तों ने मदद करने या कोई धंधा चालू करने के लिए ब्याज रहित पैसा भी देने का भरोसा दिय। मगर मैं अपने इन मित्रों के इसी स्नेह पर वारे न्यारे सा हो जाता हूं।
मगर यह संस्मरण देहव्यापार में लगी या जुड़ी सुंदरियों पर केंद्रित हैं, जिनसे मैं टकराया और वो आज भी मेरी यादों में है। कहनियं कई हैं लिहजा मैं इसकी एक सीरिज ही लिखने वाला हूं। मगर मैं यह संस्मरण 1989 सितम्बर की सुना रहा हूं । मेरी कोठेवाली मौसियां अब कैसी और कहां है यह भी नहीं जानता और इनके सूत्रधार मामाश्री प्रदीप कुमार रौशन के देहांत के भी चार साल हो गए है। तभी एकाएक मेरे मन में यह सवाल जागा कि इस संस्मरण को क्यों न लिखू ? मैं औरंगाबाद बिहार के क्लब रोड से कथा आरंभ कर रहा हूं ,जहां पर इनके कोठे पर या घर पर जाने का एक मौका मुझे अपने शायर मामा प्रदीप कुमार रौशन के साथ मिला था। मुझे एक छोटा सा ऑपरेशन कराना था और एकाएक डॉक्टर सुबह की शिफ्ट में नहीं आए तो उनके सहायक ने कहा कि शाम को आइए न तब ऑपरेशन भी हो जाएगा। मैं अपने बराटपुर वाले ननिहाल लौटना चाह रहा था कि एकएक मेरे मामा ने कहा कि यदि तुम वास्तव में पत्रकार हो और किसी से नहीं कहोगे तो चल आज मैं कुछ उन लोगों से मुलकात कराता हूं जिनसे लोग भागते है। मैं कुछ समझा नहीं पर मैने वादा किया चलो मामा जब आप मेरे साथ हो तो फिर डरना क्या। पतली दुबली गलियों से निकालते हुए मेरे मामा जी एक दो मंजिल मकान के सामने खड़े थे। दरवाजा खटखटाने से पहले ही दो तीन महिलाएं बाहर निकल आयी और कैसे हो रौशन भईया बड़े दिनों के बाद चांद इधर निकला है। क्या बात है सब खैरियत तो है न ? मेरे उपर सरसरी नजर डालते हुए दो एक ने कह किस मेमने को साथ लेकर घूम रहे हो रौशन भाई। अपने आप को मेमना कहे जाने पर मेरे दिल को बड़ा ठेस सा लगा और मैने रौशन जी को कहा चलो मामा कहां आ गए चिडियाघर में। जहां पर इनकी बोलचाल में केवल पशु पक्षियों के ही नाम है। यह सुनते ही सबसे उम्रदराज महिला ने मेरा हाथ को पकड़ ली हाय रे मेरे शेर नाराज हो रहे हो क्या। अरे रौशन भाई किस पिंजड़े से बाहर निकाल कर ला रहे हो बेचारे को। मान मनुहार और तुनक मिजाजी के बीच मैं अंदर एक हॉल में आ गया। जहां पर सोफा और बैठने के लिए बहुत सारे मसनद रखे हुए थे। मैं यहां पर आ तो गया था पर मन में यह भान भी नहीं था कि इन गाने बजाने वालियों के घर का मैं अतिथि बना हुआ हूं। जहां पर हमारे मामा जी के पास आकर करीब एक दर्जन लड़कियों ने बहुत दिनों के बाद आने का उलाहना भी दे रही थी। इससे लग तो यही रहा था कि यहां के लिए वे घरेलू सदस्य से थे। सब आकर इनसे घुल मिल भी रही थी और सलाम भी कह रही थी। । और मैं अवाक सा इन नगर सुदंरियों के पास में ही खड़ा इनकी मीठी मीठी बाते सुन रहा था। दस पांच मिनट में रौशन जी को लेकर उनकी उत्कंठा और मेल जोल का याराना कम हुआ तो निशाने पर मैं था। लगभग सबो का यही कहना था कि रौशन भाई किस बच्चे को लेकर घूम रहे हो। यह संबोधन मेरे लिए बेमौत सा था। पूरे 24 साल का नौजवान होने के बाद भी अपने लिए बच्चा सुनना लज्जाजनक लग रहा था। मैने तुरंत प्रतिवाद किया कि मैं बच्चा या मेमना नहीं पूरे 24 साल का हूं जी। मेरी बात सुनते ही पूरे घर में ठहाकों की गूंज फैल गयी। मैने फिर कहा कि अभी मैं जरा अपने मामा के साथ हूं इसलिए जरा हिचक रहा हूं .....। जब तक मैं आगे कुछ बोलता इससे पहले ही एक 25-26 साल की सुदंर सी लडकी मेर नकल करने लगी नहीं तो मैं सबको बताता कि जवानी दीवानी क्या चीज होती है। लड़की के नकल पर मैं भी जरा शरमा सा गया और घर में एकबार फिर हंसी के ठहाके गूंजने लगी। हंसी ठहाको से भरे इस मीठे माहौल में मामा ने सबको बताया कि यह मेरा भांजा है। इसके बाद तो मानो मेरी शामत ही आ गयी या उनकी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। अब तक मेरे से हंसी मजाक चुहल सी कर रही तमाम देवियां मेरे उपर प्यार जताने दिखाने लगी। कोई अपनी ओढनी से तो कोई अपने पल्लू से मेरे को पोछनें में लग गयी । भांजा सुनते ही मानो वे अपने आपको मेरी मौसी सी समझने लगी। अरे बेटा आया है रे बेटा। मैं पूरे माहौल से अचंभित उनकी खुशियों को देखकर भी अपन दुर्गति पर अधिक उबल नहीं पा रहा था। सयानी से लेकर कम उम्र वाली लड़कियां भी एकएक मेरी मौसी बनकर मेरे को बालक समान समझने लगी, और करीब एक दर्जन इन मौसियों के बीच में लाचार सा घिरा रहा। इस कोठे पर बेटा आया है यह खबर शायद आस पास के कोठे में भी फैला दी गयी हो । फिर क्या था मै मानो चिडियाघर का एक दर्शनीय पशु समान सा हो गया था और हर उम्र की करीब 30-32 महिलाएं मेरा दर्शन करके निहाल सी हो रही थी। सबों का एक ही कहना था रौशन भाई हम कोठेवालियं बड़भागन मानी जाती है यदि कभी कोठे पर रिश्ते में कोई बेटा आ जाए। आपने तो हमलोगों के जन्म जन्म के पाप काट दिए। अपनी आंखों से आरती उतार उतार कर मेरे पर न्यौछावर करती तमाम औरतों के बीच मैं मानो एक खिलौना सा बन गया था। कहीं से लड्डु की एक थाली आ गयी और तब तो मेरा तमाशा ही बन गया। सबों ने मुझे एक एक लड्डु चखने को कहा और मेरे चखे लड्डु को वे लोग पूरे मनोयोग से प्रसाद की तरह खाने लगी। लड्डु खाकर निहाल सी हो रही ये कोठेवालियों ने फिर मुझे नजराना देना भी शुरू कर दिया। मैं एकदम अवाक सा क्या करूं कुछ समझ और कर भी नहीं पा रहा था। और देखते देखते मेरे हाथ में कई सौ रूपये आ गए। मेरी दुविधा को देखते हुए एक उम्रदराज महिला ने कहा कि बेटा सब रख लो,यह नेग है और कोई एक पैसा भी वापस नहीं लेगी। उसी महिला ने फिर कहा कि बताया जाता हैं कि किसी कोठेवाली के कोठे पर यदि रिश्ते में कोई बेटा बिना ग्राहक बने आता है तो वेश्याओं को इस योनि से मुक्ति मिल जाती है। रौशन भाई हमलोगों के भाई हैं और तुम इनके भांजा हो इस तरह तो हम सब के भी तुम बहिन बेटा हुए। तो हम मौसियों के उद्धार के लिए ही मानो तुम आए हो। हम इससे कैसे चूक सकते हैं भला। एकाएक मौसी बन गयी इन कोठेवालियों के स्नेह और दंतकथाओं को सुनकर मैं क्या करू यह तय नही कर पा रहा था। करीब दो घंटे तक चले इस नाटक का मैं हीरो बना अपनी दुर्गति पर शर्मसार सा था। मैने महसूस किया कि न केवल मेरे गालों पर बल्कि हाथ पांव छाती से लेकर बांहों पर भी सैकड़ों पप्पियों के निशान मुझे लज्जित के साथ साथ रोमंचित भी कर रहे थे। बालकांड खत्म होने के बाद पिर पाककला की बेला आ गयी। मेरे पसंद पर बार बार जोर दिया जाने लगा। मैने हथियार डालते हुए कहा कि क्या खाओगे ? यह दुनिया का सबसे कठिन सवाल होता है आप जो बना दोगी सारा और सब खा जाउंगा मेरी मौसियों। पूरे उत्साह और उमंग के साथ इतराती इठलाती कुछ गाती चेहरे पर मुस्कान बिखेरे ये एकाध दर्जन बालाओं को लग रहा था कि मैं कोई देवदूत सा हूं। चहकती महकती इन्हें देखकर मैंने कहा कि अब बस भी करो मेरी मौसियों इतनी तैयारी क्यों भाई । एक जगह तुमलोग बैठो तो सही ताकि सबकी सूरत मैं अपनी आंखों में उतार सकूं ताकि कहीं कभी धोखा न हो जाए। मेरी बात पर सब हंसने लगी और मेरी नकल उतारने वाली मौसी पूरे अदांज में बोली हाय रे हाय। बच्चा मेमना नहीं है बेटा पूरा जवान लौंडा है। देख रही हो न हम मौसियों पर ही लाईन देने लगा। मैने तुरंत जोडा ये लाईन देना क्या होता है मौसी। इस पर एक साथ हंसती हुई मेरी कई कोठेवाली मौसियां मुझ पर ही झपटी साले यह भी हमें ही बताना होगा क्या। फिर मेरे मामा की तरफ मुड़ते हुए कई मौसियों ने कहा कि रौशन भाई इसकी शादी करा दो। नहीं तो यह लाईन देता ही फिरेगा। हंसी मजाक प्यार स्नेह और ठिटोली के बीच मैने कोठेवाली मौसियों से कहा कि आपलोग का सारा प्यार और सामान तो ले ही रहा हूं पर यह पैसे रख लीजिए। इस पर बमकती हुई कईयों ने कहा कि बेटा फिर न कहना। जीवन भर के पुण्य का प्रताप है कि आज यहां पर तुम हो। हम सब धन्य हो गए तुम्हें देखकर अपने बीच बैठाकर पाकर बेटा। इनके वात्सल्य को देखकर मेरा मन भी पुलकित सा हो उठा। 24 साल के होने के बाद भी इन लोगों के बीच मैं एकदम बालक सा ही हो गया था, तभी तो मेरी कोठेवाली मौसियों ने मुझसे जिस तरह चाहा प्रेम किया। और स्नेह की बारिश की।
खाने पीने की बेला एक बार फिर मेरे लिए जी का जंजाल सा हो गया। मेरी तमाम मौसियों की इच्छा थी कि आधी कचौड़ी खाकर मैं लौटा दूं। आधी कचौड़ी को वे इस तरह ले रही थी मानो कहीं का प्रसाद हो। आधी कचौड़ी खाते खाते मैं पूरी तरह बेहाल हो उठा। मुझसे खाया न जाए फिर भी जबरन मेरे मुंह में कचौड़ी ठूंसने और आधा कौर वापस लेने का यह सिलसिला भी काफी लंबे समय तक चला। तब कहीं जाकर खाने से मुक्ति मिली।
इसके बाद आरंभ हुआ मेरे जाने का विदाई का समय । तमाम मेरी कोठेवाली मौसियों के रोने का रुदन राग शुरू हो गया। चारो तरफ लग रहा था मानो कोई मातम सा हो। कोई मुझे पकड़े हैं तो कोई अपने से लिपटाएं रो रही है। एक साथ कई कई मौसियां मेरे को पकड़े रो रही है नहीं जाओ बेटा अभी और रूक कर जाना। लग रहा था मानो शादी के बाद लड़की ससुराल जाने से पहले अपने घर वालों के साथ विलाप कर रही हो । बस अंतर इतना था कि मैं रो नहीं रहा था। तभी मेरी नजर नकल करने वाली मौसी पर पड़ी। मैं उसकी तरफ ही गया और हाथ पकड़कर बोला तुम तो न मेरे से लिपट रही हो न रो ही रही हो. क्या बात है मौसी।. इस पर वह एकाएक फूट सी पडी और मेरा हाथ पकड़कर वह जोर जोर से रोने लगी। इतना प्यार और इतना स्नेह को देखकर मैं भी रूआंसा सा हो गया और इनको प्रणाम करने से खुद को रोक नहीं सका। सभी मौसियों के पांव छूने लगा। मेरे द्वारा पैर छूने पर वे सब निहाल सी हो गयी। कुछ उम्र दराज मौसियों ने कहा बेटा फिर कभी आना। एक बार ही तुम आए मगर हम सबों का दिल चुराकर ले जा रहे हो। इस पर मैं भी चुहल करने से बाज नहीं आया। नहीं मौसी दिल को तो अपने ही पास ही रखो चुराना ही पड़ेगा तो एक साथ तुम सबों को चुरा कर अपने पास रख लूंगा। मैंने तो यह मजाक में यह कहा था मगर मेरी बात सुनकर मेरी सारी कोठेवाली मौसियां फफक पड़ी। और मैं एक बार फिर नजराने और प्यार के पप्पियों के चक्रव्यूह में घिर गया। मेरे द्वारा उन तमम मौसियों के पैर छूना इतना रास आया कि मैं उनका हुआ या नहीं यह मैं नहीं कह सकता, पर वे तमाम कोठेवाली मौसियां मेरी होकर मेरे दिल में ही बस गयी।
Shailendra Kishore Jaruharसंस्मरण की श्रृखला सुन्दर बनेगी
Sanjay Sinhawah bhaiyaa wah likhne ki shaili aisi ki sab kuchh chitrit pratit ho rha tha....agli kadhi ka intezaar hai
Mohd RafiqGood sir
Sangeeta Sinhaवाह! अविस्मरणीय संस्मरण भैया 😊
Sidheshwar VidyarthiBidaj me mila abhi kuch bach raha hai
Sant SinhaThey are also human being . Great brother 🙏
Sant SinhaWaiting your series
Reena SaranHeart touching story 👌🏻👌🏻
Suresh Sapanलिखते रहो
अनामी
भाई।
अनामी
भाई।
Yogesh Bhattकुछ अलग हटकर-----सीरिज न*1शूरू ।
कुछ तो बात है-------अलग ।
कुछ तो बात है-------अलग ।
Dreem Thakurबहुत सुन्दर सर।