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पत्रकारिता के भूगोल का ककहरा

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जन संचार के प्रश्नोत्तर 

 

प्रस्तुति-- प्यासा ,किशोर प्रियदर्शी


संचार -___संचार चर धातु से बना है | जिसका अर्थ है चलना या एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना
२ संचार के मूल तत्वों पर विचार करे
क-सचारक या स्रोत (संदेश  देने के बारे में सोचना )
ख-सन्देश का कूटीकरण (एनकोडींग-संदेश भेजने वाले के द्वारा  भाषाबद्ध कर संदेश को भेजना )
ग-सन्देश का कूटवाचन|(डीकोडींग या भाषा ग्रहण करना और संदेश प्राप्त द्वारा संदेश का अर्थ समझना )
घ-प्राप्त कर्ता (सन्देश प्राप्त करता  )
3 संचार के प्रकार_
अ-- सांकेतिक संचार–जब संचार संकेत के द्वारा हो|  इस  में मनुष्य अपने अंगो या अन्य उपकरणों का प्रयोग करता है|
ब-- मैखिक संचार–जब व्यक्ति बोल कर कोई संकेत पहुचाये | भाषण ,बातचीत
स –समूह संचार– जब कोई पूरा समूह बात हो |इसमें  सामूहिक रूप संचरा होता है |
४ --फीडबैक -- सन्देश पर अपनी प्रतिक्रिया जब संदेस प्राप्त कर्ता उसका  उत्तर  देता है
५--शोर --  संचार के प्रगति में जब बाधा उत्पन हो तो उसे शोर कहते है | यह बाधा किसी भी प्रकार की हो सकती है |
जन संचार– जब किसी समूह के साथ संचार हम प्रत्यक्ष  न कर के किसी यांत्रिक माध्यमसे करे तो वहीं  जन संचार है | जन संचार के माध्यम –सिनेमा , रेडियो ,दूरदर्शन सिनेमा |
7 --प्रिंट माध्यम –छपाई वाले माध्यम  जैसे- समाचार पत्र ( न्यूज़ पेपर), पुस्तके( बुक)
८—संवाददाता( रिपोर्टर) – जो समचार को संकलित करे अर्थात जो समाचार अनेक माध्यम से इकठ्ठाकरे |
संपादक—जो खबरों को काट-छाट कर छपने योग्यबनाता है|
१०—पत्रकारिता– देश विदेश में होने वाली घटना को इकट्ठा कर उसे सूचना के रूप में प्रकाशित करना |पत्रकारिता के मूल तत्व के रूप में हम नई सूचना को इकट्ठा करना मन सकते है |
११—पत्रकारिता  विविध आयाम– सम्पादकीय , फोटो पत्रकारिता , कार्टून कोना रेखाकन  आदि |
पत्रकारिता के प्रकार –
१२विशेषीकृतपत्रकारिता—किसी विशेषक्षेत्र की गहराई से  जानकारी  देनी वालीपत्रकारिता ही विशेषी कृत पत्रकारिता है |जैसे खेल पत्रकारिता
१३खोज परक पत्रकारितासार्वजनिक स्थान पर होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर होने वाली पत्रकारिता ही खोजपरक पत्रकारिता है|टेलीवीजन में इसे स्टिगं ओपरेशन कहते है| जैसे हवाला कांड ,ओपरेशन दुर्योधन आदि |
१४वाचडॉग पत्रकारिता—यह खोजपरक पत्रकारिता का ही अंग है इस में सरकारी विभाग के कम काज पर निगाह रखा जाताहै और उसकी गड़बड़ी का पर्दाफाशकिया जाता है |
१५एड्वोकेशी पत्रकारिता– किसी विचार धारा ,घटना या मत पर जनमत तैयार करना हीएड्वोकेशी पत्रकारिता है | जैसे राम सेतू के लिये जनमत तैयार करने के लिये प्रचार किया गया है |
१६पेज थ्री पत्रकारिता या पीतपत्रकारिता–सनसनी, ग्लैमर की दुनिया ,या किसी सिलेब्रिटी के बारे बताने वाली पत्रकारिता ही पेज थ्री पत्रकारिता है |
१७-डेड लाईन—कोई भी समाचार जिस अवधि के बाद छापता है वही अवधि उस समाचार पत्र की डेडलाईन है | जो समाचार पत्ररोज छपते है उनकी डेडलाइन २४ घंटे होती है अथार्त जो घटना २४ घंटे पहले की है वह उस पत्र के लिये बेकार है |
१८-फ्लैश या ब्रेकिग– कोई बड़ी खबर कम शब्दोंमें दिखाई जाए वही ब्रेकिग न्यूज़ है |जैसे मोदी जी प्रधानमंत्री बने आदि |
१९-किसी समाचार पत्र तीन प्रकार केपत्रकार होते है –
पूर्ण कालिक—ये किसी समाचार पत्र केनियमित वेतनभोगी कर्मचारी(पत्रकार) होते है|
अंशकालिक पत्रकार(स्ट्रिगर )—किसी समाचार पत्र में निश्चित मानदेय( धनराशि )के आधार पर काम करते है| ये कई समाचार पत्र में काम कर सकते है |
३-फ्रिलासर पत्रकार( स्वतंत्र पत्रकार)—ये किसी समाचार पत्र के वेतनभोगी नहीं होते है | ये भुगतान के आधारपर किसी भी समाचार पत्र या संगठन को समाचार देते है |
२०-  समाचार लेखन की शैली को उल्टा पिरामिडशैली कहते है | इस में सबसे महत्वपूर्ण बाते पहले लिखी जाती है उसके बाद कम महत्वपूर्ण बाते लिखी जाती है अंत में सबसे कम महत्व की बाते |
२१-समाचार में छह ककार का महत्व होता है—
१:क्या,२: कब,३: कहाँ,४: कौन,५: कैसे,६: क्यों
समाचार लेखन के तीन अंग है—
शीर्षक—हेडलाइन
मुखड़ा–किसी समाचार के पहले अनुछेद या प्रथम तीन चार पंक्तियोंलिखी गयी बाते मुखड़े के अतर्गत आती हैइसमें सामान्यतया चार ककार आते है--१:क्या,२: कब,३: कहाँ,४: कौन |इस में घटना के बारे में सूचना होती है पर उसका विवरण नहीं, जिससे पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो|
निकाय( बोडी) – इस में समाचार का विस्तार से वर्णन किया जाता है | इसमें पहले यह बताया जाता है घटना कैसे घटी फिर यह बताया जाता है की घटना क्यों घटी, अत: शेष दोनों ककार इस क्रम में आते है| --१ : कैसे,२ :क्यों

एक पत्र संजीव भानावत के नाम / अनामी शरण बबल

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जयपुर में हो रहा है मीडिया गुरूओं का महासम्मेलन

बहुत खूब। मगर इस मीडिया गुरूओं के महा मिलन महा सम्मेलन समारोह के आयोजन के लिए संजीव भानावत जी को  बहुत बहुत मुबारक हो। मगर, इसे सार्थक बनाने की कोशिश होनी चाहिए और मीडिया के भविष्य और भविष्य की मीडिया मीडिया शिक्षा का स्तर पत्रकारिता के नाम पर व्यवसाय पत्रकारिताके नाम काला पीला काम पर समेत मीडिया में आ रहे छात्रों के स्तर पर भी गंभीर चर्चा कराते हुए इसे सार्थक बनाइए। परम्परागत मीडिया के क्षय और प्रिंट मीडिया के 2043 तक  खत्म होनेया मरने की  चिंतापर सारगर्भित विचार सामने आए।  समेत पश्चिमी देशों में मीडिया के हालात पर भी एशिया और भारत से तुलना जरूरी है। मीडिया शिक्षा में बुनियादी परिवर्तन कमी प्रशि7ित गुरूओं विभागों हेड अॉफडिपार्टमेंट पर भी बहस की जरूरत हो सकती है । बगैर किसी तैयारी के तमाम विवि द्वारा पत्रकारिता की पढाईऔर इसमें व्याप्त कमी को भी मुद्दा बनाया जा सकता है। . मेरा निवेदन है कि हर सत्र के कवरेज के लिए पांच -2  लडकों का एक समूह आयोजन से पहले ही गठित करे जो एक सत्र की रिपोर्ट को फौरन लिखकर वेबसाईट ब्लॉग फेसबुक गूगल प्लस समेत मीडिया के अन्य साधनों पर फटाफट शेयर करे। कुछ लड़को को लगाइए जो एक परिचर्चा सा आयोजन करे जिसमें  बाहर से आए ज्यादातर मीडिया गुरूजी से आज की मीडिया या मीडिया की दशा दिशा पर विचार  लेकर परिचर्चा को फेसबुक और ब्लॉग के माध्यम से चर्चा में चर्चित करे।  मेरे ख्याल से तीन चार समूह बनाकर पूरे कवरेजको एक र्कोजेक्टकी तरह दे, जिसमें रोजाना की रपट को एक सत्र समाप्त होने के बाद समय की सीमा दे ,अलबत्ता बाद में रिपोर्ट में संशोदन का अधिकार भी चात्रों को दे।
 इतना बडा आयोजन तो केवल एक ही आदमी करा सकता है और वो है संजीव भानावत जी ( जयपुर वाले ) पर इसकी गूंज महीनों तक हर जगह महसूस हो तभी लाभ और कार्यक्रमकी सफलता का पैमाना संभव है। है। फिर पूरे आयोजन के सभी सत्रवार रिपोर्ट को एक जगह डाला जाए ताकि कोई पूरे आयोजन को पढकर इसकी महत्ता गरिमा गुणवत्ता और जरूरत को समझ सके। एक सत्र छात्रों का भी रखे जो इन तमाम महागुरूओं के समक्ष अपनी जरूरत अपनी आवश्यकता और क्या होना चाहिए पर जोर दे सके ताकि गुरूदेव को भी छात्रों की मांग का पत्ता लगे।
फिर एक सत्र खान पान ब्यूटी श्रृंगार और फोटो सत्र का भी रखे तो किसी को कोई (मुझे तो कतई नहीं) आपति नहीं होगी। बाकी सर मेरी बात को बुरा मानने का आपको पूरा अधिकार है, पर आज की जरूरत को तो महा आयोजक  को ही बताना होगा ताकि वे भावी समारोह चर्चा और संगोष्ठियों में वैचारिक अगन लगा सके।
अनामी शरण बबल

गजल / बिनोद कुमार गौहर

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कौन अपना है या पराया है
बात बांदा समझ ना पाया है।

उनके एहसास व खयालो मे
एक छोटा सा घर बनाया है।

उनके आने की आहटे सुनकर
हमने गलियो मे गुल बिछाया है।

याद रखना मेरे हमदम जानम
साथ हो गर आप तो जमाना है।

जुल्मते तीरगी से निकलो तो
उसने तो दो जहां बनाया है।

बूत परस्ती कहो या जो भी कहो
गौहर तो सजदा मे सर झुकाया है।




प्रस्तुति-- अनिल कुमार चंचल

मीडिया गुरूओं के महाकुंभ के बहाने

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  •  प्रस्तुति- राहुल मानव 

    जयपुर
    बदलाव के संकल्प के साथ...... फिर मिलेंगे
    पुरानी कहावत है कि बदलाव की शुरूआत हमेशा पहले कदम से होती है। यह कदम कब और कौन उठाता है यह महत्वपूर्ण नहीं है। ज्यादा जरूरी है कि बदलाव की शुरूआत हम कब करते है। मीडिया के जरिए एक बेहतर और सकारात्मक समाज का निर्माण कैसे किया जाए-इस सवाल के साथ शुरू हुआ मीडिया शिक्षकों का सम्मेलन पूरा हुआ। और यह विश्वास हम जता सकते है कि तीन दिन के इस महाकुंभ मे बदलाव के एक ऐसे रास्ते पर हमें ला खडा किया है, जहां से मीडिया की दुनिया में व्यापक फेंरबदलकी पूरी संभावना नजर आ रही है।बदलाव कब और किस स्वरूप में होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन महाकुभ के समापन पर यह उम्मीद नजर आई कि परिवर्तन की यह लहर जल्द थमने वाली नहीं।मीडिया शिक्षण से जुडे तमाम विशेषज्ञों की मौजूदगी ने सम्मेलन को लेकर उत्सुकता का एक ऐसा माहौल रचा, जिसके सहारे हम उन अहम लक्ष्यों को हासिल कर सकते है, जिनका सपना इस आयोजन को लेकर हमने देखा था।
    हर समाज के मुद्दे और सरोकार अलग-अलग हो सकते है लेकिन इस बात पर सब एकमत है कि एक सच्चे और सकारात्मक समाज का निर्माण करने में मीडिया अपनी अहम भूमिका निभाता है। संकेत साफ है कि हर कोई यहीं चाहता है कि सूरत बदलनी चाहिए और मेरे सीने मे ना सही, पर कहीं तो आग सुलगनी चाहिए। आभार और शुभकामनाएं,,,,,।( वरिष्ठ पत्रकार श्याम माथुर के संपादकीय के अंश)


    Manish Shukla's photo.
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  • Cartoonist Rakesh RanjanGupta ji thnx for motivation
    1 hr· Like· 1
  • Jai Prakash Tripathiबदलाव किस तरह का, पत्रकारिता की शिक्षा में या पत्रकारिता के हालात में??
    1 hr· Like· 1
  • Himanshu Singh Sainiपत्रकारिता शिक्षण में बदलाव होंगे तो पत्रकारिता में तो खुद ब खुद हो जाएंगे ... Manish ShuklaJai Prakash Tripathi ji
  • Kumar Sandeepबदलाव हो रहा हैं ना संस्थाओ के नाम बदलकर , विस्वविद्यालयों को बंद कर के .. आदि आदि |

'हरिजन'को ग्रहण

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गांधी के 'हरिजन'को लगी किसकी 'नज़र'

  • 7 घंटे पहले


महाराष्ट्र का पुणे शहर जिन ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है, उनमें से एक है आर्यभूषण छापाखाना.
ये वो जगह है जहां महात्मा गांधी का अख़बार 'हरिजन'छपता था.
लेकिन अब इस विरासत के भी व्यावसायिकता के हत्थे चढ़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है.
(पढ़ेंः गांधी भक्तों के लिए जरूरी...)
महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के पड़पोते सुनील गोखले ने आरोप लगाया है कि आर्यभूषण छापाखाने के निदेशक मंडल ने इसे बेचने की योजना बनाई है और यहां मॉल और होटल बनाने की कोशिशें चल रही हैं.

वर्तमान इमारत



'हिंद सेवक समाज' (सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसायटी) की स्थापना के बाद गोखले ने 1906 में इस छापाखाने की स्थापना की थी.(पढ़ेंः गांधी एक प्रेत का नाम है...)
पहले यह छापाखाना 'किबे वाडा'नामक इमारत में चलता था. उस समय इस छापाखाने में 200-250 लोग काम करते थे. लेकिन 1926 में किबे वाडा आग में ख़ाक़ हो गई.
इसके बाद यहां के कामगारों ने एक होकर अपने चंदे से वर्तमान इमारत बनाई. इस इमारत को 'हेरिटेज बिल्डिंग'का दर्जा प्राप्त है.

सुधारवादी क़दम!



ये छापाखाना अपनी आधुनिक मशीनों और सुधारवादी क़दमों के लिए जाना जाता था.(पढ़ेंः गांधी की हत्या पर क्या...)
बूढ़ों और विकलांगों के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं से जुड़े लोगों को यहां काम दिया जाता था.
साल 1932 में जब गांधी येरवडा जेल में बंद थे, तब उन्होंने 'हरिजन'साप्ताहिक शुरू किया. उसकी छपाई यहीं की जाती थी.

आला दर्जे की छपाई



इसके शुरुआती प्रबंधकों में से एक वामनराव पटवर्धन की जीवनी में लिखा है कि प्रेस की वक़्त की पाबंदी वाले काम और आला दर्जे की छपाई की ख़ुद गांधी ने प्रशंसा की थी.लेकिन धीरे-धीरे छापाखाना पिछड़ता चला गया. हालात ऐसे हो गए कि 2011 में यहां 100 कर्मचारी थे जबकि अब केवल 15 कर्मचारी रह गए हैं.
गोखले कहते है, "संस्था को जानबूझकर अक्षम बनाया गया है. जिस ज़मीन पर यह छापाखाना खड़ा है, वह मूलतः 'हिंद सेवक समाज'की है.

गोखले के वारिस



गोपालकृष्ण गोखले के वारिस होने के नाते सुनील गोखले यह मुद्दा उठा रहे हैं.
उनका कहना है, "निदेशक मंडल ने जलगांव स्थित एक प्रकाशन संस्था को इस प्रेस के अहाते में 15 हज़ार वर्ग फ़ुट जगह पर निर्माण कार्य करने की अनुमति दी है. साथ ही मूल इमारत में भी तोड़फोड़ की जा रही है. इसके लिए सहकारिता विभाग और पुरातत्त्व विभाग की अनुमति नहीं ली गई है."सुनील गोखले का संस्था से कोई संबंध नहीं है लेकिन गोपाल कृष्ण गोखले के वारिस होने के नाते वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं.




राज्य के सहकारिता मंत्री और मुख्यमंत्री तक से उन्होंने इसकी शिकायत की है.
इधर संस्था के निदेशक अंकुश काकडे का कहना है कि इस इमारत को कोई आंच नहीं आएगी.
उन्होंने कहा, "यह इमारत ग्रेड-2 हेरिटेज इमारत है. यहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो सकता. मशीनरी लाने के लिए कुछ मरम्मत का काम किया गया है लेकिन इस ढांचे को कोई नुक़सान नहीं होगा. हमने जलगांव की संस्था से अनुबंध किया है ताकि प्रेस चलती रहे. इससे संस्था को ही फ़ायदा होगा."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुकऔर ट्विटरपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

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गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान समारोह आयोजित

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भोपाल में 7 अप्रैल,2015 को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित समारोह में वरिष्ठ पत्रकार श्री मदनमोहन जोशी और श्री श्यामलाल यादव को गणेशशंकर विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित किया गया।
पूरी खबर-

पत्रकारिता ने देश की राजनीति को नई दिशा दी- शिवराज सिंह चौहान


पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान समारोह
भोपाल, 7 अप्रैल /पत्रकारिता लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। पत्रकारिता ने देश की राजनीति को नई दिशा दी है। यदि पत्रकारिता नहीं होती तो देश की राजनीति की दिशा और दशा कुछ और होती। दादा माखनलाल चतुर्वेदी हमें आज भी प्रेरणा देते हैं कि उनका जीवन हमारे लिए प्रकाश पुंज है। यह विचार पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित माखनलाल चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान एवं गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान समारोह में बोलते हुए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने व्यक्त किए।
विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2012 का गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान वरिष्ठ पत्रकार श्री मदन मोहन जोशी को एवं वर्ष 2013 का सम्मान युवा पत्रकार श्री श्यामलाल यादव को प्रदान किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मदन मोहन जोशी जी केवल पत्रकार नहीं है बल्कि सामाजिक सरोकारों को साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि श्यामलाल यादव जी ने कम उम्र में पत्रकारिता में बड़ी ऊंचाईयाँ हासिल की है जो युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह करते हुए कहा कि उन्हें परिश्रम से पीछे नहीं हटना चाहिए और हमेशा अपना लक्ष्य बड़ा रखना चाहिए। दूसरों की भलाई करने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है और बुराई करने से बड़ा कोई पाप नहीं है। युवाओं को पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसे आगे बढ़ना चाहिए कि वे एक नक्षत्र की तरह चमकें। उन्होंने विद्यार्थियों को सफलता के चार सूत्र बताते हुए कहा कि उनके पाँव में चक्कर, मुंह में शक्कर, सीने में आग एवं माथे में बर्फ होना चाहिए। उन्होंने सामाजिक सरोकारों से युक्त सकारात्मक पत्रकारिता करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर बोलते हुए श्री मदन मोहन जोशी ने कहा कि ऐसी पत्रकारिता का संकल्प लेना चाहिए जिससे व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का भला हो सके। श्री श्यामलाल यादव ने कहा कि मेहनत करके पत्रकारिता में कुछ भी हासिल किया जा सकता है। युवा पीढ़ी को मेहनत से पीछे नहीं हटना चाहिए। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के कुलपति प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी ने पत्रकारिता के समक्ष आज सबसे बड़ी चुनौती मूल्यों के संरक्षण की है। सनसनीपूर्ण पत्रकारिता का बोलबाला है। पत्रकारिता में ऐसे प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे मूल्यों एवं संवेदनाओं का संरक्षण हो सके। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने विश्वविद्यालय की आगामी योजनाओं के बारे में चर्चा करते हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी ने किया।
समार्थ्य को बढ़ाकर दुखों से लड़ा जा सकता है- स्वामी धर्मबंधु
माखनलाल चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में श्री वैदिक मिशन ट्रस्ट स्वामी धर्मबंधु का उद्बोधन
मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा लक्षण इंसानियत है। यदि मनुष्यों में सामथ्र्य कम होगा तो ईष्र्या अधिक पैदा होगी। आज लोग अपने अभाव से दुखी नहीं होते, बल्कि दूसरों के प्रभाव से दुखी होते हैं। अपने दुखों को कम करने के लिए मनुष्य को सामथ्र्यवान बनना चाहिए। आज के समय में अन्तःकरण की पवित्रता पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है। हमें अपने शरीर, मन, बुद्धि एवं चित्त की पवित्रता पर जोर देना चाहिए। ज्ञान का सृजन कर अपनी ताकत को बढ़ाया जा सकता है। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान के अंतर्गत श्री वैदिक मिशन ट्रस्ट के व्यवस्थापक स्वामी धर्मबंधु ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में मनुष्य के सामने अनेक समस्याएँ 2005 में दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों ने तय किया था कि दुनिया को युद्ध से निकलकर बेहतर प्रबंधन को सामने लाना चाहिए। आज मनुष्य के सामने सबसे बड़ा संकट चरित्र का संकट है। आज ताकत के दम पर दुनिया पर हुकूमत करने वाले देश भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस बात से सहमत होते दिख रहे हैं कि शांति के बिना विकास सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि देश के प्रख्यात शिक्षाविद् बी.एस.कोठारी ने ऐसी शिक्षा की वकालत की थी जो इंसानियत को बढ़ाने का जज्बा पैदा कर सके। उन्होंने महान दार्शनिक रूसो के कथन का हवाला देते हुए कहा कि जो भी चीज प्रकृति के हाथों से आती है वह पवित्र होती है, परन्तु मनुष्य के हाथों आते-आते वह दूषित होने लगती है। ज्ञान यदि दुश्मन के पास भी है तो उससे जाकर सीखना चाहिए। ज्ञान का दान सबसे बड़ा दान है। आज जी-8 में बैठे विकसित राष्ट्रों की आबादी पूरी दुनिया की आबादी का 19 प्रतिशत है, परंतु वे दुनिया के 75 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधनों पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं।
स्वामी धर्मबंधु ने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्यार्थियों को पांच संकल्प लेने चाहिए। प्रथम, वे प्राचीन साहित्य का अध्ययन करेंगे, द्वितीय, अपनी संस्कृति का सम्मान करेंगे, तृतीय, अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम का भाव रखेंगे, चतुर्थ, आदर्श स्थापित करने का प्रयास करेंगे एवं पंचम, अन्याय एवं अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएँगे। उन्होंने विद्यार्थियों से परिश्रमपूर्ण जीवन जीने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जो परिश्रम नहीं करता उसे ईश्वर की प्रार्थना करने का अधिकार नहीं है। इसी तरह जो लोग श्रम कर पसीना नहीं बहाते उन्हें आराम करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की कीमत उसके विचारों से होती है। जीवन में आदर्श स्थापित करने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति धैर्यवान हो, लालच से दूर रहे एवं अपने मन एवं स्वभाव में मधुरता लाए। उन्होंने विश्वविख्यात लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों का हवाला देते हुए विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इन पुस्ताकों को अवश्य पढ़ें।
रंगारंग प्रस्तुतियाँ और पुरस्कार पाकर झूम उठे विद्यार्थी
विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक एवं खेलकूद आयोजन प्रतिभा-2015 का पुरस्कार वितरण
कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विभागों के सांस्कृतिक एवं खेलकूद आयोजन प्रतिभा-2015 का पुरस्कार वितरण समारोह भी आयोजित किया गया। इस दौरान विद्यार्थियों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी। विद्यार्थियों के दल ने सामान्य व्याप्त बुराईयों पर केन्द्रित लघु नाटिका: पागलों की दुनिया प्रस्तुत की। छात्राओं के दल द्वारा की गई कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति से सभागार में बैठे लोग झूम उठे। विश्वविद्यालय बैण्ड ने सुन्दर वाद्य प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोहन लिया। इस दौरान प्रतिभा-2015 के दौरान सम्पन्न निबंध प्रतियोगिता, फीचर लेखन प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता, एनीमेशन, पोस्टर, कार्टून, पावर पाइंट निर्माण प्रतियोगिता, नाट्य प्रतियोगिता, नृत्य प्रतियोगिता तथा क्विज़ प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरीत किए गए। विद्यार्थियों को पुरस्कार देने के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला के अलावा हिमालच प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के कुलपति प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी, वरिष्ठ पत्रकार श्री राधेश्याम शर्मा, रमेश शर्मा एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री कैलाशचन्द्र पंत उपस्थित थे।
पुस्तकों का विमोचन
कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों का विमोचन माननीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम में श्री साकेत दुबे द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘"डॉ.धर्मवीर भारती: पत्रकारिता के सिद्धान्त"एवं श्री मनोज चतुर्वेदी द्वारा लिखित पुस्तक "महात्मा गांधी और संवाद कला"का विमोचन किया गया।

प्रस्तुति- प्रियदर्शी किशोर, राहुलमानव
Sanjay Dwivedi's photo.
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पत्रकारिता के महारथी

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  • Lalit Surjan

    प्रस्तुति--  स्वामी शरण , सृष्टि शरण

    देशबंधु के संपादक मंडल के सदस्यों और स्थायी स्तंभकारों ने पिछले 56 वर्षों के दौरान लगभग 600 पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिसमें से अधिकांश सामग्री का प्रकाशन देशबंधु में ही हुआ है. (सत्तावन्वे स्थापना दिवस के पूर्व पाठकों की जानकारी के लिए)
  • Dilip BinzaniIs uplabdhi per dher sari badhaee.
  • Shakeel Akhtarबहुत- बहुत बधाईयां .... इस मुश्किल दौर में आपका काम साथियों को और हिम्मत देता है
  • Amitabh Agnihotriबधाई हो।हमारी कामना है कि आपके सुरक्षित हाथो में देश बंधू और ऊचाई हासिल करे।
  • Anil Attriबधाई
  • Rajkumar Sahuसर, शुभकामनाएं.
  • Sandeep PandeyDESHBANDHU IS THE HERITAGE OF JOURNALISM WITH LITERAL VALUE.
  • Chandra Shekhar Singhसर जी !
    हार्दिक बधाई
    एवं
    ...See More
  • रीमा दीवान चड्ढाबहुत बहुत बधाई .
  • Sandeep Vermaबधाई , और बहुत बढ़िया
  • Sanjay Shrivastuvaबधाई भैया
  • Pritpalsingh Aroraबधाई,दरअसल हम देशबन्धु को अपनी "आवाज"मानते हैं.इसे और आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं....
  • Anant Mitalveer tum badhe chalo...........
  • शशिकांत गीतेहार्दिक बधाई और शुभकामनाएं सर।
  • Vinay SharmaShubkamnay...
  • Virendra Patnaikदेश-दुनिया, दीन-दुखियोँ,साहित्य-मंथन,निर्बल-सबल, हम सब जन-जन की लोकप्रिय समाचार पत्रिका के सत्तावनवेँ स्थापना दिवस पर सम्पादक मण्डल, लेखकगण और सुधी पाठकोँ को बधाई, हार्दिक शुभकामनाएँ। आपका अपना छाया-रचनाकार, (मड़ई) - वीरेन्द्र पटनायक (सारंगढ़िया)
  • Ashok Agrawalसत्तावन्वे स्थापना दिवस की अग्रिम बधाइयां और शुभकामनाएं ।
  • Sharad Alokहार्दिक बधाई!
  • Tejinder GaganI feel a sense of pride to be a part of Deshbandhu may be for a very short period but that has a deep impact on me.
  • Rakesh Achalबधाईयाँ
  • Sudhir Kumar PaandeyBahut bahut badhai sir...
  • Arun Kant Shuklaमहान और सराहनीय कार्यों का वृहद् इतिहास है देशबंधु के पास ..
  • Rajeev Malaviyaललितजी
    क्या उन किताबों मे परम् पूज्य श्री हरिशंकर परसाईजी एवं पं.भवानी प्रसाद"मिश्र"जी की भी रचनाऐं सम्मलित हैं
    यदि हो तो वह किताबें मै कहॉ से खरीद सकता हूं मुझे SMS कर दें मेरा मो.09350836484 है
    ...See More
  • संजीव बख्शीदेशबंधु का वाचनालय अपने आप में महत्‍वपूर्ण है ज्ञानेंद्रपति जी के कविता पाठ के बाद वहां मेरा जाना न हो पाया है। इन प्रकाशित पुस्‍तकों को भी वहां देखना है अब की बार।
  • Rajendra Tiwariबधाई
  • Mukesh Kumarस्वर्णिम उपलब्धियाँ।
  • Hemant Joshiबधाई
  • Mita Dasबधाई
  • Anwar JamalMubarak ho Lalit jee
  • Mahesh Prakash Shrivastavaभागीरथी कार्य के लिए साधुवाद एवं हार्दिक बधाई!
  • Pc Rathदेशबन्धु के पास उज्जवल इतिहास है। बधाईया
  • Vidya Guptalakshy ki or ......saflta ke darpan men ....santos ki chaya sukun ki khushbu badhti rhe
  • Shri Kant MishraMeri shubhkamnaye
  • Kamlesh Vermaपूछिये परसाई कालम के जमाने से देशबंधु का साथ रहा है। आज भी वैचारिक प्रबुद्धता के मामले में देशबंधु अतुलनीय है,बधाई।
    1 hr· Like· 2
  • Prashant Pandeycg ke kai ptrakaro ki shuruaat deshbandhu se hui hai
    1 hr· Like· 1
  • Deepak Bhatnagarहार्दिक बधाई एवम् शुभकामनायें!!
  • Deepak Bhatnagarएक युग था जब देशबन्धु एवं नवभारत के बिना सवेरा नही होता था।
  • Rajesh Shrivastavaललित जी बधाइयाँ और शुभकामनायें स्वीकार करें
  • Kumar Krishnanबधाइयाँ
  • Ramesh Sharmaहमारे लिए यह गर्व की बात है . सबको बधाई
  • Ashutosh Jhacongratulations sir. i am fortunate to have worked with Deshbandhu.
  • Kamlesh Kumar Diwanlalit ji aapko or deshbandhu parivaar ko badhai ,nav pratimaan banaye
  • Anami Sharan Babalकिताबों की सूची और हर किताब के मुखपेज का फोटो (सामूहिक) भी शेयर करे तो यह पत्रकारिता जगत के लिए उपकार होगा
  • Anami Sharan Babalशोध का यह बिषय हो गया है कि क्या सुरजन जी के अलावा दूसरा कोईऔर बांका हैजिसने किताबों पन्नों औरशब्दों को ही जीवन बनाकर यह तपस्या की हो
  • Raj Chunni Sharmaनिःसन्देह अच्छा प्रयास है ; अख़बार तो बहुतेरे निकाल रहे हैं ॥लेकिन इसके साथ - साथ निरंतर किताबों का प्रकाशन ये उल्लेखनीय कदम है ! साधुवाद

Communication Today 16 साल से अनवरत

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मलयालम पत्रकारिता

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प्रस्तुति- प्रतिमा यादव, मनीषा यादव 




आधुनिक केरल के सामाजिक सांस्कृतिक निर्माण में पत्रकारिता ने निर्णयात्मक भूमिका अदा की है । पत्रकारिता ने मलयालम भाषा का विकास, मुद्रण कला का विकास, नागरिकाधिकार-बोध का विकास आदि का पथ प्रशस्त किया । जाति प्रथा के विरुद्ध किया गया संघर्ष राजनीतिक स्वायत्त शासन संग्राम, आदि को पत्रों ने असीम सहायता पहुँचाई । पाश्चात्य धर्मप्रचारकों ने धर्म प्रचार के लिए जो पत्रिकाएँ प्रारंभ कीं वे ही मलयालम के आदिकालीन पत्र माने जाते हैं । 'राज्यसमाचारम', 'पश्चिमोदयम्'आदि उदाहरण के रूप में लिए जा सकते हैं । 'ज्ञाननिक्षेपम्'पत्रिका में धर्मप्रचार के साथ ज्ञान का प्रचार-प्रसार भी लक्ष्य बनाया गया ।

वास्तविक अर्थ में समाचार पत्र का प्रारंभ 1860 के बाद ही हुआ । अंग्रेज़ी में प्रकाशित 'वेस्टर्न स्टार', मलयालम पत्र 'पश्चिमतारका', 'केरल पताका', 'संदिष्टवादी', 'दीपिका', 'केरलमित्रम', 'केरल पत्रिका', 'केरल संचारी'आदि पत्रों को उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है । मलयालमनोरमा का प्रारंभ 1890 में हुआ जिसने मलयालम पत्रकारिता में नया मार्ग प्रशस्त किया । प्रारंभकालीन पत्रों का उद्देश्य समाज सुधार था । 'मलयाली', 'सुजनानन्दिनी', 'मितवादी', 'केरलकौमुदी', 'देशाभिमानी'आदि पत्र इस उद्देश्य से शुरू किए गए । 20 वीं शताब्दी के प्रथम दशक में अनेक पत्र शुरू हुए जो राजाओं के शासन के विरुद्ध नागरिकाधिकार की प्रतिष्ठा में लगे थे । ऐसे पत्र हैं - 'केरलदर्पणम', 'केरलपंचिका', 'स्वदेशाभिमानी', 'केरल चिन्तामणि', 'समदर्शी, प्रबोधकन'आदि । स्वतंत्र एवं निर्भीक रूप में पत्रकारिता में लगे स्वदेशाभिमानी रामकृष्ण पिळ्ळै, केसरी ए. बालकृष्ण पिळ्ळै दोनों ने मलयालम पत्रकारिता में नवीन इतिहास रचा । स्वदेशाभिमानी को देश से निकाल दिया गया । केसरी ने नागरिकाधिकार के पक्ष में खड़े होकर राजाओं के शासन का विरोध किया ।

ब्रिटिश शासन के विरोध में स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा देने के लिए अनेक पत्र आरंभ किए गए । 'स्वराज', 'मातृभूमि', 'अल अमीन', 'मलयालराज्यम', 'गोमती', 'दीनबंधु', 'देशाभिमानी'आदि पत्रों का आविर्भाव स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था । 1923 में उद्घाटित मातृभूमि ने महान प्रेरणा दी । कम्यूनिस्ट आन्दोलन तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस ने मलयालम पत्रकारिता के विकास में बड़ा योगदान दिया ।

मलयालम पत्रकारिता का विकास का पथ सरल नहीं था । बहुत सी पत्रिकाएँ जो साप्ताहिक तथा मासिक पत्रिकाओं के रूप में शुरू हुईं असमय में ही बन्द हो गईं । कतिपय पत्र ही दैनिकी बन सके । प्रारंभकालीन जिन पत्रों ने कठिन स्थितियों का सामना करते हुए विकास किया वे हैं - 'मलयालमनोरमा', 'मातृभूमि', 'केरल कौमुदी', 'चन्द्रिका', 'देशाभिमानी'और 'दीपिका'। 'माध्यमम्', 'मंगलम'आदि पत्र का प्रारंभ 1980 में ही हुआ ।

समाचार पत्रों के साथ-साथ मलयालम में समकालीन पत्रिकाएँ तथा प्रकाशन भी शुरू हुए । समाचार मासिकाएँ, विशिष्ट मासिकाएँ, सामुदायिक मासिकाएँ आदि तीन प्रकार की मासिक पत्रिकाएँ प्रचलित हुईं । इन्हीं के साथ साहित्यिक पत्रकारिता भी विकसित हुई । जो 1950 के बाद 'लिटिल मैगज़ीन'नाम से शुरू हुई थी ।

केरल के पत्रकारों के संगठन का नाम है 'केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जेर्णलिस्ट'। सभी जिला केन्द्रों में 'प्रेस क्लब'की स्थापना हुई ।

पत्रकारिता के विकास के लिए 'केरल प्रेस अकादमी'कार्यरत है जो कोच्चि में है ।

उद्योग-व्यवसाय के रूप में केरल में पत्रों की बुनियाद बहुत ही पक्की है । 'मलयालमनोरमा', 'मातृभूमि', 'केरल कौमुदी', 'देशाभिमानी', 'चन्द्रिका', 'माध्यमम्'आदि पत्र - ग्रूप अनेक संबद्ध प्रकाशन भी करते रहते हैं । भारत की सर्वाधिक प्रचलित पत्रों में 'मलयालमनोरमा'और 'मातृभूमि'की गणना की जाती है । 'द हिन्दू' (कोच्चि, तिरुवनन्तपुरम) और 'द न्यू इंडियन एक्स्प्रेस' (कोच्चि, कोष़िक्कोड, तिरुवनन्तपुरम) पत्रों के एक से अधिक संस्करण केरल से निकलते  हैं । 

फैशन में तो औरतों को भी मात कर देते है मोदी

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सूट के बाद अब मोदी की शॉल पर हंगामा


प्रस्तुति-- प्यासा रूपक,चंदन कुमार सिंह 


  • 13 अप्रैल 2015
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूट के बाद अब उनकी शॉल पर हंगामा हो गया है.
रविवार को दिन भर सोशल मीडिया पर इस बात पर चर्चा होती रही कि नरेंद्र मोदी ने जो शॉल पेरिस पहुंचने पर ओढ़ी थी क्या वो वाकई मशहूर विदेशी ब्रांड लुई वितां की है?
इन चर्चाओं को हवा दी थी कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने.
खेड़ा ने 10 अप्रैल को ट्वीट किया, ''लुई वितां की शॉल ओढ़ कर श्रीमान मोदी फ़्रांस में अपने 'मेक इन इंडिया'अभियान का ज़ोरदार प्रचार कर रहे हैं.''
पवन खेड़ा के इस तंज़ के बाद टीवी पत्रकार सागरिका घोष ने भी ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, ''प्रधानमंत्री ने पेरिस में लुई वितां की शॉल ओढ़ी, मेरी राय में भारतीय हैंडलूम ज़्यादा बेहतर होता!''
लेकिन इस पूरी चर्चा में दिलचस्प मोड़ तब आया जब @Rakesh_lv नाम के हैंडल वाले एक व्यक्ति ने लुई वितां को मोदी की तस्वीर ट्वीट कर के ये पूछा कि वो ऐसी शॉल ख़रीदना चाहते हैं, क्या लुई वितां ऐसी शॉल बनाती है?
लुई वितां ने इसके जवाब में लिखा, ''आपके ट्वीट के लिए धन्यवाद. दुर्भाग्य से आपने जो तस्वीर दी है वैसी शॉल लुई वितां ने नहीं तैयार की है.''

'माफ़ी'

सागरिका घोष ने प्रधानमंत्री की शॉल पर ट्वीट के लिए माफ़ी मांगी है.
लुई वितां के इस ट्वीट के बाद पवन खेड़ा और सागरिका घोष ने माफ़ी मांगी है. सागरिका ने लिखा, ''लुई वितां ट्वीट के लिए माफ़ी चाहती हूं. प्रधानमंत्री की शॉल लुई वितां शॉल नहीं थी! होती भी तो कुछ ग़लत नहीं था!''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आने पर जो सूट पहना था उसे लेकर काफ़ी हंगामा हुआ था.
कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि मोदी ने जो सूट पहना था वो दस लाख रुपये का है. बाद में ये सूट 4.31 करोड़ में नीलाम हुआ.
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हरियाणा: बाबा रामदेव को कैबिनेट रैंक

 प्रस्तुति-- किशोर प्रियदर्शी, राहुल मानव 
योग गुरु बाबा रामदेव को हरियाणा में केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया जाएगा.
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने सोमवार को ट्वीट किया, "हरियाणा में योग और आयुर्वेद को प्रोत्साहन देने के ब्रांड अंबेज़डर बाबा रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाएगा."
बाबा रामदेव हरियाणा के ही महेंद्रगढ़ ज़िले के मूल निवासी हैं.

'जड़ी-बूटी जंगल'

पिछले लोकसभा चुनावों में बाबा रामदेव ने भाजपा का समर्थन किया था. हरियाणा में भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें राज्य में ब्रांड अंबैसेडर बनाया गया.हरियाणा सरकार ने कहा था कि 49 वर्षीय योगगुरु कई एकड़ में जड़ी-बूटी जंगल के विकास कार्य की देखरेख करेंगे. इसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की 25,000 प्रजातियां होंग

नेताजी के बारे में जो मिल जाए सब दुर्लभ

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प्रस्तुति-- स्वामी शरण 
Rare Document:
REPORT of The Justice MUKHERJEE COMMISSION of Inquiry on the alleged disappearance of NETAJI Subhas Chandra Bose.
Read and download pdf:
Volume 1:
http://bit.ly/1CW1z23
Volume 2A:
http://bit.ly/1yobamt
Volume 2B:
http://bit.ly/1FFXPDt
The Justice Mukherjee Commission of Inquiry into the alleged disappearance of Netaji Subhas Chandra Bose, shortened as the Mukherjee Commission, was one-man board instituted in 1999 to inquire into the controversy surrounding the death of Subhas Chandra Bose in 1945. Justice Manoj Mukherjee, a retired judge of the Supreme Court of India, was appointed to lead the inquiry. After a 7 year inquiry, Mukherjee's findings that Bose did not die in the plane crash were rejected by the government.
On 30 April 1998, the High Court of Calcutta ordered the then BJP-led Government to "launch a vigorous inquiry as a special case for the purpose of giving an end to the controversy".
The Mukherjee Commission is not the first commission created to ascertain the death of Subhas Chandra Bose. The two previous commissions were the Shah Nawaz Committee (appointed by Jawaharlal Nehru) and Khosla Commission respectively. The Khosla Commission, created by the government of Indira Gandhi, reported that all documents relating to Subhas Chandra Bose were either missing or destroyed.
Findings:
The Mukherjee Commission concluded that while Bose was presumed dead given the many years that had passed, he did not die in the plane crash in Taipei in 1945. Instead the commission proposed that the crash was a ruse to allow Bose to escape with the knowledge of the Taiwan and Japanese governments of the time. The Indian government was said to have learned of the escape through a Taiwanese report in 1956, which it chose to suppress. According to the commission the ashes kept in Tokyo's Renkōji Temple that are commonly believed to be Bose's, instead were the remains of Ichiro Okura, a Taiwanese army-man who died in August 1945. The commission did not find any evidence that Bhagwanji, a monk who lived in Faridabad until his death in 1985, was in fact Bose in disguise.
(Wikipedia)
Image:
Clipping from Japanese newspaper, published on 23 August 1945, reporting the death of Bose and General Tsunamasa Shidei of the Japanese Kwantung Army in Japanese-occupied Manchuria.
(Wikipedia)
Rare Book Society of India's photo.

साहित्यिक कथा पत्रकारिता

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कथा पत्रकारिताएक कहानी और पत्रकार यह चित्रण जिस तरह से व्याख्या की है, हो सकता है कि यह काल्पनिक या गैर-काल्पनिक।आसान शब्दों में, यह एक कहानी कहता है।
कथा पत्रकारिता भी सामान्यतः के रूप में जाना जाता है साहित्यिक पत्रकारिताके रूप में परिभाषित किया गया है, जो रचनात्मक nonfiction , अच्छी तरह से लिखा है, तो सही और अच्छी तरह से शोध में जानकारी शामिल है और यह भी पाठक की रुचि रखती है।यह भी करने के लिए संबंधित है विसर्जन पत्रकारिताएक लेखक के समय (सप्ताह या महीने) की एक लंबी अवधि के लिए एक विषय या विषय के बाद और एक गहरी व्यक्तिगत नजरिए से एक व्यक्ति के अनुभवों का विवरण है, जहां।

अंतर्वस्तु

इतिहास

ट्रूमैन कपौटठंडे खून में'एस में कथा पत्रकारिता का एक ऐतिहासिक उदाहरण है उपन्यासके रूप में।किताब इसलिए दूसरी "nonfiction उपन्यास"और मदद की शो पत्रकारों पत्रकारिता के दिशा निर्देशों के दबाए हुए रचनात्मक लेखन की तकनीक का उपयोग करने की संभावना की जा रही है, 1965 में प्रकाशित हुआ था।पहली "गैर फिक्शन"उपन्यास अर्जेंटीना लेखक रोडोल्फो वॉल्श द्वारा 1957 में लिखा है, "Operación Masacre"था।
कपौट पत्रकारिता के इस नए रूप का आविष्कार करने का दावा हालांकि, पत्रकारिता के क्षेत्र में रचनात्मक लेखन का एक आंदोलन का मूल अक्सर बहुत पहले हुई है सोचा है।कथा पत्रकारिता की विशेषताओं में पाया जा सकता है डैनियल डेफोके 18 वीं सदी में लेखन, साथ ही साथ के लेखन में मार्क ट्वेन 19 वीं सदी में और जेम्स एगी , अर्नेस्ट हेमिंग्वेऔर जॉन स्टीनबेकद्वितीय विश्व युद्ध के काल में।
कपौट के समकालीन टॉम वोल्फभी 1974 में नई संवाददाताने लिखा है और पत्रकारिता के क्षेत्र में कथा के औचित्य पर चर्चा को लोकप्रिय बनाने के लिए श्रेय दिया जाता है।उन्होंने कहा कि नई पत्रकारिता के "पिता"होने के साथ समलैंगिक Talese का हवाला देते हैं, और उसके संकलन "गे Talese रीडर"में कथा पत्रकारिता की नींव एक मिसाल है।
आज, कई nonfiction उपन्यास उनकी कहानियों बताने के लिए कथा पत्रकारिता का उपयोग करें।जैसे प्रिंट प्रकाशनों हार्पर , न्यू यॉर्कर , एस्क्वायर , रॉलिंग स्टोन , और ग्राम आवाजभी कथा पत्रकारों के लिए स्वागत घरों रहे हैं।
मुख्यधारा के समाचार पत्र प्रकाशनों अभी भी समय और जगह की कमी की वजह से बहुत ज्यादा कथा पत्रकारिता के समर्थन से सावधान रहे हैं, और अक्सर एक रविवार की सुविधाओं या पूरक पत्रिका में सामयिक कथा प्रिंट होगा।
कथा पत्रकारिता की परिभाषा कई और विविध हैं।कुछ साहित्यिक पत्रकारिता, या रचनात्मक गैर कल्पना का उल्लेख करना पसंद करते हैं।सीधे शब्दों में कहें, कथा एक कहानी देखें और घटनाओं की व्यवस्था की एक खास बिंदु के माध्यम से निर्माण किया है जिसमें तरीका है। 2001 में शुरू की कथा पत्रकारिता पर Nieman कार्यक्रम, कथा पत्रकारिता के शिक्षण, शिक्षा और अभ्यास के लिए एक केन्द्र प्रदान करना है। Nieman फाउंडेशन अधिक बस कहानियां कह तुलना में कथा पत्रकारिता को परिभाषित करता है: यह अच्छी तरह से किया है, जब समाचार पत्रों में सुधार और उन्हें आवश्यक और सम्मोहक बनाने के लिए क्षमता है कि, कई परतों और संदर्भों के साथ एक जटिल शैली है।मोटे तौर पर, कथा पत्रकारिता के कुछ महत्वपूर्ण तत्वों में निम्न शामिल हैं:
• यह सही, अच्छी तरह से छानबीन की जानकारी शामिल है, और भी पढ़ने के लिए दिलचस्प है।
• यह लुभावना लोग, मानवीय भावनाओं, और वास्तविक स्थितियों में दिखता है।यह जनता कहानी के पीछे निजी कहानी प्रदान करता है।
• यह उपन्यास के लेखन शैली के साथ तथ्यों का रिपोर्ताज सम्मिश्रण द्वारा साधारण अतीत तक पहुँचता है।
मार्क क्रेमर, कथा पत्रकारिता पर Nieman कार्यक्रम के पूर्व निदेशक, "कि पाठक बहुत से जानता है और लगता है और मज़ाक और जंगली हो जाता है मानता है, पाठक ग्रहण नहीं करता है कि पत्रकारिता एक रोबोट है।"यह कहना है कि क्रेमर आवाज के महत्व पर जोर ।पाठकों सुबह में अखबार के साथ उनके कॉफी है, वे कहते हैं।वे समझते हैं और यहां तक ​​कि खबर आवाज के साथ की पहचान करना चाहते हैं;लेकिन नियमित रूप से समाचार रिपोर्टिंग अकेला महसूस पाठक छोड़ रहा है, गुमनाम और संयमित है।आप लोगों के इतने भिन्न प्रकार से बना एक दर्शक है जब यह सबसे कम आम विभाजक के लिए अपील और सिर्फ तथ्यों के बारे में बात करने के लिए महान लगता है।लेकिन क्या होता है खबर आवाज की depersonalisation है - कथा पत्रकारिता नाश्ते की मेज़ पर वापस मानव आवाज डाल करने के लिए करना है।क्रेमर निम्नलिखित तत्व शामिल है कि लेखन के रूप में कथा पत्रकारिता को परिभाषित करता है:
1. सेट दृश्यों;
2. वर्ण;
समय के साथ करेंगी कि 3. लड़ाई;
व्यक्तित्व है कि 4. आवाज;
5. दर्शकों के साथ एक रिश्ता;और
6. गंतव्य - एक विषय है, एक उद्देश्य है, और एक कारण है।

ऑनलाइन कथा पत्रकारिता

ऑनलाइन कथा पत्रकारिता के प्रभावी उपयोग के जल्द से जल्द और सबसे उच्च प्रोफ़ाइल उदाहरणों में से एक में पाया जा सकता है फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर के nonfiction धारावाहिक 'ब्लैक हॉक डाउन " 1997 ऑनलाइन समाचार पत्र श्रृंखला मोगादिशू के नाटकीय अमेरिकी छापे के chronicled और युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों के साथ साक्षात्कार पर उनकी कहानियों पर आधारित है।कहानी हिस्सा सचित्र पुस्तक, भाग वृत्तचित्र और भाग रेडियो कार्यक्रम बन गया है और गहराई में कहानी का पता लगाने के लिए पाठकों की अनुमति दी।
नि: शुल्क ऑनलाइन प्रकाशन आज की उपलब्धता के साथ, कथा पत्रकारिता उल्लेखनीय घटनाओं और सार्वजनिक मुद्दों पर अपनी व्यक्तिगत दृष्टिकोण देने के लिए उत्सुक लेखकों द्वारा इस्तेमाल के लिए एक लोकप्रिय रूप बन गया है।
सैलूनऔर स्लेटकथा पत्रकारिता के लिए सबसे लोकप्रिय मंचों में से दो हैं।इस शिल्प के लिए समर्पित अन्य साइटों में शामिल रचनात्मक nonfictionऔर अटलांटिक अनबाउंड , और नागरिक पत्रकारिता की बढ़ती लोकप्रियता के साथ आलों की एक किस्म को पूरा करने के लिए और अधिक दृश्य पर पता लगाने के लिए संभावित वहाँ मौजूद है।
छह अरब, 2003 में स्थापना की, 360 डिग्री से एक मुद्दे से निपटने का प्रयास किया कि कथा पत्रकारिता की एक ऑनलाइन पत्रिका थी। (जैसे "विदेशी युद्धों के दिग्गजों""युद्धक्षेत्र राज्यों"या के रूप में एक विषय के आधार पर थीमाधारित) प्रत्येक मुद्दे को कहानियों के पाठ, फिल्म / वीडियो, फोटोग्राफी, ध्वनि, चित्रण, और इंटरेक्टिव मीडिया में कहा था कि विशेष रुप से।

कथा में पत्रकारिता के साथ मुद्दों

इतनी तेजी से यह चारों ओर अपने सिर को स्पिन कर दूँगा ऊपर कुछ भी नहीं बनाने या तुम यहाँ और सनग्लास हट पर काम से बाहर हो जाएगा एक कथा काफी में गिर गया है कि एक पत्रकारिता रूप है: "एक कथा प्रमुख शासन से विदा नहीं करता है। पैट्रिक बीच, ऑस्टिन अमेरिकी स्टेट्समैन - हमारे शिल्प के लगातार, स्वयं flagellating साख संकट "के मद्देनजर विराग
कथा पत्रकारिता का इतना अपने या अपने अनुभवों के पुनर्निर्माण एक लेखक के आधार पर किया जाता है के बाद से यह कहानी के भीतर तथ्यों की पुष्टि करने के लिए अक्सर कठिन है, क्योंकि समाचार उद्योग में कई पेशेवरों को इस तकनीक का उपयोग करने के लिए खुद को सावधान पाते हैं।एक के बाद में Jayson ब्लेयरयुग, ईमानदार रिपोर्टिंग और लेखन की नैतिकता के साथ संबंध उन अधिक भावनात्मक रूप से निवेश किया पाठक बनाने के लिए तथ्यों में हेर-फेर किया जा सकता है कि पत्रकारिता कहानी कहने की सतर्क हैं।
इसके अलावा, कथा पत्रकारिता क्योंकि अभी तक समाचार रिपोर्टिंग की प्रकृति के newsroom में एक निश्चित घर नहीं मिला है।लंबे समय से फार्म लेखन सबसे पत्रकारों के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं कि कुछ है, और अविश्वसनीय हार्ड खबर हरा संवाददाताओं जरूरी महान सुनने नहीं कर रहे हैं।
कथा पत्रकारिता हर सेटिंग में अभ्यास नहीं किया जा सकता।

संदर्भ और बाहरी लिंक

यह भी देखें

भारत के विश्व धरोहर स्थल

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प्रस्तुति-- मेहर स्वरूप, कृति शरण, सृष्टि शरण, अम्मी शरण के साथ दृष्टि शरण  

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
यूनेस्कोद्वारा विश्व विरासतघोषित किए गए भारतीयसांस्‍कृतिक और प्राकृतिक स्‍थलों की सूची[1]-

धरोहरों का संक्षिप्त वर्णन

Ajanta (63).jpgअजन्ता की गुफाएँ
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1983.
स्थान: महाराष्ट्र

Agra Fort Agra Inida (2).JPGआगरे का किला
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1983.
स्थान: उत्तर प्रदेश

Taj Mahal in March 2004.jpgताज महल
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1983.
स्थान: उत्तर प्रदेश

Ellora cave16 003.jpgएलोरा की गुफाएँ
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1983.
स्थान: महाराष्ट्र

Konarak Sun Temple Sculptures By Piyal Kundu (3).jpgकोणार्क का सूर्य मंदिर
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1984.
स्थान: ओडिशा

Mamallapuram Five Rathas.jpgपंचरथ, महाबलिपुरम
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1984.
स्थान: तमिलनाडु

3433- Keoladeo Nature Reserve.jpgकेवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1985.
स्थान: राजस्थान

Assam 028 yfb edit.jpgकाजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1985.
स्थान: असम

Transparent flow.jpgमानस राष्ट्रीय उद्यान
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1985, 1992.
स्थान: असम

Bom jesus.jpgगोवा के चर्च तथा कान्वेन्ट
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1986.
स्थान: गोवा

Hampi 0018.jpgहम्पी
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1986.
स्थान: कर्नाटक

Anup Talao-1.jpgफतेहपुर सीकरी
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1986.
स्थान: उत्तर प्रदेश

Khajuraho 140.jpgखजुराहो मंदिर
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1986.
स्थान: मध्य प्रदेश

Sundarbans 09.jpgसुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1987.
स्थान: पश्चिम बंगाल

Elephanta caves3.jpgएलिफेंटा की गुफ़ाएँ
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1987.
स्थान: महाराष्ट्र

Sangameshvara temple at Pattadakal.jpgपट्टाडक्कल
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1987.
स्थान: कर्नाटक

Gangaikonda Cholapuram.jpgचोल मंदिर
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1987, 2004.
स्थान: तमिलनाडु

Valley Of Flowers.JPGनंदादेवी राष्ट्रीय अभ्यारण्यएवं फूलों की घाटी (2005)
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1988, फूलों की घाटी 2005में।
स्थान: उत्तराखण्ड

Sanchi Great Stupa Torana.jpgसाँचीके बौद्ध स्तूप
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1989.
स्थान: मध्य प्रदेश

Humayun's Tomb.jpgहुमायूँ का मकबरा, दिल्ली
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1993.
स्थान: दिल्ली

Qutab Minar mausoleum.jpgकुतुब मीनारएवं अन्य स्मारक
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1993.
स्थान: दिल्ली

KSR Train at Shimla Station 05-02-13 02a.jpegभारतीय पर्वतीय रेल, दार्जिलिंग
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 1999.

Mahabodhitemple.jpgबोधगयाका महाबोधि मंदिर
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2002.
स्थान: बिहार

Bhimbetka rock paintng1.jpgभीमबेटका पाषाण आश्रय
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2003.
स्थान: मध्य प्रदेश

Jama masjid in Champaner.JPGचंपानेर पावागढ का पुरातत्व पार्क
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2004.
स्थान: गुजरात

Victoria Terminus 1.jpgछत्रपति शिवाजी टर्मिनस
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2004.
स्थान: महाराष्ट्र

Red Fort, Delhi by alexfurr.jpgदिल्लीका लाल किला
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2007.
स्थान: दिल्ली

Jantar Mantar, Jaipur India.jpgजंतर मन्तर (जयपुर)
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2010.
स्थान: राजस्थान

Shola Grasslands and forests in the Kudremukh National Park, Western Ghats, Karnataka.jpgपश्‍चिमी घाट
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2012.
स्थान: महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडुऔर केरल

Aerial view of Kumbhalgarh.jpgकुंभलगढ़ किला
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2013.
स्थान: राजस्थान

On way to Sar Pass- colours of the morning I IMG 7133.jpgमहान हिमालयी राष्त्रीय उद्यान, कुल्लू
प्राकृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2014.
स्थान: हिमाचल प्रदेश

Ranikivav14.jpgरानी की वाव, पाटण
सांस्कृतिक धरोहर घोषित होने का वर्ष : 2014.
स्थान: गुजरात

सन्दर्भ



  • "‘यूनेस्‍को’ की सूची में स्‍मारकों को शामिल किया जाना". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 14 फ़रवरी 2014. अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी 2014.

  • http://pib.nic.in/newsite/hindirelease.aspx?relid=28416


  • दिक्चालन सूची

    राहुल सोनिया का साथ कब मिलेगा किसानों को ?

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    खेती करके वह पाप कर रहे हैं क्या?

    हर आधे घंटे में भारत की जीडीपी में क़रीब साढ़े छह अरब रुपये जुड़ जाते हैं और हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर लेता है! ये हैं विकास की दो तसवीरें!
    यानी हर दिन औसतन 46 किसानों की आत्महत्याएँ, यानी हर दिन 46 परिवारों पर मुसीबत का पहाड़!
    किसान को खेती से क्या मिलता है? एक हेक्टेयर में गेहूँ बोने पर फ़सल अगर ठीक हो गयी तो छह महीने की मेहनत के बदले किसान को कुल कमाई होगी चौदह हज़ार की, यानी महीने के सिर्फ़ 23 सौ रुपये!
    इसलिए हैरानी नहीं कि 2001 से 2011 की जनगणना के बीच देश में 77 लाख किसान कम हो गये? खेती न छोड़ते तो क्या करते?

    —क़मर वहीद नक़वीBy: Qamar Waheed Naqvi
    किसान मर रहे हैं. ख़बरें छप रही हैं. आज यहाँ से, कल वहाँ से, परसों कहीं और से. ख़बरें लगातार आ रही हैं. आती जा रही हैं. किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं. इसमें क्या नयी बात है? किसान तो बीस साल से आत्महत्याएँ कर रहे हैं. इन बीस बरसों में क़रीब तीन लाख किसान आत्महत्याएँ कर चुके हैं. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक के नाम सुसाइड नोट छोड़ कर मर चुके. कुछ नहीं हुआ. किसी ने नहीं सुना.

    बीस सालों से आत्महत्याएँ

    और किसान क्या पिछले बीस सालों से ही मर रहे हैं! मुंशी प्रेमचन्द के ज़माने में भी वह ऐसे ही मरा करते थे. ‘मदर इंडिया’ के ज़माने में भी किसान ऐसे ही मरा करते थे. अन्दर पिक्चर हाल में नरगिस के बलिदान पर ख़ूब तालियाँ बजतीं, साहूकार कन्हैयालाल को भर-भर गालियाँ farmer-suicideपड़तीं, बाहर असली खेतों वाले गाँवों में साहूकार किसानों का टेंटुआ दबाते रहते और किसान मरते रहते! ईस्टमैन कलर से चल कर अब डिजिटल प्रिंट का ज़माना आ गया, समय कितना बदल गया न! बस देश के लैंडस्केप में एक चीज़ नहीं बदली, क़र्ज़ के बोझ तले किसानों का मरना! वह वैसे ही जारी है. बल्कि आँकड़े कहते हैं कि 1995 के बाद से किसानों की आत्महत्याएँ लगातार बढ़ी हैं. 1991 में देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई थी. विश्व व्यापार संगठन के खुले बाज़ार ने देश का नक्शा बदल दिया, जीडीपी बढ़ती गयी, और किसानों की आत्महत्याओं की तादाद भी. अब हर आधे घंटे में भारत की जीडीपी में क़रीब साढ़े छह अरब रुपये जुड़ जाते हैं और एक किसान आत्महत्या कर लेता है! ये हैं विकास की दो तसवीरें!

    कम हुए 77 लाख किसान!

    और जब जीडीपी इतनी भारी-भरकम हो जाये कि आप दुनिया में सातवें नम्बर पर पहुँच जायें तो सब तरफ़ विकास ही विकास दिखता है. लेकिन इस विकास के बीच में किसान क्यों लगातार आत्महत्याएँ कर रहे हैं? विकास की इस बहार में 2001 से 2011 की जनगणना के बीच देश में 77 लाख किसान क्यों कम हो गये? उन्होंने खेती क्यों छोड़ दी? वह कहाँ गये, अब क्या कर रहे हैं? यह सवाल गम्भीर नहीं हैं क्या? देश के विकास कार्यक्रमों की प्राथमिकताओं में यह मुद्दा है क्यों नहीं?
    बात सिर्फ़ अभी की नहीं है कि दैवी आपदा आ गयी, अचानक बेमौसम बरसात ने फ़सलें तबाह कर दी, इसलिए किसान आत्महत्याएँ करने लगे. अगर ऐसा होता तो कभी-कभार ही होता. लेकिन यहाँ तो किसान हमेशा ही आत्महत्याएँ करते रहते हैं. सूखा पड़ जाये तो भी, बरसात हो जाये तो भी, बाढ़ आ जाये तो भी, फ़सल ख़राब हो जाये तो भी, फ़सल ज़्यादा हो जाये तो भी! फ़सल चौपट हो गयी, तो पैसा डूब गया, क़र्ज़ चुका नहीं पाये, इसलिए आत्महत्या पर मजबूर होना पड़ा. और फ़सल अगर ज़रूरत से ज़्यादा अच्छी हो गयी, तो कहीं रखने का ठिकाना नहीं, बाज़ार में न दाम मिला, न ख़रीदार, फ़सल फेंकनी पड़ गयी, न लागत निकली, न क़र्ज़ चुका, तो आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता बचा!

    गेहूँ बोओ, महज़ 23 सौ कमाओ!

    आँकड़े चौंकाने वाले हैं. हर दिन औसतन 46 किसानों की आत्महत्याएँ, हर दिन क़रीब 46 परिवारों पर मुसीबत का पहाड़, पिछला क़र्ज़ कैसे चुकेगा, पेट कैसे पलेगा, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी, खेती कौन सम्भालेगा, लड़कियों की शादी कैसे होगी? इस भयावह मानवीय त्रासदी को कैसे रोका जाये, इस पर देश में कभी कोई गम्भीर सोच-विचार नहीं हुआ. उलटे बेशर्मी की हद यह है कि छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने इन आँकड़ों को छुपाना शुरू कर दिया और ‘शून्य आत्महत्याएँ’ घोषित करना शुरू कर दिया. कहा जाने लगा कि आत्महत्याएँ खेती की वजह से नहीं, बल्कि नशे की लत, पारिवारिक झगड़े, बीमारी की परेशानी, लड़की की शादी या ऐसे ही किसी कारण से लिये गये क़र्ज़ को न चुका पाने के कारण हो रही हैं!
    जबकि सच्चाई यह है कि खेती लगातार किसान के लिए घाटे का सौदा होती जा रही है. उसकी लागत लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि बाज़ार में फ़सल की क़ीमत उस हिसाब से बढ़ कर नहीं मिलती, ऐसे में सामान्य हालत में भी किसान के हाथ कुछ नहीं लग पाता. ख़ुद सरकारी आँकड़े बताते हैं कि गेहूँ की फ़सल पर औसतन एक हेक्टेयर में क़रीब 14 हज़ार, सरसों की फ़सल पर क़रीब 15 हज़ार, चने की फ़सल पर महज़ साढ़े सात हज़ार रुपये और धान पर सिर्फ़ साढ़े चार हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर ही किसान को बच पाते हैं. अब एक छोटा-सा हिसाब लगाइए. गेहूँ की फ़सल में छह महीने लगते हैं. एक हेक्टेयर में किसान ने अगर गेहूँ बोया, और सब ठीकठाक रहा तो उसकी मासिक आमदनी क़रीब 23 सौ रुपये हुई! इसमें तो पेट भरना ही मुहाल है. और अगर किसी वजह से कोई ऊँच-नीच हुई, फ़सल ख़राब हो गयी, फ़सल इतनी ज़्यादा हुई कि बाज़ार में कोई ख़रीदने को तैयार न हो, तो किसान पिछली फ़सल का क़र्ज़ कहाँ से चुकाये, अगली फ़सल के लिए पैसे कहाँ से लाये, परिवार को क्या खिलाये, बच्चों को कैसे पढ़ाये? वह आत्महत्या नहीं करेगा तो और क्या करेगा?

    भीख से भी गया-गुज़रा मुआवज़ा!

    और सरकारों का रवैया क्या रहा? सरकारें चाहे राज्यों की हों या केन्द्र की, किसी भी पार्टी की रही हों, इनमें से किसी ने खेती के इस गणित को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया ताकि एक किसान ठीक से परिवार चलाने लायक़ पैसा कमा सके. होता यह है कि जब कोई आपदा आती है, तो मुआवज़े बँट जाते हैं. वह भी अभी तक तब मिलते थे, जब आधी से ज़्यादा फ़सल का नुक़सान हुआ हो. भला हो अधर में लटके भूमि अधिग्रहण क़ानून का कि किसानों को मरहम लगाने के लिए मोदी सरकार ने यह सीमा घटा कर 33 फ़ीसदी कर दी. लेकिन ऊपर दिये ‘खेती के मुनाफ़े’ की गणित से आप भी अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि छोटी जोत के किसानों के लिए तो यह तैंतीस प्रतिशत की सीमा भी कितनी बड़ी नाइन्साफ़ी है. वह तो रत्ती भर भी घाटा सह पाने की हालत में नहीं हैं.
    और मुआवज़ा क्या मिलता है? आधा-अधूरा. कभी 75 रुपये, तो कभी दो-तीन रुपये भी! याद है न कि दो साल पहले हरियाणा सरकार ने किसानों को दो-दो, तीन-तीन रुपये के चेक बाँटे थे! किसान को कितना नुक़सान हुआ, इसके आकलन की कोई व्यवस्था ही नहीं है. उसके ब्लाक में जो औसत नुक़सान हुआ, उसके आधार पर सरकारी अफ़सर अपने दफ़्तर में बैठे-बैठे मुआवज़ा तय कर देते हैं. इस बार हरियाणा सरकार ने न्यूनतम मुआवज़ा पाँच सौ रुपये और उत्तर प्रदेश सरकार ने पन्द्रह सौ रुपये तय किया है. आप ख़ुद समझ सकते हैं कि इतने मामूली मुआवज़े में होगा क्या?

    उद्योग के लिए निहाल, किसान के लिए मुहाल!

    यह मुआवज़ा मुँह नहीं चिढ़ाता क्या? इस मुआवज़े से न नुक़सान की भरपाई होगी, न क़र्ज़ पटेगा, न घर चलाने भर का इन्तज़ाम हो पायेगा, फिर किसान अगली फ़सल कैसे बोयेगा? खेती से मुनाफ़ा मामूली, नुक़सान होने पर भरपाई की कोई व्यवस्था नहीं, कहने को फ़सल बीमा योजनाएँ हैं, लेकिन मुश्किल से दस फ़ीसदी किसान उसकी कवरेज में हैं, वह भी ज़बरन उन्हें लेना पड़ता है, जिन्होंने किसी सरकारी एजेन्सी या बैंक से क़र्ज लिया है, ताकि बैंक का पैसा न डूबे! वरना इतनी कम कमाई में बीमा प्रीमियम का बोझ कौन उठाये?
    पिछले बीस सालों में सरकारों ने उद्योगों के लिए तो बड़ी चिन्ता की. लेकिन मर रहे किसानों को मुआवज़े की भीख बाँट देने के सिवा कुछ नहीं किया गया. देश में आधे से ज़्यादा रोज़गार कृषि क्षेत्र उपलब्ध कराता है? फिर भी कृषि क्षेत्र की इतनी बुरी हालत क्यों? उद्योगों के पहाड़ जैसे मुनाफ़े के बदले किसान को राई जैसा मुनाफ़ा क्यों मिलता है? उसको न्यूनतम सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं? खेती करके वह पाप कर रहे हैं क्या?
    (लोकमत समाचार, 18 अप्रैल 2015) http://raagdesh.com
     
     

    'भूकंप' - 43 video

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    पीएम मोदी ने कहा, भूकंप प्रभावितों तक पहुंचने की कोशिश जारी,  बुलाई उच्चस्तरीय बैठकप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि वह भारत और नेपाल में भूकंप प्रभावित लोगों तक पहुंचने की दिशा में काम कर रहे हैं।
    नेपाल में 7.5 तीव्रता के भूकंप से भारी नुकसान, समूचा उत्तर भारत हिलादिल्ली और एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई इलाकों में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। यूपी के भी कई इलाकों में यह झटके महसूस किए गए हैं। भूकंप का केंद्र नेपाल में था, जहां रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 7.4 मापी गई।
    उत्तराखंड के चमोली में भूकंप के तेज झटकेइन झटकों से चमोली और गोपेश्वर सहित जिले के विभिन्न स्थानों के निवासी दहशत में आ गए और वे घबराहट में घरों से बाहर निकल आए।
    पाकिस्तान में 5.8 तीव्रता का भूकंपपाकिस्तान में राजधानी इस्लामाबाद सहित उत्तरी क्षेत्र में गुरुवार आधी के रात के बाद भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। इसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.8 थी।
    बिहार में 5.2 तीव्रता वाले भूकंप के झटके महसूस किए गएमौसम विभाग के निदेशक एके सेन ने बताया कि भूकंप का केंद्र बिंदु पडोसी देश नेपाल में था, जिससे सटे बिहार के इलाकों में भी इसे महसूस किया गया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पटना, दरभंगा, समस्तीपुर, किशनगंज, अररिया, मुंगेर, सुपौल और मधुबनी करीब दस सेकेंड तक भूकम्प के झटके महसूस किए गए।
    चीन की कोयला खदान में आग लगने से 26 की मौत, 50 घायलचीन की एक कोयला खदान में बुधवार को आग लगने से कम से कम 26 मजदूर मारे गए और 50 अन्य घायल हो गए। उत्तरपूर्वी लिआओनिंग प्रांत में स्थित इस खान में भूकंप का हल्का झटका आने के तुरंत बाद आग लगी थी।
    जापान में भूकंप से कुछ मकान ध्वस्त, कम से कम 30 लोग घायलजापान के मध्य भाग में पहाड़ी इलाके में शक्तिशाली भूकंप आया जिससे आधा दर्जन से अधिक मकान नष्ट हो गए, कई क्षतिग्रस्त हो गए और कम से कम 30 लोग घायल हो गए।
    इंडोनेशिया में भूकंप के बाद सुनामी की लहरेंपूर्वी इंडोनेशिया में 7.3 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप के बाद शनिवार को दो स्थानों पर हल्की सुनामी की लहरें देखी गईं।
    इंडोनेशिया में 7.3 तीव्रता का भूकंप, सुनामी की चेतावनीपूर्वी इंडोनेशिया में शनिवार को मलूकू द्वीप पर 7.3 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया, जिसके चलते अधिकरियों ने सुनामी की चेतावनी जारी कर दी।
    चीन के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में 6.6 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया, जिससे कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई और 324 घायल हो गए।
    इंडोनेशिया में भूकंप के तेज झटके, सुनामी की आशंका नहींइंडोनेशिया के पूर्वी हिस्से में बुधवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। अधिकारियों ने कहा कि हालांकि, इससे सुनामी आने की आशंका नहीं है। देश की मौसम विज्ञान और भूभौतिकी एजेंसी के अनुसार, रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 6.2 आंकी गई।
    हिमाचल प्रदेश में गुरुवार अपराह्न् भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर पांच दर्ज की गई। एक अधिकारी ने बताया कि राजधानी दिल्ली में भी हल्के झटके महसूस हुए। भूकंप कुछ सेकेंड तक रहा और कहीं से किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है।
    हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भूकंप के हल्के झटकेहिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, मंडी, शिमला, और चंबा जिलों में गुरुवार दोपहर भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.2 मापी गई।
    चीन में रविवार को आए भूकंप में मृतकों की संख्या बढ़कर 589 हो गई है। यह जानकारी अधिकारियों ने बुधवार को दी।
    चीन में भूकंप में मरने वालों की संख्या 400 तक पहुंचीचीन ने भूकंप प्रभावित अपने दक्षिण-पश्चिमी प्रांत युन्नान में आज हजारों सैनिक, पुलिस एवं दमकलकर्मी और आठ विमान भेजे। प्रांत में आए 6.5 तीव्रता के तेज भूकंप से भारी तबाही हुई है और करीब 400 लोग मारे गए हैं।
    चीन में भूकंप से मरने वालों की संख्या 381 तक पहुंचीचीन के दक्षिण पश्चिमी प्रांत युन्नान को हिला देने वाले 6.5 तीव्रता के भूकंप से मरने वालों की संख्या अब 380 के आंकड़े को पार कर चुकी है।
    दक्षिण-पश्चिम चीन में भूकंप से 367 की मौत, 2000 लोग घायलदक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत में आज 6.5 तीव्रता का भूकंप आने से 367 से अधिक लोग मारे गए और करीब दो हजार लोग घायल हो गए। भूकंप से भारी तबाही हुई है और इलाके में चारों ओर तबाही का भयावह मंजर है।
    जापान में जबर्दस्त भूकंप के बाद हल्की सुनामीजापान के उत्तर पूर्वी प्रशांत तट पर सुबह 6.8 तीव्रता के जबर्दस्त भूकंप के बाद मियागी क्षेत्र से हल्की सुनामी टकराई। मियागी क्षेत्र और पास के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र तथा इवेट क्षेत्रों के लिए सुनामी से संबंधित परामर्श जारी किया गया था।
    दिल्ली के आसपास भी झटके महसूस किए गए हैं।एनसीआर में भी लोगों ने झटके महसूस किए। जानकारी के अनुसार बंगाल की खाड़ी में भूकंप का केंद्र रहा। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5.6 मापा गया। जानकारों का कहना है कि किसी प्रकार की सुनामी की कोई आशंका नहीं है।
    इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के उत्तरी छोर पर रविवार को रिक्टर पैमाने पर 6.4 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप के झटके महसूस किए गए।
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    भीमसेन टॉवर धरहरा नेपाल

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    धरहरा
    विसं १९९० भन्दा पहिलाको धरहरा
    विसं १९९० भन्दा पहिलाको धरहरा
    स्थान:काठमाडौं, नेपाल
    निर्देशांक:27.698°N 85.306°E
    उचाई:६१.८८ मिटर
    निर्माण:विसं १८३२
    धरहरा is located in नेपाल
    नेपालको नक्शामा धरहरा
    धरहरानेपालको राजधानी काठमाडौंको सुन्धारामा अवस्थित ९ तल्ले स्तम्भ आकारको भवन हो। विसं १९९० भन्दा पहिला यसमा ११ तल्ला थियो तर १९९० माघ २ मा आएको महाभुकम्पको कारण भत्कियो र अहिले ९ तल्ला छ। धरहराको निर्माण विसं १८८२ सालमा तत्कालिन प्रधानमन्त्री भीमसेन थापाले निर्माण गर्न लगाएका थिए। उनले यसको निर्माण महारानी त्रिपुरासुन्दरीदेवीको सम्झना स्वरूप गर्न लगाएका थिए। भीमसेन थापाप्रधानमन्त्री भएको बेलामा निर्माण गरिएकोले धरहरालाई भीमसेन स्तम्भपनि भनिन्छ। सामाजिक तथा प्रशासनिक सूचना र जानकारी दिन तथा भेला गराउन पहिले धरहराको टुप्पोबाट बिगुल बजाउने गरिन्थ्यो। बिगुल बजेको सुनेपछि जङ्गी निजामती कर्मचारीहरू कोतमा वा टुँडिखेलमा जम्मा हुनु अनिवार्य थियो।
    धरहराको एक दृश्य

    इतिहास

    धरहराको निर्माण विसं १८८२ सालमा तत्कालिन प्रधानमन्त्री भीमसेन थापाले महारानी त्रिपुरासुन्दरीदेवीको सम्झना स्वरूप निर्माण गर्न लगाएका थिए । त्यस समयमा यसको उचाई अहिले भन्दा २ तल्ला बढी अर्थात ११ तल्ला थियो ।
    विसं १९९० सालको महाभूकम्पले धरहरा पनि भत्कियो। दुई वर्षपछि तत्कालीन प्रधानमन्त्री जुद्ध शमसेरले साबिक बमोजिम नौ तल्ला नै कायम गरी पुनः निर्माण गरेका थिए। हालको धरहराको सातौं तल्लामा बार्दलीछ। धरहराको उचाइ ६१.८८ मिटर (२०३ फिट) छ। धरहरा भित्र २१३ सिँढी र बाहिर २५ सिँढी छन्। धरहराको १८८ सिँढी उक्लिएपछि बार्दली आउँछ। बार्दलीबाट काठमाडौं उपत्यकाको अधिकांश भाग सजिलैसँग देखिन्छ। धरहराको सबैभन्दा माथिल्लो तलामा शिवलिङ्ग छ। टुप्पोमा गजुर रहेको ऐतिहासिक स्मारक धरहरा धार्मिक तथा पर्यटकीय दृष्टिले समेत महत्वपूर्ण छ। धरहराको निर्माण मुगलशैलीमा गरिएको छ भने वरिपरिको पर्खाल पनि सोहि शैलीमा निर्माण गरिएको छ। धरहराको निर्माण ईटा र बज्र (सुर्की, चून, मास र चाकुको मिश्रण) बाट भएको हो। [१]

    सन्दर्भ सामग्रीहरू


    1. दुइटा थिए धरहराहिमाल खबरपत्रिका

    बाह्य कडीहरू




    पत्रकारिता में कैरियर / भविष्य

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    लेखक--शैलेन्द्र कुमार 
    प्रस्तुति--नुपूर सिन्हा सुरभि 

    भारत में विकास तथा गवर्नेंस का क्षेत्र हाल ही में एक नया उदाहरण बना है, जिसका मुख्य आधार नई नीतिगत व्यवस्था, परिवर्तित व्यवसाय परिवेश और सार्वभौमिकरण है। इन समसामयिक स्थितियों के कारण पत्रकारिता की प्रासंगिकता व्यापक रूप से बढ़ गई है। पत्रकारिता के बढ़ रहे महत्व को देखते हुए, कई मीडिया संस्थाएं शैक्षिक संस्थाएं और इलेक्ट्रॉनिक चैनल स्थापित किए गए हैं। मीडिया समाज तथा शासन का वास्तविक दर्पण बन गया है और जन-साधारण की समस्याओं उनकी मांगो को उठाने तथा उन्हें न्याय दिलाने का एक प्रभावी साधन (प्लेट फार्म) बन गया है।

    बदलते परिवेश में प्रायः प्रत्येक करियर की संभावनाओं में आमूल परिवर्तन कर दिया है। पत्रकारिता में करियर एक प्रतिष्ठित व्यवसाय है और कुछ मामलों में एक उच्च वेतन देने वाला व्यवसाय है, जो युवाओं की बडी़ संख्या को आकर्षित कर रहा है। किसी भी राष्ट्र के विकास में पत्रकारिता एक अहम भूमिका निभाती है। पत्रकारिता ही वह साधन है, जिसके माध्यम से हमें समाज की दैनिक घटनाओं के बारे में सूचना प्राप्त होती है। वास्तव में पत्रकारिता का उद्देश्य जनता को सूचना देना, समझाना, शिक्षा देना और उन्हें प्रबुद्ध करना है।

    पत्रकारों के लिए अवसर अनंत है। किंतु साथ ही साथ किसी भी पत्रकार का कार्य अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि नया विश्व, इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है कि ‘‘कलम (और कैमरा) तलवार से कहीं अधिक प्रभावशाली है।’’ अब घटनाओं की मात्र साधारण रिपोर्ट देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि रिपोर्टिंग में अधिक विशेषज्ञता और व्यावसायिकता होना आवश्यक है। यही कारण है कि पत्रकार समाचारपत्रों एवं आवधिक पत्र-पत्रिकाओं के लिए राजनीति शास्त्र, वित्त एवं अर्थशास्त्र, जाचं, संस्कृति एवं खेल जैसे विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं।

    एक करियर के रूप में तीन ऐसे मुख्य क्षेत्र हैं जिनमें पत्रकारिता के इच्छुक व्यक्ति रोजगार ढूंढ़ सकते हैं:
    • अनुसंधान एवं अध्यापन
    • प्रिंट पत्रकारिता
    • इलेक्ट्रॉनिक (श्रव्य/दृश्य) पत्रकारिता

    अनुसंधान एवं अध्यापन:यद्यपि उच्च शिक्षा, पत्रकारों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, किंतु अनुसंधान भी पत्रकारिता में एक सामान्य करियर विकल्प है। पत्रकारिता में पी.एच.डी. प्राप्त व्यक्ति कॉलेजों विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थाओं में रोजगार तलाशते हैं। कई अध्यापन पदों पर विशेष रूप से विश्वविद्यालयों और संस्थानों में अनुसंधान कार्यकलाप अपेक्षित होते हैं। शैक्षिक छापाखानों का यह आधार है ‘‘प्रकाशित करो या नष्ट हो जाओ”। अधिकांश छापाखानों की तरह इसका भी एक सत्य और विरूपण है। यद्यपि यह निश्चित तौर पर सत्य है कि पुस्तकों अथवा लेखों को प्रकाशित करना कार्य - सुरक्षा तथा पदोन्नति का मुख्य मार्ग है और अधिकांश विश्वविद्यालयों में वेतन वृद्धि होती है, यह अपेक्षा ऐसी स्थापनाओं में अधिक लागू होती है जहां मूल छात्रवृत्ति को महत्व तथा समर्थन दिया जाता है। तथापि कई संस्थाएं उन्नति के एक प्रारंभिक मार्ग के रूप में अनुसंधान अथवा अध्यापन पर अधिक बल देती है। कुछ संस्थाएं एक पर दूसरे को महत्व देती हैं तो कई संस्थाओं का प्रयास अनुसंधान तथा अध्यापन के बीच अधिकतम संतुलन बनाए रखना रहा है।

    इसके परिणामस्वरूप यद्यपि कुछ व्यवसायों में पत्रकारिता में कोई डिग्री विशेष रूप से अपेक्षित होती है, तथापि, ऐसा शैक्षिक प्रशिक्षण विविध प्रकार के व्यवसायों में जाने की एक महत्वपूर्ण योग्यता हो सकती है। पत्रकारिता में कला-स्नातक या मास्टर ऑफ आर्टस अथवा अनुसंधान (पीएच.डी.) डिग्रियों के लिए, गैर-लाभ भोगी क्षेत्र में, कोई विश्वविद्यालय, कोई संस्थान कोई व्यावसायिक या मीडिया फर्म रोजगार का क्षेत्र हो सकती है। कुछ ऐसे डिग्रीधारी स्व-रोजगार वाले होते हैं और अपनी निजी अनुसंधान अथवा परामर्श-फर्मों के प्रमुख होते हैं। तथापि, इस तथ्य पर बल दिया जाना चाहिए कि उनकी पद्धतियों तथा परिप्रेक्ष्यों को उपयोगिता देते हुए पत्रकारों ने उनके विकास में सहायता की है और वे ऐसे कई क्षेत्रों तथा करियर के पदों पर फैले हो जहां अनुसंधान का न केवल उपयोग किया जाता हो, बल्कि अनुसंधान कार्यों से भी कहीं आगे जाते हों।

    प्रिंट पत्रकारिता:प्रिंट पत्रकारिता समाचार पत्रों पत्रिकाओं तथा दैनिक पत्रों के लिए समाचारों को एकत्र करने एवं उनके सम्पादन से संबद्ध हैं। समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं, वे बड़ी हों या छोटी, हमेशा विश्वभर में समाचारों तथा सूचना का मुख्य स्रोत रही हैं और लाखों व्यक्ति उन्हें प्रतिदिन पढ़ते हैं। कई वर्षों से प्रिंट पत्रकारिता बडे़ परिवर्तन की साक्षी रही है। आज समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं विविध विशेषज्ञतापूर्ण वर्गों जैसे राजनीतिक घटनाओं व्यवसाय समाचारों, सिनेमा, खेल, स्वास्थ्य तथा कई अन्य विषयों पर समाचार प्रकाशित करते हैं, जिनके लिए व्यावसायिक रूप से योग्य पत्रकारों की मांग होती है। प्रिंट पत्रकारिता में कोई भी व्यक्ति सम्पादक, संवाददाता, रिपोर्टर, आदि के रूप में कार्य कर सकता है।

    इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता:इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का विशेष रूप से प्रसारण के माध्यम से जन-समुदाय पर पर्याप्त प्रभाव है। दूरदर्शन, रेडियो, श्रव्य, दृश्य (ऑडियो, वीडियो) और वेब जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने दूर -दराज के स्थानों में समाचार, मनोरंजन एवं सूचनाएं पहुंचाने का कार्य किया है। वेब में, कुशल व्यक्तियों को वेब समाचार पत्रों (जो केवल वेब की पूर्ति करते हैं और इनमें प्रिंट संस्करण नहीं होते और लोक प्रिय समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं को जिनके अपने वेब संस्करण होते हैं, साइट रखनी होती है। इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता में कोई भी व्यक्ति रिपोर्टर, लेखक, सम्पादक, अनुसंधानकर्ता, संवाददाता और एंकर बन सकता है।


    व्यक्तिगत गुण/कौशल:


    पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सफल करियर के रूप में किसी भी व्यक्ति को जिज्ञासु दृढ़ इच्छा शक्ति वाला, सूचना को वास्तविक, संक्षिप्त तथा प्रभावी रूप में प्रस्तुत करने की अभिरुचि रखने वाला, किसी के विचारों को सुव्यवस्थित करने तथा उन्हें भाषा तथा लिखित-दोनों रूपों में स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने में कुशल होना चाहिए। दबाव में कार्य करने के दौरान भी नम्र एवं शांत चित्त बने रहना एक अतिरिक्त योग्यता होती है। जीवन के सभी क्षेत्रों से व्यक्तियों का साक्षात्कार लेते समय पत्रकार को व्यावहारिक, आत्मविश्वासपूर्ण तथा सुनियोजित रहना चाहिए। उसे प्रासंगिक तथ्यों को अप्रासंगिक तथ्यों से अलग करने में सक्षम होना चाहिए। अनुसंधान तथा सूचना की व्याख्या करने के लिए विश्लेषण कुशलता होनी चाहिए।


    शिक्षा:


    यद्यपि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एवं अनुसंधान चलाने वाले कई विश्वविद्यालय तथा संस्थान हैं, उनमें कुछ निम्नलिखित हैं:-

    • लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
    • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
    • जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
    • भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली
    • मुद्रा संचार संस्थान
    • सिम्बियोसिस पत्रकारिता एवं संचार संस्थान
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
    (सूचना उदाहरण मात्र है)


    तैनाती:


    पत्रकारिता में कोई पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, कोई भी व्यक्ति किसी मीडिया अनुसंधान संस्थान या किसी सरकारी संगठन में एक अनुसंधान वैज्ञानिक बन सकता है। अनुसंधान कार्य के दौरान भी कोई व्यक्ति अन्य अनुदानों तथा सुविधाओं के अतिरिक्त, मासिक वृत्तिका प्राप्त कर सकता है। कोई भी व्यक्ति किसी समाचारपत्र में या इलेक्ट्रॉनिक चैनल में एक पत्रकार के रूप में कार्यग्रहण कर सकता है और अच्छा वेतन अर्जित कर सकता है।

    (लेखक एक फ्रीलांस पत्रकार हैं। ई-मेल: shailendra_lu@yahoo.co.in, shailendra_lu@gmail.com)

    REPOTER

    SAMAJSEVA

    book on print journalism

    महोदय,
    अखबारी पत्रकारिता पर अनेक किताबें बाजार में हैं। इन्हीं में एक किताब आपके इस छोटे भाई की भी जुड़ गई है। किताब बाकी किताबों से इस मायने में अलग है कि इसमें सिद्धांत पर कम अख़बारों की व्यावहारिक पत्रकारिता पर ज्यादा जोर दिया गया है। आजकल अख़बारों के दफ्तरों में किस प्रकार काम होता है, इसकी जानकारी पुस्तक को पढ़कर आसानी से हासिल की जा सकती है।
    किताब में बौद्धिकता का आतंक नहीं है। बहुत सरल ढंग से संपादन, रिपोर्टिंग और पेज निर्माण को समझाने का प्रयास किया गया है। इसमें पत्रकारिता के इतिहास के बजाय वर्तमान की बात है। फोकस इस पर रखा गया है कि एक युवा को प्रिंट का पत्रकार बनने के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए और अख़बारों में उसे किस प्रकार का काम करना पड़ता है। अनेक अख़बारों में आज पत्रकार ही पेज भी बना रहे हैं इसलिए पुस्तक में संपादन, रिपोर्टिंग के साथ पेज निर्माण पर भी विशेष सामग्री दी गई है। मुझे विश्वास है कि इस किताब को पढ़कर कोई भी युवा किसी अख़बार के दफ्तर में आत्मविश्वास के साथ प्रवेश कर सकता है।

    और इस तरह मात खा गए कुमार विश्वास

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    News Feed

    केजरी के जाल में आखिरकार फंस ही गए कुमार विश्वास


    बडबोले और बात बात में अपन 250 करोड की धनकुबेरी और सबसे मंहगे कॉरपेटी कवि होने का दंभ पालने और प्रदर्शित करने वाले महाकवि कुमार विश्वास अंतत: आप मुखिया के फिराक में आ ही गए। सबसे आगे रखने वाले एक खबरिया न्यूज चैनल के अनुसार जिस तेजी के साथ एक भगोडे की तरह आनन फानन में कुमार विश्वास दिल्ली क्या हिन्दुस्तान से भागे है, उसको देखकर तो दाल में काला नहीं काला में दाल तक काला काला ही दिख प्रतीत और नजर आ रहा है। नवकुबेर कुमार विश्वास जिस तरह अपने आप को आप का चाणक्य की तरह दिखाने की कोशिश कर रहे थे, उससे कई माह पहले ही यह आशंका होने लगी थी कि इनको केजरी कितने दिन तक अपने सिर पर नाचने देंगे। बात बात पर कुमार विश्वास यह बताने का कोई अवसर चूकते नहीं थे कि वे किस तरह मनीष सिसौदिया और केजरी को सलाह देते है कडीआलोचना करते है निंदा करते है या सलाह पर सलाह का डोज देते और पिलाते रहते है। केजरी के सीएम बनने से पहले तो कुमार विश्वास यह कहते और बताते में भी संकोच नहीं किए कि आप में सबसे ज्यादा लोकप्रिय( पॉपुलर) केवल कुमार विश्वास है। खैर
    अमेठी में कुमार विश्वास ने क्या गूल खिलाया है यह तो कुमार विश्वास और श्रीमती विश्वास ही आंखो देखी बयान कर सकती हैं, जो कभी नहीं करेंगी( यह पक्का है) पर महिला को आरोपों के सामने दिवाना कवि जिस पागल की तरह पूरे पागलपन के साथ भागा है, उससे यह साबितहो गया कि वो सामना करने की बजाय भागने में ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। और यदि भागने की शह और सलाह आप के राम बलराम, राजन इकबाल, राम श्याम, कृष्ण सुदामा जैसे युगल बंधुओं ने दिया है या भागने का परामर्स और सुविधा प्रदान किया होगा तो तो तो तो .... यहीं पर कुमार विश्वास मात खा गए और आप के शह पर कानून के प्रति आदर दिखाने की बजाय कानून से ही भागकर यह साबित कर दिया कि दाल में काला है और इसका अंजाम क्या हो सकता है।
    अब अमरीका में जाकर कितने दिन ठहर पाएंगे भला कुमार विश्वास? अमरीका कोई ससुराल तो नहीं है कि जाकर पसर गए। फिर एक औरत के आरोपों का असर क्या होता है यह तो आसाराम बापू एंड संस के मामले में पूरा हिन्दुस्तान देख चुका है । कुमार विश्वास के डर की वजह भी यही लगता है. पर सच क्या है यह तो कुमार विश्वास ही जानते हैं मगर धरती की बेचैनी को बादल जान जाता है, मगर कुमार विश्वास की बेचैनी को फिलहाल आप के शिखर नेता भी नहीं जानते,क्योंकि इनकी सलाह पर यदि दिल्ली पुलिस और महिला आयोग को धकिया कर जिस तेजी से भागे है, तो अब उतने ही आराम के साथ इंडिया रिटर्न होना नामुमकिन हो गया है.। यानी आप शिखर पुरूषों ने इस कदर एक ही वार में कॉरपेटी महाकवि को कारपेट लायक भी नहीं रहने दिया। धन्य है पोलटिक्स और धन्य है कुमार विश्वास जो पहले ही खेप में पागल से हो गए।


    अनामी शरण बबल के साथ रिद्धि सिन्हा नुपूर

    मोदी मैजिक खत्म, अब होगा हकीकत से सामना

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    मोदी मैजिक खत्म, अब होगा हकीकत से सामना 

    टी. के. अरुण
    प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर
    किसी नई सरकार के कामकाज का जायजा लेने के लिए एक साल का वक्त काफी कम होता है। वोटर्स आमतौर पर वर्तमान में जीते हैं और उन्हें चुनाव से ऐन पहले के कुछ महीनों में किए गए सरकार के काम ही मोटे तौर पर याद रहते हैं। तो मामला फैसला सुनाने का नहीं, समीक्षा करने का बनता है। अच्छी बात यह है कि किसी का नियंत्रण ही न होने की स्थिति नहीं रही।

    अरुण शौरी ने कहा है कि पीएमओ का कंट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ गया है, तो इसका यह भी मतलब है कि पीएम की हर चीज पर नजर है। इसका यह अर्थ भी है कि जो कुछ हो रहा है, उसकी जवाबदेही से पीएम बच नहीं सकते। नई सरकार के बारे में विदेशी निवेशकों का जोश ठंडा पड़ चुका है, हालांकि उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यह कोई बहुत बुरी बात नहीं है, लेकिन अगर बिजनस करने की सहूलियत से जुड़े वर्ल्ड बैंक के इंडेक्स में इंडिया फिसलता रहा तो विदेशी निवेशकों का सेंटिमेंट नेगेटिव हो सकता है।

    इस सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ संपर्क बढ़ाया है। पाकिस्तान से जुड़ी पॉलिसी में भय का माहौल रहा है, लेकिन अब सीमा पर आतंकवादी हमलों पर सतर्कता बरतते हुए जो कुछ बेहतर हो सकता है, वैसा करने की वाजपेयी नीति पर कदम बढ़ रहे हैं। वेस्ट बंगाल की सीएम के सहयोग से बांग्लादेश के साथ भी यही नीति अपनाई जा रही है।

    हालांकि उदार लोकतंत्र के रूप में इंडिया की साख को चोट लग रही है। ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन पर हालिया कार्रवाई से कुछ फायदा नहीं होने वाला है। एनजीओ पर राष्ट्र विरोधी हरकतों का आरोप लगाना दुनियाभर में निरंकुश सरकारों की हरकतों में शामिल रहा है।

    वहीं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की घटनाओं के बारे में ताकतवर पीएम की चुप्पी से देश-विदेश में अच्छा संकेत नहीं गया है। यही वह पहलू है, जहां मोदी शासन से सबसे बड़ा फर्क पड़ा है। दुनिया में कोई पूर्ण लोकतांत्रिक देश नहीं है, लेकिन कुछ और लोकतांत्रिक होने की कोशिश करना अच्छा माना जाता है। मोदी की लीडरशिप में भारत के पीछे लौटने का खतरा दिख रहा है।

    मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले शख्स को केंद्र सरकार में जगह मिली है। अल्पसंख्यकों की मौजूदगी को भारत की संस्कृति पर दाग बताने की कोशिश हो रही है, जिसे घर वापसी से धुलने की कोशिश हो रही है।

    आर्थिक मोर्चे पर देखें तो 2012-13 में 5.1% के बाद 2013-14 में 6.9% की ग्रोथ रेट हासिल करने का मोमेंटम अब भी बना हुआ है। इस सरकार को कई अहम मोर्चों पर निरंतरता बनाए रखने का श्रेय दिया जाना चाहिए। रघुराम राजन आरबीआई गवर्नर बने हुए हैं और वह रुपये में स्थिरता बनाए रखने और महंगाई पर काबू पाने की जंग छेड़े हुए हैं।

    आधार को यूपीए से जुड़ा होने के कारण रद्द नहीं किया गया है। देश के सभी लोगों को बैंकिंग सर्विस से जोड़ने की यूपीए सरकार की पॉलिसी पर तेजी से काम किया गया है। स्किल मिशन बना हुआ है और ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने पर भी काम चल रहा है।

    नई सरकार ने बीमा सेक्टर में एफडीआई बढ़ाने की बाधाएं खत्म की हैं और जीएसटी पर कदम बढ़ाए हैं। इसमें कोई मुश्किल थी भी नहीं क्योंकि यूपीए शासन में बाधाएं तो बीजेपी ने ही खड़ी की थीं। हालांकि जिस जादू की बातें की जा रही थीं, वह एक साल पूरा होते-होते खत्म हो चुका है। सरकार को अब हकीकत की खुरदरी जमीन पर काम करके दिखाना होगा।
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