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मोदी मैजिक खत्म, अब होगा हकीकत से सामना

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मोदी मैजिक खत्म, अब होगा हकीकत से सामना 

टी. के. अरुण
प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर
किसी नई सरकार के कामकाज का जायजा लेने के लिए एक साल का वक्त काफी कम होता है। वोटर्स आमतौर पर वर्तमान में जीते हैं और उन्हें चुनाव से ऐन पहले के कुछ महीनों में किए गए सरकार के काम ही मोटे तौर पर याद रहते हैं। तो मामला फैसला सुनाने का नहीं, समीक्षा करने का बनता है। अच्छी बात यह है कि किसी का नियंत्रण ही न होने की स्थिति नहीं रही।

अरुण शौरी ने कहा है कि पीएमओ का कंट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ गया है, तो इसका यह भी मतलब है कि पीएम की हर चीज पर नजर है। इसका यह अर्थ भी है कि जो कुछ हो रहा है, उसकी जवाबदेही से पीएम बच नहीं सकते। नई सरकार के बारे में विदेशी निवेशकों का जोश ठंडा पड़ चुका है, हालांकि उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यह कोई बहुत बुरी बात नहीं है, लेकिन अगर बिजनस करने की सहूलियत से जुड़े वर्ल्ड बैंक के इंडेक्स में इंडिया फिसलता रहा तो विदेशी निवेशकों का सेंटिमेंट नेगेटिव हो सकता है।

इस सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ संपर्क बढ़ाया है। पाकिस्तान से जुड़ी पॉलिसी में भय का माहौल रहा है, लेकिन अब सीमा पर आतंकवादी हमलों पर सतर्कता बरतते हुए जो कुछ बेहतर हो सकता है, वैसा करने की वाजपेयी नीति पर कदम बढ़ रहे हैं। वेस्ट बंगाल की सीएम के सहयोग से बांग्लादेश के साथ भी यही नीति अपनाई जा रही है।

हालांकि उदार लोकतंत्र के रूप में इंडिया की साख को चोट लग रही है। ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन पर हालिया कार्रवाई से कुछ फायदा नहीं होने वाला है। एनजीओ पर राष्ट्र विरोधी हरकतों का आरोप लगाना दुनियाभर में निरंकुश सरकारों की हरकतों में शामिल रहा है।

वहीं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की घटनाओं के बारे में ताकतवर पीएम की चुप्पी से देश-विदेश में अच्छा संकेत नहीं गया है। यही वह पहलू है, जहां मोदी शासन से सबसे बड़ा फर्क पड़ा है। दुनिया में कोई पूर्ण लोकतांत्रिक देश नहीं है, लेकिन कुछ और लोकतांत्रिक होने की कोशिश करना अच्छा माना जाता है। मोदी की लीडरशिप में भारत के पीछे लौटने का खतरा दिख रहा है।

मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले शख्स को केंद्र सरकार में जगह मिली है। अल्पसंख्यकों की मौजूदगी को भारत की संस्कृति पर दाग बताने की कोशिश हो रही है, जिसे घर वापसी से धुलने की कोशिश हो रही है।

आर्थिक मोर्चे पर देखें तो 2012-13 में 5.1% के बाद 2013-14 में 6.9% की ग्रोथ रेट हासिल करने का मोमेंटम अब भी बना हुआ है। इस सरकार को कई अहम मोर्चों पर निरंतरता बनाए रखने का श्रेय दिया जाना चाहिए। रघुराम राजन आरबीआई गवर्नर बने हुए हैं और वह रुपये में स्थिरता बनाए रखने और महंगाई पर काबू पाने की जंग छेड़े हुए हैं।

आधार को यूपीए से जुड़ा होने के कारण रद्द नहीं किया गया है। देश के सभी लोगों को बैंकिंग सर्विस से जोड़ने की यूपीए सरकार की पॉलिसी पर तेजी से काम किया गया है। स्किल मिशन बना हुआ है और ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने पर भी काम चल रहा है।

नई सरकार ने बीमा सेक्टर में एफडीआई बढ़ाने की बाधाएं खत्म की हैं और जीएसटी पर कदम बढ़ाए हैं। इसमें कोई मुश्किल थी भी नहीं क्योंकि यूपीए शासन में बाधाएं तो बीजेपी ने ही खड़ी की थीं। हालांकि जिस जादू की बातें की जा रही थीं, वह एक साल पूरा होते-होते खत्म हो चुका है। सरकार को अब हकीकत की खुरदरी जमीन पर काम करके दिखाना होगा।
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योजनाबद्ध झूठ का विस्तार

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लेखक-- रघु ठाकुर

प्रस्तुति- रिद्धि सिन्हा नुपूर

अंग्रेजी भक्तों/प्रचारकों ने एक नया भ्रम अभियान शुरु किया है कि देवनागरी के बजाए रोमन लिपि अपना कर हिन्दी भाषा को वैश्विक रुप दिया जा सकता है. श्री चेतन भगत अंग्रेजी के युवा लेखक हैं जो देश के अंग्रेजी समर्थक तबके में: जो तबका नव धनाढ्यों का हैः काफी चर्चित हैं तथा उन्हें अंग्रेजी समर्थक जगत के मीडिया मे निरन्तर प्रमुखता से छापा जाता है और इसीलिए देश की अंग्रेजी के प्रभाव से मानसिक रुप से ग्रसित पीढ़ी उनके उपन्यासों या किताबों को कुछ पढ़ती भी है और न भी पढ़े तो घर में सजाकर रखती है.
हिंदी

श्री चेतन भगत ने अब यह ख्याल पेश किया है कि हिंदी के लिए रोमन लिपि का इस्तेमाल किया जाए. यह पक्ष प्रस्तुत करते हुए उन्होंने जो आधार या तर्क दिए हैं उन पर विचार जरुरी है- 1-सरकार के द्वारा हिन्दी को प्रोत्साहित करने के बावजूद भी अंग्रेजी लगातार बढ़ती जा रही है. प्रचार तंत्र के अनुसार उनका यह कथन कुछ हद तक सही भी लगता है परन्तु उसका कारण सरकार की अनेच्छिक पहल है.

अगर सरकार रोजगार और भविष्य की बेहतरी का विकल्प:केरियरः हिंदी में उपलब्ध कराये तो अंग्रेजी में इस्तेमाल करने वालों की संख्या नगण्य हो जायेगी. अंग्रेजी विश्व की भाषा नहीं है बल्कि दुनिया के एक छोटे से हिस्से की ही भाषा है. अंग्रेजी का विस्तार कोई भाषा की क्षमता के कारण नहीं हुआ था बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कारण हुआ था. तथ्य यह है कि अब विश्व तो छोड़ें यूरोप के भी अधिकांश देश अपनी ही भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं न कि अंग्रेजी का.

विश्व व्यापार संगठन जो वैश्विक पूंजीवाद का कार्यकारी संगठन है और अप्रत्यक्ष रुप से नव-आर्थिक साम्राज्यवाद का दस्तावेज है, ने अवश्य अंग्रेजी को अपनी भाषा के रुप में स्वीकार कर लिया है. यह अंग्रेजी की स्वीकार्यता कमजोर व गरीब देशों द्वारा संपन्न और ताकतवर देशों के सामने दुम हिलाऊ प्रवृत्ति का कारण है. 2-श्री चेतन भगत लिखते हैं कि ‘‘समाज में अंग्रेजी को अधिक सम्मान प्राप्त है तथा अंग्रेजी सूचनाओं और मनोरंजन की बिलकुल ही नई दुनिया खोलती है, अंग्रेजी के जरिए नई टेक्नालाजी तक पहुंच बनाई जा सकती है.

श्री भगत को जानना चाहिए कि अंग्रेजी को या अंग्रेजी जानने वालों को विशेष सम्मान दिया जाना मानसिक दासता का ही प्रतीक है. आज भी देश का एक हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्यवाद और अंग्रेजी की श्रेष्ठता की हीन ग्रंथि से उबर नहीं पाया है. उन्हें यह गलतफहमी है कि सूचनाएं या मनोरंजन केवल अंग्रेजी से ही मिल सकते हैं. हर समझदार और आत्म सम्मान प्रेमी देश अपनी ही भाषा में सूचनाएं देता-लेता है. चीन मेडोरिन में सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है और आज वह अमेरिका के मुकाबले सम्पन्न और शक्तिशाली अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करके बना है, यह एक खुला तथ्य है.

नई टेक्नालाजी को बेचने वाले व्यापारी वर्ग का उद्देश्य कोई भाषा का प्रचार नहीं होता है बल्कि व्यापार और मुनाफा होता है. अगर उन्हें यह बाध्यता लगेगी कि भारतीय बाजार में प्रवेश और लाभ के लिए हिन्दी जरुरी है तो वे तकनीक की भाषा हिन्दी कर लेंगे. यह काम भारत भी कर सकता है कि हम दुनिया से तकनीक लेकर उसे अपनी भारतीय भाषाओं में तब्दील कर लें ताकि देश की बहुसंख्य आबादी सरलता व शीघ्रता के साथ तकनीक का ज्ञान प्राप्त कर सके और उपयोग कर सके.

श्री भगत ने स्वतः को हिंदी प्रेमी घोषित किया है, मैं उनके इस कथन को चुनौती देने का अधिकारी नहीं हूं क्योंकि प्रेम एक निजी मामला है परन्तु यह एक अर्न्तविरोधी कथन है कि उन्हें प्रेम हिन्दी से है और वे प्रचार अंग्रेजी का कर रहे हैं. यह कुछ-कुछ ऐसे लाचार युवक की कहानी है जो प्रेम कहीं करता है परन्तु दहेज के लालच में शादी कहीं और करता है. उनके द्वारा वर्णित अवसर और केरियर तकनीक यह सब दहेज के ही समान विशेष सुविधाएं हैं.

हिंग्लिश का भी कोई औचित्य नहीं हैं. जो लोग हिंग्लिश की चर्चा या वकालत करते हैं वे भी भयभीत मानस के समझौता परस्त लोग हैं और जो जाने-अनजाने धीरे-धीरे हिन्दी में अंग्रेजी की मिलावट कर अंग्रेजी को हिन्दीभाषियों को स्वीकार्य बनाना चाहते हैं. कई बार ऐसा होता है कि जिसे सामने से परास्त करना संभव नहीं है उसे सेना में शामिल होकर कुछ मानसिक हताशा पैदा कर और कुछ षडयंत्र कर हराया जाए.

अंग्रेजी की व्यवस्था भी हिंग्लिश के नाम से मिलकर और अंदर घुसकर हिन्दी और भारतीय भाषाओं को परास्त करने का षडयंत्र कर रही है. मैंने किसी चीनी को आज तक चिंग्लिश बोलते नहीं सुना यानी चीनी और अंग्रेजी का घोल, मैंने किसी जर्मनी या फ्रेंच को जर्मलिश या फ्रेंचलिश बोलते नहीं सुना. मैं भाषा का शुद्धतावादी नहीं हूं बल्कि भाषा का व्यापकतावादी व सरलतावादी हूं. भाषा को जितना सरल और व्यापक बनाया जाएगा, भाषा उतनी ही मजबूत और जनोन्मुखी होगी. जो भारत में हिन्दी के अलावा अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्द हैं उन्हें हिन्दी भाषा में समाविष्ट करना उचित होगा और उससे हिन्दी का फैलाव भी होगा.

श्री भगत लिखते हैं कि हिन्दी को जितना थोपते हैं उतना युवा उसके खिलाफ विद्रोह करता है. श्री भगत के लेखन और समझ में गहराई तो मुझे पहले भी नहीं दिखी परन्तु अब उसमें योजनाबद्ध झूठ भी नजर आता है. भारत का स्वभाव और परम्परा विद्रोही की नहीं रही, न विदेशी गुलामी के क्षेत्र में न विदेशी भाषा के क्षेत्र में. हिन्दी को कौन थोप रहा है, बल्कि हिन्दी तो चौतरफा हमलों का शिकार हो रही है.

कुछ दिनों पूर्व इसी स्वर में एक बयान श्री अशोक वाजपेयी का रायपुर से छपा था कि हिन्दी तानाशाह भाषा है. उन्होंने इसका खंडन भी नहीं किया न ही स्पष्ट किया कि हिन्दी तानाशाह कैसे है. मुझे तो हिन्दी ताकत व सत्ता की दृष्टि से फिलहाल सबसे असहाय नजर आती है जिसे हिन्दी लेखन के माध्यम से जाने जाने वाले श्री अशोक वाजपेयी, श्री नामवर सिंह जैसे लोग भी यदाकदा दुत्कारते रहते हैं.
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मानव संचार : अवधारणा महत्व और विकास

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लेखक-- अवधेश कुमार यादव
प्रस्तुति--रिद्धि सिन्हा नुपूर ,
     मानव जीवन में जीवित रहने के लिए संचार का होना आवश्यक ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य है। संचार के बगैर मानव के जीवित होने का अहसास ही नहीं होता। पृथ्वी पर संचार का उद्भव मानव सभ्यता के साथ माना जाता है। प्रारंभिक युग का मानव अपनी भाव-भंगिमाओं, व्यहारजन्य संकेतों और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से संचार करता था, किन्तु आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी (प्दवितउंजपवद ज्मबीदवसवहल)  के क्षेत्र में क्रांतिकारी अनुसंधान के कारण मानव संचार बुलन्दी पर पहुंच गया है। वर्तमान में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, इंटरनेट, ई-मेल, वेब पोर्टल्स, टेलीप्रिन्टर, टेलेक्स, इंटरकॉम, टेलीटैक्स, टेली-कान्फ्रेंसिंग, केबल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, समाचार पत्र, पत्रिका इत्यादि मानव संचार के अत्याधुनिक और बहुचर्चित माध्यम हैं।
    संचार :संचार शब्द का सामान्य अर्थ होता है- किसी सूचना या संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना या सम्प्रेषित करना। शाब्दिक अर्थों में श्संचारश् अंग्रेजी भाषा के ब्वउउनदपबंजपवद शब्द का हिन्दी रूपांतरण है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ब्वउउनदपे शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ब्वउउनद, अर्थात्... संचार एक ऐसा प्रयास है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचारों, भावनाओं एवं मनोवृत्तियों में सहभागी बनता है। संचार का आधार श्संवादश् और श्सम्प्रेषणश् है। विभिन्न विधाओं केे विशेषज्ञों ने संचार को परिभाषित करने का प्रयास किया है, लेकिन किसी एक परिभाषा पर सर्वसम्मत नहीं बन सकी है। फिर भी, कुछ प्रचलित परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -
o  ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार-विचारों, जानकारियों वगैरह का विनिमय, किसी और तक पहुंचाना या  बांटना, चाहे वह लिखित, मौखिक या सांकेतिक हो, संचार है।
o  लुईस ए. एलेन के अनुसार-संचार उन सभी क्रियाओं का योग है जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे के साथ समझदारी स्थापित करना चाहता है। संचार अर्थों का एक पुल है। इसमें कहने, सुनने और समझने की एक व्यवस्थित तथा नियमित प्रक्रिया शामिल है।
o  रेडफील्ड के अनुसार-संचार से आशय उस व्यापक क्षेत्र से है जिसके माध्यम से मनुष्य तथ्यों एवं अभिमतों का आदान-प्रदान करता है। टेलीफोन, तार, रेडियो अथवा इस प्रकार के अन्य तकनीकी साधन संचार नहीं है।
o  शैनन एवं वीवर के अनुसार-व्यापक अर्थ में संचार के अंतर्गत् वे सभी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं, जिसके द्वारा एक व्यक्ति दिमागी तौर पर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसमें न वाचिक एवं लिखित भाषा का प्रयोग होता है, बल्कि मावन व्यवहार के अन्य माध्यम जैसे-संगीत, चित्रकला, नाटक इत्यादि सम्मिलित है।
o  क्रच एवं साथियों के अनुसार-किसी वस्तु के विषय में समान या सहभागी ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रतीकों का उपयोग ही संचार है। यद्यपि मनुष्यों में संचार का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा ही है, फिर भी अन्य प्रतीकों का प्रयोग हो सकता है।

     उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति अथवा समूह को कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से ज्ञान, सूचना, जानकारी व मनोभावों का आदान-प्रदान करना ही संचार है।  
     संचार के प्रकार :समाज में मानव कहीं संचारक के रूप में संदेश सम्प्रेषित करता है, तो कहीं प्रापक के रूप में संदेश ग्रहण करता है। इस प्रक्रिया में सम्मलित लोगों की संख्या के आधार पर मुख्यतरू चार प्रकार के होते हैं रू- 
1. अंत: वैयक्तिक संचार :यह एक मनोवैज्ञानिक क्रिया तथा मानव का व्यक्तिगत चिंतन-मनन है। इसमें संचारक और प्रापक दोनों की भूमिका एक ही व्यक्ति को निभानी पड़ती है। अंतरू वैयक्तिक संचार मानव की भावना, स्मरण, चिंतन या उलझन के रूप में हो सकती है। कुछ विद्वान स्वप्न को भी अंतरू वैयक्तिक संचार मानते हैं। इसके अंतर्गत् मानव अपनी केंद्रीय स्नायु-तंत्र तथा बाह्य स्नायु-तंत्र का प्रयोग करता है। केंद्रीय स्नायु-तंत्र में मस्तिष्क आता है, जबकि बाह्य स्नायु-तंत्र में शरीर के अन्य अंग। इस पर मनोविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान में पर्याप्त अध्ययन हुए हैं। जिस व्यक्ति का अंतरू वैयक्तिक संचार केंद्रित नहीं होता है, उसे मानव समाज में च्पागलज् कहा जाता है। मानव के मस्तिष्क का उसके अन्य अंगों से सीधा सम्बन्ध होता है। मस्तिष्क अन्य अंगों से न केवल संदेश ग्रहण करता है, बल्कि संदेश सम्प्रेषित भी करता है। जैसे- पैर में मच्छर के काटने का संदेश मस्तिष्क ग्रहण करता है तथा मच्छर को मारने या भगाने का संदेश हाथ को सम्प्रेषित करता है। अंतरू वैयक्तिक संचार को स्वगत संचार के नाम से भी जाना जाता है।
2.अंतर वैयक्तिक संचार :अंतर वैयक्तिक संचार से तात्पर्य दो मानवोंके बीच विचारों, भावनाओं और जानकारियों के आदान-प्रदान से है। यह आमने-सामने होता है। इसके लिए दोनों मानवों के बीच सीधा सम्पर्क का होना बेहद जरूरी है, इसलिए अंतर वैयक्तिक संचार की दो-तरफा (ज्ूव-ूंल) संचार प्रक्रिया कहते हैं। यह कहीं भी स्वर, संकेत, शब्द, ध्वनि, संगीत, चित्र, नाटक आदि के रूप में हो सकता है। इसमें फीडबैक तुुरंत और सबसे बेहतर मिलता है, क्योंकि संचारक जैसे ही किसी विषय पर अपनी बात कहना शुरू करता है, वैसे ही प्रापक से फीडबैक मिलने लगता है। अंतर वैयक्तिक संचार का उदाहरण है-मासूम बच्चा, जो बाल्यावस्था से जैसे-जैसे बाहर निकलता है, वैसे-वैसे समाज के सम्पर्कमें आता है और अंतर वैयक्तिक संचार को अपनाने लगता है। माता-पिता के बुलाने पर उसका हंसना अंतर वैयक्तिक संचार का प्रारंभिक उदाहरण है। इसके बाद वह ज्यों-ज्यों किशोरावस्था की ओर बढ़ता है, त्यों-त्यों भाषा, परम्परा, अभिवादन आदि अंतरवैयक्तिक संचार प्रक्रिया से सीखने लगता है। पास-पड़ोस के लोगों से जुडने में भी अंतर वैयक्तिक संचार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
3.समूह संचार :यह अंतर वैयक्तिक संचार का विस्तार है, जिसमें मानव सम्बन्धों की जटिलता होती है। मानव अपने जीवन काल में किसी-न-किसी समूह का सदस्य अवश्य होता है। अपनी आवश्यकतओं की पूर्ति के लिए नये समूहों का निर्माण भी करता है। समूहों से पृथक होकर मानव अलग-थलग पड़ जाता है। समूह में जहां मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है, वहीं सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनती है। समाजशास्त्री चाल्र्स एच. कूले के अनुसार-समाज में दो प्रकार के समूह होते हैं। पहला- प्राथमिक समूह { जिसके सदस्यों के बीच आत्मीयता, निकटता एवं टिकाऊ सम्बन्ध होते हैं। जैसे- परिवार, मित्र मंडली व सामाजिक संस्था इत्यादि } और दूसरा- द्वितीयक समूह  { जिसका निर्माण संयोग या परिस्थितिवश अथवा स्थान विशेष के कारण कुछ समय के लिए होता है। जैसे- ट्रेन व बस के यात्री, क्रिकेट मैच के दर्शक, जो आपस में किसी विषय पर विचार-विमर्श करते हैं} सामाजिक कार्य व्यवहार के अनुसार समूह को हित समूह और दबाव समूह में बांटा गया है। जब कोई समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करता है, तो उसे हित समूह कहते हैं, लेकिन जब वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरे समूहों या प्रशासन पर दबाव डालते लगता है, तो स्वतरू ही दबाव समूह में परिवर्तित हो जाता है। मानव समूह बनाकर विचार-विमर्श, संगोष्ठी, भाषण, सभा के माध्यम से विचारों, जानकारियों व अनुभवाओं का आदान-प्रदान करता है, तो उस प्रक्रिया को समूह संचार कहते हैं। इसमें फीडबैक तुरंत मिलता है, लेकिन अंतर-वैयक्तिक संचार की तरह नहीं। फिर भी, यह प्रभावी संचार है, क्योंकि इसमें व्यक्तित्व खुलकर सामने आता है तथा समूह के सदस्यों को अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिलता है। समूह संचार कई सामाजिक परिवेशों में पाया जाता है। जैसे- कक्षा, रंगमंच, कमेटी हॉल, बैठक इत्यादि। 
4.जनसंचार :आधुनिक युग में च्जनसंचारज् काफी प्रचलित शब्द है। इसका निर्माण दो शब्दों  श्जनश् और श्संचारश् के योग से हुआ है। च्जनज् का अर्थ ‘जनता अर्थात भीड़’ होता है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, जन का अर्थ पूर्ण रूप से व्यक्तिवादिता का अंत है। इस प्रकार, समूह संचार का वृहद रूप है- जनसंचार। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग १९वीं सदी के तीसरे दशक के अंतिम दौर में संदेश सम्प्रेषणकेलिएकियागया।संचार क्रांति के क्षेत्र में अनुसंधान के कारण जैसे-जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, केबल, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि का प्रयोग बढ़ता गया, वैसे-वैसे जनसंचार के क्षेत्र का विस्तार होता गया। इसमें फीडबैक देर से तथा बेहद कमजोर मिला है। कई बार नहीं भी मिलता है। आमतौर पर जनसंचार और जनमाध्यम को एक ही समझा जाता है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। जनसंचार एक प्रक्रिया है, जबकि जनमाध्यम इसका साधन। जनसंचार माध्यमों के विकास के शुरूआती दौर में जनमाध्यम मानव को सूचना अवश्य देते थे, परंतु उसमें मानव की सहभागिता नहीं होती थी। इस समस्या को संचार विशेषज्ञ जल्दी समझ गये और समाधान के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इंटरनेट के आविष्कार के बाद लोगों की सूचना के प्रति भागीदारी बढ़ी है। मनचाहा सूचना प्राप्त करना और दूसरों तक तीब्र गति से सम्प्रेषितकरना संभव हो सका। संचार विशेषज्ञों ने जनसंचार की निम्न प्रकार से परिभाषित किया है - 
  •       लेक्सीकॉन यूनिवर्सल इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार-कोई भी संचार, जो लोगों के महत्वपूर्ण रूप से व्यापक समूह तक पहुंचता हो, जनसंचार है।
  •     कार्नर के अनुसार-जनसंचार संदेशों  के बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वृहद स्तर पर विषमवर्गीय जनसमूहों में द्रुतगामी वितरण करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जिन उपकरणों अथवा तकनीक का उपयोग किया जाता है उन्हें जनसंचार माध्यम कहते हैं। 
  •     कुप्पूस्वामी के अनुसार-जनसंचार तकनीकी आधार पर विशाल अथवा व्यापक रूप से लोगों तक सूचना के संग्रह एवं प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। आधुनिक समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है। 
  •     जोसेफ डिविटो के अनुसार- जनसंचार बहुत से व्यक्तियों में एक मशीन के माध्यम से सूचनाओं, विचारों और दृष्टिकोणों को रूपांतरित करने की प्रक्रिया है।
  •     जॉर्ज ए.मिलर के अनुसार-जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाना है।
      उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि जनसंचार यंत्र संचालित है, जिसमें संदेश को तीब्र गति से भेजने की क्षमता होती है। जनसंचार माध्यमों में टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिका, फिल्म, वीडियो, सीडी, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि आते हैं, जो संदेश को प्रसारित एवं प्रकाशित करते हैं। 
     मानव संचार का विकास
    विशेषज्ञों का मानना है कि सृष्टि में संचार उतना ही पुराना है, जितना की मानव सभ्यता। आदम युग में मानव के पास आवाज थी, लेकिन शब्द नहीं थे। तब वह अपने हाव-भाव और शारीरिक संकेतों के माध्यम से संचार करता था। तात्कालिक मानव को भी आज के मानव की तरह भूख लगती थी, लेकिन उसके पास भोजन के लिए आज की तरह अनाज नहीं थे। वह वृक्षों के फलों और जानवरों के कच्चे मांसों पर पूर्णतया आश्रित था, जिसकी उपलब्धता के बारे में जानने के लिए आपस में शारीरिक संकेतों के माध्यम से संचार (वार्तालॉप) करता था। पाषाण युग का मानव कच्चे मांस की उपलब्धता वाले इलाकों में पत्थरों पर जानवरों का प्रतीकात्मक चित्र बनाने लगा। कालांतर में मानव ने प्रतीक चित्रों के साथ अपनी आवाज को जोडना प्रारंभ किया, परिणामतरू अक्षर का आविष्कार हुआ। अक्षरों के समूह को शब्द और शब्दों के समूह को वाक्य कहा गया, जो वर्तमाान युग में भी संचार के साधन के रूप में प्रचलित है। इस तरह के संचार का सटीक उदाहरण है- नवजात शिशु... जो शब्दों से अनभिज्ञ होने के कारण हंसकर, रोकर, चीखकर तथा हाथ-पैर चलाकर अपनी भावनाओं को सम्प्रेषित करता है। इसके बाद जैसे-जैसे बड़ा होता है, वैसे-वैसे शब्दों को सीखने लगता है। इसके बाद क्रमशरू तोतली बोली, टूटी-फूटी भाषा और फिर स्पष्ट शब्दों में वार्तालॉप करने लगता है। 
     प्राचीन काल में मानव के पास शब्द तो थे, लेकिन वह पढना-लिखना नहीं जानता था। ऐसी स्थिति में अपने गुरूओं और पूर्वजों के मुख से निकले संदेशों को किवदंतियों के सहारे आने वाली पीढ़ी तक सम्प्रेषित करने का कार्य होता था। कालांतर में भोजपत्रों पर संदेश लिखने और दूसरों तक पहुंचाने की प्रथा प्रारंभ हुई, जो भारत में काफी कारगर साबित हुई। इसी की बदौलत वेद-पुराण व आदि ग्रंथ लोगों तक पहुंचे। गुप्तकाल में  शिलालेखों का निर्माण कराया गया, जिन पर धार्मिक व राजनीतिक सूचनाएं होती थी। ऐसे अनेक स्मारक आज भी मौजूद हैं। 
     जर्मनी के जॉन गुटेनवर्ग ने सन् 1445 में टाइपों का आविष्कार किया, जिससे संचार के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। टाइपों की मदद से विचारों या सूचनाओं को मुद्रित कर अधिक से अधिक लोगों तक प्रसारित करने की सुविधा मिली। सन् 1550 में भारत का पहला प्रेस गोवा में पुर्तगालियों ने इसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लगाया। जेम्स आगस्टक हिकी ने सन् 1780 में भारत का पहला समाचार-पत्र च्बंगाल गजटश् प्रकाशित किया। 19वीं शताब्दी में टेलीफोन और टेलीग्राम के आविष्कार ने संचार की नई संभावनाओं को जन्म दिया। इसी दौर में रेडियो और टेलीविजन के रूप में मानव को संचार का जबरदस्त साधन मिला। बीसवीं शताब्दी में इलेक्ट्रानिक मीडिया का अत्यधिक विकास हुआ। 21वीं शताब्दी में इंटरनेट ने मानव संचार को सहज, सरल और व्यापक बना दिया।

     निष्कर्ष रू मानव समाज में संचार के विकास का प्राचीन काल में जो सिलसिला प्रारंभ हुआ, वह वर्तमान में भी चल रहा और भविष्य में भी चलता रहेगा। इसका अगला पड़ाव क्या होगा, कोई नहीं जानता है। प्राचीन काल में संचार के कुछ ऐसे तरीकों का सूत्रपात किया गया था, जिसकी प्रासंगिक आज भी बरकरार है तथा आगे भी रहेंगी। वह है- यातायात संकेत, जिसे सडक के किनारे देखा जा सकता है, जिन पर दाएं-बाएं मुडने, धीरे चलने, स्प्रीड ब्रेकर या तीब्र मोड़ होने या रूकने के संकेत होते हैं। इन संकेतों को चलती गाड़ी से देखकर समझना बेहद आसान है, जबकि पढकर समझना बेहद मुश्किल है। इन संकेतों के माध्यम से संदेशों का सम्प्रेषण आज भी वैसे ही होता है, जैसे शुरूआती दिनों होता था।मानव जीवन में जीवान्तता के लिए संचार का होना आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है। पृथ्वी पर संचार का उद्भव मानव सभ्यता के साथ माना जाता है। प्रारंभिक युग का मानव अपनी भाव-भंगिमाओं, व्यहारजन्य संकेतों और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से संचार करता था, किन्तु आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी (प्दवितउंजपवद ज्मबीदवसवहल)  के क्षेत्र में क्रांतिकारी अनुसंधान के कारण मानव संचार बुलन्दी पर पहुंच गया है। वर्तमान में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, इंटरनेट, ई-मेल, वेब पोर्टल्स, टेलीप्रिन्टर, टेलेक्स, इंटरकॉम, टेलीटैक्स, टेली-कान्फ्रेंसिंग, केबल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, समाचार पत्र, पत्रिका इत्यादि मानव संचार के अत्याधुनिक और बहुचर्चित माध्यम हैं। मानव संचार को जानने ने पूर्व मानव और संचार को अलग-अलग समझना अनिवार्य है। 

( ‘प्रतियोगिता दर्पण‘ जनवरी- 2015 अंक में पेज 101-102 पर प्रकाशित)

संचार अवधारणा प्रक्रिया और कार्य

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प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर , राहुल मानव

संचार


संचार एक तकनीकी शब्द है जो अंग्रेजी के कम्यूनिकेशन का हिन्दी रूपांतरण है। इसका अथZ
होता है किसी सूचना या जानकारी को दूसरों तक पहुंचाना। इसके माध्यम से मनुष्य के सामाजिक संबंध बनते और विकसित होते हैं। मानवीय समाज की समस्त प्रक्रिया संचार पर आधारित है। इसके बिना मानव नही रह सकता। प्रत्येक मनुष्य अपनी जाग्रतावस्था में संचार करता है अथाZत बोलने सुनने सोचने देखने पढ़ने लिखने या विचार विमशZ में अपना समय लगाता है। जब मनुष्य अपने हाव भाव संकेतों और वाणी के माध्यम से सूचनाओं का आदान प्रदान करता है तो वह संचार कहलाता है।

संचार की परिभाषा
· संकेतों द्वारा होने वाला संप्रेषण संचार है – लुडबगZ
· मनुष्य के कायZक्षेत्र विचारों व भावनाओं के प्रसारण व आदान प्रदान की प्रक्रिया संचार है - लीलैंड ब्राउन
· संचार एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को भेजे गये संदेश के संप्रेषण की प्रक्रिया है - डैनिस मैक कवैल
· संचार समानुभूति का विनिमय है – कौफीन और शाँ
· संचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचना व संदेश एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचे – थीयो हैमान

संचार प्रक्रिया
संचार प्रक्रिया में संदेश भेजने वाला प्रेषक कहलाता है और संदेश प्राप्त करने वाला प्राप्तकर्ता। दोनों के बीच एक माध्यम होता है जिसके सहयोग से प्रेषक का संदेश प्राप्तकर्ता के पास पहुंचता है। प्राप्तकर्ता के दिल दिमाग पर प्रभाव डालता है जिससे सामाजिक सरोकारों में बदलाव आता है। देश तथा विदेश में मनुष्य की दस्तकें बढ़ती है इसलिये संचार प्रक्रिया का पहला चरण प्रेषक होता है। इसे इनकोडिंग भी कहते है । इनकोडिंग के बाद विचार सार्थक संदेश के रूप में ढल जाता है। जब प्राप्तकर्ता अपने मस्तिक में उक्त संदेश को ढाल लेता है तो संचार की भाषा में डीकोडिंग कहतें हैं। डीकोडिंग के बाद प्राप्तकर्ता उस संदेश का अर्थ समझता है। वह अपनी प्रतिक्रिया प्रेषक को भेजता है। तो उस प्रक्रिया को फीडबैक कहतें हैं।

संचार के कार्य
संचार प्रक्रिया निम्नलिखित कार्यों को संपंन करती है –
· सूचना या जानकारी देना ।
· संचार से जुड़े व्यक्तियों को प्रेरित और प्रभावित करना।
· संचार व्यक्तियों समाजों और देशों के बीच संबंध स्थापित करता है।
· संचार विभिन्न तथ्यों विचारों मसलों पर व्यापक निचार विमर्श करने में सहायक होता है।
· मनुष्यों का मनोरंजन करना संचार का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
· संचार राष्ट्र की आर्थिक व औद्योगिक उन्नति में सहायक होता है।
संचार के प्रकार
अंतव्यक्तिक संचार
यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसकी परिधि में स्वंय व्यक्ति होता है। मनुष्य अपने अनुभवों घटनाओं व्यक्तियों प्रभावों एवं परिणामों का आकलन करता है। संदेश प्राप्त करने वाला और संदेश भेजने वाला स्वंय ही होता है। आत्मक विश्लेषण आत्मविवेचन आत्मप्रेरणा आदि इसी प्रकार के संचार कहलाते हैं। अर्थात दूसरे शब्दों में कह सकते है जब एक व्यक्ति अकेला अपने आप से बात करता है तो उसे स्वगत संचार कहा जाता है। क्योंकि वह स्वयं से ही संचार करता है।
अन्तरवैयक्तिक संचार
जब व्यक्ति एक दूसरे बातचीत करता है तो उसे अन्तरवैयक्तिक संचार कहते हैं। बातचीत सामने बैठकर टेलीफोन मोबाइल पेजर संगीत चित्र ड्रामा लोककला इत्यादि से हो सकती है। इस संचार प्रक्रिया में संदेशों का प्रेषण मौखिक भी हो सकता है और स्पर्श मुस्कुराहट आदि से भी। इसमें प्रतिपुष्टि तुरंत हो सकती है। संदेश प्रषक और संदेश ग्राहक की निकटता इस प्रकार के संचार की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है।
अन्तरवैयक्तिक संचार दुतरफा प्रक्रिया है अर्थात स्त्रोता संदेश प्राप्त करते ही प्रतिक्रया देता है। यह संचार प्रक्रिया गतिशील होता है।
समूह संचार
जब व्यक्तियो का समूह आमने सामने बैठकर विचार विमर्श विचार गोष्ठी वाद विवाद कार्य शिविर सार्वजनिक व्याख्यान इंटरव्यू आदि करता है तो उसे समूह संचार कहते है। यह बहुत प्रभावशाली होता है। क्योंकि इसमें वक्ता को अपने अपने क्षेत्र में अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। स्कूल कालेज प्रशिक्षण केन्द्र चौपाल रंगमंच कमेटी हॉल जैसे प्रमुख स्थानों पर संचार गतिशील होता । दूसरे शब्दों में समुह संचार उन व्यक्तियों के बीच संभव है जो किसी उद्देश्य के लिये अमुख स्थान पर एकत्र होते हैं।
जन संचार
जनसंचार का अर्थ विस्तृत आकार के बिखरे हुये समूह तक संचार माध्यमों द्वारा संदेश पहुंचाना है। पर इस प्रकार के संचार में भी किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। रेडियो टेलीविजन टेपरिकार्डर फिल्म वीडियो कैसेट सीडी के अलावा समाचारपत्र पत्रिकायें पुस्तकें पोस्टर इत्यादि इसके माध्यम कहलाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य बहुत विशाल है इसे किसी परिधि में रखना कठिन है। वर्तमान समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण विश्लेषण ज्ञान एवं मुल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है।

मीडिया मीमांसा // प्रेस का प्रेस्टीट्यूट हो जाना / मुकेश कुमार

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साहित्यिक पत्रिका पाखी के नए अंक में 
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का मीडिया कॉलम 
// मीडिया मीमांसा //


प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर



ये ज़रूरी है कि सबसे पहले उस शब्द के मायने स्पष्ट कर दिए जाएं जो इस लेख में इस्तेमाल होने वाला है, ताकि उसे दूसरे संदर्भों में देखे जाने का कोई ख़तरा न रहे। प्रेस्टीट्यूट शब्द Press और Prostitutes से मिलकर बना है। ज़ाहिर है इस पर Prostitutes शब्द का प्रभाव अधिक है। प्रेस्टीट्यूट शब्द के जनक अमेरिकी ट्रेंड फोरकास्टर जेराल्ड सीलेंट ने इसे अमेरिका द्वारा इराक़ पर हमले के समय गढ़ा था। उन्होंने इसका इस्तेमाल ऐसे पत्रकारों और टीवी चैनलों की बहसों में हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए किया था जो सरकार या कार्पोरेट के पक्ष में पहले से ही तय आधारों पर रिपोर्टिंग करते हैं या अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। पश्चिम में ही Corporate whore (कार्पोरेट रंडी) तथा kept (रखैल) शब्द भी इसके लिए खूब प्रचलित है। इसे कृपया लिंग के आधार पर न देखें, क्योंकि इसका अर्थ सिर्फ़ देह व्यापार से नहीं है। ये बताना इसलिए ज़रूरी है कि इसे तुरंत सेक्स वर्कर के अपमान से जोड़कर देखा जा सकता है। वैसे वेश्या पुरूष और स्त्री दोनों होते हैं। आप चाहें तो इसे दुष्चरित्रता या चरित्रहीनता से भी जोड़कर देख सकते हैं।
न्यूज़ ट्रेडर, बाज़ारू, दलाल, बिकाऊ, पेड मीडिया और अब प्रेस्टीट्यूट। मुख्यधारा के मीडिया के लिए इससे बुरा वक़्त कभी नहीं था और ये भी साफ़ दिखलाई दे रहा है कि शायद आने वाले दिन उसके लिए और भी बुरे रहने वाले हैं। बाज़ार की लंपट पूँजी के सहवास ने उसके चरित्र को इस क़दर कलंकित कर दिया है कि अब हर कोई उसे राह में पड़ी कुतिया की तरह लात जमाकर चल देता है और वह बिलबलाता रह जाता है। केंद्रीय मंत्री जनरल वी. के. सिंह ने जब यही किया तो पूरा मीडिया अपनी तमाम आक्रामकता के बावजूद कुल मिलाकर बचाव की ही मुद्रा में रहा। जनरल के दुर्वचन (उनका ट्वीट था- दोस्तों, आप प्रेस्टीट्यूट्स से क्या उम्मीद कर सकते हैं) किसी भी तरह न तो शालीन थे, न ही मर्यादित। एक झटके में लोकतंत्र के चौथे खंभे कहे जाने वाले सर्वशक्तिमान मीडिया को प्रेस्टीट्यूट यानी वेश्या कह देना मामूली अपराध नहीं था। एक मंत्री होने के नाते तो बिल्कुल भी नहीं। कोई और समय होता तो जनरल को लेने के देने पड़ गए होते, उन्हें मंत्रिमंडल से हटना पड़ जाता। लेकिन वह ताल ठोंकते हुए खड़े रहे। उन्हें उनके सरपरस्त प्रधानमंत्री ने भी कुछ नहीं कहा, कम से कम सार्वजनिक रूप से तो बिल्कुल भी नहीं। मुख्यधारा के मीडिया से कहीं अधिक स्वतंत्र माना जाने वाला सोशल मीडिया तो उनके साथ खड़ा भी दिखाई दिया। राजनीतिक दलों ने भी इस मामले में ज़्यादा उग्र तेवर नहीं दिखलाए। मीडिया संगठनों ने ज़रूर उनके ट्वीटर के ज़रिए दी गई इस गाली पर एतराज़ जताया और इसे अवाँछित करार दिया, लेकिन उसका कोई असर हुआ हो ऐसा दिखलाई नहीं पड़ा। पत्रकार बिरादरी ने ही उसे बहुत महत्व नहीं दिया। वज़ह साफ़ थी। साख गिरने की वजह से मीडिया द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बचाव के अस्त्र बेकार हो गए हैं, भोथरे पड़ गए हैं।
अगर जनरल का कामेंट अपवादस्वरूप आया होता तो इसे अनदेखा-अनसुना किया जा सकता था। लेकिन सचाई ये है कि इस तरह के हमले मीडिया पर लगातार किए जा रहे हैं और इनका कोई अंत नहीं दिखता। इसके विपरीत जब हम पश्चिम में मीडिया की स्थिति को देखते हैं तो समझ में आता है कि ये तो शुरूआत भर है। पश्चिम का अनुकरण करने वाला भारतीय मीडिया उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है जहाँ प्रेस्टीट्यूट जैसे शब्द गढ़े जाते हैं। पीत पत्रकारिता जैसे कलंकित पद मीडिया के वर्तमान चरित्र को बयान करने में जब अक्षम साबित गए तब करीब दो दशक पहले जेराल्ड सीलेंट ने प्रेस्टीट्यूट शब्द गढा। उन्होंने देखा था कि किस तरह मुख्यधारा का मीडिया तमाम नैतिकताओं तथा आचरण संहिता को ताख पर रखकर सत्ता एवं कॉरपोरेट जगत के पक्ष में निर्लज्जता के साथ खड़ा हो गया है। ये इराक पर अमेरिकी हमले का समय था। पूरा मीडिया अमेरिकी हुकूमत के चरणों में लोट रहा था। तमाम पत्रकार बुश प्रशासन द्वारा परोसी जा रही ख़बरों को जस का तस परोस रहे थे। टीवी चैनलों की परिचर्चाओं में हिस्सा लेने वाले पत्रकारों और विशेषज्ञों का हाल भी वही था। उनका एकमात्र उद्देश्य बुश प्रशासन की हर ग़लत-सही कार्रवाई को उचित ठहराना। ये नज़ारा देखकर उन्हें लगा कि बहुत से पत्रकार प्रोस्टिट्यूट की तरह व्यवहार करने लगे हैं और तब उन्होंने उन्हें प्रेस्टीट्यूट का नाम दे दिया। उनका दिया ये शब्द खूब प्रचलित हुआ। ख़ास तौर पर स्वतंत्र रूप से काम करने वाले पत्रकारों और उन मीडिया संगठनों में जो किसी कार्पोरेट का हिस्सा नहीं थे और पत्रकारिता के पेशे को जनहित में इस्तेमाल करते हैं। हाल में यूक्रेन में तख्ता पलट और उसके बाद छिड़े गृहयुद्ध की रिपोर्टिंग के समय भी अमेरिकी पत्रकारों का रवैया वाशिंगटनपरस्त रहा और उन्होंने दूसरे पक्षों को पूरी तरह से गायब कर दिया। ऐसे में प्रेस्टीट्यूट शब्द एक बार फिर ज़ोर-शोर से उछला। इसी तरह वे ईरान को शैतान के रूप में पेश करने तथा इस्रायल की आतंकवादी हरकतों को कम करके दिखाने का काम करते हैं। अमेरिकी प्रशासन की नाजायज़ हरकतों का भंडाफोड़ करने वाले जुलियन असांज के साथ भी वे इसी तरह से पेश आते रहे। कुल मिलाकर अमेरिकी मीडिया कतई स्वतंत्र नहीं है और उसके अधिकांश पत्रकार प्रेस्टीट्यूट की तरह काम करते हैं। वैसे भी अमेरिकी मीडिया की स्थिति और भी खराब हो गई है, क्योंकि मीडिया संस्थानों की संख्या तेज़ी से कम हुई है और कुछ बड़े कार्पोरेट घरानों का मीडिया इंडस्ट्री पर कब्ज़ा हो गया है, एक तरह से उनकी मोनोपली कायम हो गई है।
भारतीय मीडिया जगत में भी यही प्रवृत्तियाँ हावी हो चली हैं, इसलिए वहीं से आयातित शब्दावलियाँ भी यहाँ इस्तेमाल में लाई जाने लगी हैं। प्रेस्टीट्यूट का जुमला जनरल वी के सिंह ने नहीं गढ़ा है और न ही ये उन्होंने पहली बार इस्तेमाल किया है। दो साल पहले जब इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने सेना के कथित दिल्ली अभियान की सनसनीखेज़ ख़बर छापी थी, तो उस समय भी जनरल ने उनके लिए प्रेस्टीट्यूट शब्द का उपयोग किया था। उनके जन्मतिथि से जुड़े विवाद पर इंडियन एक्सप्रेस की तेज़तर्रार रिपोर्टिंग पर भी वे इस शब्द को लगातार उच्चारते रहे, क्योंकि विरोधी मीडिया को ग़ाली देने का उनका ये अपना तरीका था। इस बार उनका निशाना अर्नब गोस्वामी थे। अर्नब ने पाकिस्तान दिवस पर जनरल सिंह के अशोभनीय व्यवहार और ट्वीट्स पर जिस तरह का अभियान चलाया था, उससे वे तिलमिलाए हुए थे और उसका जवाब उन्होंने उस समय दिया जब यमन से भारतीयों के निकालने के उनके अभियान को सराहा जा रहा था। उनके प्रति लोगों में हमदर्दी पैदा हो गई और उनकी प्रतिक्रिया को समर्थन मिल गया। इन दो बड़े मौक़ों के अलावा पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनकी वजह से मीडिया को इसी तरह की ग़ाली-गलौज़ का शिकार होना पड़ा। याद कीजिए राडिया काँड को जब लोग पत्रकारों से ये पूछने लगे थे कि आप राडिया से हैं या मीडिया से। इसी तरह से जब नवीन जिंदल ने ज़ी समूह के दो संपादकों का रिवर्स स्टिंग किया था तब भी मीडिया की इसी तरह छवि जनता में बनी थी।
वैसे मुख्यधारा के मीडिया के कंटेंट का विश्लेषण करके कोई भी बता सकता है कि उसका एजेंडा क्या है और उसे कौन सेट कर रहा है। ये सर्वविदित है कि मीडिया के एजेंडे में अवाम नहीं, सरकार तथा बड़े औद्योगिक एवं व्यापारिक घराने हैं। वह उन्हीं की सेवा में रत है। उन्हीं के हितों की बात करता है, उन्हें ही खुदा बनाने में लगा रहता है। अगर शेखर गुप्ता का इंडियन एक्सप्रेस कार्पोरेट का मुखपत्र था तो अर्नब गोस्वामी अंध राष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करने अपनी विशेषज्ञता दिखाते रहते हैं। इंडिया टीवी, ज़ी टीवी और इंडिया न्यूज़ खुले आम पूरी निर्लज्जता के साथ मोदी, उनकी सरकार और उनके परिवार की हिमायत, वकालत करते रहते हैं। एकाध को छोड़ दें तो बाक़ी के चैनल भी यही काम करते हैं बस थोड़ा सा परदा रखते हैं। प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया का आलम इससे कुछ अलग नहीं है। ऐसे में मीडिया कैसे उम्मीद कर सकता है कि उसे सम्मान से देखा जाए, उस पर प्रहार न किए जाएं या कम से कम वेश्या तो न कहा जाए।
जर्गेन हैबरमास ने लोकतंत्र में मीडिया को पब्लिक स्फीयर का महत्वपूर्ण हिस्सा माना था। उससे उम्मीद की थी कि वह जनता का प्रवक्ता होने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझेगा और जागरूक विपक्ष की भूमिका निभाएगा। लेकिन ये एक छलावा साबित हो रहा है। वास्तव में पूँजीवादी व्यवस्था में इस अपेक्षा को पूरा करना उसके लिए संभव ही नहीं था। इसीलिए वह कभी भी शक़ के दायरे से बाहर नहीं रहा। फिर भी लंबे समय तक उसे पवित्र गाय की तरह देखा जाता रहा और अपेक्षा की जाती रही कि सब लोग उसका सम्मान करेंगे और बदले में वह सबकी आवाज़ बनेगा। लेकिन ये हुआ नहीं। नवउदारवाद के दौर में वह पूरी तरह से सत्ता प्रतिष्ठान की गोद में जा बैठा। इसलिए कई लोग उसे बड़े कार्पोरेट घरानों की चेरी और रखैल तक कह रहे हैं। प्रेस्टीट्यूट शब्द का बनना और उसका खुलकर इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का बढ़ता जाना बताता है कि मीडिया की साख कितनी गिर गई है और वह कितना अविश्सनीय हो गया है। जैसे-जैसे नवउदारवादी प्रवृत्तियाँ और बढ़ेंगी उसका पतन भी बढ़ता जाएगा। ऐसे में इसकी कल्पना करना असंभव नहीं है कि मुख्यधारा का मीडिया लुगदी साहित्य से भी नीचे गिरते हुए पीली किताबों में तब्दील हो जाएगा।
हालाँकि इन हालात में मीडिया का पक्ष लेना बड़ा जोखिम लेना है, लेकिन जब पूरा तंत्र फासीवाद की गिरफ़्त में चला गया हो तो एक छोटी सी आस उसी से बच रहती है। लगता है कि उसमें जो कुछ भी अच्छा है उसे बचाया जाना चाहिए, अन्यथा अन्याय-अत्याचार से लड़ना बेहद मुश्किल हो जाएगा। इसलिए लाज़िमी है कि वी. के. सिंह या मार्कंडेय काटजू जैसे लोगों से मीडिया को बचाया जाए और ऐसा करते समय ये ध्यान रहे कि मीडिया के कारोबारियों के हाथ मज़बूत न हों। वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हमेशा की तरह अपने धंधे और गंदी नीयत की ढाल न बना लें। ज़ाहिर है इन दो परस्पर विरोधाभासों को साधना बहुत ही टेढ़ी खीर है। फिर ये सवाल भी उठता है कि क्या सदिच्छा से ही कुछ बचाया जा सकता है और अगर बच सकता तो ये नौबत क्यों आती? वह इस कदर गिरने के पहले सँभल न जाता।

ना ना ना ना ना नाना (प्रकार) के ना ना संपादक

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अनामी शरण बबल


दोस्तों पत्रकारिता मे आजकल नाना प्रकार के संपादकों का भारी जलवा है।  अपने 25 साल के उठापटक खींचतान उतार चढाव बेकारी और बेगारी के तमाम अनुभवों के साथ कई संपादकों  से सामना (पाला) पडा, जिन्हें जिनके साथ काम करने देखने मिलने और आदर देने का महासुख के साथ तकरार करने का भी संयोग प्राप्त हुआ। अपने अनुभवो को फिर कभी लिखूंगा मगर दिल्ली मे किस किस तरह के संपादक आकर अपनी धौंस जमाते हुए पत्रकारिताकी नयी परिभाषा लिखते है अथवा गढ़ते है । अपने आप को सबसे अच्छा सबसे बढ़िया सबसे काबिल और एकदम अनोखे लाल साबित करने की फिराक में लग जाते है।
  दिल्ली से प्रकाशित एक समाचारपत्र के भूत (पूर्व) संपादक   तो एकदम लिखाड थे। संपादक को मय चित्र रोजाना संपादकीय पेज परसुशोभित देखता। संपादक जी ने बाईलाईन  संपादकीय  में  सचित्र आलेख की तरह रोजाना प्रकट होते थे. पेपर में संपादकीय की इस प्रस्तुति को एक नये प्रयोग की तरह देखाौर माना जा रहाथा। उसी प्रजातांत्रिक अखबार के लोकतात्रिक संपादक के बारे में अपने दो चार पत्रकारों से सराहना की। तो, कई मित्र फट पडे। अरे का लिखेंगे उपर से लेकर नीचे तक तलवा चाटने और मीठी भाषा में हडकाने से मौका मिलेगा तो न। संपादकीय आलेख लिखता कोई और हैं, मगर मयफोटो बतौर लेखकावतार के रूप में संपादक जी सुशोभित होते थे।
 कुछ दिनों तक मैंने भी (करीब ढाई माह) इस प्रजातांत्रिक अखबारका पाठन किया, मगर कितने अखबार को पढा जाए।  लिहाजा बहुत सारे मामलों में यह पेपर कसौटा पर खरा (इसका मतलब यह ना माना जाए कि और भी जो पेपर यहां से रोजाना छप रहे हैं वो एकदम सुपर है। यह कतई ना माने मगर एक आदत्त में शुमार होने की वजह से कई अखबार केवल दर्शनार्थ ही घर में मंगाना पड़ता है। बेटी के लिए हिंदू और मिंट बीबी के लिए नभाटा  और घर भर के लिए एचटी और मेरे लिए कोई नही । यही उपरोक्त्त पेपर बतौर खुरचन।  (अखबारों के पसंद के मामले में अपनी पसंद एकदम बदचलन चरित्रहीन सी है। किसी से मन भरता ही नहीं। ( यहां पर तथाकथित संपादकों से ज्यादा अपने मन को पापी मानता हूं कि वो एक से रह नहीं पाता। कभी जागरण तो कभी हिन्दुस्तान कभी भास्कर कभी सहारा कभी किसी दिन जनसत्ता तो कभी नवोदय तो किसी दिन  नेशनल दुनियां तो हर शनिवार कभी सहारा तो कभी कभार अमर उजाला । यानी एक नवभारत टाईम्स का तो हिन्दी पेपरों में जलवा है, मगर मुझसे  ज्यादा श्रीमती जी को यह पसंद है। हालांकि बेहतर सुंदर प्रस्तुति और खबरों के चयन और पेश करने में यह औरों पर भारी रहता है। , मगर इसमें सबसे कम खबरें रहती है। .मतलब खबरों की लिहाज से तो यह सबसे दरिद्र है। ( तमाम अखबारों पर अपन एक लेख चल रहा है जिसमें तमाम पेपर को पाठकीय नजरिए से टीआरपी  दी जाएगी।
,मगर बहरहाल मैं बार बार एकदम रास्ता ही खो दे रहा हूं। यहां मैं नाना प्रकार के नहीं बल्कि एक अखबार के  नानानाना प्रकारेण संपादक पर चर्चा कर रहा था। मुझे ज्ञात हुआ कि  इसी  अखबार में अब कोई नए संपादक जी पधारे है। यह मेरी  अज्ञानता और अल्पज्ञानी होने का प्रमाण है कि नए संपादक जी से मैं अनजान सा था। कभी न नाम से न कभी कोई रपट लेख आदि से भी साबका अथवा पाला  नहीं पडा था। पता लगा कि आजकल संपादक जी तमाम लेखको पत्रकारों उपसंपादकों और खुंर्राट पत्रकारों को भी खबर कैसे लिखी जाती है,इसका ज्ञान  बॉटते फिर रहे है। बकौल संपादक जी ने फरमाया कि जब अपने अखबार को मैं किसी गार्ड चायवाला रिक्शावाला या ले मैन को पढ़ते देखता हूं तो शर्मसार सा हो जाता हूं। संपादकजी ने अपने सहकर्मियों को बताया कि इस तरह के पाठकों वाला अखबार मानक और गुणवत्ता में भी ले मैन सा ही मेनस्ट्रीम से बाहर रहता है। अपनी हांक लगाते हुए तथाकथित महान संपादक जी ने हूंकारा कि मैं इस अखबार को एक क्लास के लिए बनाउंगा। जिसका मासिक वेतन डेढ़लाख यानी 18 लाख सालाना वेतन से कम वेतन पाने वाला वर्ग समाज या लोग हमारे इस पेपर के पाठक नहीं होंगे। इस प्रजातांत्रिक समाज में अपने अखबार को 18 लाखी बनाने में महान संपादक लीन है. तमाम लेखकों को लिखने का कौशल औरगूर बताते हुए तमाम रिपोर्टरों से उनकी बेस्ट रपट लाने और दिखाने का फरमान भी दे रहे हैं।
बहरहाल जबसे मैं इस 18लाखी पाठक समुदाय  वाले महान संपादक के महान विचारों से रूबरू हुआहूं तब से हिन्दी के अल्पज्ञानी मगर ग्लोबल स्टैण्डर्ड वाले जीव जंतुओं के प्रति मन में दया उपजने लगी है। मेरा तो यह साफ मानना है कि  कम पढा लिखा समाज भी यदि आपके अखबार पर अपना समय देता है पढता है तो सही मायने में उसका विश्वास ही किसी अखबार की सबसे बड़ी पूंजी है। इस तरह के पाठकों को देखकर तो किसी भी संपादक का सीना 56 इंची हो सकता है। और रही बात18 लाखी क्लास परिवार समुदाय की  तो यह वर्ग कितना बडा समाज है? अपने आप में मशगूल सा रहने वाला यह तथाकथित समाज या वर्ग तो किसी भी अखबार का पाठक नहीं केवल खरीददार होता है, और मेरे ख्याल से खरीददार सबसे बेईमान होता है, वो केवल लाभ देखता है। इस वर्ग की आस्था इमोशनल जुड़ाव किसी से नहीं होता। जब उन्हें अपनों से कोई लगाव नहीं होता तो अखबार किस खेत की उसके लिए गाजर मूलीहै ?
बहरहाल आजकल संपादक जी अपनी  धौंस जमाने दिखाने के लिए दफ्तर में श्रीलंका कांड का गेमप्लान कर रहे है। इस पेपरके मालिक कितने लाइव चालू पूर्जा या स्मार्ट हैं यह तो आने वाला समय ही बताए। मगर एक साल के भीतर ही कई संपादकों को चलता करने वाला यह चौथा खंभा पेपर इस संपादक को अपने सिर पर कब तक  नाचने देता है,यही देखना दिलचस्प है। .मगर संपादकों की जुबानी शेर पीढी में इस तरह के संपादक ही सर्वत्र दिख रहे है। मीडिया के मानक का क्या होगा यहतो राम जाने मगर अपने महान संपादकजी के बारे में विचार करना एक शोकगीत के गायन सा प्रतीत होता है।

प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर  ।

पत्रकारिता vs journalism

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प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर 


पत्रकारिता (journalism) आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।

इतिहास

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

इंटरनेट पर हिन्दी खबरों का खजाना

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प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर




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इंटरनेट से अपने बच्चों की रक्षा करे

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प्रस्तुति- राहुल मानव

इंटरनेट शिकारियों से अपने बच्चे की रक्षा

सबसे बड़ी बच्चों को जोखिम शाम घंटों के दौरान होती है; इंटरनेट खतरनाक हो सकता है 24 / 7 सकते हैं लेकिन गतिविधि ज्यादा देर शाम घंटों में अधिक है. जैसा कि एक माता पिता के समय समय पर किसी भी नए फाइल डाउनलोड के लिए कंप्यूटर की जाँच करें. अक्सर बार अश्लीलता बच्चों के ज़ुल्म में प्रयोग किया जाता है. यह सेक्स करने के लिए अश्लील साहित्य के साथ संभावित शिकार आपूर्ति अपराधियों के लिए आम है, यह उनके ऊपर से सेक्स शामिल चर्चाओं को खोलने का प्रयास है. यह भी करने के लिए बच्चों को पता चलता है कि उनमें और एक वयस्क के बीच यौन संबंध ठीक है या सामान्य है का प्रयास किया जा सकता है. के बच्चे शिकार बताते हैं कि बच्चों और वयस्कों के बीच यौन संबंध सामान्य है इस्तेमाल किया जा सकता है. ? फिर, नए अजीब गतिविधि के लिए और फ़ाइलों को डाउनलोड खोजें.
अपने बच्चे को पुरुषों तुम नहीं जानते से फोन कॉल प्राप्त करता है या कॉल करने के लिए, कभी कभी नंबर आप टी डॉन पहचान करने के लिए लंबी दूरी,.
बच्चे को बाहर एक फ़ोन नंबर या संपर्क जानकारी देने के लिए संकोच हो सकता है लेकिन शिकारी को ऐसा करने के लिए जल्दी है. लंबी दूरी की कॉल कि आप नहीं पहचान के लिए तलाश में रहो. अपने कॉलर आईडी नियमित जाँच के लिए यकीन है कि तुम न फोन नंबर है कि टी डॉन एक घंटी की अंगूठी देख कर. इसके अलावा, 800 नंबर के रूप में ऐसी बातों के लिए देखो मिलाया या संख्याओं कि अजीब देखने के लिए फोन कॉल्स इकट्ठा.
अपने बच्चे को उत्तेजित करता है कंप्यूटर बंद मॉनिटर या जल्दी से मॉनीटर पर स्क्रीन परिवर्तन जब आप कमरे में आते हैं.
अपने बच्चे को आप उन्हें कंप्यूटर पर आश्चर्य की बात पर कैसे प्रतिक्रिया करता है. क्या वह जल्दी से कंप्यूटर मॉनिटर बंद या स्क्रीन ढाल. यदि हां, तो यह एक संभावित समस्या यह है कि आपके तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
एक बच्चे को अश्लील छवियों को देख या कामोत्तेजक बातचीत कर आप इसे स्क्रीन पर देखने के लिए नहीं चाहता है.
अपने बच्चे को एक ऑन लाइन किसी और से संबंधित खाते का उपयोग कर रहा है.
यहां तक ​​कि अगर तुम न एक सेवा पर लाइन की सदस्यता या इंटरनेट सेवा, अपने बच्चे को एक अपराधी को पूरा कर सकते हैं जबकि एक दोस्त के घर या लायब्रेरी में ऑन लाइन. अधिकांश कंप्यूटर आने पर लाइन और / या इंटरनेट सॉफ्टवेयर के साथ preloaded. कम्प्यूटर की यौन अपराधियों कभी कभी उन लोगों के साथ संचार के लिए एक कंप्यूटर खाते के साथ संभावित शिकार लोगों को प्रदान करेगा.
क्या तुम यदि आपको संदेह है अपने बच्चे को एक यौन शिकारी के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए ऑन लाइन?
आप खुलेआम और ईमानदारी से अपने बच्चे के साथ अपनी चिंताओं के बारे में बातचीत करनी चाहिए. उन्हें अपराधियों के साथ संवाद स्थापित करने के खतरों समझाओ. समीक्षा करें और कुछ भी आप अपने बच्चे के कंप्यूटर पर पा सकते हैं बचाने के लिए, यदि आप नहीं जानते कि यह कैसे करना है, पूरे कंप्यूटर जब्त और उसे पकड़ जब तक किसी को यह चेक कर सकते हैं.
कॉलर आईडी का उपयोग करने के लिए निर्धारित है जो अपने बच्चे को बुला रहा है या जो वह / वह से संपर्क है. वहाँ दोनों इंटरनेट और फोन है कि माता पिता साइटों के कुछ प्रकार पहुँचने या फोन करने से बच्चों को ब्लॉक करने की अनुमति पर उपलब्ध सेवाओं रहे हैं. तुम भी फोन कंपनी की मदद से आप सेट अप एक फोन करने वाले कुछ निश्चित संख्या से ठुकराना कॉल करने की सुविधा को अस्वीकार कर सकते हैं.
नियमित रूप से अपने बच्चे की ऑनलाइन आदतों पर नजर रखने के लिए याद रखें, इस का मतलब सहित, चैट, त्वरित संदेश, ईमेल, सामाजिक नेटवर्क, आदि इलेक्ट्रॉनिक संचार के सभी प्रकार कम्प्यूटर की यौन अपराधियों लगभग हमेशा कमरे चैट के माध्यम से संभावित शिकार लोगों से मिलने. एक बच्चे पर लाइन बैठक के बाद, वे ई – मेल के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से अक्सर संवाद जारी रहेगा.
छिपे हुए कैमरे में निवेश करने के लिए कब्जा क्या आपका बच्चा जब तुम आस पास नहीं हैं, क्या कर रही है पर विचार करें. यह उनके लाभ और सुरक्षा के लिए है. यह संभवतः वहां जीवन को बचा सकता.
निम्नलिखित परिस्थितियों में से कोई भी अपने घर में पैदा, इंटरनेट या ऑन लाइन सेवा के माध्यम से, आप तुरंत अपने स्थानीय या राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसी, एफबीआई, और गुम और शोषित बच्चे के लिए राष्ट्रीय केन्द्र से संपर्क करना चाहिए करना चाहिए

बच्चों की चंचलता,हंसी और भोलापन को कैश कर रहे है रियल्टी शो

बच्चों की चंचलता,हंसी और भोलापन को कैश कर रहे है रियल्टी शो
एक कटु सच्चाई है कि हम सब हर साल नवम्बर में बाल दिवस का जश्न मनाते हैं,लेकिन बचपन पर चारो ओर से खतरे मंडरा रहे है। हम उतना आज तक भी बाल अधिकारों के प्रति सहिष्णु नहीं हो पाये हैं जितना हमें होना चाहिए।
करीब तीन महीने पहले भी पूरे भारत देश में सरकारी स्तर पर बाल दिवस मनाया गया थां।सच्चे आंकडेे है कि मेरे महान देश में एक दो नहीं, लाखों बच्चे ऐसे हैं जो उचित व्यवस्था के अभाव में मानसिक-शारीरिक शोषण के शिकार हो रहे हैं।जबकि देश में बाल अधिकारों के रक्षण से जुड़े कानून है लेकिन ऐसे बाल अधिकार कानून का क्या फायदा?खुद कानून इतने दोषपूर्ण कि बाल अधिकारों को संरक्षण नहीं दे पा रहे या इन कानूनों के पालन सही तरीके से हो इस पर निगरानी रखने वाली कोई जिम्मेदार एजेंसी का अभाव है।तय है कि ऐसे बच्चों की कमी नहीं जिनका बचपन असमय ही छीन लिया गया है.।बच्चों के मौलिक अधिकार की बातें कागजों तक ही सीमित हैं।लम्बे समय से समाज बच्चों को उत्तम सुविधाएं देने की अपेक्षाओं के पालन में असफल रहा है. उनकी शिक्षा दीक्षा की उपेक्षा कर उन्हें ऐसे कामों में लगाना बदस्तूर जारी है जो उनके शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालने वाला साबित हुआ है.।ऐसे कार्य जो बच्चों के बौद्धिक, मानसिक, शैक्षिक, नैतिक विकास में बाधा पहुंचाये वो सभी बालश्रम जोकि एक अपराध है कि परिधि में आते हैं।वह कोई भी स्थिति जो बच्चे को कमाई करने पर मजबूर कर रही हो बालश्रम है और ऐसे कार्यों में लगे बच्चे बालश्रमिक.।इन बाल श्रमिकों की संख्या पर रोक लगना तो दूर बल्कि अब और नये किस्म के बाल श्रमिक सामने आ रहे हैं।
रिएल्टी शो में कार्य करने वाले बच्चों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है. इन शो को देखकर साफ लगता है कि ये बच्चों का भला नहीं कर रहे बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति को बढावा दे रहे हैं।हाल है कि बच्चों की चंचलता, उनकी हंसी, उनका भोलापन सभी को बाजार की चीज बनाकर कैश किया जा रहा है।ऐसे शो भावनाओं को उभारने और इस जरिये अपना बाजार तलाशने में लगे रहते हैं।गौर योग्य बात यह है कि ऐसे कार्यक्रमों के जरिये बच्चों में कलात्मकता और रचनात्मकता का विकास नहीं बल्कि शॉर्टकट तरीके से नेम फेम पाने की भावना जन्म ले रही है।.ऐसे रियल्टी शो ने बच्चों को चकाचैंध में लाकर उन्हें बाजारवाद का खिलौना बनाकर नए रूप में ढाला है।मैं कह सकता हूँ कि बालश्रम का समूल विनाश किये बगैर बच्चों को सही आजादी नहीं दी जा सकती.।मेरी मानना है कि बालश्रम पर रोक लगाने से बेरोजगारी भी दूर होगी.अभी जिन लगभग छह करोड स्थानों पर बच्चों से काम कराया जा रहा है।अगर उनकी जगह बडे काम करें तो समस्या काफी हद तक हल हो सकती है हमें इस सच्चाई को भी समझना होगा कि गरीबी के कारण बालश्रम नहीं बल्कि बालश्रम के कारण गरीबी बढ रही है.।आज शिक्षा की दिशा में बालश्रम बडी बाधा खडी है.।सभी प्रमुख देशों की तरह भारत में भी सर्व शिक्षा अभियान के नाम से मुफ्त शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है, क्या कहा जा सकता है कि सर्व शिक्षा अभियान से सभी बच्चे जुड़े है।सच्चाई तो यह है कि ऐसी स्थिति अभी नहीं बन पायी है।आने वाले कुछेक वर्षों में हमें ऐसी स्थिति बनानी होगी तभी बच्चे सचमुच बच्चे रह पाए।

गूगल ( डैस्कटॉप ) गाथा

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प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर 

गूगल डैस्कटॉप
Google Desktop's logo
The GDS Sidebar sits on the user's desktop and displays relevant information.
The GDS Sidebar sits on the user's desktop and displays relevant information. (Google Desktop on Microsoft Windows Vista)
विकासकर्तागूगल
स्थिर संस्करण५.९.१००५.१२३३५
प्रचालन तंत्रक्रॉस-प्लेटफॉर्म
प्रकारडैस्कटॉप सर्च
लाइसेंसमालिकाना
जालस्थलdesktop.google.com
गूगल डेस्कटॉप (अंग्रेजी:Google Desktop)लिनक्स, मैक ओएस एक्सतथा माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज़के लिये गूगलद्वारा निर्मित एक खोज सॉफ्टवेयर है। यह प्रोग्राम प्रयोक्ता के ई-मेल संदेशों, कंप्यूटर फाइलों, संगीत, छायाचित्रों, चैट, देखे गये वेब-पृष्ठों, तथा अन्य "गूगल गैजेट्स"में पाठ्य-सामग्री की खोज करने की सुविधा देता है।

अनुक्रम

विशेषताएं

जनवरी 2008 तक प्राप्त जानकारी के अनुसार गूगल डेस्कटॉप निम्नलिखित कार्यात्मकता प्रस्तुत करता हैः

फ़ाइल अनुक्रमण

यह सॉफ्टवेयर सर्वप्रथम गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) को संस्थापित करने के बाद कंप्यूटर की सभी फ़ाइलों के अनुक्रमण का कार्य पूर्ण करता है। प्रारंभिक अनुक्रमण पूर्ण हो जाने के बाद भी यह सॉफ्टवेयर आवश्यकतानुसार फाइलों को अनुक्रमित करना जारी रखता है। इस प्रोग्राम की संस्थापना के तुरंत बाद ही प्रयोक्ता फाइलों की खोज आरंभ कर सकते हैं। खोज कार्य करने के उपरांत परिणामों को गूगल वेब (Google Web) खोजों की भांति एक इंटरनेट ब्राउज़र के पृष्ठ गूगल डेस्कटॉप होम पेज (Google Desktop Home Page) पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) अनेक प्रकार के विभिन्न डेटा को अनुक्रमित कर सकता है, जिसमें ईमेल, इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorerऔर मोज़िला फायरफॉक्स (Mozilla Firefox)से वेब ब्राउज़िंग का इतिहास, ओपनडॉक्युमेंट (OpenDocument) व माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस (Microsoft Office)प्रारूपों में ऑफिस दस्तावेज, एओएल (AOL), गूगल (Google), एमएसएन (MSN), स्काइपे (Skype), टेन्सेन्ट क्यूक्यू (Tencent QQ) से इंस्टेंट मैसेंजर ट्रांस्क्रिप्ट, तथा विभिन्न मल्टीमीडिया फाइल प्रकार शामिल हैं। - प्लग-इन्स के माध्यम से अतिरिक्त प्रकार की फाइलों को भी अनुक्रमित किया जा सकता है।[1]गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) उपयोगकर्ता को इस प्रोग्राम द्वारा अनुक्रमित किये जाने वाले डाटा के प्रकार को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) आरंभिक अनुक्रमण अवधि के दौरान केवल 100,000 फ़ाइलें प्रति ड्राइव अनुक्रमित करता है। यदि उपयोगकर्ताओं के एक विशेष ड्राइव में 1,00,000 से अधिक फ़ाइलें हैं, तो गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) उन सभी फाइलों को इस प्रारंभिक अवधि के दौरान अनुक्रमित नहीं करेगा. हालांकि, जब भी उपयोगकर्ता उन फाइलों को खोलेंगे तब गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) उन्हें वास्तविक समय के दौरान अनुक्रमित कर देगा.[2]

साइडबार

चित्र:Google-Gadgets-Screenshot.jpg
गैजेट्स के स्क्रीनशॉट
गूगल डेस्कटॉप की एक प्रमुख विशेषता इसका साइडबार है, जिसमें अनेक आम गैजेट होते हैं तथा जो डेस्कटॉप पर एक ओर स्थित होता है। साइडबार गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) के माइक्रोसोफ्ट विंडोज (Microsoft Windows) तथा लिनक्स (Linux) संस्करणों के साथ उपलब्ध है। साइडबार निम्नलिखित पूर्व-संस्थापित गैजेट्स के साथ आता है:
  • ईमेल - एक पैनल है जिस पर अपने जीमेल (Gmail)संदेशों को देखा जा सकता है।
  • स्क्रैच पैड - यहां पर नोट्स संचित किये जा सकते हैं; वे स्वतः ही सहेज लिये जाते हैं।
  • छायाचित्र - "माय पिक्चर्स (My Pictures)"फोल्डर से चित्रों को स्लाइडशो के रूप में प्रदर्शित करता है। (पता बदला जा सकता है).
  • न्यूज - गूगल न्यूज़ (Google News) से नवीनतम सुर्खियां दिखाता है और बताता है कि वे कितने समय पूर्व लिखी गईं थीं आप जिस प्रकार के समाचार पढ़ना चाहते हैं, उसी के अनुसार न्यूज पैनल को वैयक्तीकृत किया जाता है।
  • मौसम - उपयोगकर्ता द्वारा निर्दिष्ट स्थान का ताज़ा मौसम दर्शाता है।
  • वेब क्लिप्स - आरएसएस (RSS)और ऐटम वेब से प्राप्त अद्यतन विषय वस्तु को दिखाता है।
  • गूगल टॉक - यदि गूगल टॉक (Google Talk)संस्थापित है, तो विण्डो के शीर्षक पर दो बार क्लिक करने पर यह साइडबार में पहुंच जाएगा.
विंडोज़ टास्कबार (Windows Taskbar) की तरह, गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) को भी ऑटो-हाइड (Auto-Hide) रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। यह तभी प्रदर्शित होगा जब उपयोगकर्ता माउस कर्सर को उस ओर ले जाएगा जहां यह स्थित हो. यदि ऑटो-हाइड रूप में नहीं है तो डिफ़ॉल्ट रूप से साइडबार हमेशा स्क्रीन के लगभग 1/6-1/9 (स्क्रीन रिजोल्यूशन के आधार पर) भाग में प्रदर्शित होता रहेगा और अन्य विंडोज़ को मजबूरन आकार बदलने होते हैं। हालांकि, साइडबार को कम जगह लेने के लिये आकार दिया जा सकता है और उपयोगकर्ता विकल्प में "हमेशा शीर्ष पर (always on top)"सुविधा को निष्क्रिय कर सकते हैं। ऑटो-हाइड सुविधा चालू रहने पर, साइडबार अधिकतम आकार पर खुली विंडोज़ को अस्थायी रूप से आच्छादित कर लेता है।
एक अन्य सुविधा जो साइडबार के साथ आती है वह है, अलर्ट. जब साइडबार को छोटा किया हुआ होता है, तो नये ई-मेल और समाचार विंडोज़ टास्कबार (Windows Taskbar) के ऊपर एक पॉप-अप विंडो में प्रदर्शित किये जा सकते हैं।

क्विक फाइंड

चित्र:Googledesktopquickfindbox200906.png
क्विक फाइंड बॉक्स
साइडबार, डेस्कबार या अस्थायी डेस्कबार में खोज करते समय गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) एक "क्विक फाइंड" ("Quick Find") विंडो प्रदर्शित करता है। इस विंडो में प्रयोक्ता के कंप्यूटर से सर्वाधिक प्रासंगिक 6 परिणाम (डिफ़ॉल्ट रूप से) प्रदर्शित होते हैं। उपयोगकर्ता जैसे-जैसे टाइप करता है, वैसे वैसे ही ये परिणाम भी अद्यतन होते रहते हैं और किसी अन्य ब्राउज़र विंडो को खोले बिना इनका उपयोग किया जा सकता है।

डेस्कबार (Deskbars)

डेस्कबार वे बॉक्स हैं जो डेस्कटॉप से सीधे खोज को संभव बनाते हैं। वेब परिणाम किसी ब्राउज़र विंडो में खुलते हैं तथा चयनित कंप्यूटर परिणाम "क्विक फाइंड (Quick Find)"बॉक्स (ऊपर देखें) में प्रदर्शित किये जाएंगे. एक डेस्कबार या तो एक स्थाई डेस्कबार, जो विंडोज टास्कबार (Windows Taskbar) में रहता है, या एक फ़्लोटिंग डेस्कबार हो सकता है जिसे जो डेस्कटॉप पर कहीं भी आसीन किया जा सकता है।

ईमेल अनुक्रमण

गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) में प्लगइन भी शामिल हैं जिनके द्वारा स्थानीय माइक्रोसॉफ्ट आउटलुक (Microsoft Outlook), आईबीएम लोटस नोट्स (IBM Lotus Notes) तथा मोज़िला थंडरबर्ड (Mozilla Thunderbird) ईमेल डेटाबेस की सामग्री का, ग्राहक के अंतर्निहित अनुप्रयोगों से बाहर अनुक्रमण एवं खोज की जा सकती है। लोटस नोट्स (Lotus Notes) के लिए, केवल स्थानीय डेटाबेस को खोज हेतु अनुक्रमित किया जाता है। गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) की ईमेल अनुक्रमण सुविधा भी गूगल (Google) की वेब आधारित ईमेल सेवा जीमेल (Gmail)के साथ एकीकृत है। यह जीमेल खातों में ईमेल संदेशों का अनुक्रमण और खोज कर सकती है।

गैजेट्स और प्लग-इन

डेस्कटॉप गैजेट्स इंटरैक्टिव मिनी अनुप्रयोग हैं जिन्हें नये ईमेल, मौसम, छाया चित्र और वैयक्तीकृत समाचार दिखाने के लिये उपयोगकर्ता के डेस्कटॉप पर कहीं भी रखा जा सकता है या साइडबार में आसीन किया जा सकता है। गूगल (Google) अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर पूर्व-निर्मित उपकरणों की एक गैलरी डाउनलोड के लिए प्रदान करता है। डेवलपर्स के लिये, गूगल एक एसडीके (SDK) तथा जो भी व्यक्ति गूगल डेस्कटॉप के लिये गैजेट्स या प्लग-इन्स लिखना चाहते हों, उनके लिये एक आधिकारिक ब्लॉग प्रदान करता है। एक स्वचालित प्रणाली "डेस्कटॉप हॉल ऑफ फेम" (Desktop Hall of Fame) नामक एक डेवलपर पदानुक्रम बनाती है, जहां प्रोग्रामर अपने उपकरणों की संख्या और लोकप्रियता के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं।
यह एसडीके (SDK) तृत्तीय-पक्ष अनुप्रयोगों को भी गूगल डेस्कटॉप सर्च (Google Desktop Search) द्वारा उपलब्ध कराई गई खोज सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, फ़ाइल प्रबंधक डायरेक्ट्री ओपस (Directory Opus) एकीकृत गूगल डेस्कटॉप खोज (Google Desktop Search) समर्थन प्रदान करता है।

परिणामों की सूची: शीर्षक मेटा-डाटा

हालांकि अन्य डेस्कटॉप खोज प्रोग्राम भी मेटा-डेटा फ़ाइलों की खोज कर सकते हैं, किंतु एक मात्र गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) (विंडोज़ के लिये) ही है, जो अपनी सभी फ़ाइलों की परिणाम सूचियों में "शीर्षक"टैग का उपयोग करता है। (लिनक्स पर यह एचटीएमएल फ़ाइलों के मेटा-डेटा को दिखाता है लेकिन पीडीएफ (pdf) फ़ाइलें नहीं). अन्य प्रोग्राम अपने परिणामों की सूची के लिए फ़ाइल नामों का उपयोग करते हैं। "शीर्षक"टैग का उपयोग उल्लेखनीय रूप से बेहतर प्रयोक्ता अनुभव देता है क्योंकि मेटाडेटा शीर्षक (जब मौजूद हों) साधारण भाषा में लिखे जाते हैं, जबकि फ़ाइल नाम कम अभिव्यक्तिशील होते हैं। जब फ़ाइल में मेटा डेटा शीर्षक मौजूद नहीं होता तो गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) फाइलनाम के प्रयोग पर लौट आता है।

जारी होने का इतिहास

चित्र:Desktop scrshotmac.jpg
मैक ओएस एक्स (Mac OS X) पर चल रहा गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop).
चित्र:Desktop scrshotlinux.jpg
रेड हैट लिनक्स पर चल रहा गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop).
गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) को मूल रूप से गूगल (Google) खोज तकनीक को डेस्कटॉप तक लाने के लिए विकसित किया गया था। गूगल डेस्कटॉप का बहुत अधिक स्वागत हुआ क्योंकि यह गूगल (Google) के स्वामित्व वाली खोज कलन विधि की विपरीत अभियांत्रिकी (reverse engineering) की अनुमति देता है।
केंद्रीय रूप से प्रशासित संस्करण,[3]जो प्रयोक्ता के अनुभव को विक्रेता के उपकरण के साथ एकीकृत करता है, भी मौजूद है
माइक्रोसेफ्ट विंडोज (Microsoft Windows)
  • गूगल डेस्कटॉप सर्च (Google Desktop Search) को पहली बार एक बीटा संस्करण के रूप में 14 अक्टूबर 2004 को रिलीज किया गया था।[4]
  • संस्करण 2 एक बीटा संस्करण के रूप में 22 अगस्त 2005 को जारी किया गया। डेस्कटॉप 2 को डेस्कटॉप से अलग करने वाली विशेषता साइडबार का जुड़ना है, जो कि एक ऐसा पैनल है, जो वैयक्तिकृत जानकारी को प्रदर्शित करता है, जिसे विंडोज डेस्कटॉप के दोनों ओर रखा जा सकता है और जो वास्तविक-समय के समाचार, ई-मेल, छाया चित्र, स्टॉक, तथा मौसम आदि को प्रदर्शित करता है। साइडबार में एक खोज बॉक्स है जो सिर्फ पीसी (PC) की या गूगल (Google) के अन्य खोज प्रकारों (जैसे वेब, छवियाँ, समाचार, समूह) की खोज कर सकता है। गूगल डेस्कटॉप 2 (Google Desktop 2) ने दिनांक 3 नवम्बर 2005 को स्वयं को बीटा संस्करण से क्रमोन्नत किया। नई सुविधाओं में शामिल है गूगल मैप्स (Google Maps) के लिये एक साइडबार प्लग-इन तथा अधिक प्लग-इन डेवलपर समर्थन.[5]
  • गूगल डेस्कटॉप 3 बीटा (Google Desktop 3 Beta) 9 फ़रवरी 2006 को जारी किया गया। इसमें एक नेटवर्क में एकाधिक कंप्यूटरों पर खोज के लिए समर्थन शामिल है।[6]गूगल डेस्कटॉप 3 (Google Desktop 3) 14 मार्च 2006 को बीटा संस्करण से क्रमोन्नत हुआ। इस संस्करण में उल्लेखनीय है एक त्वरित खोज बॉक्स, जो दो बार "कंट्रोल"दबाने पर डेस्कटॉप पर कहीं भी प्रदर्शित हो जाता है।[7]
  • गूगल डेस्कटॉप 4 बीटा (Google Desktop 4Beta) 10 मई 2006 को जारी किया गया। इसकी सुविधाओं में गूगल गैजेट्स (Google Gadgets), मॉड्यूल है जो सूचनाओं की एक सारणी प्रदान कर सकता है। इसमें मिटाई जा चुकी फाइलों को खोज परिणामों से स्वचालित रूप से हटा देने का विकल्प भी प्रस्तुत किया गया है।[8]गूगल डेस्कटॉप 4 (Google Desktop 4) दिनांक 27 जून 2006 को बीटा संस्करण से क्रमोन्नत हुआ।
  • गूगल डेस्कटॉप 4.5 (Google Desktop v4.5) 14 नवम्बर 2006 को साइडबार में पारदर्शी सौंदर्यात्मकता तथा चलायमान गैजेट्स जोड़ते हुए जारी किया गया था। साइडबार में समाचार, स्टॉक, मौसम, छाया चित्र, आदि के शैली के अधिक अनुरूप आइकनों के साथ सुचित्रित इंटरफ़ेस में भी वृद्धि की गई। संस्करण 4.5 में विंडोज विस्टा (Windows Vista) के लिए भी समर्थन जोड़ा गया।
  • गूगल डेस्कटॉप 5 बीटा (Google Desktop 5 Beta) 6 मार्च 2007 को जारी किया गया।
  • गूगल डेस्कटॉप 5.1 बीटा (Google Desktop 5.1 Beta) (डेस्कटॉप 5 बीटा जारी होने के बाद पहला संस्करण) 27 अप्रैल 2007 को डाउनलोड के लिए उपलब्ध कराया गया है।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप 5.5 (Google Desktop v 5.5) 2 अक्टूबर 2007 को जारी किया गया था।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप 5.5 (Google Desktop 5.5)(5.7.0802.22438) 29 फ़रवरी 2008 को जारी किया गया था।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप 5.5 (Google Desktop 5.5) (5.8.0806.18441) 1 जुलाई 2008 को जारी किया गया था।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप वी 5.8 (Google Desktop v 5.8)(5.8.0809.08522) 11 सितम्बर 2008 को जारी किया गया था।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप वी 5.8 (Google Desktop v 5.8)(5.8.0809.23506) 5 अक्टूबर 2008 को जारी किया गया था।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप वी 5.9 (Google Desktop v 5.9) (5.9.0906.04286) 8 जुलाई 2009 को जारी किया गया था। इसमें क्रोम ब्राउज़र के लिए समर्थन जोड़ा गया तथा यह रिलीज़ नोट में उल्लिखित अंतिम संस्करण है।[9]
  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) संस्करण वी 5.9.0909.02235 फायरफॉक्स 3 (Firefox 3) तथा इंटरनेट एक्सप्लोरर 8 (Internet Explorer 8) की निजी ब्राउजिंग सुविधाओं के लिये समर्थन दिया गया।[10]
  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) वी 5.9.0909.30391 संस्करण जारी किया जा चुका है।
  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) वी 5.9.0911.03589 संस्करण जारी किया जा चुका है।
  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) वी 5.9.1005.12335 मई 2010 में जारी किया गया है।
मैक (Mac)
  • अप्रैल 2007 में, गूगल (Google) ने मैक ओएसएक्स (Mac OS X) के लिये डेस्कटॉप 1.0 (Desktop 1.0) जारी किया जो मैक ओएसएक्स संस्करण वी 10.4(Mac OS X v 10.4) के खोज उपकरण स्पॉटलाइट के साथ-साथ कार्य कर सकता है।[11]
  • 29 नवम्बर 2007 को गूगल (Google) ने मैक ओएसएक्स (Mac OS X) के लिये डेस्कटॉप (Desktop) संस्करण 1.4.0.826 बीटा[12]जारी किया जो जो गैजेट्स समर्थन के लिए डैशबोर्ड में प्लग होता है।
  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) का मैक संस्करण 1.6 स्नो लेपर्ड (Snow Leopard) के अधीन कार्य नहीं करता है। 27 मई 2010 से अभी तक गूगल (Google) को स्नो लेपर्ड समर्थन के लिये के लिये एक सुधार (अपडेट) जारी करना शेष है।
लिनक्स
  • गूगल (Google) ने 27 जून 2007 को लिनक्स के लिये लिए डेस्कटॉप (Desktop) 1.0 जारी किया है।[13]इसमें वर्तमान में विंडोज़ (Windows) संस्करण की बुनियादी सुविधाएं हैं लेकिन साइडबार कार्यशीलता नहीं है।
  • गूगल (Google) ने 18 दिसम्बर 2007 को लिनक्स (Linux) के लिए गूगल डेस्कटॉप (Desktop) में 64 बिट समर्थन के साथ संस्करण 1.1.1.0075 डाउनलोड के लिए उपलब्ध किया है।[14]
  • लिनक्स (Linux) के लिए गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) संस्करण 1.2.0.0088 11 अप्रैल 2008 को जारी किया गया था।[14]

आलोचनाएं

सुरक्षा

फरवरी 2007 में वॉचफायर (Watchfire) के याएर अमित (Yair Amit) ने गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) में कमजोरियों की एक श्रृंखला पाई जो एक दुर्भावनायुक्त व्यक्ति को संवेदनशील डेटा तक न केवल दूरस्थ, लगातार पहुंच की बल्कि कुछ मामलों में पूरी प्रणाली के नियंत्रण की अनुमति दे सकती है।[15]इसके महत्वपूर्ण प्रभाव तथा दोहन की आसानी ने गूगल (Google) को गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) के संस्करण 5 में गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) के कुछ गणितीय तर्कों को बदलने के लिए मजबूर कर दिया.

गोपनीयता

इन्हें भी देखें: Criticism of Google#Privacy
कई गोपनीयता एवं नागरिक स्वतंत्रता समूहों जैसे इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन (Electronic Frontier Foundation) (ईएफएफ) (EFF) को चिंता है कि लोगों के कंप्यूटरों पर उपयोगकर्ताओं के हार्ड ड्राइव से व्यक्तिगत जानकारी को आसानी से कॉपी किया जा सकता है।[16]
गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) संस्करण 3 में ऐसी कुछ सुविधायें हैं जो गंभीर सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएं उत्पन्न करती हैं। विशेष रूप से, कंप्यूटरों के पार साझा करनेकी सुविधा ने डेस्कटॉप से डेस्कटॉप सामग्री खोजने की क्षमता प्रदान की है जिसने उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता के लिए खतरा बढ़ा दिया है। यदि गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) संस्करण 3 को कंप्यूटरों के पार खोजनेकी अनुमति देने के लिए सेट किया जाता है तो अनुक्रमित कंप्यूटर की फ़ाइलों की गूगल (Google) के सर्वर पर नकल हो जाती है। अपने कंप्यूटर पर गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) संस्करण 3 में इस सुविधा को सक्षम करके दूसरों की किसी के कंप्यूटर पर संग्रहित जानकारी तक संभावित पहुंच पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन ने इस सुविधा का प्रयोग न करने की सलाह दी है।[16]इसके अलावा, जिनके कार्यस्थल या घर के कंप्यूटर पर गोपनीय डेटा है उन्हें इस सुविधा को सक्षम नहीं करना चाहिए. इस सुविधा की संस्थापना से गोपनीयता कानूनों और कंपनी नीतियों, विशेष रूप से एसबी 1386 (SB 1386), एचआईपीएए (HIPAA), एफईआरपीए (FERPA), जीएलबीए (GLBA) और सरबेन्स ओक्सले (Sarbanes-Oxley) का उल्लंघन हो सकता है।[17]
संवेष्टन तथा अंतिम प्रयोक्ता अनुज्ञप्ति अनुबंध से अन्य अनेक दूरगामी चिंताएं सामने आती हैं, विशेषकर स्थानीय मशीन में घुसपैठ का स्तर तथा ये अस्वीकरण कि उपयोगकर्ता भविष्य में अनुज्ञप्ति अनुबंध में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं, जबकि वे वास्तव में उस समय उन्हें देख भी नहीं पाते.[18][19]

आउटलुक अनुक्रमण (Outlook indexing)

माइक्रोसोफ्ट आउटलुक (Microsoft Outlook) अनुक्रमण के संबंध में कुछ समस्याएं रही हैं।[20]मिटाये गये ईमेल सूचीकरणों को हटाया नहीं जाता था तथा संग्रहित मेल के नये सूचीकरण के लिये गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) की पुनर्संस्थापना की आवश्यकता होती थी। आउटलुक (Outlook) अनुक्रमण की मरम्मत के लिये कई संस्करण जारी किये गये हैं।[21] 2009 की पहली छमाही के दौरान, गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) उपयोगकर्ताओं की एक बड़ी संख्या ने सूचित किया कि जब अनुक्रमित फ़ाइल आकार में लगभग 4 जीबी पर पहुंची तो उत्पाद ने अचानक अनुक्रमण बंद कर दिया. एक पूर्ण संस्थापन रद्द करने (अनुक्रमण को मानवीय रूप से मिटाने सहित) तथा पुनर्संस्थापना से अस्थायी रूप से समस्या दूर हो जाएगी लेकिन जब भी अनुक्रमित फाइल 4 जीबी पहुंचेंगी यही समस्या फिर से सामने आ जायेगी. गूगल डेस्कटॉप खोज (Google Desktop Search) संस्करण 5.9 में इस का समस्या का समाधान कर दिया गया है।[22]वर्तमान में, गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) आउटलुक 2010 बीटा (Outlook 2010 Beta) में ईमेल या संपर्कों को अनुक्रमित नहीं करता.[23]

इन्हें भी देखें

  • डेस्कटॉप सर्च
  • डेस्कटॉप सर्च इंजन की सूची
  • गूगल (Google) सेवाओं और उपकरणों की सूची

संदर्भ


  • "All Indexing Plugins". अभिगमन तिथि: 2007-10-22.

  • आई कांट फाइंड : फाइल्स - विन्डोज़ (Windows) सहायता के लिए डेक्सटॉप - गूगल (Google)

  • एंटरप्राइज़ संस्करण सुविधाएं

  • गूगल प्रेस केंद्र: प्रेस प्रकाशन

  • आधिकारिक गूगल ब्लॉग: डेस्कटॉप ग्रोज़ अप

  • आधिकारिक गूगल ब्लॉग: न्यू ऑन योर डेस्कटॉप

  • आधिकारिक गूगल ब्लॉग: स्टे इन सीटीआरएल (Ctrl) सीटीआरएल (Ctrl)

  • आधिकारिक गूगल ब्लॉग: यस, वी आर स्टील ऑल अबाउट सर्च

  • "Latest Updates for Google Desktop".

  • "Indexing issues: Private Browsing Mode in IE8 or Firefox 3.5 Beta". Google. अभिगमन तिथि: 30 जुलाई 2010.

  • Mike Pinkerton (2007-04-04). "Google Desktop for Mac". Official Google Mac Blog. अभिगमन तिथि: 2007-04-19.

  • Google (November 28, 2007). ""Where can I obtain a list of known issues or release notes?"– "Current Version"". Desktop for Mac Help Center. अभिगमन तिथि: 2007-11-29.

  • Google (2007-06-27). "Google Desktop for Linux". Google Desktop for Linux. अभिगमन तिथि: 2007-07-27.

  • "Where can I obtain a list of known issues or release notes?". Google Inc..

  • ओवरटेकिंग गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) (वैकल्पिक लिंक)

  • प्रेस प्रकाशन: फरवरी 2006 | इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन

  • गूगल डेस्कटॉप 3 (Google Desktop 3) के लिए अधिक चिंता - इंटरनेट समाचार - ज़ेडडीनेट (ZDNet) एशिया

  • http://rixstep.com/2/20070621,00.shtmlगूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) ट्रैक: सेवा की शर्तें (गूगल में आपका स्वागत है)

  • http://rixstep.com/2/20070621,05.shtmlगूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) ट्रैक: द आफ्टरमैथ

  • आउटलुक सूचकांक और खोज

  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) के लिए विलंबतम ज्ञात मुद्दे

  • गूगल डेस्कटॉप (Google Desktop) सपोर्ट थ्रेड

  • बाहरी लिंक्स

    विकिपीडिया क्या है

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    प्रस्तुति-- रिद्धि सिन्हा नुपूर 


    निर्वाचित लेख

    श्रेणी के कुछ सैकड़ों पद और उनकें आंशिक संकलन।
    गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + · · ·एक अनन्त श्रेणीहै जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याएंहोती हैं जिसके एकांतर चिह्नहोते हैं। अनन्त श्रेणी के अपसरणका मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम (1, −1, 2, −2, ...)किसी परिमित मानकी ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर1 − 2 + 3 − 4 + · · · = 14बताया। दशक 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेलतथा अन्यों ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषितविधि प्रदान की – जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा 1 − 2 + 3 − 4 + · · ·का "योग"14लिख सकते हैं। सिसैरा-संकलनउन विधियों में से एक है जो 1 − 2 + 3 − 4 + ...का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा एबल संकलनविधि की आवश्यकता होती है। श्रेणी 1 − 2 + 3 − 4 + ..., ग्रांडी श्रेणी1 − 1 + 1 − 1 + ...से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी 1 − 2n + 3n− 4n + · · ·जहाँ (nयदृच्छ है), की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को बेसल समस्यातक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य फलनिक समीकरणके रूप में परिणत हुआ जिसे अब डीरिख्ले ईटा फलनऔर रीमान जीटा फलनके नाम से जाना जाता है। (विस्तार से पढ़ें...)

    समाचार

    नेपाल में आये भूकम्प का पुनर्व्यवस्थपन (शैकमैप) चित्र।

    क्या आप जानते हैं?

    बोरोबुदुर मंदिर

    निर्वाचित चित्र

    आज का आलेख

    भारत इलेक्ट्रॉनिक्स का प्रतीक चिह्न
    भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, भारत सरकारके रक्षा मंत्रालयके अधीन एक सैन्य एवं नागरिक उपकरण एवं संयंत्र निर्माणी है। भारत सरकारद्वारा सन १९५४ में सैन्य क्षेत्र की विशेष चुनौतीपूर्ण आवश्यकताऐं पूरी करने हेतु रक्षा मन्त्रालय के अधीन इसकी स्थापना की गई थी। इलेक्ट्रानिक उपकरण व प्रणालियों का विकास तथा उत्पादन देश में ही करने के उद्देश्य से इसका पहला कारखाना बंगलुरूमें लगाया गया था, किन्तु आज यह अपनी नौ उत्पादन इकाईयों, कई क्षेत्रीय कार्यालय तथा अनुसन्धान व विकास प्रयोगशालाओं से युक्त सार्वजनिक क्षेत्र का एक विशाल उपक्रम है, जिसे अपने व्यावसायिक प्रदर्शन के फलस्वरूप भारत सरकार से नवरत्न उद्योगका स्तर प्राप्त हुआ है। बंगलुरू मे मुख्य नैगमिक कार्यालय तथा एक विशाल उत्पादन इकाई के अतिरिक्त अन्य उत्पादन इकाईयाँ गाजियाबाद, पंचकुला, कोटद्वार, हैदराबादमछलीपत्तनम, नवी मुंबईपुणे, तथा चेन्नईमें स्थापित हैं।  विस्तार में...

    बन्धु प्रकल्प एवं अन्य भाषाओं में

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    विकिपीडिया:के बारे में कुछ सवाल

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    अनुक्रम

    विकिपीडिया क्या है?

    विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोश हैं जो दुनिया भर के उन लाखों योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखते हैं। विकिपीडिया के हर लेख एवं सामग्री के पीछे लाखों लोगों का कठिन प्रयास एवं ज्ञान निहित है। इस समय अंग्रेज़ी विकिपीडिया सबसे बड़ा एवं विशाल ज्ञानकोश है जिसमें ३५ लाख से भी अधिक लेख है। हिन्दी विकिपीडिया पर लेखों की संख्या १ लाख के लगभग है। विकिपीडिया परियोजनाएं २० भारतीय भाषाओं सहित विश्व की २७९ से भी अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं। विकिपीडिया में हर लेख स्वयंसेवकों के एक बड़ी संख्या में किए गए सहयोगी सम्पादनों का परिणाम है।

    विकि क्या है?

    विकि सॉफ़्टवेयर वार्ड कुन्निगमद्वारा १९९४ में विकसित किया गया था। तब उसने विकिवेब सॉफ़्टवेयर विकसित कर इसे २५ मार्च १९९५ को www.c2.com नामक वेबसाईट पर प्रस्तुत किया था। उसने स्वयं इसके लिए विकि नाम का सुझाव दिया था। उसने यह नाम होनोलुलु द्वीप पर स्थित हवाईअड्डे के एक कर्मचारी से सुना, जिसने उसे हवाईअड्डे के दोनों सिरों के बीच चलने वाली बस विकिविकि चान्स आर टी ५२ के बारे में बताया। विकि का अर्थ हवाईयन भाषा में तेज़ गति होता है।
    सामान्यत अन्तरजाल में किसी भी वेबसाईट पर कोई जानकारी देने के लिए अथवा सुरक्षित रखने के लिए हमें वेबसाईट के स्वामी से अनुमति लेनी पड़ती है परन्तु विकि एक ऎसा साफ़्टवेयर है जो सभी को किसी भी प्रकार की प्रतिबाधा से मुक्त रखकर बिना किसी तकनीकी ज्ञान एवं विशेषाधिकार के किसी भी सूचना सामग्री को जोड़ने, संशोधित करने एवं पुन: हटाने की सुविधा उपलब्ध कराता है। क्योंकि किसी विकि साफ़्टवेयर पर सूचना सामग्री डालना अत्यन्त सरल है जिस कारण यह सहयोगात्मक संलेखन के लिए एक सर्वोत्तम उपकरण है।

    क्या विकि और विकिपीडिया एक हैं?

    विकि और विकिपीडिया एक ही संस्था अथवा नाम नहीं है। चूंकि विकि साफ़्टवेयर सहयोगात्मक संलेखन के लिए एक सर्वोत्तम उपकरण है इसलिए विकिपीडिया जो कि एक मुक्त ज्ञानकोश है, सूचना सामग्री जोड़ने या हटाने के लिए इसका उपयोग करता है। विकिपीडिया केवल उन वेबसाइट्स में से एक सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं विशाल वेबसाईट है जो विकि साफ़्टवेयर का प्रयोग करती है इस कारण कई लोग यह मान लेते है कि विकि और विकिपीडिया दोनों एक ही हैं परन्तु यह सत्य नहीं।

    विकिपीडिया का इतिहास

    विकिपीडिया इण्टरनेट पर आधारित एक मुक्त ज्ञानकोश परियोजना है। यह विकि के रुप में है, यानी एक ऐसा जाल पृष्ठ जो सभी को इसका सम्पादन करने की छूठ देता है। विकिपीडिया शब्द विकि और एनसाइक्लोपीडिया (ज्ञानकोश) शब्दों को मिला कर बना है। विकिपीडिया एक बहुभाषीय प्रकल्प है, और स्वयंसेवकों के सहकार से निर्मित है। जिसकी भी इण्टरनेट तक पहुंच है वह विकिपीडिया पर लिख सकता है और लेखों का सम्पादन कर सकता है। विकिपीडिया के मुख्य सर्वर टैम्पा, फ़्लोरीडा में है। अतिरिक्त सर्वर एम्सटर्डम और सियोल में हैं।
    निपुण लोगों द्वारा बनाए गए ज्ञानकोश न्यूपीडिया के पूरक के रूप में २९ जनवरी, २००१ में इसका शुभारम्भ हुआ। अब यह विकिमीडिया फाउण्डेशन द्वारा संचालित है जो एक अलाभकारी संस्था है। २००६ के मध्य में इसमें ४६ लाख से भी अधिक लेख थे, और केवल अंग्रेज़ी भाषा में ही १२ लाख से भी अधिक लेख थे। अब यह २७९ से भी अधिक भाषाओं में है, जिसमें से ३६ भाषाओं में १ लाख से भी अधिक लेख हैं। जर्मन भाषा के विकिपीडिया को डीवीडी में भी वितरित किया गया है। विकिपीडिया के संस्थापक जिमी वेल्स के शब्दों में यह "विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के लिए, उनके अपनी भाषा में एक बहुभाषीय, मुक्त, सर्वाधिक सम्भव गुणवत्ता वाला विश्वकोश बनाने और वितरित करने का प्रयास है।"

    क्या इस विकि अभियान को केन्द्र या राज्य सरकार की सहायता प्राप्त है?

    विकिपीडिया एक अलाभकारी संगठन है जो विकिमीडिया फाउण्डेशन द्वारा संचालित किया जाता है। यह फाउण्डेशन सरकार से किसी प्रकार का कोई कोष या चन्दा प्राप्त नहीं करता। यह फाउण्डेशन मुख्यत सम्पूर्ण जन समुदाय के दिए गए दान से एकत्रित कोष द्वारा संचालित किया जाता है। क्योंकि अब विकिपीडीया अत्यधिक लोकप्रिय हो चुका है इसलिए कुछ सरकारी संस्थाएं एवं व्यवसायिक संगठन भी इसे दान के रुप में सहायता उपलब्ध करना आरम्भ कर चुके हैं।

    क्या मुझे हिन्दी विकिपीडिया पर कोई लेख आरम्भ करने से पहले पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है?

    अधिकतर लोगों के बीच यह एक गलत अवधारणा है कि विकिपीडिया पर कोई लेख लिखने के लिए हमें पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है परन्तु ऐसा नहीं है। विकिपीडिया पर कोई भी लेख लिखने या सम्पादित करने के लिए आपका किसी क्षेत्र-विशेष में विशेषज्ञ होना आवश्यक नहीं है। विकिपीडिया का हर लेख सैंकड़ों योगदानकर्ताओं के सामुहिक प्रयास का परिणाम है। आप जिस लेख को बहुत कम जानकारी डालकर आरम्भ करेंगे कल उसे कोई और व्यक्ति कुछ नई जानकारी डालकर बढ़ा देगा फिर कोई और, और इस प्रकार कुछ दिनों बाद वह लेख ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदों से भरकर परिपूर्ण हो जाएगा जिससे अनेक उत्सुक पाठकों की ज्ञानरुपी प्यास बुझेगी। जिस प्रकार आप जो प्रयास किसी अन्य के लिए करेंगे जिससे उसका ज्ञानवर्धन होगा, उसी प्रकार अन्य लोग भी समान प्रयास कर अनेक लेख बनाएंगे जिससे आपका एवं कई अन्य लोगों का ज्ञानवर्धन होगा। इस प्रकार जब कई लोग स्वयं से ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदे समर्पित करेंगे तो ज्ञान का एक ऐसा सागर बन जाएगा जिससे आने वाली समस्त पीढ़ियों के साथ हम सब की ज्ञान रुपी जिज्ञासा शान्त होगी।
    मान लीजिए कि आज किसी ने विकिपीडिया पर विद्युत बल्ब के ऊपर केवल एक पंक्ति का लेख लिखा। कुछ दिनों बाद जब उसे कोई अन्य इञ्जिनियर छात्र विकि पर देखता है तो वह उसमें कुछ और जानकारी डाल सकता है और इस प्रकार इस लेख में जानकारी बढ़ती रहेगी जिससे यह बल्ब के ऊपर एक विशाल जानकारी का स्त्रोत बन जायेगा। अत:किसी भी विषय में कम जानकारी से न घबराएं, मुक्त मन से विकिपीडिया पर लेख लिखना आरम्भ करें।

    क्या विकिपीडिया पर कोई ऐसा नियम है कि किस विषय पर लिखना है और किस विषय पर नहीं?

    आप विकिपीडिया पर किसी भी विषय पर लेख लिख सकते है बशर्ते कि यह लेख ज्ञानकोश की शैली के अनुरुप हो। जिसके लिए विकिपीडिया पर कई विकिनीतियां निर्धारित है। हाँ यह सामान्य समझ की बात है कि विवादित विषयों पर लेख बनानें से पूर्व यह सुनुश्चित कर लें कि लेख की जानकारी बिल्कुल निष्पक्ष हो। अन्य किसी लेख पर भी जानकारी निष्पक्ष होनी चाहिए क्योंकि विकिपीडिया ज्ञान बाँटने का साधन है ना कि किसी के पक्ष-विपक्ष में दुष्प्रचार करने का।

    मेरे बनाए लेख को कई लोग सम्पादित करते है ऐसा क्यों?

    विकिपीडिया का कोई भी लेख किसी अकेले व्यक्ति से सम्बन्धित नहीं होता, बल्कि यह अनेक सदस्यों के सहयोगात्मक एवं सामूहिक योदगान का परिणाम होता है। हाँ यदि आपके द्वारा बनाए गए लेख में कोई दूसरा सदस्य गलत जानकारी डालता है तो आप उसे हटा सकते है अथवा प्रबन्धकों की सहायता से उस अनावश्यक सामग्री को हटवा सकते है। आप किसी सदस्य से उसके द्वारा जोड़े गए तथ्य पर उससे लेख के वार्ता पृष्ठ पर चर्चा भी कर सकते है जिस पर अन्य प्रबन्धक एवं सदस्यगण भी अपनी प्रतिक्रिया देते है और बहुमत के आधार पर यदि ऐसा लगता है कि वह तथ्य सही है तभी उसे लेख में रखा जाता है। विकि में कोई भी तथ्य देने के साथ सम्पादक को उसका सन्दर्भ भी देना पड़ता है अन्यथा उस जानकारी को अविश्वसनीय माना जा सकता है जब तक कि वह जन सधारण को ज्ञात तथ्य न हो तो, जैसे सूर्य पूर्व में उगता है यह बात सभी जानते है अत: इसके लिए तथ्य देने की कोई आवश्यकता नहीं है। विकिपीडिया पर सन्दर्भों की विश्वसनीयता के ऊपर भी अपनी नीतियांहै।

    विकिपीडिया में कौन-कौन योगदान कर सकता है

    कोई भी व्यक्ति जो अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, जातीयता, व्यावसायिक या राजनीतिक पृष्ठभूमि या हितों पर ध्यान दिए बिना ज्ञान को बाँटकर ज्ञान का प्रसार करने का इच्छुक है, इस परियोजना को अपना योगदान दे सकता है। कोई भी जो अपने ज्ञान को विकिपीडिया के जरिये सुरक्षित रखना चाहता है एवं उसे जन जन तक पहूँचाकर सबको लाभान्वित करने का इच्छुक है, इस परियोजना को अपना योगदान दे सकता है। इस प्रकार चाहे कोई कालेज का विद्यार्थी, इञ्जीनियर, डाक्टर, पत्रकार, किसान, व्यवसाई इत्यादि हर कोई विकिपीडिया की परियोजनाओं को अपना योगदान देकर ज्ञान का प्रसार कर सकता है।

    क्या विकिपीडिया भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है?

    सर्वप्रथम अंग्रेज़ी विकिपीडिया १५ जनवरी २००१ को आरम्भ किया गया था, परन्तु इस वर्ष एक भी भारतीय भाषा का विकिपीडिया आरम्भ नहीं किया जा सका। सर्वप्रथम जून २००२ को पंजाबी, असमी, और उड़िया विकिपीडिया बनाए गए। फिर इसी वर्ष दिसम्बर में मलयालम विकिपीडिया भी आरम्भ किया गया। २००३ के बाद अन्य कई भारतीय भाषाओं के विकिपीडिया आरम्भ किए गए। फिर फरवरी २००३ में भोजपुरी, मई २००३ में मराठी, जून २००३ में कन्नड़, जुलाई २००३ में हिन्दी, सितम्बर २००३ में तमिल, दिसम्बर २००३ में तमिल एवं तेलुगु एवं जनवरी २००४ में बंगाली विकिपीडिया आरम्भ किए गए। इस प्रकार अब भारतीय भाषाओं में कुल २० विकिपीडिया संस्करण उपलब्ध हैं।

    मैं अंग्रेज़ी भाषा में प्रवीण हूँ तो मैं हिन्दी विकिपीडिया पर क्यों योगदान दूँ?

    आप अंग्रेज़ी में दक्ष है तो यह बहुत प्रशन्सनीय बात है परन्तु यह आपकी मातृ भाषा को त्याग देने का कारण नहीं बनना चाहिए। आप अंग्रेज़ी में उपलब्ध सूचना को एकत्रित कर उसे अपनी मातृ भाषा में दे सकते है जिससे उन लोगों को बहुत सहायता पहूँचेगी जो अंग्रेज़ी भाषा नहीं जानते अथवा जो लेख को अपनी मातृ भाषा में पढना पसन्द करते है। ऐसे अनेक भारतीय हैं जो अंग्रेज़ी में दक्ष नहीं वरन अपनी मातृ भाषा में दक्ष हैं। अंग्रेज़ी दक्ष होना या न होना किसी भी व्यक्ति को अपनी मातृ भाषा में ज्ञान बाँटने अथवा एकत्रित करने से नहीं रोकता। हिन्दी हमारी मातृ भाषा ही नहीं वरन् राष्ट्र भाषा और सर्वाधिक व्यापक भाषा भी है। अत: इसके वर्चस्व को बनाए रखने का दायित्त्व हम सब ४३ करोड़ हिन्दी भाषियों पर है और हिन्दी विकिपीडिया हिन्दी में ज्ञान को बचाए रखने एवं उसका प्रसार करने के लिए सर्वोत्तम स्थान है। अत: हम सब इसमें योगदान क्यों न करें? केवल इसलिए कि हम अंग्रेज़ी में प्रवीण है या हमें अपनी मातृ भाषा बोलने में झिझक आती है। यदि आपको झिझक आती है तो उसे दूर करने का सर्वोत्तम उपाय भी विकिपीडिया है क्योंकि विकिपीडिया पर आपके योगदान के साथ हिन्दी एवं ज्ञान दोनों का प्रसार होगा और हिन्दी का जितना प्रसार होगा उतना ही आपको अपने आपको हिन्दी भाषी कहने में गर्व अनुभव होगा, अत: जब हम अपने मित्रों से एवं परिवारजनों से निसंकोच हिन्दी में बात कर सकते है तो हिन्दी विकिपीडिया पर हिन्दी में योगदान करने में संकोच कैसा?

    मैं हिन्दी विकिपीडिया में योगदान करना चाहता हूँ परन्तु मुझे अपने संगणक पर हिन्दी लिखनी नहीं आती

    हिन्दी विकिपीडिया पर हिन्दी लिखना अत्यन्त सरल है। हिन्दी विकि पर इसके लिये लिप्यन्तरण (ट्रान्सलिटरेशन) उपकरण उपलब्ध है जिसकी सहायता से आप सरलता से हिन्दी लिख सकते है। बस इससे पहले आप कुछ जानकारी इस वेबपृष्ठ से ले लें- http://hi.wikipedia.org/wiki/विकिपीडिया:देवनागरी में कैसे टंकण करें?, जिसमें आपको इस उपकरण का उपयोग करने की पूरी जानकारी मिलेगी। यह उपकरण उपयोग करने में अत्यन्त सरल है जिसे हज़ारो विकिपीडिया के सदस्य उपयोग करके संगणक पर हिन्दी लिखना सीख चुके हैं।

    मैं विकिपीडिया पर लेखों का योगदान क्यों दूँ, इससे मुझे क्या लाभ मिलेगा?

    याद रखें कि विकिपीडिया कोई व्यवसायिक संस्था नहीं, अपितु एक ऐसी संस्था है जिसे आप, मैं एवं हम; सब लोग अपने योगदान से चलाते है। यह हम सब का एक सामूहिक प्रयास है ज्ञान को अपनी मातृभाषा में सुरक्षित रखने का एवं हिन्दी का वर्चस्व बनाए रखने का। वैसे भी ज्ञान तो बाँटने से ही बढ़ता है। तो क्या आप अपने ज्ञान का प्रसार नहीं करना चाहेंगे? आप विकिपीडिया पर अपने महत्त्वपूर्ण ज्ञानार्जन को लेख बनाकर सुरक्षित रख पाएंगे अन्यथा समय के साथ आपके द्वारा परिश्रम से एकत्रित किया गया ज्ञान क्षीण होता-होता लुप्त हो जायेगा जिसे पुन: प्राप्त करने में आप कदाचित उतना प्रयास या परिश्रम नहीं लगा पाएंगे। यदि इस सामूहिक प्रयास में हम सब अपना ज्ञान बाँटेगें तो इससे ज्ञान का एक ऐसा जलाशय बन जाएगा जिससे हम ही नहीं अपितु हमारी आने वाली पीढ़ियां भी अपनी ज्ञान की प्यास बुझा पाएंगी। हिन्दी विकिपीडीया के रुप में हम अपने ज्ञान को जो सदियों से न बाँटने के कारण लुप्त होता जा रहा है अपनी मातृ भाषा में सुरक्षित रख सकते है। सोचिए यदि हम सब मिलकर यह प्रयास करेंगे तो इससे भारतवर्ष के हर हिन्दी भाषी को उसकी मातृभाषा में बिल्कुल नि:शुल्क और हर समय एवं हर प्रकार की सूचना उपलब्ध रहेगी। अंग्रेज़ीभाषियों ने तो ऐसा कर दिखलाया है तो क्या हम ४३ करोड़ हिन्दीभाषी ऐसा प्रयास नहीं कर सकते?

    हिन्दी विकिपीडीया का इतिहास एवं वर्तमान स्त्तर

    हिन्दी विकिपीडिया, विकिपीडिया का हिन्दी भाषाका संस्करण है, जिसका स्वमित्व विकिमीडिया संस्थापन के पास है। हिन्दी संस्करण जुलाई २००३ में आरम्भ किया गया था, और वर्तमान में यह 1,02,154 लेखों, 389 सक्रिय प्रयोक्ताओं, एवं 1,72,367 कुल प्रयोक्ताओं के साथ यह भारतीय और दक्षिण एशियाई भाषाओं में उपलब्ध विकिपीडिया का सबसे बड़ा संस्करण है।
    हिन्दी विकिपीडीया को मुख्यतः हिन्दी भाषी लोगो की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिया बनाया गया था। चूंकि हिन्दी विकिपीडिया इण्डिक स्क्रिप्ट देवनागरी का प्रयोग करता है इसलिए इसमें जटिल पाठ प्रतिपादन सहायक की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए यहां पर ध्वन्यात्मक रोमन वर्णमाला परिवर्तक उपलब्ध है अत: यहाँ देवनागरी(हिन्दी) लिखना अत्यंत सरल है।

    अन्य विकि परियोजनाएं

    विकिमीडिया फाउण्डेशन की हिन्दी में भी कई परियोजनाएं है जैसे हिन्दी विकिपीडीया, हिन्दी विकिबुक्स, हिन्दी विक्षनरी, हिन्दी विकिक्वोट इत्यादि। विकिपीडिया की सफलता के बाद विकिमीडीया फाउण्डेशन ने कुछ और विकि परियोजनाओं को आरम्भ किया है:
    • विकिसोर्स - मुक्त स्त्रोत सामग्री, विभिन्न ऑनलाईन पुस्तकों के संग्रह के लिए एक मुक्त संग्रहालय
    • विकिबुक्स- नई पुस्तको की रचना और निशुल्क पुस्तकों एवं उपयोगी सामग्री हेतु
    • विकिक्वोट- विभिन्न सुभाषितों के संकलन हेतु
    • विकिविश्वविद्यालय- निःशुल्क पठन सामग्री एवं पठन क्रियाकलाप हेतु
    • विकि-शब्दकोष- एक शब्दकोष एवं समानान्तर कोष, विभिन्न भाषाओं से हिन्दी भाषा में एक विशाल शब्दकोष निर्माण हेतु

    क्या विकि पर मेरे द्वारा डाली गई जानकारी सुरक्षित रहेगी एवं क्या विकिपीडीया पर उपलब्ध जानकारी प्रमाणिक होती है, क्योंकि विकि पर तो कोई भी सम्पादन कर सकता है?

    जी हाँ बिल्कुल। यदि आपके द्वारा डाली गई जानकारी अथवा आपके द्वारा बनाया गया लेख एक ज्ञानकोश की शैली के अनुरुप है तो वह अवश्य सुरक्षित रहेगी। यदि कोई अन्य सदस्य आपकी इस जानकारी अथवा लेख को हटाता या खराब करता है तो आप उसे पुन: पहले वाली अवस्था पर ला सकते है अन्यथा हिन्दी विकि के प्रबन्धको अथवा सक्रिय सदस्यों की सहायता ले सकते है। हाँ यदि कोई अन्य व्यक्ति आपके द्वारा बनाये गए लेख को और विकसित करना चाहता है तो उसे इसका पूर्ण अधिकार है परन्तु यदि वह कोई आपत्तिजनक सामग्री डालता है तो आप उससे चर्चा कर सकते है और यदि चर्चा में वह गलत सिद्ध होता है तो आप उस सामग्री को हटा सकते है और यदि वह या कोई अन्य सदस्य उस सामग्री को बार-बार डालकर आपके लेख को खराब करता है तो उस सदस्य को प्रबंधकों की मदद से सम्पादन अधिकार से वंचित भी रखा जा सकता है। अत: आप निर्भय होकर हिन्दी विकिपीडिया पर अपना योगदान दें। विकिपीडीया पर यह पूर्ण प्रयास किया जाता है कि लेखों को बर्बरता एवं गलत तथ्यों से बचाया जा सकें

    विकिपीडिया के लाभ

    विकिपीडिया के निम्नलिखित लाभ हैं:
    • विकिपीडिया एक बहुभाषीय प्रकल्प है, और स्वयंसेवकों के सहकार से निर्मित है। जिस किसी की भी इण्टरनेट तक पहुंच है वह विकिपीडिया पर लिख सकता है और लेखों का सम्पादन कर सकता है।
    • विकि स्वरूप के कारण लेखों की कड़ियों को शब्दों के साथ जोड़ना सरल है, इससे न केवल लेख के बारे में जानकारी मिलती है, बल्कि उससे जुड़ी अन्य रोचक जानकारियां भी प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिएः यदि आप मुम्बई विस्फोटों से जुड़ा लेख पढ़ रहे हैं तो उसमें * इण्टरविकि से भिन्न भाषाओं के लेख जुड़े होते हैं। हिन्दी मे महात्मा गाँधी के लेख के साथ लगभग ३१ और भाषाओं में उस लेख की कड़ी है, जिससे आप किसी और भाषा जैसे की गुजराती मे लिखा गया लेख तुरन्त ही पढ़ सकते है।
    • विकिपिडीया में बहुत तेज़ी से समसामयिक विषयों के बारे में लेखों का विकास हो सकता है जैसे कि मुम्बई विस्फोटों के समाचार आने के कुछ देर बाद ही उसके बारे में अंग्रेज़ी विकिपीडिया में प्रासंगिक कड़ियों के साथ लेख उपलब्ध था। ऐसे ही परिणाम आपसी सहयोग से हम हिन्दी में भी प्राप्त कर सकते है।
    • गूगल और अन्य खोज इञ्जनों की खोज करने पर विकिपीडिया के लेख, परिणामों में प्रमुखता से उभरते हैं। स्पष्ट है कि हिन्दी विकिपीडिया के विकास से इण्टरनेट पर हिन्दी का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि होगी। लोगों को हिन्दी का उपयोग करने हेतु एक और मंच मिलेगा।
    • विकिपीडिया एक ऐसा मंच है जो शिकायत का अवसर नहीं देता है, बल्कि आपको अपनी ही शिकायत दूर करने का अवसर देता है। यदि आपको लगता है कि कोई जानकारी अधूरी है या गलत है, तो आप तुरन्त उसमें घटजोड़ या सुधार कर सकते हैं।

    हिन्दी में कौन-कौन सी विकि परियोजनाएं सक्रिय है?

    निम्नलिखित परियोजनाएं हिन्दी भाषा में सक्रिय हैं:
    यह हिन्दी में विकि की सबसे अधिक सक्रिय परियोजना है।
    यह परियोजना हिन्दी में विभिन्न शब्द, पर्यायवाची, विलोम, व्युत्पत्ति आदि की परिभाषा बनाने हेतु है।
    यह परियोजना शैक्षिक पाठ्यपुस्तकों की एक मुफ्त पुस्तकालय बनाने के लिए हेतु है जिसे कोई भी सम्पादित कर सकता है।
    यह परियोजना विभिन्न लोकोक्तियों ,मुहावरो एवं कथनों का संग्रह है।

    हिन्दी विकिपीडिया से सम्बन्धित किसी प्रकार की सहायता या कोई समस्या आने पर मैं कहां सम्पर्क करुं?

    हिन्दी विकिपीडीया में सम्पादन से सम्बन्धित या किसी अन्य समस्या के आने पर आप वहां इस कड़ी - http://hi.wikipedia.org/wiki/विकिपीडिया:चौपालपर अपना सन्देश दे सकते है अथवा किसी भी प्रबन्धक से सम्पर्क कर सकते है। इसके अतिरिक्त आप हमें https://lists.wikimedia.org/mailman/listinfo/wikihi-lपर भी अपना सन्देश दे सकते हैं।

    मैंने अंग्रेज़ी विकिपीडिया के लिए एक लॉगईन बनाया है। क्या मैं हिन्दी विकिपीडिया के लिए भी उसी लॉगईन का उपयोग कर सकता हूँ?

    जी हाँ। इसके लिए आपको सभी विकिमीडिया परियोजनाओं के अपने खातों को एकजुट करना होगा। अधिक जानकारी के लिए http://meta.wikimedia.org/wiki/SULपर जाएं।

    क्या हिन्दी विकि परियोजनाओं के बारे में चर्चा करने के लिये कोई गूगल या याहू जैसा समूह है जहां पर हम हिन्दी विकिपीडिया के सदस्यों से चर्चा कर सकें?

    हाँ, हिन्दी विकिपीडिया का स्वयं का एक मेल समूह है जिस पर अधिकतर सक्रिय सदस्य उपलब्ध रहते है। इससे जुड़ने के लिए कृपया इस कड़ी पर जाएं:
    इसके अतिरिक्त एक मुक्त नोड रिले वार्ता पर भी आप हिन्दी विकिपीडिया के सदस्यों से चर्चा कर सकते है परन्तु इस पर आपको कम ही सक्रिय सदस्य मिलेंगे। यह सर्वर कड़ी निम्नलिखित है -
    • Server: irc.freenode.net
    • Channel: #HindiWiki
    इसके अतिरिक्त आप हिन्दी विकिपीडिया के गूगल समूह से भी जुड़ सकते है जिसकी कड़ी निम्नलिखित है-
    • hindi_wikipedia@googlegroups.com

    मुझे भी विकिपीडिया में योगदान देना है, मैं कैसे करुँ?

    विकिपीडियापर आपका स्वागत है। आप जैसे विचारको के कारण ही विकिपीडिया का विकास हुआ है। विकिपीडिया पर योगदान के कई तरीके हैं। कुछ यहाँ सुझाये गये हैं।

    गलतियाँ सुधारें

    विकिपीडिया पर लेख पढते समय अक्सर ही लोग पाते हैं कि "कुछ सही नहीं है"। यह गलतियाँ हो सकती हैं - कडियाँ, मात्रायें, व्याकरण या जानकारी आदि। फिर वे तुरन्त ही बदलेंबटन को क्लिक करते हैं और गलती सही कर देते हैं। लगभग हर एक योगदान करने वाले की शुरूआत की यही कहानी है। अगर आपको यह पता नहीं है क्या सही है, या आपको कुछ अन्देशा है तो पहले आप उस लेख के संवाद पृष्ठ पर चर्चा कर लें। लेख के संवाद पृष्ठ पर जाएँ, "+"बटन को क्लिक करें। अपने चर्चा का शीर्षक दें, और चर्चा आरम्भ कर दें। और हाँ, अपना हस्ताक्षर और समय देना न भूलें, उसके लिए ~~~~ का प्रयोग करें।

    नए लेख आरम्भ करें

    देखे: विकिपीडिया:नया पन्ना कैसे आरम्भ करेंतथा विकिपीडिया:लेख का नाम कैसे रखें
    नया लेख आरम्भ करना काफी महत्त्वपूर्ण काम है। विशेषतः जब कई लेख किसी खाली पन्ने से जुडे हों।
    विकिपीडिया लेखों मे अक्सर ही कई कड़ियाँ होती है। यह नीली होती है अगर कड़ी का लेख विकिपीडिया में है तो (या जामुनी, अगर आपने उस कड़ी को क्लिक किया है)। अगर कड़ी का लेख विकिपीडिया में नहीं है तो कड़ी का रंग लाल होता है। लाल कड़ी को क्लिक करने से नए लेख का पन्ना मिलता है। वहाँ आप नए लेख को लिखें और अपने योगदान को सुरक्षित कर दें। आपका धन्यवाद, आपने विकिपीडिया में नया पन्ना जोड़ दिया।
    कई बार गलत वर्तनी (spelling) के कारण भी लेख नदारद पाया जाता है। नए लेख को बनाने से पहले देख ले कि कही वर्तनी तो गलत नहीं। ऐसा हो तो वर्तनी सही कर दें, कडी नीली हो जानी चाहिए। समानार्थ शीर्षक वाले लेखो को जोडने के लिए आप पुनर्निर्देशन (Redirect) का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए देखे: [बनारस]। यहाँ लेख पर विशेष कमाण्ड है: #REDIRECT [[वाराणसी]], सो बनारसलेख अपनी कड़ी को वाराणसीलेख पर भेज देता है। ऐसा इसलिए क्योकि बनारस और वाराणसी एक ही शहर के दो नाम हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दी में एक ही शब्द की कई वर्तनियाँ हो सकती हैं, ऐसे में सामान्य वर्तनी वाले नाम को शुद्ध परम्परागत नाम वाले पन्ने पर पुनर्निर्देशित कर देना चाहिये।

    मेरे लेखों को दूसरों ने बदल दिया

    आपके लेखों को दूसरों के द्वारा बदला जाना इस बात को दर्शाता है कि लेख लोकप्रिय है। आप चाहेंगे कि जिसने भी उस लेख को बदला है उनसे वार्ता आरम्भ करें। आप लेख के संवाद पृष्ठ या योगदान करने वाले सदस्य के वार्ता पृष्ठ पर चर्चा करें। आप बदलाव के लिए आभार प्रकट करना चाहेंगे या बदलाव के विषय में अधिक जानकारी की माँग करना चाहेंगे। पारस्परिक संवाद से लेखों को सुधरते हुए पाया गया है।

    अगर मेरे पास पूरी जानकारी नहीं है तो भी क्या मैं योगदान दे सकता हूँ?

    आपके पास जितनी भी जानकारी है विकिपीडिया पर दें। अपने लेख के साथ {{stub}}जोड दें। जो उस लेख के बारे मे पूरी जानकारी रखते हैं, वे उसे पूरा कर देंगे। ऐसा करने में कुछ वक्त लग सकता है मगर कम से कम कुछ जानकारी तो उपलब्ध रहेगी।

    मेरे व्यक्तिगत विचार क्यों लेखों में से हटा दिए गए?

    विकिपीडिया निष्पक्ष और प्रमाणित जानकारी देने पर जोर देता है। व्यक्तिगत विचार पक्षपात और विवादों को जन्म देते है। विकिपीडिया पर आप जानकारी दें, अपने विचार नहीं। उदाहरण के लिए आप यह लिख सकते है कि किसी फिल्म में कितने और कौन से गीत हैं। मगर यह लिखना कि कौन से गीत अच्छे हैं और कौन से गीत बेसुरे, व्यक्तिगत विचार है, इसे न लिखें। हो सकता है कि जो गीत आपको अच्छे न लगें किसी के प्रिय गीतों में हों। उसी तरह किसी व्यक्तित्व के लेख में आप यह लिख सकते है कि उनके योगदान क्या हैं, मगर उन योगदानो पे अपनी राय देने से बचें।

    मै किसी लेख को उसके स्रोत्र की कड़ी के साथ कैसे जोड़ सकता हूँ?

    विकिपीडिया के लेखो को आप इण्टरनेट के विश्वस्त स्रोतों की कड़ियों से आसानी से जोड़ सकते हैं और ऎसा करना मानक भी है। उदाहरण के लिए आप फ्लोयड-लैनडिस-टॉक्ट्टलेख देखें। इस लेख मे बीबीसी की कडी स्रोत के रूप मे दी गई है। ऎसा स्वाचलित रूप से करने के लिए आप <ref> और <cite news> के विशेष टैग का इस्तेमाल कर सकते है। आपको लेख मे जहाँ यह स्रोत्र की कडी दिखानी है वहाँ निम्न पंक्तियाँ लिख दें- ==सन्दर्भ== <div class="references-small"> <references/> </div> आम तौर पर यह सन्दर्भ कड़ियाँ मुख्य लेख के बाद तथा इन्हें भी देखें नामक अनुभाग से पहले दी जाती हैं।
    <cite news>साँचे के प्रयोग की विधि यहाँहै। इसके सम्पूर्ण उदाहरण के लिए आप फ्लोयड-लैनडिस-टॉक्ट्टलेख के सम्पादन योग्य सूत्र को यहाँदेखे।

    मै लेख पर चित्रों को कैसे लगा सकता हूँ?

    हिन्दी मे जानकारी उपलब्ध हो तब तक आप देखे - en:Wikipedia:Picture tutorialऔर en:Help:Contents/Images and media

    मैं समान विषय के लेखों को आपस में कैसे जोड़ सकता हूँ?

    समान विषय के लेखों को आपस मे जोड़ने के कई तरीके हैं।

    उप-शीर्षक यह भी देखेंका प्रयोग

    उप-शीर्षक ''यह भी देखें''का प्रयोग करे। इस में आप अन्य लेखों की कड़ी दे सकते है। उदाहरण के लिए देखें: हिन्दी साहित्य

    साँचों का प्रयोग

    साँचे विशेष लेख होते है, यह विषय-वस्तु (content) को एक से अधिक लेखों पर दोहराने का सरल उपाय है। इसे उप-लेख भी माना जा सकता है। साँचों के नाम "Template:"से शुरू होते है (जैसे: साँचा:हिंदी साहित्यकार)। इस उप-लेख को लेख पर डालने के लिए उप-लेख का नाम कोष्ठक {{ के अन्दर लिखे। (जैसे: {{हिंदी साहित्यकार}})। साँचे के प्रयोग के उदाहरण के लिए देखें:आचार्य रामचंद्र शुक्ललेख।

    श्रेणी का प्रयोग

    हर लेख को आप एक या एक से अधिक श्रेणी मे डाल सकते हैं। लेख को श्रेणी मे डालने के लिए विशेष कमाण्ड "[[श्रेणी: लेख की श्रेणी]]"का प्रयोग करें। जहाँ, लेख की श्रेणीउस श्रेणी का नाम है जिसमे लेख को डालना चाहते है। उदाहरण के लिए देखें: आचार्य रामचंद्र शुक्ललेख, यह व्यक्तिगत जीवनऔर लेखकश्रेणी में शामिल है।
    श्रेणी में लेख क्रमबद्ध होते है, और श्रेणी खुद भी किसी अन्य श्रेणी की उप-श्रेणी हो सकती है। उदाहरण के लिये श्रेणी:सॉफ्टवेयरनामक श्रेणी, श्रेणी:संगणकनामक श्रेणी की उपश्रेणी है।

    मैं समान शीर्षक वाले लेख कैसे बना सकता हूँ?

    जो शीर्षक अनेक अर्थ के लिए प्रयोग किए जा सकते है, उन्हे बहुविकल्पी शब्दकहा जाता हैं। उदाहरण के लिए देखें: सरस्वती, सरस्वती शीर्षक हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी, एक नदी और एक पत्रिका को दर्शाता हैं। ऐसे शीर्षको को अलग करने के लिए सभी लेखों के शीर्षकों को विस्तार से बताना होता है, जैसे: सरस्वती देवी, सरस्वती नदीऔर सरस्वती पत्रिका। बहुविकल्पी शब्द के पन्ने पर साँचा:बहुविकल्पी शब्द का प्रयोग करें (जोड़ें: {{बहुविकल्पी शब्द}}) और सभी प्रासंगिक लेखो की सूची उस पन्ने पर दे दें।

    नया पृष्ठ कैसे आरम्भ करें?

    नया पन्ना आरम्भ करने के लिये जिस शीर्षक से आप लेख बनाना चाहते हैं, खोज बक्से में लिखकर खोजें। यदि उस शीर्षक से पहले लेख न होगा तो नया लेख बनाने का विकल्प आ जायेगा। जैसे की चित्रानुसार यदि आप भारत के ऊपर लेख खोजना चाहते है तो आप सर्च बाक्स में जैसे ही भारत लिखना शुरु करेंगे वैसे ही आपको इसके अक्षरों के अनुसार नीचे विकल्प दिखाई देंगे, जैसे आपने भ भरा तो भ से शुरु होने वाले लेख दिखाई देंगे, परन्तु सूची लम्बी होने पर आप इसे खोज कर भी ढुंड सकते है।
    विकिपीडिया पर नया लेख बनाते समय पहले ये सुनिश्चित कर लें कि इस विषय पर वैकल्पिक नाम अथवा वर्तनी से पहले से लेख न हो। हिन्दी में वर्तनी की विविधता के कारण हो सकता है सामान्य खोज में आपके द्वारा सोचा गया नाम न आये, इसलिये अन्य वैकल्पिक वर्तनी के साथ खोज करें। उदाहरण के लिये यदि आप पंडित रविशंकरनाम से लेख बनाने जा रहे हैं तो पहले यह खोज लें कि पण्डित रविशंकरनाम से लेख मौजूद तो नहीं है।
    इसके अतिरिक्त गूगल द्वारा हिन्दी विकिपीडिया पर इस क्वैरी "site:hi.wikipedia.org Name"द्वारा खोज करके भी आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस विषय पर पहले मिलते-जुलते नाम से कोई लेख न हो।
    How to search for pages.JPG

    'लॉग इन'कैसे करें?

    आप विकिपीडिया पर लॉग-इन बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। अगर आप अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर हैं, तो
    • 1. अपने वेब पेज ब्राऊसर के एड्रेस बार पर 'hi.wikipedia.org'लिखें।
    • 2. फिर वेब पेज के उत्तर-पूर्व की दिशा पर बने हुए टैब-बार पर 'Log In' (या लॉग इन) पर क्लिक करें।
    • 3. अपना यूज़र-नेम एवं पास-वर्ड टाइप करें।
    • 4. लॉग इन पर क्लिक करें।
    अगर आप पहले से ही हिन्दी विकिपीडिया पर है तो पहले स्टेप को स्किप करें।

    किसी दूसरी वैबसाइट से लेख कॉपी करने पर मुझे कचरा अक्षर दिखायी देते हैं। इसका क्या कारण है और मैं क्या करूँ ?

    हिन्दी की ज़्यादातर वैबसाइटों पर ऐसे फॉंन्टों का प्रयोग किया है जो कि कंप्यूटर के अंतर-राष्ट्रीय मनकों के अनुसार नही बनाये गये हैं। इसकी वजह से हर फॉन्ट में एक ही अक्षर के लिये अलग अलग कोड का प्रयोग किया गया है। इसकी वजह से एक जगह से दूसरी जगह अक्षरों को कॉपी-पेस्ट करने पर कचरा अक्षर दिखायी देते हैं। पिछले कुछ सालों में दुनिया के अग्रणी कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने और बड़ी कंप्यूटर कंपनियों ने एक अंतर-राष्ट्रीय मानक तय किया है जिसे यूनिकोडकहते है । भविष्य में हिन्दी में सभी काम यूनिकोड में ही होगा। नॉन-यूनिकोड फॉंन्ट के लेखों को यूनिकोड मे बदलने के लिये कई मुफ्त टूल्स मौजूद हैं। जैसे माइक्रोसॉफ्ट का इंडिक फॉंट ट्रांस्लिटरेशन (लिप्यंतरण) टूल - टिबिल। ज़्यादा जानकारी के लिये देखें - टिबिल। इसके अतिरिक्त दो अन्य टूल परिवर्तनतथा रुपांतरभी इस कार्य हेतु प्रयुक्त किए जाते हैं।

    भारत में संचार

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    प्रस्तुति- हुमरा असद राहुल मानव 

     

    भारतीय दूरसंचार उद्योगदुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता दूरसंचार उद्योग[1][2][3]है, जिसके पास अगस्त 2010[4]तक 706.37 मिलियन टेलीफोन (लैंडलाइन्स और मोबाइल) ग्राहक तथा 670.60 मिलियन मोबाइल फोन कनेक्शन्स हैं। वायरलेस कनेक्शन्स की संख्या के आधार पर यह दूरसंचार नेटवर्क मुहैया करने वाले देशों में चीनके बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।[5]भारतीय मोबाइल ग्राहक आधार आकार में कारक के रूप में एक सौ से अधिक बढ़ी है, 2001 में देश में ग्राहकों की संख्या लगभग 5 मिलियन[6]थी, जो अगस्त 2010 में बढ़कर 670.60 मिलियन हो गयी है।[4]
    चूंकि दूरसंचार उद्योग दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2013 तक भारत में 1.159 बिलियन मोबाइल उपभोक्ता हो जायेंगे.[7][8][9][10]इसके अलावा, कई वैश्विक सलाहकार संस्थाओं का अनुमान है कि 2013 तक भारत में ग्राहकों की कुल संख्या चीनके कुल ग्राहकों की संख्या को पार कर जाएगी.[7][8]इस उद्योग के 26 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ कर 2012 तक के भारतीय रुपया3,44,921 करोड़ (US$71.05 बिलियन)आकार तक पहुंचने और इसी अवधि के दौरान लगभग 10 मिलियन लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करने का अनुमान है।[11]विश्लेषकों के अनुसार, यह क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से 2.8 मिलियन और अप्रत्यक्ष रूप से 7 मिलियन लोगों के लिए रोजगार पैदा करेगा.[11]वर्ष 2008-09 में पूर्व वित्त वर्ष के मुकाबले भारतीय रुपया1,15,382 करोड़ (US$23.77 बिलियन)समग्र दूरसंचार उपकरणों का राजस्व भारत में भारतीय रुपया1,36,833 करोड़ (US$28.19 बिलियन)बढ़ा था।[12]

    अनुक्रम

    आधुनिक विकास

    एक बड़ी आबादी, कम टेलीफोनी निवेश स्तर और मजबूत आर्थिक विकास के कारण उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि और खर्च में इजाफे ने भारत को विश्व में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ दूरसंचार बाजार बनने में मदद की है। राज्य के स्वामित्व वाला पदस्थ पहला संचालक (ऑपरेटर) बीएसएनएल (BSNL)है। बीएसएनएल (BSNL) तत्कालीन डीटीएस (DTS) (दूरसंचार सेवा विभाग) के निगमीकरण द्वारा बनाया गया जो टेलीफोनी सेवाओं के प्रावधान के लिए जिम्मेदार एक सरकारी इकाई थी। बाद में, दूरसंचार नीतियों को संशोधित किया गया, जिससे वोडाफोन भारती एयरटेलटाटा इंडिकॉम आइडिया सेल्युलरएयरसेल और लूप मोबाइल जैसे निजी संचालकों ने प्रवेश किया। भारत में प्रमुख संचालक (ऑपरेटर) देखें. 2008-09 में ग्रामीण भारत मोबाइल विकास दर में शहरी भारत से आगे निकल गया। भारती एयरटेल अब भारत में सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी है।
    मार्च 2010 तक कंपनियों के साथ लगभग 20.31 मिलियन नए ग्राहकों के जुड़ने से भारत का मोबाइल फोन बाजार विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रहा है।
    देश में टेलीफोनों की कुल संख्या ने 31 जुलाई 2010 को 688.38 मिलियन का निशान पार कर लिया। जुलाई 2010 में कुल टेलीघनत्व में 58.17% की वृद्धि हुई है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण द्वारा 20 जुलाई 2010में प्रेस को दी गयी सूचना (प्रेस विज्ञप्ति संख्या 61/2007) के मुताबिक जुलाई 2010 में, वायरलेस खंड में 19 लाख ग्राहक शामिल किये गये हैं। कुल वायरलेस ग्राहकों (जीएसएम, सीडीएमए और डब्ल्यूएलएल (एफ)) का आधार अब 652.42 मिलियन से अधिक है। वायरलाइन खंड के ग्राहकों का आधार जुलाई 2010 में 0.22 मिलियन की गिरावट के साथ 35.96 मिलियन पर रुक गया।

    इतिहास

    टेलीकॉम का वास्तविक अर्थ अंतरिक्ष में दूर की दो जगहों के बीच सूचना का स्थानांतरण है। दूरसंचार के लोकप्रिय अर्थ में हमेशा बिजली के संकेत शामिल रहे हैं और आजकल लोगों ने डाक या दूरसंचारके किसी भी अन्य कच्चे तरीके को इसके अर्थ से बाहर रखा है। इसलिए, भारतीय दूरसंचार के इतिहास को टेलीग्राफ की शुरूआत के साथ प्रारंभ किया जा सकता है।

    तार की शुरूआत

    भारत में डाक और दूरसंचार क्षेत्रों में एक धीमी और असहज शुरुआत हुई थी। 1850 में, पहली प्रायोगिक बिजली तार लाइन डायमंड हार्बर और कोलकाताके बीच शुरू की गई थी। 1851 में, इसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए खोला गया था। डाक और टेलीग्राफ विभाग उस समय लोक निर्माण विभाग[13]के एक छोटे कोने में था। उत्तर में कोलकाता (कलकत्ता) और पेशावरको आगरासहित और मुंबई (बॉम्बे) को सिंदवा घाट्स के जरिए दक्षिण में चेन्नई, यहां तक कि ऊटकमंडऔर बंगलोरके साथ जोड़ने वाली 4000 मील (6400 किमी) की टेलीग्राफ लाइनों का निर्माण नवंबर 1853 में शुरू किया गया। भारत में टेलीग्राफ और टेलीफोनका बीड़ा उठाने वाले डॉ॰ विलियम ओ'शौघ्नेस्सी लोक निर्माण विभाग में काम करते थे। वे इस पूरी अवधि के दौरान दूरसंचार के विकास की दिशा में काम करते रहे. 1854 में एक अलग विभाग खोला गया, जब टेलीग्राफ सुविधाओं को जनता के लिए खोला गया था।

    टेलीफोन की शुरूआत

    1880 में, दो टेलीफोन कंपनियों द ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड और एंग्लो इंडियन टेलीफोन कंपनी लिमिटेड ने भारत में टेलीफोन एक्सचेंज की स्थापना करने के लिए भारत सरकारसे संपर्क किया। इस अनुमति को इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया गया कि टेलीफोन की स्थापना करना सरकार का एकाधिकार था और सरकार खुद यह काम शुरू करेगी. 1881 में, सरकार ने अपने पहले के फैसले के खिलाफ इंग्लैंड की ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड को कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई (मद्रास) और अहमदाबादमें टेलीफोन एक्सचेंज खोलने के लिए एक लाइसेंस दिया, जिससे 1881 में देश में पहली औपचारिक टेलीफोन सेवा की स्थापना हुई.[14] 28 जनवरी 1882, भारत के टेलीफोन के इतिहास में रेड लेटर डे है। इस दिन, भारत के गवर्नर जनरल काउंसिल के सदस्य मेजर ई. बैरिंग ने कोलकाता, चेन्नई और मुंबई में टेलीफोन एक्सचेंज खोलने की घोषणा की. कोलकाता के एक्सचेंज का नाम "केन्द्रीय एक्सचेंज"था जो 7, काउंसिल हाउस स्ट्रीट इमारत की तीसरी मंजिल पर खोला गया था। केन्द्रीय टेलीफोन एक्सचेंज के 93 ग्राहक थे। बॉम्बे में भी 1882 में टेलीफोन एक्सचेंज का उद्घाटन किया गया।

    आगे का विकास

    बीएसएनएल माइक्रोवेव टॉवर मंगलोर.
    • 1902 - सागर द्वीप और सैंडहेड्स के बीच पहले वायरलेस टेलीग्राफ स्टेशन की स्थापना की गयी।
    • 1907 - कानपुरमें टेलीफोनों की पहली केंद्रीय बैटरी शुरू की गयी।
    • 1913-1914 - शिमलामें पहला स्वचालित एक्सचेंज स्थापित किया गया।
    • 23 जुलाई 1927 - इंग्लैण्ड के राजा के साथ अभिवादन का आदान-प्रदान कर ब्रिटेनऔर भारत के बीच इम्पेरियल वायरलेस चेन बीम द्वारा खड़की और दौंड स्टेशनों के जरिये रेडियो टेलीग्राफ प्रणाली शुरू की गयी, जिसका उद्घाटन लार्ड इरविन ने किया।
    • 1933 - भारत और ब्रिटेन के बीच रेडियोटेलीफोन प्रणाली का उद्घाटन.
    • 1953-12 चैनल वाहक प्रणाली शुरू की गई।
    • 1960 - कानपुरऔर लखनऊके बीच पहला ग्राहक ट्रंक डायलिंग मार्ग अधिकृत किया गया।
    • 1975 - मुंबईसिटी और अंधेरी टेलीफोन एक्सचेंज के बीच पहली पीसीएम (PCM) प्रणाली अधिकृत की गई।
    • 1976 - पहला डिजिटल माइक्रोवेव जंक्शन शुरू किया गया।
    • 1979 - पुणेमें स्थानीय जंक्शन के लिए पहली ऑप्टिकल फाइबरप्रणाली अधिकृत की गई।
    • 1980 - सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेशमें, घरेलू संचार के लिए प्रथम उपग्रह पृथ्वी स्टेशन स्थापित किया गया।
    • 1983 - ट्रंक लाइन के लिए पहला अनुरूप संग्रहित कार्यक्रम नियंत्रण एक्सचेंज मुंबई में बनाया गया।
    • 1984 - सी-डॉटस्वदेशी विकास और उत्पादन के लिए डिजिटल एक्सचेंजों की स्थापना की गई।
    • 1985 - दिल्लीमें गैर वाणिज्यिक आधार पर पहली मोबाइल टेलीफोन सेवा शुरू की गई।
    ब्रिटिशकाल में जबकि देश के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों को टेलीफोन से जोड़ दिया गया था, फिर भी 1948 में टेलीफोन की कुल संख्या महज 80,000 के आसपास ही थी। स्वतंत्रता के बाद भी विकास बेहद धीमी गति से हो रहा था। टेलीफोन उपयोगिता का साधन होने के बजाय हैसियत का प्रतीक बन गया था। टेलीफोनों की संख्या इत्मीनान से बढती हुई 1971 में 980,000, 1981 में 2.15 मिलियन और 1991 में 5.07 मिलियन तक पहुंची, जिस वर्ष देश में आर्थिक सुधारों को शुरू किया गया।
    हालांकि समय-समय पर कुछ अभिनव कदम उठाये जा रहे थे, जैसे कि उदाहरण के लिए 1953 में मुंबईमें टेलेक्स सेवा और 1960 के बीच दिल्ली और कानपुर एवं लखनऊ और कानपुर के बीच पहला [ग्राहक ट्रंक डायलिंग] मार्ग शुरू किया गया, अस्सी के दशक में सैम पित्रोदा ने परिवर्तन की लहरों का दौर शुरू किया।[15]वे ताजा हवा का झोंका लेकर आये. 1994 में राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की घोषणा के साथ परिवर्तन का असली परिदृश्य नजर आया।[16]

    भारतीय दूरसंचार क्षेत्र: हाल की नीतियां

    • 2002 के अंत तक सभी गांवों को दूरसंचार सुविधा द्वारा कवर किया जाएगा.
    • 31 अगस्त 2001को संसद में पेश संचार अभिसरण विधेयक (कम्युनिकेशन कनवर्जेन्स बिल) 2001 इस समय टेलिकॉम और आईटी संबंधी स्थायी संसदीय समिति के सामने है।
    • राष्ट्रीय लंबी दूरी की सेवा (एनएलडी) को अप्रतिबंधित प्रविष्टि के लिए खोला गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय लंबी दूरी की सेवाओं (ILDS) प्रतियोगिता के लिए खोला गया है।
    • बुनियादी सेवाएं प्रतियोगिता के लिए खुली हैं।
    • मौजूदा तीन के अतिरिक्त, चौथे सेलुलर संचालक (ऑपरेटर) को, प्रत्येक को चार महानगरों में से एक और तेरह परिमंडलों के लिए अनुमति दी गई है। सेलुलर संचालकों (ऑपरेटरों) को आवाज और गैर आवाज संदेश, डाटा सेवाओं सहित सभी प्रकार की मोबाइल सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए और सर्किट और/या पैकेज स्विच सहित कुछ आवश्यक मानकों को पूरा करने वाले किसी भी प्रकार के नेटवर्क उपकरण का प्रयोग कर पीसीओ (PCOs) के लिए अनुमति प्रदान की गई है।
    • नई दूरसंचार नीति (NTP), 1999 के अनुसार कई नई सेवाओं, जिनमें सैटेलाइट सेवा के द्वारा ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन (GMPCS), डिजिटल पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंक सर्विस (PMRTS), वॉयस मेल/ ऑडियोटेक्स/ एकीकृत संदेश सेवा शामिल है, में निजी भागीदारी की अनुमति देने वाली नीतियों की घोषणा की गई है।
    • शहरी, अर्द्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तुरंत टेलीफोन कनेक्शन प्रदान करने के लिए स्थानीय लूप (डब्ल्यूएलएल) (WLL) में वायरलेस शुरू किया गया है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के दो दूरसंचार उपक्रमों वीएसएनएल (VSNL) और एचटीएल (HTL) को विनिवेशित किया गया है।
    • वैश्विक सेवा बाध्यता (यूएसओ), इसके निवेश और प्रशासन को पूरा करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।
    • सामुदायिक फोन सेवा की अनुमति देने के एक निर्णय की घोषणा की गई है।
    • कई निश्चित सेवा प्रदाताओं (FSPs) के लाइसेंसिंग के दिशा निर्देशों की घोषणा की गई थी।
    • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) को समुद्र की सतह के नीचे ऑप्टिकल फाइबर केबल के लिए उपग्रह और लैंडिंग स्टेशन दोनों पर अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट गेटवे की स्थापना की अनुमति दी गई है।
    • अवसंरचना प्रदाताओं की दो श्रेणियों को एक छोर से दूसरे छोर तक बैंडविड्थ और गहरे फाइबर, रस्ते, टावरों, डक्ट स्पेस आदि के लिए अधिकार प्रदान करने की अनुमति दी गई है।
    • सरकार द्वारा इंटरनेट टेलीफोनी (आईपी) को खोलने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

    एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उद्भव

    1975 में, दूरसंचार विभाग (डीओटी) को पी एंड टी से अलग कर दिया गया था। दूरसंचार विभाग 1985 तक देश में सभी दूरसंचार सेवाओं के लिए जिम्मेदार था, जब महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) को दूरसंचार विभाग से अलग करके उसे दिल्लीऔर मुंबईकी सेवाओं को चलाने की जिम्मेदारी दी गयी। 1990 के दशक में सरकार द्वारा दूरसंचार क्षेत्र को उदारीकरण- निजीकरण- वैश्वीकरणनीति के तहत निजी निवेश के लिए खोल दिया गया। इसलिए, सरकार की नीति शाखा को उसकी कार्यपालिका शाखा से अलग करना जरूरी हो गया था। भारत सरकारने 1 अक्टूबर 2000 को दूरसंचार विभाग के परिचालन हिस्से को निगम के अधीन कर उसे भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का नाम दिया. कई निजी ऑपरेटरों, जैसे कि रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा इंडिकॉम, हच, लूप मोबाइल, एयरटेल, आइडियाआदि ने उच्च संभावना वाले भारतीय दूरसंचार बाजार में सफलतापूर्वक प्रवेश किया।

    भारत में दूरसंचार का निजीकरण

    भारत सरकार कई गुटों (पार्टियों) द्वारा बनी थी, जिनकी विचारधाराएं अलग-अलग थीं। उनमें से कुछ विदेशी खिलाड़ियों (केंद्रीय) के लिए बाजार खुला रखना चाहते थे, जबकि अन्य चाहते थे कि सरकार बुनियादी ढांचे को विनियमित करे और विदेशी खिलाड़ियों की भागीदारी को सीमित रखे. इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण दूरसंचार में उदारीकरण लाना बहुत मुश्किल था। जब एक विधेयक संसद में पारित किया गया था, उसे बहुमत का वोट मिलना चाहिए था, मगर अलग-अलग विचारधाराओं वाले दलों की संख्या को देखते हुए इस तरह का बहुमत प्राप्त करना मुश्किल था।
    उदारीकरण 1981 में शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीने हर साल 5,000,000 लाइनें लगाये जाने के प्रयास के तहत फ्रांस की अल्काटेल सीआईटी के साथ राज्य संचालित दूरसंचार कंपनी (आईटीआई) के विलय के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। लेकिन राजनीतिक विरोध के कारण जल्द ही इस नीति को त्यागना पड़ा. उन्होंने अमेरिका स्थित अप्रवासी भारतीय सैम पित्रोदा को सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(सी-डॉट) स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया, पर राजनीतिक दबावों के कारण यह योजना विफल हो गयी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, इस अवधि के दौरान, राजीव गांधीके नेतृत्व में, कई सार्वजनिक क्षेत्र जैसे कि दूरसंचार विभाग (डीओटी), वीएसएनएल और एमटीएनएल जैसे संगठनों की स्थापना हुई. इस कार्यकाल में कई तकनीकी विकास हुए फिर भी विदेशी खिलाड़ियों को दूरसंचार व्यापार में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।[17]
    टेलीफोन की मांग लगातार बढ़ती गयी। इसी अवधि के दौरान ऐसा हुआ कि 1994 में पीएन राव के नेतृत्व में सरकार ने राष्ट्रीय दूरसंचार नीति [एनटीपी] लागू की, जिसमें निम्नलिखित क्षेत्रों: स्वामित्व, सेवा और दूरसंचार के बुनियादी ढांचे के विनियमन में परिवर्तन लाया गया। वे राज्य के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के बीच संयुक्त उपक्रम स्थापित करने में भी सफल हुए. लेकिन अभी भी पूर्ण स्वामित्व की सुविधा केवल सरकारी स्वामित्व वाले संगठनों तक सीमित रखी गयी थी। विदेशी कंपनियां कुल हिस्सेदारी का 49% रखने की हकदार थीं। बहु-राष्ट्रीय केवल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में शामिल थे, नीति बनाने में नहीं.[17]
    इस अवधि के दौरान विश्व बैंक और आईटीयू ने भारत सरकार को लंबी दूरी की सेवाओं को उदार करने की सलाह दी थी जिससे राज्य के स्वामित्व वाले दूरसंचार विभाग और वीएसएनएल का एकाधिकार खत्म हो सके और लंबी दूरी के वाहक व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़े जिससे प्रशुल्क कम करने में मदद मिलेगी और देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकेगी. राव द्वारा चलाई जा रही सरकार ने विपरीत राजनीतिक दलों को विश्वास में लेकर स्थानीय सेवाओं का उदारीकरण किया और 5 साल के बाद लंबी दूरी के कारोबार में विदेशी भागीदारी देने का विश्वास दिलया. देश को बुनियादी टेलीफोनी के लिए 20 दूरसंचार परिमंडलों और मोबाइल सेवाओं के लिए 18 परिमंडलों में बांटा गया था। इन परिमंडलों को प्रत्येक परिमंडल में राजस्व के मूल्य के आधार पर ए, बी और सी श्रेणी में विभाजित किया गया। सरकार ने प्रति परिमंडल में सरकारी स्वामित्व वाले दूरसंचार विभाग के साथ प्रति परिमंडल एक निजी कंपनी के लिए निविदाओं को खुला रखा. सेलुलर सेवा के लिए प्रति परिमंडल में दो सेवा प्रदाताओं को अनुमति दी जाती थी और हर प्रदाता को 15 साल का लाइसेंस दिया जाता था। इन सुधारों के दौरान, सरकार को आईटीआई (ITI), दूरसंचार विभाग, एमटीएनएल (MTNL), वीएसएनएल (VSNL) और अन्य श्रमिक यूनियनों के विरोधों का सामना करना पड़ा, लेकिन वह इन बाधाओं से निपटने में कामयाब रही.[17]
    1995 के बाद सरकार ने ट्राई (भारत का दूरसंचार नियामक प्राधिकरण) बनाया, जिसने प्रशुल्क तय करने और नीतियों को बनाने में सरकारी हस्तक्षेप को कम कर दिया. दूरसंचार विभाग ने इसका विरोध किया। राजनीतिक शक्तियां 1999 में बदल गयीं और अटल बिहारी वाजपेयीके नेतृत्व वाली नयी सरकार नए सुधारों की और अधिक समर्थक थी, जिसने उदारीकरण की बेहतर नीतियों की शुरुआत की. उन्होंने डॉट को 2 भागों में बांटा-1 नीति निर्माता और अन्य सेवा प्रदाता (डीटीएस) जिसे बाद में बीएसएनएल का नाम दिया गया। विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी को 49% से बढ़ाकर 74% करने के प्रस्ताव को विरोधी राजनीतिक दल और वामपंथी विचारकों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। घरेलू व्यापार समूह चाहते थे कि सरकार वीएसएनएल का निजीकरण कर दे. आखिर में अप्रैल 2002 में अंत में, सरकार ने वीएसएनएल में अपनी हिस्सेदारी को 53% से घटाकर 26% कर दी और इसे निजी उद्यमों को बिक्री के लिए आमंत्रित करने का फैसला किया। अंत में टाटा ने वीएसएनएल में 25% हिस्सेदारी ले ली.[17]
    यह कई विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय दूरसंचार बाजार में शामिल होने के लिए एक प्रवेश द्वार जैसा था। मार्च 2000 के बाद, सरकार नीतियों को बनाने और निजी संचालकों (ऑपरेटरों) को लाइसेंस जारी करने में और अधिक उदार बन गयी। सरकार ने आगे सेलुलर सेवा प्रदाताओं के लिए लाइसेंस शुल्क कम कर दिया और विदेशी कंपनियों की स्वीकार्य हिस्सेदारी को बढ़ाकर 74% कर दिया. इन सभी कारकों की वजह से, अंत में सेवा शुल्क कम हो गया और कॉल की लागत में भारी कमी आयी, जिससे भारत में हर आम मध्यम वर्ग परिवार के लिए सेल फोन हासिल करना आसान हो गया। भारत में तकरीबन 32 मिलियन हैंडसेट बिके थे। आंकड़े से भारतीय मोबाइल बाजार के विकास की असली क्षमता का पता चलता है।[18]
    मार्च 2008 में देश में जीएसएम (GSM)और सीडीएमए (CDMA) मोबाइल ग्राहकों का आधार 375 मिलियन था, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 50% विकास का प्रतिनिधित्व करता है।[19]बिना ब्रांड वाले चीनी सेल फोन जिनके पास इंटरनेशनल मोबाइल उपकरण पहचानआईएमईआई (IMEI) नंबर नहीं होता, देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होते हैं, इस वजह से मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों ने तकरीबन 30 मिलियन मोबाइल फोन (देश के कुल मोबाइलों का 8%) का इस्तेमाल 30 अप्रैल तक बंद करने की योजना बनायी.[20] 5-6 सालों में औसतन मासिक ग्राहकों में तकरीबन 0.05 से 0.1 मिलियन वृद्धि होती थी और दिसंबर 2002 में कुल मोबाइल उपभोक्ताओं का आधार 10.5 मिलियन तक पहुंच गया। हालांकि, नियामकों और लाइसेंसदाताओं द्वारा कई सक्रिय पहल करने के बाद मई 2010 तक मोबाइल उपभोक्ताओं की कुल संख्या बढ़कर 617 मिलियन ग्राहकों तक पहुंच गयी है।[21][22]
    भारत ने मोबाइलसेक्टर में दोनों जीएसएम (मोबाइल संचार के लिए वैश्विक प्रणाली) और सीडीएमए (कोड डिवीजन मल्टीपल एक्सेस)प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का चयन किया है। लैंडलाइन और मोबाइल फोन्स के अलावा, कुछ कंपनियां डब्ल्यूएलएल (WLL) की सेवा भी प्रदान करती हैं। भारत में मोबाइल दरें भी दुनिया में सबसे कम हो गई हैं। एक नया मोबाइल कनेक्शन अमेरिकी डॉलर $0.15 की मासिक प्रतिबद्धता के साथ ही सक्रिय किया जा सकता है। 2003-04 और 2004-05 वर्ष में से अकेले 2005 में ग्राहकों में हर महीने लगभग 2 मिलियन की वृद्धि हुई.[कृपया उद्धरण जोड़ें]
    जून 2009 में, भारत सरकारने गुणवत्ता में कमी और आईएमईआईनंबर के न होने पर चिंता जाहिर करते हुए चीनमें निर्मित कई मोबाइल फोनों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि भारत में ऐसे फोन की बिक्री का पता लगाने में अधिकारियों को मुश्किलें होती थीं।[23]अप्रैल 2010 में सरकार ने भारतीय सेवा प्रदाताओं को चीनी मोबाइल प्रौद्योगिकी खरीदने से यह हवाला देते हुए रोका कि चीनी हैकर्स राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भारतीय दूरसंचार नेटवर्क को अवरुद्ध कर सकते हैं। भारत सरकार की वेबसाइटों और कंप्यूटर नेटवर्कपर चीनी हैकर्स द्वारा लगातार हमलों ने भारतीय नियामकों को चीन में तैयार संभावित संवेदनशील उपकरणों के आयात के प्रति संदिग्ध बना दिया है। इनसे प्रभावित कंपनियों के नाम हैं हुआई प्रौद्योगिकी और ज़ेडटीई.[24][25][26]

    भारत में दूरसंचार नियामक पर्यावरण

    एलईआरएनईएशिया (LIRNEasia) का दूरसंचार विनियामक पर्यावरण (टीआरई) सूचकांक, जो टीआरई के कुछ आयामों पर हितधारकों की धारणा को सारांशित करता है और अनुकूल माहौल में पर्यावरण विकास और प्रगति तय करने की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सबसे हाल ही में जुलाई 2008 में आठ एशियाई देशों में सर्वेक्षण कराया गया था, जिनमें बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, थाईलैंड और फिलीपींस शामिल है। यह उपकरण सात आयामों को मापता है:i) बाजार में प्रवेश; ii) दुर्लभ संसाधनों के उपयोग, iii) एक दूसरे से संबंध, iv) शुल्क विनियमन; v) विरोधी प्रतिस्पर्धी तरीके और vi) सार्वभौमिक सेवाएं; vii) फिक्स्ड, मोबाइल और ब्रॉडबैंड क्षेत्रों के लिए सेवा की गुणवत्ता.
    भारत के परिणाम इस तथ्य को दर्शाते हैं कि साझेदार टीआरई (TRE) को मोबाइल क्षेत्र के बाद फिक्स्ड और फिर ब्रॉडबैंड के लिए सबसे अधिक अनुकूल मानते हैं। दुर्लभ के अलावा प्रवेश के लिए स्थाई (फिक्स्ड) क्षेत्र संसाधनों में मोबाइल क्षेत्र से पीछे है। निश्चित और मोबाइल क्षेत्रों के पास शुल्क नियमन के लिए उच्चतम स्कोर हैं। मोबाइल सेक्टर के लिए भी बाजार में प्रवेश भी सुलभ है हर परिमंडल में 4-5 मोबाइल सेवा प्रदाताओं के होने की वजह से अच्छी प्रतिस्पर्धा है। प्राप्तांक में ब्रॉडबैंड सेक्टर का सबसे कम अंक है। ब्रॉडबैंड का कम प्रवेश 2007 के आखिर में 9 मिलियन की जगह महज 3.87, स्पष्ट करता है कि विनियामक वातावरण बहुत अनुकूल नहीं है।[27]

    राजस्व और विकास

    दूरसंचार सेवा क्षेत्र में 2004-2005 के भारतीय रुपया71,674 करोड़ (US$14.8 बिलियन)की तुलना में 2005-06 में कुल राजस्व भारतीय रुपया86,720 करोड़ (US$17.9 बिलियन) 21% की वृद्धि दर्ज की गई है। दूरसंचार सेवा क्षेत्र में पिछले वित्तीय वर्ष के भारतीय रुपया1,78,831 करोड़ (US$36.8 बिलियन)की तुलना में वर्ष 2005-06 में कुल निवेश भारतीय रुपया2,00,660 करोड़ (US$41.3 बिलियन)से ऊपर चला गया।[28]
    दूरसंचार तेजी से बढ़ रही सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की जीवन रेखा है। इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 2005-2006 में 6.94 मिलियन तक पहुंच गयी है। इनमें से 1.35 करोड़ के पास ब्रॉडबैंडकनेक्शन थे।[28]विश्व में एक अरब से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं।
    भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि देश के 66,822 राजस्व गांवों को, जिन्हें सार्वजनिक ग्रामीण टेलीफोन (वीपीटी) अभी तक नहीं मिला है, उन्हें जोड़ा जाएगा. हालांकि, देश में इस बारे में संदेह जाहिर किया गया है कि आखिर गरीबों के लिए यह कितना काम आयेगा.[29]
    दूरसंचार क्षेत्र में रोजगार की पूरी क्षमता का पता लगाना मुश्किल है लेकिन अवसरों की व्यापकता का पता इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2004 में इसकी संख्या 2.3 मिलियन थी जबकि दिसंबर 2005[30]में सार्वजनिक कॉल के कार्यालयों की संख्या 3.7 मिलियन हो गई थी।
    भारत के मोबाइल उद्योग में वैल्यू एडेड सर्विसेज़ (वीएएस) के बाजार में 2006 के US$500 से बहुत अधिक बढ़कर 2009 में US$10 बिलियन तक विकसित करने की क्षमता है।[31]

    टेलीफोन

    लैंडलाइन्स पर, इंट्रा सर्कल कॉल को स्थानीय कॉल और इंटर-सर्कल कॉल को लंबी दूरी का कॉल माना जाता है। वर्तमान में सरकार पूरे देश को एक दूरसंचार परिमंडल में एकीकृत करने पर काम कर रही है। लंबी दूरी का कॉल करने के लिए, उस क्षेत्र के कोड के पहले एक शून्य लगाया जाता है उसके बाद नंबर मिलाया जाता है (यानी दिल्लीकॉल करने के लिए पहले 011 और उसके बाद फोन नंबर मिलाया जायेगा). अंतरराष्ट्रीय कॉल करने के लिए, पहले "00"मिलाना चाहिए उसके बाद देश का कोड, क्षेत्र का कोड और स्थानीय नंबर. भारत के लिए देश कोड 91 है।
    टेलीफोन उपभोक्ता (वायरलेस और लैंडलाइन): 688.380 मिलियन (जुलाई 2010)[4]
    लैंडलाइन्स: 35.96 मिलियन (जुलाई 2010)[4]
    सेल फोन्स: 652.42 मिलियन (जुलाई 2010)[4]
    वार्षिक सेल फोन जुड़ाव: 178250000 (जनवरी, 2009 दिसम्बर)[4]
    मासिक सेल फोन जुड़ाव: 16920000 (जुलाई 2010)[4]
    दूरसंचारघनत्व: 58.17% (जुलाई 2010)[4]
    अनुमानित दूरसंचारघनत्व: 1 अरब, 2012 तक जनसंख्या का 84%.[32]

    मोबाइल टेलीफोन्स

    इन्हें भी देखें: List of mobile network operators of India
    650 मिलियन[4]से अधिक के ग्राहकों के आधार वाली भारत की मोबाइल दूरसंचार प्रणाली दुनिया में दूसरे स्थान पर है और 1990 में इसे निजी खिलाड़ियों के हाथ में सौंपा गया था। देश कई क्षेत्रों में विभाजित है, परिमंडलों (लगभग राज्य की सीमाओं के आसपास) कहलाते हैं। सरकार और कई निजी कंपनियां स्थानीय और लंबी दूरी की टेलीफोन सेवाएं चलाती हैं। प्रतियोगिता के कारण कीमतें घटी हैं और भारत में दरें दुनिया में सबसे सस्ती हैं।[33]सूचना मंत्रालय के नए कदमों से दरों के और भी कम होने की उम्मीद की जा रही हैं।[34]सितम्बर 2004 में, मोबाइल फोन कनेक्शन की संख्या फिक्स्ड लाइन कनेक्शन्स की संख्या पार कर गयी और वर्तमान में वायरलाइन खंड की तुलना में 20:01 का अनुपात है।[4]मोबाइल ग्राहकों का आधार एक सौ तीस प्रतिशत तक, 2001 में 5 मिलियन ग्राहकों की तुलना में 2010 में 650 मिलियन तक बढ़ा है[4](9 साल से कम अवधि में). भारत मुख्य रूप से 900 मेगाहर्ट्ज बैंड पर जीएसएम (GSM)मोबाइल प्रणाली का अनुसरण करता है। हाल में संचालक (ऑपरेटर) 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में भी संचालित करते हैं। प्रमुख खिलाड़ियों में एयरटेल, रिलायंस इन्फोकॉम, वोडाफोन, आइडिया सेलुलर और बीएसएनएल/एमटीएनएल शामिल है। कई छोटे खिलाड़ी भी हैं जो कुछ राज्यों में संचालित करते हैं। अधिकतर संचालकों (ऑपरेटरों) और कई विदेशी वाहकों के बीच अंतरराष्ट्रीय रोमिंग समझौते हैं।
    भारत 23 टेलीकॉम परिमंडलों में विभाजित है। वे नीचे सूचीबद्ध हैं:[35]
    निम्न तालिका 31 जुलाई 2010 के रूप में प्रत्येक मोबाइल सेवा प्रदाता के भारत में ग्राहक आधार के बारे में जानकारी देता है

    ऑपरेटर / चालक
    ग्राहक आधार[4]
    मार्केट शेयर[4]
    भारती एयरटेल139,220,88221.34%
    एमटीएनएल (MTNL)5,255,4440.81%
    बीएसएनएल (BSNL)73,781,44811.31%
    रिलायंस कम्युनिकेशंस113,315,83117.37%
    एयरसेल43,296,6596.64%
    सिस्तेमा5,582,6830.86%
    लूप2,947,2880.45%
    यूनिटेक6,873,7981.05%
    आइडिया70,748,93610.84%
    एटिस्लैट30,0230.005%
    वीडियोकॉन2,777,3960.43%
    स्टेल1,423,0430.22%
    टाटा टेलीसर्विसेज74,850,22011.47%
    एचएफसीएल (HFCL) इन्फोटेल851,8870.13%
    वोडाफोन111,465,26017.08%
    ऑल इंडिया652,420,798100%
    सबसे बड़े ग्राहक आधारas of July 2010 के अनुसार  (अपने-अपने राज्यों सहित मुंबई, कोलकाता और चेन्नई महानगरों में) के दस राज्यों की एक सूची नीचे दी गई है

    राज्य
    ग्राहक आधार[4]
    जनसंख्या (01/08/2010)[36]
    प्रति 1000 जनसंख्या मोबाइल फोन
    उत्तर प्रदेश85,185,307199,415,992427
    महाराष्ट्र78,020,851110,351,688707
    तमिलनाडु59,709,70867,773,611881
    आंध्र प्रदेश50,507,42784,241,069600
    पश्चिम बंगाल47,088,25990,524,849520
    बिहार41,898,46897,560,027430
    कर्नाटक41,804,17258,969,294709
    गुजरात36,097,16358,388,625618
    राजस्थान36,083,72067,449,102535
    मध्यप्रदेश35,391,44172,362,313489
    भारत652,420,7981,188,783,351549

    लैंडलाइन्स

    अभी हाल तक, केवल सरकार के स्वामित्व वाली बीएसएनएल और एमटीएनएल को तांबे के तारों के माध्यम से भारत में लैंडलाइन फोन सेवा प्रदान करने के लिए अनुमति प्राप्त थी, जिनमें से एमटीएनएलदिल्लीऔर मुंबईमें तथा बीएसएनएल देश के अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रही थी। अब टचटेल और टाटा टेलीसर्विसेज जैसे निजी संचालकों ने भी बाजार में प्रवेश किया है लेकिन उनके व्यापार का प्राथमिक ध्यान मोबाइल-फोन पर केंद्रित है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]भारत में सेलुलर फोन उद्योग के तीव्र विकास के कारण, लैंडलाइनों को सेलुलर संचालकों (ऑपरेटरों) से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इसने लैंडलाइन सेवा प्रदाताओं को और अधिक कुशल बनने तथा अपनी सेवा की गुणवत्ता में सुधार मजबूर कर दिया है। अब उच्च घनत्व वाले शहरी क्षेत्रों में भी मांग पर लैंडलाइन कनेक्शन उपलब्ध है। भारत में आधार के वायरलाइन उपभोक्ताओं as of September 2009 के अनुसार  का विलगन नीचे दिया गया है।[37]

    ऑपरेटर / चालक
    ग्राहक आधार
    बीएसएनएल (BSNL)28,446,969
    एमटीएनएल (MTNL)3,514,454
    भारती एयरटेल2,928,254
    रिलायंस कम्युनिकेशंस1,152,237
    टाटा टेलीसर्विसेज1,003,261
    एचएफसीएल (HFCL) इन्फोटेल165,978
    टेलीसर्विसेज लिमिटेड95,181
    ऑल इंडिया37,306,334
    सबसे बड़े ग्राहक आधार युक्त as of September 2009 के अनुसार  (उनके सम्बंधित राज्यों में महानगरों मुंबई, कोलकाता और चेन्नई सहित) आठ राज्यों की सूची नीचे दी गई है[37]

    राज्य
    ग्राहक आधार
    महाराष्ट्र5,996,912
    तमिलनाडु3,620,729
    केरल3,534,211
    उत्तर प्रदेश2,803,049
    कर्नाटक2,751,296
    दिल्ली2,632,225
    पश्चिम बंगाल2,490,253
    आंध्र प्रदेश2,477,755

    इंटरनेट

    2009 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के कुल ग्राहकों का आधार 81 मिलियन था।[38]संयुक्त राष्ट्र, जापान या दक्षिण कोरिया की तुलना में, जहां इंटरनेट प्रवेश उल्लेखनीय रूप से काफी ऊंचा है, भारत में इंटरनेट प्रवेश विश्व के सबसे कम इंटरनेट प्रवेश में से एक है, जो आबादी का 7.0% है।[38]
    2006 की शुरुआत के बाद से भारत में ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की संख्या में सतत विकास देखा गया है। जनवरी 2010 के अंत तक, देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की कुल संख्या 8.03 मिलियन तक पहुंच गयी है।
    पश्चिमी यूरोप/ब्रिटेनऔर संयुक्त राज्य अमेरिकाकी तुलना में भारत में ब्रॉडबैंड अधिक महंगा है।[39]
    1992 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, कई निजी आईएसपीज ने अपने खुद के स्थानीय लूप और आधारभूत संरचनाओं के साथ बाजार में प्रवेश किया है। दूरसंचार सेवाओं का बाजार ट्राईऔर (दूरसंचार विभाग) डॉटद्वारा विनियमित होता है, जो कुछ वेबसाइटों पर सेंसरशिप लागू करने के लिए जाने जाते हैं।
    इन्हें भी देखें: List of ISPs in India
    इन्हें भी देखें: Internet censorship in India

    कम स्पीड ब्रॉडबैंड (256 kbit/s - 2 Mbit/s)

    भारत में ब्रॉडबैंड की वर्तमान परिभाषा 256 केबिट्स/एस की गति है। ट्राई ने जुलाई 2009 को इस सीमा को 2 एमबिट/एस तक बढ़ाने की सिफारिश की है।[40]
    जनवरी 2010 के अनुसार भारत में 9.24 मिलियन ब्रॉडबैंड उपयोगकर्ता हैं जो कि जनसंख्या का 6.0% है।[41]जापान, दक्षिण कोरिया और फ्रांस की तुलना में भारत सबसे कम गति वाला ब्रॉडबैंड प्रदान करने वाले देशों में से एक है।[9][39]
    ब्रॉडबैंड प्रवेश में बढ़ती दिलचस्पी और सेवा की गुणवत्ता में लगातार सुधार की वजह से कई अप्रवासी भारतीय विश्व में कहीं से भी भारतमें रहनेवाले अपने परिवार के साथ संवाद करने का आनंद उठा रहे हैं। हालांकि, कई उपभोक्ताओं की शिकायत है कि कई आईएसपी अभी भी विज्ञापित गति प्रदान करने में विफल हैं - और कुछ तो मानक गति 256 kbit/s भी मुहैया नहीं कर पाते हैं।

    हाई स्पीड ब्रॉडबैंड (2 Mbit/ s पर)

    • एयरटेल ने ADSL2 + सक्षम लाइनों पर 16 Mbit/s तक की योजना का शुभारंभ किया गया है और सीमित क्षेत्रों में 30 Mbit/s और 50 Mbit के संचालन की नई योजनायें बना रहा है।[42]
    • बीम टेलीकॉम घरेलु उपयोगकर्ताओं के लिए 6 Mbit/s तक की योजनायें प्रदान करता है और केवल हैदराबाद सिटी में पावर उपयोगकर्ताओं के लिए के लिए 20 Mbit/s की योजना उपलब्ध है।[43]
    • बीएसएनएल कई शहरों में 24 Mbit/s तक के एडीएसएल (ADSL) की पेशकश करता है। तथा FTTH के द्वारा 100 Mbit/s के सेवा की पेशकश कई शहरों मे कर चुका है।[44]
    • हयाई ब्रॉडबैंड 1 Gbit/s के आंतरिक अंतर्जाल (इन्टरनल नेटवर्क) पर 100 Mbit/s तक की एफटीटीएच (FTTH) सेवा की पेशकश करेगा.
    • ऑनेस्टी नेट सॉल्यूशंस केबल पर 4 Mbit/s तक ब्रॉडबैंड प्रदान करता है।
    • एमटीएनएल चुने हुए क्षेत्रों में 20 Mbit/s तक की गति का वीडीएसएल (VDSL) प्रदान करता है, साथ ही 155 Mbit/s की आश्चर्यजनक गति का बैंडविड्थ भी प्रदान करता है, इस तरह इसे भारत में सबसे तेज आईएसपी बना रही है।[45]
    [46]
    • रिलायंस कम्युनिकेशंस चयनित क्षेत्रों में 10 Mbit/s और 20 Mbit/s ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं प्रदान करता है।[47]
    • टाटा इंडिकॉम "लाइटनिंग प्लस"दर-सूची संरचना के तहत 10 Mbit/s, 20 Mbit/s और 100 Mbit/s के विकल्प प्रदान करता है।[48]
    • टिकोना डिजिटल नेटवर्क्स वायरलेस ब्रॉडबैंड सेवा है, जो 2 Mbit/s के साथ ओएफडीएम (OFDM) और एमआईएमओ (MIMO) चौथी पीढ़ी प्रौद्योगिकी (4G) द्वारा संचालित है।[49]
    • ओ-क्षेत्र (O-Zone) नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड अखिल भारत (Pan-India) सार्वजनिक वाई-फाई (WI-Fi) हॉटस्पॉट प्रदाता है, जो 2 Mbit/s तक का वायरलेस ब्रॉडबैंड दे रहा है।[50]
    इन्हें भी देखें: List of ISPs in India
    भारत में हाई स्पीड ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की मुख्य समस्या यह है कि वे अक्सर महंगी होती हैं और/या वे योजना में शामिल डाटा को सीमित मात्रा में ही हस्तांतरित कर पाते हैं।

    सांख्यिकी

    इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और मेजबान: 86571 (2004) स्रोत: सीआईए विश्व तथ्य बुक (CIA World FactBook)
    देश कोड (शीर्ष स्तर डोमेन) :में

    प्रसारण

    आकाशवाणी कादरी मंगलौर, पर एफएम टॉवर.
    रेडियो प्रसारण स्टेशन:एएम 153, एफएम 91, शार्टवेव 68 (1998)
    रेडियो: 116,000,000 (1997)
    टेलीविजन स्थलीय प्रसारण स्टेशन 562 (जिनमें से 82 स्टेशन 1 किलोवाट या उससे अधिक शक्ति और 480 स्टेशन 1 किलोवाट से कम शक्ति से युक्त हैं) (1997)
    दूरदर्शन 110,000,000 (2006)
    भारत में, केवल सरकारी स्वामित्व वाले दूरदर्शन (दूर = दूरी = टेली, दर्शन =विजन) को स्थलीय टेलीविजन संकेतों का प्रसारण करने की अनुमति है। शुरू में इसमें एक प्रमुख राष्ट्रीय चैनल (डीडी नैशनल) और कुछ बड़े शहरों में एक मेट्रो चैनल था (डीडी मेट्रो के रूप में भी जाना जाता था).
    उपग्रह/केबल टीवी खाड़ी युद्ध के दौरान सीएनएन के साथ शुरू हुआ। सैटेलाइट डिश एंटेना के स्वामित्व, या केबल टेलीविजन प्रणाली के नियंत्रण का कोई विशेष नियम नहीं है, जिसकी वजह से स्टार टीवी ग्रुप और ज़ी टीवी के बीच दर्शकों की संख्या और चैनलों को लेकर घमासान हुआ था। शुरुआत में ये संगीत और मनोरंजन चैनलों तक सीमित थे, बाद में दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई और प्रादेशिक भाषाओं और राष्ट्रीय भाषा, हिंदी में कई चैनल शुरू हो गये। मुख्य समाचार चैनलों में सीएनएन और बीबीसी वर्ल्ड उपलब्ध हैं। 1990 के अंत में, समसामयिक मुद्दों और समाचारों के कई चैनल शुरू हुए, जो दूरदर्शन की तुलना में वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करने की वजह से काफी लोकप्रिय हुए. इनमें से कुछ प्रमुख चैनल हैं आज तक (जिसका मतलब है आज तक (टिल टुडे), जो इंडिया टूडेग्रुप द्वारा संचालित है) और स्टार न्यूज, सीएनएन-आईबीएन, टाइम्स नाउ, शुरुआत में यह एनडीटीवी ग्रुप और उनके प्रमुख एंकर, प्रणव राय द्वारा संचालित किया जाता था (और अब एनडीटीवी के खुद के चैनल हैं, एनडीटीवी 24x7, एनडीटीवी प्रॉफिट, एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी इमेजिन).नई दिल्ली (न्यू डेल्ही) टेलीविजन
    यहां भारतीय टेलीविजन स्टेशनों की यथोचित विस्तृत सूची दी जा रही है।

    अगली पीढ़ी के नेटवर्क

    अगली पीढ़ी के नेटवर्कों में, एकाधिक उपयोग वाले नेटवर्क आईपी प्रौद्योगिकी के आधार पर ग्राहकों को मुख्य नेटवर्क से जोड़ सकते हैं। इस तरह के उपयोग वाले नेटवर्कों में निश्चित स्थानों या ग्राहकों से वाई-फाई द्वारा जुड़े फाइबर ऑप्टिक्स या समाक्षीय केबलनेटवर्क और मोबाइलग्राहकों के साथ जुड़े 3 जीनेटवर्क शामिल हैं। इसके परिणामस्वरुप भविष्य में, यह पहचान करना असंभव होगा कि अगली पीढ़ी का नेटवर्क स्थायी होगा या मोबाइल नेटवर्क होगा और वायरलेस अधिगम के ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल स्थायी (फिक्स्ड) और मोबाइल दोनों सेवाओं के लिए किया जायेगा. उस समय स्थायी (फिक्स्ड) और मोबाइल नेटवर्क के बीच अंतर करना मुश्किल हो जायेगा-क्योंकि स्थायी और मोबाइल उपयोगकर्ता दोनों एकल कोर नेटवर्क के जरिए सेवाओं का उपयोग करेंगे.
    भारतीय दूरसंचार नेटवर्क विकसित देशों के दूरसंचार नेटवर्क जितना गहन नहीं है और भारत का दूरसंचार घनत्व केवल ग्रामीण क्षेत्रों में कम है के रूप में गहन नहीं हैं। प्रमुख संचालकों (ऑपरेटरों) द्वारा तक भारत में यहाँ तक कि दूरस्थ क्षेत्रों में भी 670000 रूट किलोमीटर (419000 मील) ऑप्टिकल फाइबर बिछाई गई है और यह प्रक्रिया जारी है। अकेले बीएसएनएल ने अपने 36 एक्सचेंजों से 30,000 टेलीफोन एक्सचेंजों तक फाइबर ऑप्टिकल बिछाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने की व्यवहार्यता का ध्यान रखते हुए एक आकर्षक समाधान प्रस्तुत किया गया है, जो कम लागत में एकाधिक सेवा सुविधा प्रदान करता प्रतीत होता है। गहन फाइबर ऑप्टिकल नेटवर्क पर आधारित एक ग्रामीण नेटवर्क, इंटरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग करता है और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की पेशकश कर रहा है तथा अगली पीढ़ी के नेटवर्क जैसी सेवाओं के विकास के लिए एक खुले प्लेटफार्म की उपलब्धता का प्रस्ताव आकर्षक प्रतीत होता है। फाइबर नेटवर्क को आसानी से अगली पीढ़ी के नेटवर्क के लिए परिवर्तित किया जा सकता है और फिर सस्ती कीमत पर कई सेवाओं के वितरण के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है।

    मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) (एमएनपी)

    नंबर सुवाह्यता: ट्राई ने अपने 23 सितम्बर 2009 को जारी मसौदे में उन नियमों और विनियमों की घोषणा की जिनका मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) के लिए पालन किया जाएगा. मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) (MNP) उपयोगकर्ताओं को एक अलग सेवा प्रदाता के नेटवर्क में जाने पर भी उनकी मोबाईल संख्या (नंबर) को बनाए रखने के लिए अनुमति देता है, बशर्ते कि वे ट्राई द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन करें. जब एक ग्राहक अपने सेवा प्रदाता को बदलता है और अपने पुराने मोबाइल नंबर को ही रखता है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह एक अन्य सेवा प्रदाता के तहत स्थानांतरित होने का फैसला करने के पहले कम से कम 90 दिनों के लिए एक प्रदाता द्वारा आबंटित मोबाइल नंबर को बनाये रखेगा. यह प्रतिबंध एक सेवा प्रदाताओं द्वारा प्रदान की गई एमएनपी सेवाओं के शोषण पर नियंत्रण रखने के लिए स्थापित किया गया है।[51]
    समाचार रिपोर्टों के अनुसार, भारत सरकार ने 31 दिसम्बर 2009 से महानगरों और वर्ग 'ए'सेवा क्षेत्रों के लिए तथा 20 मार्च 2010 को देश के बाकी हिस्सों में एमएनपी लागू करने का फैसला किया है।
    31 मार्च 2010 को यह महानगरों और वर्ग 'ए'सेवा क्षेत्रों में से स्थगित कर दिया. बहरहाल, सरकारी कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल द्वारा बार-बार पैरवी की वजह से मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) के कार्यान्वयन में अगणित बार देरी हुई है। नवीनतम रिपोर्टों ने सुझाया है कि अंततः बीएसएनएल और एमटीएनएल 31 अक्टूबर 2010 से मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) लागू करने के लिए राजी हो गए हैं।[52]
    ताजा सरकारी रिपोर्ट है कि मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) को धीरे-धीरे चरणबद्ध किया जाएगा, एमएनपी को 1 नवम्बर 2010 से या उसके तुरंत बाद हरियाणा से शुरू किया जायेगा.[53]

    अन्तर्राष्ट्रीय

    समुद्र तल केबल

    • एलओसीओएम (LOCOM) चेन्नई को पेनांग, मलेशियासे जोड़ने वाला
    • भारत-संयुक्त अरब अमीरात केबल मुंबईको अल फुजायारा, संयुक्त अरब अमीरात से जोड़ने के लिए.
    • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 2 (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 2)
    • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 3) (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 3) - लैंडिंग साइट कोचीनऔरमुंबईमें. 960 Gbit/s की क्षमता .
    • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 4 (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 4) - लैंडिंग साइट मुंबईऔर चेन्नईमें. 1.28 Tbit/s की क्षमता.
    • फाइबर ऑप्टिक लिंक अराउंड द ग्लोब (FLAG-FEA) मुम्बई में एक लैंडिंग साइट के साथ (2000). प्रारंभिक डिजाइन क्षमता 10 Gbit/s, 2002 में 80 Gbit/s के लिए उन्नत, 1 Tbit/s के लिए उन्नत (2005).
    • टीआईआईएससीएस (TIISCS) (टाटा इंडिकॉम भारत - सिंगापुर केबल सिस्टम), टीआईसी (TIC) (टाटा इंडिकॉम केबल) के रूप में भी जाना जाता है, चेन्नई से सिंगापुर के लिए. 5.12 Tbit/s की क्षमता.
    • i2i - चेन्नई से सिंगापुर. 8.4 Tbit/s की क्षमता
    • एसईएसीओएम (SEACOM) दक्षिण अफ्रीका होकर मुंबई से भूमध्य के लिए. वर्तमान में यह यातायात को लंदन की ओर आगे ले जाने के लिए स्पेन के पश्चिमी समुद्र तट पर एसईए-एमई-डब्ल्यूई 4 के साथ जुड़ जाता है (2009). 1.28 Tbit/s की क्षमता.
    • आई-एमई-डब्ल्यूई (I-ME-WE) (भारत-मध्य पूर्व -पश्चिमी यूरोप) मुंबई में दो लैंडिंग साइटों के साथ (2009). 3.84 Tbit/s की क्षमता.
    • ईआईजी (EIG) (यूरोप-इंडिया गेटवे), मुंबई में लैंडिंग (Q2 2010 तक अपेक्षित).
    • एमईएनए (MENA) (मध्य पूर्व उत्तरी अफ्रीका).
    • टीजीएन-यूरेशिया (TGN-Eurasia) (घोषित) मुंबई में लैंडिंग (2010 में अपेक्षित?), 1.28 Tbit/s की क्षमता.
    • टीजीएन-खाड़ी (TGN-Gulf) (घोषित) मुंबई में लैंडिंग (2011 में अपेक्षित?), क्षमता अज्ञात.

    भारत में दूरसंचार प्रशिक्षण

    पदस्थ दूरसंचार संचालकों (बीएसएनएल और एमटीएनएल) ने क्षेत्रीय, परिमंडल (सर्किल) और जिला स्तर पर कई दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हैं। बीएसएनएल के पास गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में एडवांस्ड लेवल टेलीकॉम ट्रेनिंग सेंटर (एआईटीटीसी)(ALTTC), जबलपुर, मध्य प्रदेश में भारत रत्न भीम राव अम्बेडकर इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेलीकॉम ट्रेनिंग और नैशनल एकेडमी ऑफ़ फिनांस एंड मैनेजमेंट नामक राष्ट्रीय स्तर के तीन संस्थान हैं।
    एमटीएनएल ने 2003-04 में दूरसंचार प्रौद्योगिकी और प्रबंधन में उत्कृष्टता के लिए केंद्र (CETTM (सेंटर फॉर एक्जीलेंस इन टेलीकॉम टेक्नॉलॉजी आने मैनेजमेंट) शामिल किया। यह भारत में सबसे बड़ा दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र और भारतीय रुपया100 करोड़ (US$20.6 मिलियन)की एक केपेक्स योजना के साथ एशिया के सबसे बड़े दूरसंचार प्रशिक्षण केन्द्रों में से एक है। सीईटीटीएम (CETTM) 4,86,921 वर्ग फ़ुट (45,236.4 मी2) के क्षेत्र के साथ हीरानंदानी गार्डेन्स, पवई, मुंबई गार्डन में स्थित है4,86,921 वर्ग फ़ुट (45,236.4 मी2) . वह अपने निजी आंतरिक कर्मचारियों के अलावा और कंपनियों और छात्रों को भी दूरसंचार स्वीचिंग, प्रसारण, बेतार संचार, दूरसंचार संचालन और प्रबंधन में प्रशिक्षण प्रदान करता है।
    सरकारी संचालकों के अलावा भारती (आईआईटी दिल्ली के दूरसंचार प्रबंधन भारती स्कूल का हिस्सा), एजीस स्कूल ऑफ़ बिजनेस एंड टेलीकम्युनिकेशन (बंगलोर और मुंबई) और रिलायंस जैसी कुछ निजी कंपनियों ने अपने निजी प्रशिक्षण केंद्र शुरू किये हैं।
    इसके अलावा दूरसंचार प्रशिक्षण प्रदान करने वाले टेलकोमा टेक्नोलॉजीज जैसे कुछ स्वतंत्र केन्द्र भी भारत में विकसित हुए हैं।

    इन्हें भी देखें

    • ट्राई (TRAI)
    • भारतीय दूरसंचार सेवा
    • भारतीय बेतार संचार सेवा प्रबन्धक की सूची
    • भारत में दूरसंचार सांख्यिकी
    • भारत में मोबाइल फोन उद्योग
    • भारत का मीडिया
    • संख्या में मोबाइल फोन का उपयोग करने वाले देशों की सूची
    • संख्या में टेलीफोन लाइनों का उपयोग करने वाले देशों की सूची
    • टेलीकॉम न्यूज़ इंडिया

    संदर्भ



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    1. "Mobile Number Portability in India to be phased in from 1 नवम्बर 2010". www.mobilenumberporting.in. अभिगमन तिथि: 2010-10-27.

    बाहरी लिंक्स



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  • http://www.trai.gov.in/WriteReadData/trai/upload/PressReleases/767/August_Press_release.pdf

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  • Nandini Lakshman. "Going Mobile in Rural India". Business Week.

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  • "‘India will become world's No. 1 mobile market by 2013'". Hindu Business Line.

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    प्रस्तुति- उपेन्द्र कश्यप राहुल मानव



    इस साल के आठवें हफ्ते की टीआरपी का अगर नुकसान के लिहाज से विश्लेषण किया जाए तो नंबर एक और दो पर विराजमान आजतक व एबीपी न्यूज को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. आजतक कुल 1.9 अंक गिरा और 17.1 की टीआरपी के साथ नंबर वन पर मौजूद है. एबीपी न्यूज .9 की गिरावट के बावजूद 15.7 की टीआरपी के साथ नंबर दो पर कायम है.

    इंडिया टीवी तीसरे नंबर का चैनल बन चुका है क्योंकि नंबर एक व दो के चैनलों की टीआरपी की गिरावट व इंडिया टीवी की टीआरपी में .5 की वृद्धि के बावजूद इंडिया टीवी नंबर तीन से उपर नहीं उठ पाया है. न्यूज नेशन और इंडिया न्यूज दोनों ही 8.9 के साथ नंबर चार पर मौजूद हैं. आईबीएन7 ने थोड़ी बढ़त के साथ एनडीटीवी इंडिया को पीछे छोड़ दिया है. टीआरपी के आंकड़े इस प्रकार हैं....
    Wk 8, 0600Hrs to 2359Hrs, TG: CS15+, HSM:
    Aaj Tak 17.1 dn 1.9
    जिसको एड आजतक भी कहा जाता है।
    ABP News 15.7 dn 0.9
    India TV 13.9 up 0.5
    Z News 10.5 dn 0.2
    NEWS NATION 8.9 up 0.8
    India News 8.9 dn 0.2
    News 24 7.0 same 
    IBN 7 5.4 up 0.1
    NDTV India 5.2 dn 0.4
    TEZ 4.4 up 1.3
    DD News 2.4 up 1
    Samay 0.6 dn 0.1

    CS Males 25+ ABC
    Aaj Tak 17.3 dn 1.6
    ABP News 15.2 dn 1.3
    India TV 14.3 up 1.3
    Z News 10.8 dn 0.7
    India News 9.1 up 0.7
    NEWS NATION 8.7 up 0.4
    News 24 6.3 dn 0.2
    NDTV India 5.9 dn 0.4
    IBN 7 5.5 up 0.2
    TEZ 3.9 up 1.1
    DD News 2.3 up 0.8
    Samay 0.7 dn 0.3
    इसके पहले वाले हफ्ते की टीआरपी के लिए इस शीर्षक पर क्लिक करें...

    मेरठ का बॉलीवुड/ साल में बन जाते हैं सैकड़ों फिल्में

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    [Deewan] देशी फिल्मों का कारोबार - 1

    Ravikantravikant at sarai.net
    Sat Apr 1 15:01:39 IST 2006

    दोस्तो, नमस्कार।
    मैं अनिल पांडेय हूं और मेरा शोध का विषय है 'देशी फिल्मों का कारोबार
    (पश्चिमी उत्तार प्रदेश के विशेष संदर्भ में)। करीब ढ़ाई महीने के दौरान मैंने जो शोध किया है उसका
    संक्षिप्त व रोचक विवरण आपके सामने है।

    आपने मशहूर फिल्म शोले जरूर देखी होगी। क्या आपने वह 'शोले'देखी है जिसमें बसंती तांगे की बजाय
    बुग्गी (भैंसा गाड़ी) पर और गब्बर सिंह घोड़े के बजाय गधो पर आता है? वह 'धाूम'फिल्म देखी है
    जिसमें हाइटेक चोर सुपर रेसर मोटर साईकिल की बजाय साईकिल पर आते हैं? या फिर बंटी और बबली
    को भैंस चुराते देखा है? नहीं देखी है तो जरूर देखिए। आप हँसते-हँसते लोट पोट हो जाएंगे। इस फिल्म
    का नाम है 'देशी शोले', देशी धाूम'और 'यूपी के बंटी और बबली'। इन फिल्मों की सीडी आपको देश
    की राजधाानी दिल्ली सहित हरियाणा और पश्चिमी उत्तार प्रदेश में कहीं भी मिल जाएगी। इतना
    ही नहीं बालीवुड की तमाम सुपरहिट फिल्मों के देशी संस्करण भी आपको यहां मिल जाएंगे। जी जां,
    हम बात कर रहे हैं देशी फिल्मों की।

    संचार तकनीक के क्षेत्र में आई क्रांति ने लोगों को जन संचार माधयमों के करीब लाने का काम किया
    है। अखबार, टेलीविजन और रेडियो तो घर-घर पहुंच ही चुका है, अब फिल्में भी लोगों के घरों तक
    पहुंच रही हैं। डीवीडी और वीसीडी ने घरों को 'होम थिएटरों'में तब्दील कर दिया है। संचार
    तकनीक के विकास ने देश भर में कई स्थानों पर 'नए बालीवुड'को जन्म दिया है। जहां अपनी भाषा
    और परिवेश को धयान में रखकर फिल्में बनाई जा रही हैं। देशी फिल्मों का यह सफर महाराष्ट्र के
    मालेगांव से शुरू होकर बाया दिल्ली मेरठ पहुंच गया है। इन देशी फिल्मों की खासियत यह होती है
    कि मामूली बजट में तैयार ये फिल्में सिनेमाहाल में नहीं सीडी पर रीलीज होती हैं। यानी इन्हें सिर्फ
    सीडी प्लेयर के माधयम से छोटे पर्दे पर देखा जा सकता है। ये फिल्में शहरों में कम गांवों में ज्यादा
    देखी जाती हैं।

    देशी फिल्मों के लिहाज से बात करें तो ठेठ खड़ी हिंदी में संभवत: सबसे ज्यादा फिल्में बन रही हैं। इनमें
    से ज्यादातर फिल्में पश्चिमी उत्तार प्रदेश में बनाई जाती हैं। कुछ फिल्मों का निर्माण हरियाणा में
    भी होता है। इनमें से ज्यादातर फिल्में हास्य प्रधाान होती हैं। पश्चिमी उत्तार प्रदेश की ठेठ
    भाषा इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है क्योंकि पश्चिमी उत्तार प्रदेश की भाषा गुदगुदी और चुटीली
    है। पश्चिमी उत्तार प्रदेश में देशी फिल्मों का कारोबार देश के दूसरे हिस्सों से शायद कहीं ज्यादा
    है।
    मेरठ के केबल चैनलों के लिए कार्यक्रम निर्माण करने वाले अनीस भारती कहते हैं, ''मेरठ में हर महीने
    तकरीबन दर्जन भर नई फिल्में बन जाती हैं। करीब पचास हजार लागत वाली ये फिल्में डेढ़ से दो लाख
    का कारोबार कर लेती हैं।''
    तीन-चार वर्षों में मेरठ में एक 'नए बालीवुड'का अवतार हुआ है। यह है 'देशी बालीवुड'। हम यहां
    इसी देशी बालीवुड की चर्चा कर रहे हैं। दिल्ली से सटे होने और पश्चिमी उत्तार प्रदेश के किसानों
    के समृध्द होने के कारण मेरठ में देशी फिल्म उद्योग के फलने-फूलने में मदद मिली है। देश की राजधाानी
    दिल्ली में फिल्म निर्माण से संबंधिात उपकरण व तकनीक आसानी से उपलब्धा हो जाते हैं। दूसरा कारण
    मेरठ का रंगमंच से गहरा जुड़ाव है। मेरठ के वरिष्ठ रंगकर्मी, फिल्म निर्माता, निर्देशक और सभासद
    जगजीत सिंह के मुताबिक मेरठ रंगकर्मियों का गढ़ रहा है। यहां के थिएटर से निकले तमाम कलाकार
    बालीवुड में काम कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से यहां नाटय गतिविधिायां बंद सी हो गई हैं।
    लिहाजा थिएटर से जुड़े लोगों ने देशी फिल्मों का निर्माण शुरू कर दिया। मशहूर निर्देशक केदार शर्मा
    के शार्गिद रह चुके जगजीत ने 'दोस्ती के हाथ'नामक हिंदी फिल्म का निर्माण किया है जो जल्दी
    ही रीलीज होने वाली है।
    देशी फिल्मों को चार श्रेणी में बांटा जा सकता है। पहली श्रेणी में वे फिल्में आती हैं जो बालीवुड
    फिल्मों का देशी रूपांतरण होती हैं। ऐसी फिल्मों की भरमार है। मशहूर फिल्म शोले पर आधाारित अब
    तक यहां तीन फिल्में बन चुकी हैं। देशी तेरे नाम, देशी युवा, देशी धाूम, देशी गदर और देशी हीरो
    नंबर वन व यूपी के बंटी और बबली आदि फिल्मों ने अच्छा कारोबार किया है। दूसरी श्रेणी में हास्य
    प्रधाान फिल्में आती हैं। जिनकी भाषा चुटीली व संवादों में हंसी के फौव्वारे होते हैं। हालांकि कई
    बार इन फिल्मों के संवाद द्विअर्थी व भाषा फूहड़ होती है। टी सीरीज की ताऊ रंगीला इस श्रेणी
    की सुपर-डुपर हिट फिल्म है। इसके अलावा इस श्रेणी की छिछोरों की बारात, ताऊ बहरा, ब्याह
    और गौंणा घोल्लू का, दुधिाया हरामी, करे मनमानी रम्पत हरामी, बेवकूफ खानदान और साली
    दिल्ली वाली जैसी फिल्में भी खूब देखी जाती हैं।
    तीसरी श्रेणी में वे फिल्में आती हैं जो यहां के सांस्कृतिक ताने-बाने पर तैयार की जाती हैं। जिन्हें हम
    मौलिक देशी फिल्म कह सकते हैं। इनमें भी बम्बइया फिल्मों की तरह कई बार मसाला मिला दिया
    जाता है। ये फिल्में सालीन होती हैं। इसीलिए गांव के लोग इसे पसंद करते हैं। इन फिल्मों में
    सामाजिक उद्देश्य भी छिपा होता है।
    'धााकड़ छोरा'इस श्रेणी की चर्चित और सुपरहिट फिल्म है। इसके अलावा निकम्मा, कर्मवीर और
    बुध्दूराम भी इसी श्रेणी की सुपरहिट फिल्में हैं। चौथी श्रेणी में धाार्मिक फिल्में आती हैं। इनकी भी
    खूब मांग है। कृष्ण सुदामा, चारों धााम, माता-पिता के चरणों में, द्रौपदी चीर हरण, सती
    सुनोचना और पिंगला भरथरी जैसी फिल्में पश्चिमी उत्तार प्रदेश और हरियाणा में खूब देखी जाती हैं।
    देशी फिल्मों का सबसे मजबूत पक्ष चुटीली भाषा और किरदारों के संवाद अदायगी का खालिस देशी
    अंदाज है। बालीवुड की फिल्मों का देशी रूपांतरण तो बहुत ही रोचक होता है। कहानी और संवादों
    का स्थानीयकरण्ा कर दिया जाता है। यहां देशी शोले का उदाहरण दिया जा सकता है। फिल्म का एक
    प्रसिध्द सीन है। वह है जब 'कालिया'जय और बीरू के हाथों पिटकर वापस आता है तो ''अब तेरा
    क्या होगा कालिया''की जगह देशी शोले का संवाद देखिए। गब्बर कहता है, ''के समझ रख्या था
    गब्बर तने पनीर के पकोड़े खिलावगा.... तने तो गब्बर का नाम मूत में लड़ा दिया।''इसी फिल्म में
    एक जगह बीरू बसंती को गब्बर के समाने नाचने को मना करता है तो गब्बर का एक डायलाग बहुत
    प्रसिध्द हुआ था, ''बहूत याराना लगता है।''तो देशी शोले के गब्बर की सुनिए। वह बसंती से
    कहता है, ''घणी सेटिंग लग री है।''

    ऐसी फिल्मों में एक और प्रयोग किया जाता है। बालीवुड फिल्मों के पात्रों और किरदारों में 'लोकल
    टच'डालकर फिल्म की कहानी का स्थानीयकरण कर दिया जाता है। मसलन गोविंदा की हीरो
    नंबर-वन पर आधाारित फिल्म देशी नंबर वन की कहानी एक गांव के बनिए (लाला) और उसके नौकर
    की कहानी है। लाला नौकरी देते हुए नौकर के सामने शर्त रखता है कि अगर वह नौकरी छोड़कर
    जाएगा तो लाला उसके नाक कान काट लेगा। नौकर भी शर्त रखता है कि अगर लाला ने उसे नौकरी से
    निकाला तो वह भी मालिक के नाक कान काट लेगा और उसकी बेटी से ब्याह करेगा। नौकर के रूप में
    होता है 'देशी हीरो नंबर वन'। वह अपने कारनामों से लाला को परेशान कर दर्शकों को खूब हंसाता
    है। देशी हीरो की वेश भूषा असली फिल्म के हीरो गोविंदा की नकल है। हाफ पेंट और चमकीली शर्ट
    के साथ देशी हीरो ने गले में टाई व कंधो पर गमछा लटका रखा है। सिर पर गांधाी टोपी पहने देशी
    हीरो देखते ही बनता है।
    इसके अलावा फिल्मों को हास्य का पुट देने के लिए दृश्यों को रोचक बनाया जाता है। जैसे शोले में
    गब्बर चट्टान पर खड़ा होता है तो देशी शोले में वह गोबर के उपलों के ढेर पर खड़ा होता है। दूसरी
    बनी 'देशी शोले'में डाकू घोड़े की बजाय गधो पर आते हैं और बंदूक की बजाय उनके हाथों में लाठियां
    होती हैं। फिल्मों में गाने भी होते हैं उन्हें भी देशी भाषा में अनुवादित कर दिया जाता है।
    कई बार कुछ फिल्में हास्य पैदा करने के चक्कर में फूहड़ता और अश्लीलता की हदों को पार कर जाती हैं।
    यहां फिल्मों का जिक्र लाजिमी है। ये हैं कलियुग की रामायण और कलियुग का महाभारत। इन दोनों
    फिल्मों पर धाार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के कारण प्रतिबंधा लगा दिया गया है। कलियुग
    की रामायण में सीता को बीड़ी पीते हुए और राम को मुजरा सुनते हुए दिखाया गया था तो कलियुग
    का महाभारत में कृष्ण रथ की बजाय मोटर साईकिल पर आते हैं और अर्जुन और दूसरे योध्दा तीर धानुष
    की बजाय हाकी लेकर युध्द करने जाते हैं। देशी फिल्मों में बढ़ती फूहड़ता से चिन्तित जगजीत सिंह कहते
    हैं, ''यह सब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला। लोग ऐसी फिल्मों को देखना पसंद नहीं करते।''
    लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसी फिल्में देखी भी खूब जाती हैं और कारोबार की दृष्टि से सफल भी मानी
    जाती हैं। टी सीरीज ने छिछोरों की बारात'नामक एक फिल्म बनाई और खूब बिकी। इस फिल्म के
    निर्देशक एस. गोपाल टाटा ने फिल्म का नाम सुनकर पहले तो इसे बनाने से इनकार कर दिया। लेकिन
    बाद में व्यावसायिक मजबूरियों के चलते जब फिल्म बनाई तो यह चल निकली। बकौल श्री टाटा,
    ''इस फिल्म को देखकर जब लोग मेरी तारीफ करते हैं तो मुझे अपने आप पर हंसी आती है।''
    देशी फिल्मों का कारोबार निकटता के सिध्दांत पर आधाारित है। अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त युवा
    निर्देशक यतीश यादव इसे भारतीय लोगों के अपनी संस्कृति से गहरे लगाव के रूप में देखते हैं। उनके
    मुताबिक, ''भारतीयों को अपनी जमीन और भाषा से बड़ा प्यार होता है। यही वजह है कि मेरठ का
    दूधिाया या किसान अमोल पालेकर की 'पहेली'की बजाय 'धााकड़ छोरा'देखना ज्यादा पसंद
    करेगा। इसमें उन्हें अपनापन सा लगता है।

    देशी फिल्मों के निर्माण और प्रचलन का एक महत्वपूर्ण कारण गांवों से मनोरंजन के पारंपरिक साधानों
    मसलन लोक नृत्य, लोक गीत व नाटकों का लुप्त होना है। गांव के लोक कलाकार रोजी रोटी की
    तलाश में शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। ऐसे में शाम को चौपालों पर 'गवइयों'की जगह अब देशी
    फिल्मों ने ले ली है। सचार क्रांति ने इसे और भी आसान बना दिया है।
    बालीवुड की पहुंच शहरों तक है। देशी बालीवुड ने मुंबई और गांव की दूरी को कम कर दिया है। इसने
    फिल्मों को गांवों तक और सही कहें तो आम लोगों तक पहुंचा रहा है। देशी बालीवुड ने साबित कर
    दिया है कि फिल्म जनसंचार का एक सशक्त माधयम है। अभी तक इसका उपयोग केवल मनोरंजन के लिए
    किया जा रहा है। जबकि सामाजिक चेतना पैदा करने और लोगों को जागरुक करने में इस माधयम को एक
    हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    क्रमश.....

    प्रस्तुति- राहुल मानव







    अवैध हथियारों का गढ़ बनता बुंदेलखंड का जालौन

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    अवैध असलहा बनाता युवक

    गंभीर बात यह है कि चुनावों के दौरान भले ही अवैध असलहा फैक्ट्री पकड़ने का कॉलम पुलिस द्वारा पूरा कर लिया जाता हो लेकिन आमतौर पर इस अपराध को रोकने के लिए पुलिस गंभीर नहीं दिखती है। आसानी से अवैध असलहे मिल जाने की वजह से जिले में क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। न सिर्फ जालौन बल्कि आसपास के जनपद भी इससे प्रभावित हैं। नौ ब्लाकों वाले इस इस जनपद में 18 हजार लाइसेंसी शस्त्र हैं। करीब 50 हजार आवेदन लंबित हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां असलहों का कितना क्रेज है।

    कैसे बनते हैं असलहे

    तमंचा की नाल बनाने के लिए वाहनों की स्टेयरिंग रॉड का प्रयोग किया जाता है। लकड़ी, साधारण पेंच, स्प्रिंग जैसे आसानी से उपलब्ध उपकरणों से मौत उगलने वाले असलहे तैयार कर लिए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि वर्तमान में 315 बोर का तमंचा ढाई से चार हजार रुपए के बीच में, 12 बोर का तमंचा दो से तीन हजार रुपए की कीमत पर मिल जाता है। 315 बोर एवं 12 बोर के तमंचों की बिक्री अधिक होने की प्रमुख वजह इन बोर के कारतूस आसानी से उपलब्ध हो जाना है। अवैध असलहे रखने वाले लोग लाइसेंस धारकों से कारतूस खरीदते हैं और उन्हीं कारतूसों का प्रयोग अपराधी संगीन वारदातों को अंजाम देने में करते हैं।


    अवैध असलहा बनाता युवक
    जानकारी के मुताबकि, निरोधात्मक कार्रवाई के लिए कई बार पुलिस भी अवैध असलहा बनाने वालों पर निर्भर रहती है। उन्हीं के एजेंटों से पुलिस भी असलहे लेती है। आंकड़ों की बात करें तो जनपद जालौन में वर्ष  2013 में अवैध असलहा अधिनियम के तहत 30 लोगों को गिरफ्तार किया। वर्ष 2014 में आकड़ें और बढ़ गए। इस साल 34 लोगों को तमंचा के साथ गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह आकड़ें भी असली तस्वीर उजागर नहीं करते हैं, हालात बेहद भयावह है। कई गांव यहां ऐसे हैं, जिनमें रहने वाले हर दूसरे युवा के पास देशी कट्टा मिल जाएगी। अवैध असलहों के कारण ही संगीन अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है।

    हत्या और लूट की हर घटना में तमंचा का प्रयोग

    पिछले साल जिले में हत्या के 43 मामले घटित हुए। लूट के 22 मामले प्रकाश में आए और हर घटना में देशी तमंचा का ही प्रयोग हुआ है। यदि यहां अवैध असलहों के कारोबार पर अंकुश लग जाए तो शायद संगीन अपराधों पर अंकुश लगे।

    एसपी सुनील सक्सेना का कहना है कि हाल के दिनों में इस दिशा में ठोस कार्रवाई की गई है। आटा में अवैध असलहा फैक्ट्री पकड़कर दो लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। उन्होंने कहा कि अवैध असलहा बनाने वाले और फिर उनको बेचने वालों का पूरा नेटवर्क पता लगाकर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा।

    हॉलीवुड को दमदार बनाते मेरठ के हथियार

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    प्रस्तुति-  हुमरा असद, राहुल मानव


    आज से 150 साल पहले दिल्ली से सटा मेरठ शहर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का गढ़ बना था. हथियारों से लैस भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह की शुरुआत की थी.
    ये बात बहुत लोग जानते हैं.
    लेकिन ये बात आपको शायद पता न हो कि आज भी मेरठ अपने हथियारों के लिए जाना जा रहा है.
    ये और बात है कि अबके हथियार असली लड़ाई में नहीं फिल्मी लड़ाई में इस्तेमाल हो रहे हैं – वो भी हॉलीवुड की फिल्मों की.

    बड़ी भागीदारी

    ऑस्कर विजेता फिल्म ग्लैडिएटर, 300, पाइरेस्ट्स ऑफ द कैरेबियन, द लास्ट सामुराई जैसी हॉलीवुड की ऐतिहासिक या यु्द्ध से जुड़ी ऐसी कई फिल्में आपने देखी होंगी.
    क्या आपने कभी सोचा है कि जो कपड़े या हथियार इन हॉलीवुड फिल्मों में इस्तेमाल होते हैं वो कहाँ बनते हैं?
    ये बनते हैं मेरठ में.
    आइए ले चलते हैं आपको भारत के मेरठ शहर की फैक्ट्रियों में. कहीं हथौड़े की मार और कहीं आग की लपटों से निकलकर तेज होती धार..ऐसी ही आवाजें आपका फैक्ट्री में स्वागत करती हैं.
    हॉलीवुड फिल्मों और विश्व प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में कलाकार जो कवच, हेलमेट, भाले इस्तेमाल करते हैं उनमें से बड़ा हिस्सा इन्हीं फैक्ट्रियों में बनता है.
    मेरठ की दीपिका एक्सपोर्ट्स कंपनी पिछले 20 साल से ये काम कर रही है.
    कंपनी के प्रबंध निदेशक गगन अग्रवाल कहते हैं, "हमने कई फिल्मों के लिए कॉस्ट्यूम, कवच और अन्य हथियार तैयार किए हैं. कई ऐसी वितरक हैं जो हमें नमूने भेजते हैं कि ऐसी सामग्री चाहिए. इतिहास से जुड़े म्यूज़ियमों से भी माँग रहती है. जैसे हमारे यहाँ रामलीला का मंचन होता है वैसे ही विदेशों में पारंपरिक कहानियों का मंचन होता है. हम इतिहासकारों से भी सलाह लेते हैं कि उस दौर की सामग्री कैसी रहती होगी. इस कारोबार में काफी संभावनाएँ हैं."
    गगन बताते हैं, “हमने टॉम क्रूज और ब्रैड पिट की फिल्मों के लिए सामान तैयार किया है. अभी एक अंग्रेजी फिल्म सिंगुलैरिटी आने वाली है जिसमें बिपाशा बासु हैं, उसके लिए भी हमने चीज़ें बनाई हैं. बीबीसी की रोम सिरीज़ में भी हम भागीदार रहे हैं."

    हुनर और मेहनत

    यहाँ कारीगर ज्यादातर काम आज भी हाथ से ही करते हैं जिसमें काफी हुनर की जरूरत होती है. फैक्ट्री में एक-एक हथियार और सामान की कटाई होती है, तैयार होने के बाद पॉलिशिंग होती है.
    इस काम में लगे एक कारीगर देवेंद्र कुमार धीमी आवाज़ में बताते हैं, “हम ये काम बड़ी मेहनत से करते हैं. समय-सीमा का भी पालन करना पड़ता है क्योंकि ये सामान विदेशों में जाता है. कई सामान बनाने में तो काफी समय लग जाता है. चाहे चमड़ा लगाने की बात हो या रिवेटिंग हो, सब बेहतर तरीके से किया जाता है. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई गलती न हो.”
    वो जितनी धीमी आवाज़ में बात करते हैं, उनका काम उतना ही तेज़ है.

    बॉलीवुड के बजट में नहीं

    इस तरह विदेशी फिल्मों या म्यूजियमों के लिए सामान बनाने में चुनौतियाँ भी कई होती हैं. जिस काल के हथियार या कपड़े हैं, उन्हें शोध के बाद ज्यों का त्यों फैक्ट्री में तैयार करना होता है.
    दीपिका एक्सपोर्ट्स के वाइस प्रेसिडेंट राजीव रस्तोगी कहते हैं, "हमारे पास शोध सामग्री, तस्वीरें और रसाले भेजे जाते हैं. इन्हें पढ़ने और देखने के बाद सामान हू ब हू तैयार किया जाता है. चूँकि सामान हॉलीवुड फिल्मों या म्यूज़ियमों में इस्तेमाल होना होता है इसलिए गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा जाता है. अपने कारीगरों को हम पूरी ट्रेनिंग देते हैं."
    जब हमने पूछा कि क्या भारत की फिल्मों के लिए ऐसा सामान तैयार करने का ऑडर नहीं मिलता तो गगन अग्रवाल ने बताया, "एक तो भारत में ऐतिहासिक फिल्में बनती ही कम हैं और दूसरा इन फिल्मों का बजट कम होता है. इस कारण बॉलीवुड फिल्में ऐसा ऑडर कम ही देती हैं. एक फिल्मकार की टीम आई भी थी हमारे पास. लेकिन उनका बजट कम था इसिलए उन्होंने मना कर दिया."
    मेरठ और आस-पास के इलाकों में कई ऐसी कंपनियों हैं जो फिल्मों के लिए सामान बनाने के कारोबार में लगी हैं.
    ये कंपनियाँ हॉलीवुड फिल्मों के अलावा विदेशी म्यूज़ियमों और बड़े नाटकीय मंचनों के लिए भी सामग्री तैयार करते हैं.
    तो अगली बार जब विदेशी फिल्में या धारावाहिक देखें तो उसमें आप मेरठ के इन कारीगरों की मेहनत का रंग भी देख सक

    विश्व हिन्दी सम्मेलन

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    आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का प्रतीक चिह्न
    विश्व हिन्दी सम्मेलनहिन्दीभाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी जुटते हैं। पिछले कई वर्षोँ से यह प्रत्येक चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतकी राष्ट्रभाषाके प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिन्दी साहित्यके प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्त्वपूर्ण रिश्तों को और अधिक गहराई व मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से १९७५ में विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शृंखला शुरू हुई। इस बारे में पूर्व प्रधानमन्त्री स्व० श्रीमती इन्दिरा गान्धीने पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धाके सहयोग से नागपुरमें सम्पन्न हुआ जिसमें विनोबाजीने अपना बेबाक सन्देश भेजा।
    तब से अब तक आठ विश्व हिन्दी सम्मेलन और हो चुके हैं- मारीशस, नई दिल्ली, पुन: मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनामऔर न्यूयार्कमें। नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २२ से २४ सितम्बर २०१२ तक जोहांसबर्गमें हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अब समुचित और समयबद्ध कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, अब हर तीन साल पर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा और इसका अगला आयोजन नई दिल्ली में होगा।

    अनुक्रम

    इतिहास

    विश्व हिन्दी सम्मेलन शृंखलाएँ
    क्रमतिथिनगरदेश
    १०-१४ जनवरी १९७५नागपुरFlag of India.svg भारत
    २८-३० अगस्त १९७६पोर्ट लुईFlag of Mauritius.svg मारीशस
    २८-३० अक्टूबर १९८३नई दिल्लीFlag of India.svg भारत
    २-४ दिसम्बर १९९३पोर्ट लुईFlag of Mauritius.svg मारीशस
    ४-८ अप्रैल १९९६त्रिनिडाड-टोबेगोFlag of Trinidad and Tobago.svg त्रिनिदाद और टोबैगो
    १४-१८ सितम्बर १९९९लंदनFlag of the United Kingdom.svg संयुक्त राजशाही
    ५-९ जून २००३पारामरिबोFlag of Suriname.svg सूरीनाम
    १३-१५ जुलाई २००७न्यूयार्कFlag of the United States.svg संयुक्त राज्य अमेरिका
    २२-२४ सितम्बर २०१२जोहांसबर्गFlag of South Africa.svg दक्षिण अफ्रीका
    पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन१० जनवरी से १४ जनवरी १९७५तक नागपुरमें आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धाके तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी डी जत्तीथे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष श्री मधुकर राव चौधरीउस समय महाराष्ट्रके वित्त, नियोजन व अल्पबचत मन्त्री थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था - वसुधैव कुटुम्बकम। सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे मॉरीशसके प्रधानमन्त्री श्री शिवसागर रामगुलाम, जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आये एक प्रतिनिधिमण्डल ने भी सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में ३० देशों के कुल १२२ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।[1]सम्मेलन में पारित किये गये मन्तव्य थे-
    १- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाये।
    २- वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो।
    ३- विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिये अत्यन्त विचारपूर्वक एक योजना बनायी जाये।
    दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलनका आयोजन मॉरीशस की धरती पर हुआ। मॉरीसस की राजधानी पोर्ट लुईमें २८ अगस्त से ३० अगस्त १९७६तक चले विश्व इस सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमन्त्री डॉ॰ सर शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मन्त्री डॉ॰ कर्ण सिंहके नेतृत्व में २३ सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया। भारतके अतिरिक्त सम्मेलन में १७ देशों के १८१ प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।[2]
    तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलनका आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में २८ अक्टूबर से ३० अक्टूबर १९८३तक किया गया। सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ॰ बलराम जाखड़थे। इसमें मॉरीशस से आये प्रतिनिधिमण्डल ने भी हिस्सा लिया जिसके नेता थे श्री हरीश बुधू। सम्मेलन के आयोजन में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने प्रमुख भूमिका निभायी। सम्मेलन में कुल ६,५६६ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आये २६० प्रतिनिधि भी शामिल थे।[3]हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवियत्री सुश्री महादेवी वर्मासमापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था - "भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथजैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।"
    चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलनका आयोजन २ दिसम्बर से ४ दिसम्बर १९९३तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। १७ साल बाद मॉरीशस में एक बार फिर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा था। इस बार के आयोजन का उत्तरदायित्व मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मन्त्री श्री मुक्तेश्वर चुनी ने सम्हाला था। उन्हें राष्ट्रीय आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसमें भारत से गये प्रतिनिधिमण्डल के नेता थे श्री मधुकर राव चौधरी। भारत के तत्कालीन गृह राज्यमन्त्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिम्ण्डल के उपनेता थे। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग २०० विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।[4]
    पाँचवें विश्व हिन्दी सम्मेलनका आयोजन हुआ त्रिनिदाद एवं टोबेगोकी राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेनमें। तिथियाँ थीं - ४ अप्रैल से ८ अप्रैल १९९६और आयोजक संस्था थी त्रिनीदाद की हिन्दी निधि। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक थे हिन्दी निधि के अध्यक्ष श्री चंका सीताराम। भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमण्डल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसादथे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- प्रवासी भारतीय और हिन्दी। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केन्द्रित किया गया, वे थे - हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से १७ सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के २५७ प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।[5]
    छठा विश्व हिन्दी सम्मेलनलन्दन में १४ सितम्बर से १८ सितम्बर १९९९तक आयोजित किया गया। यू०के० हिन्दी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम भारतीय भाषा संगम, यॉर्क ने मिलजुल कर इसके लिये राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष थे डॉ॰ कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ॰ पद्मेश गुप्त। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था - हिन्दी और भावी पीढ़ी। सम्मेलन में विदेश राज्यमन्त्री श्रीमती वसुंधरा राजेके नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता थे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ॰ विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह हिन्दी को राजभाषा बनाये जाने के ५०वें वर्ष में आयोजित किया गया। यही वर्ष सन्त कबीरकी छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में २१ देशों के ७०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से ३५० और ब्रिटेन से २५० प्रतिनिधि शामिल थे।[6]
    सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलनका आयोजन हुआ सुदूर सूरीनामकी राजधानी पारामारिबोमें। तिथियाँ थीं - ५ जून से ९ जून २००३। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक थे श्री जानकीप्रसाद सिंह और इसका केन्द्रीय विषय था - विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियाँ। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मन्त्री श्री दिग्विजय सिंहने किया। सम्मेलन में भारत से २०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें १२ से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन ५ जून को हुआ था। यह भी एक संयोग ही था कि कुछ दशक पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था।[7]
    आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन१३ जुलाई से १५ जुलाई २००७तक संयुक्त राज्य अमेरिकाकी राजधानी न्यू यॉर्कमें हुआ। इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था - विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय द्वारा किया गया। न्यूयॉर्क में सम्मेलन के आयोजन से सम्बन्धित व्यवस्था अमेरिका की हिन्दी सेवी संस्थाओं के सहयोग से भारतीय विद्या भवनने की थी। इसके लिए एक विशेष जालस्थल (वेवसाइट) का निर्माण भी किया गया। इसे प्रभासाक्षी.कॉम के समूह सम्पादक बालेन्दु शर्मा दाधीचके नेतृत्व वाले प्रकोष्ठ ने विकसित किया है।
    नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलनइसी वर्ष २२ सितम्बर से २४ सितम्बर २०१२ तक, दक्षिण अफ्रीकाके शहर जोहांसबर्गमें सोमवार को खत्म हो गया। इस सम्मेलन में २२ देशों के ६०० से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें लगभग ३०० भारतीय शामिल हुए। सम्मेलन में तीन दिन चले मंथन के बाद कुल १२ प्रस्ताव पारित किए गए और विरोध के बाद एक संशोधन भी किया गया।[8]
    दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलनके आयोजन की घोषणा हो चुकी है। यह 10 से 12 सितंबर तक भोपालमें होगा। दसवें सम्मेलन का मुख्य कथ्य (थीम) है - 'हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनाएँ '।

    विश्व हिंदी सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव

    प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन

    • संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए।
    • वर्धा में विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना हो।
    • विश्व हिंदी सम्मेलनों को स्‍थायित्‍व प्रदान करने के लिए ठोस योजना बनाई जाए।

    द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन

    • मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व में हिंदी की गतिविधियों का समन्वय कर सके।
    • एक अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी पत्रिका का प्रकाशन किया जाए जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुचित वातावरण का निर्माण कर सके जिसमें मानव विश्‍व का नागरिक बना रहे और आध्यात्म की महान शक्ति एक नए समन्वित सामंजस्य का रूप धारण कर सके।
    • हिंदी को संयुक्‍त राष्ट्र् संघ में एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान मिले। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाए।

    तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन

    • अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार की संभावनाओं का पता लगा कर इसके लिए गहन प्रयास किए जाएं।
    • हिंदी के विश्वव्यापी स्वरूप को विकसित करने के‍ लिए विश्‍व हिंदी विद्यापीठ स्थापित करने की योजना को मूर्त रूप दिया जाए।
    • विगत दो सम्मेलनों में पारित संकल्पों की संपुष्टि करते हुए यह निर्णय लिया गया कि अंतरराष्‍ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के विकास और उन्नयन के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर एक स्‍थायी समिति का गठन किया जाए। इस समिति में देश-विदेश के लगभग 25 व्‍यक्ति सदस्य हों।

    चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन

    • विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस में स्थापित किया जाए।
    • भारत में अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।
    • विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ खोले जाएं।
    • भारत सरकार विदेशों से प्रकाशित दैनिक समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकें प्रकाशित करने में सक्रिय सहयोग करे।
    • हिंदी को विश्व मंच पर उचित स्थान दिलाने में शासन और जन-समुदाय विशेष प्रयत्न करे।
    • विश्व के समस्त हिंदी प्रेमी अपने निजी एवं सार्वजनिक कार्यों में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें और संकल्प लें कि वे कम से कम अपने हस्ताक्षरों, निमंत्रण पत्रों, निजी पत्रों और नामपट्टों में हिंदी का प्रयोग करेंगे।
    • सम्मेलन के सभी प्रतिनिधि अपने-अपने देशों की सरकारों से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए समर्थन प्राप्त करने का सार्थक प्रयास करेंगे।
    • चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन (दिसम्बर-1993) के बाद विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में हुई

    पांचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन

    • विश्व व्यापी भारतवंशी समाज हिंदी को अपनी संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करेगा।
    • मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना के लिए भारत में एक अं‍तर-सरकारी समिति बनाई जाए।
    • सभी देशों, विशेषकर जिन देशों में अप्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में हैं, उनकी सरकारें अपने-अपने देशों में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करें। उन देशों की सरकारों से आग्रह किया जाए कि वे हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए राजनीतिक योगदान और समर्थन दें।

    छठा विश्व हिंदी सम्मेलन

    • विश्व भर में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रचार-प्रसार और हिंदी सृजन में समन्वय के लिए महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय केंद्र सक्रिय भूमिका निभाए।
    • विदेशों में हिंदी के शिक्षण, पाठ्यक्रमों के निर्धारण, पाठ्य-पुस्तिकों के निर्माण, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी विश्वविद्यालय करे और सुदूर शिक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
    • मॉरीशस सरकार अन्य हिंदी-प्रेमी सरकारों से परामर्श कर शीघ्र विश्व हिंदी सचिवालय स्थापित करे।
    • हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दी जाए।
    • हिंदी को सूचना तकनीक के विकास, मानकीकरण, विज्ञान एवं तकनीकी लेखन, प्रसारण एवं संचार की अद्यतन तकनीक के विकास के लिए भारत सरकार एक केंद्रीय एजेंसी स्थापित करे।
    • नई पीढ़ी में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक पहल की जाए।
    • भारत सरकार विदेश स्थि‍त अपने दूतावासों को निर्देश दे कि वे भारतवंशियों की सहायता से विद्यालयों में एक भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था करवाएँ।

    सातवाँ विश्व‍ हिंदी सम्मेलन

    • संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाया जाए।
    • विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना हो।
    • भारतीय मूल के लोगों के बीच हिंदी के प्रयोग के प्रभावी उपाय किए जाएं।
    • हिंदी के प्रचार हेतु वेबसाइट की स्थापना और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो।
    • हिंदी विद्वानों की विश्व-निर्देशिका का प्रकाशन किया जाए।
    • विश्व हिंदी दिवस का आयोजन हो।
    • कैरेबियन हिंदी परिषद की स्थापना हो।
    • दक्षिण भारत के विश्व विद्यालयों में हिंदी विभाग की स्थापना हो।
    • हिंदी पाठ्यक्रम में विदेशी हिंदी लेखकों की रचनाओं को शामिल किया जाए।
    • सूरीनाम में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था की जाए।

    आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन

    • विदेशों में हिंदी शिक्षण और देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दूसरी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम बनाया जाए तथा हिंदी के शिक्षकों को मान्यता प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।
    • विश्व हिंदी सचिवालय के कामकाज को सक्रिय करने एवं उद्देश्य परक बनाने के लिए सचिवालय को भारत तथा मॉरीशस सरकार सभी प्रकार की प्रशासनिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान करें और दिल्ली सहित विश्व के चार-पाँच अन्य देशों में इस सचिवालय के क्षेत्रीय कार्यालय खोलने पर विचार किया जाए। सम्मेलन सचिवालय यह आह्वान करता है कि हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व मंच पर हिंदी वेबसाइट बनाई जाए।
    • हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विषयों पर सरल एवं उपयोगी हिंदी पुस्तकों के सृजन को प्रोत्साहित किया जाए। हिंदी में सूचना प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के प्रभावी उपाय किए जाएं। एक सर्वमान्य‍ व सर्वत्र उपलब्ध यूनिकोड को विकसित व सर्वसुलभ बनाया जाए।
    • विदेशों में जिन विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन होता है उनका एक डेटाबेस बनाया जाए और हिंदी अध्यापकों की एक सूची भी तैयार की जाए।
    • यह सम्मेलन विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों और विशेष रूप से प्रवासी भारतीयों तथा विदेशों में कार्यरत भारतीय राष्ट्रिकों से भी अनुरोध करता है कि वे विदेशों में हिंदी भाषा, साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान करें।
    • वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में विदेशी हिंदी विद्वानों के अनुसंधान के लिए शोधवृत्ति की व्यवस्था की जाए।
    • केंद्रीय हिंदी संस्थान भी विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार व पाठ्यक्रमों के निर्माण में अपना सक्रिय सहयोग दे।
    • विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना पर विचार-विमर्श किया जाए।
    • हिंदी को साहित्य‍ के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और वाणिज्य की भाषा बनाया जाए।
    • भारत द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों व सम्मेलनों में हिंदी को प्रोत्साहित किया जाए।

    नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन

    22 से 24 सितम्‍बर 2012 को दक्षिण अफ्रीका में आयोजित 9वें विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन ने, जिसमें विश्‍वभर के हिंदी विद्वानों, साहित्‍यकारों और हिंदी प्रेमियों आदि ने भाग लिया, रेखांकित किया कि:
    • हिंदी के बढ़ते हुए वैश्‍वीकरण के मूल में गांधी जी की भाषा दृष्टि का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है।
    • मॉरीशस में विश्‍व हिंदी सचिवालय की स्‍थापना की संकल्‍पना प्रथम विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन के दौरान की गई थी। यह सम्‍मेलन इस सचिवालय की स्‍थापना के लिए भारत और मॉरीशस की सरकारों द्वारा किए गए अथक प्रयासों एवं समर्थन की सराहना करता है।
    • महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय भी विश्‍व हिंदी सम्‍मेलनों में पारित संकल्‍पों का ही परिणाम है। यह विश्‍वविद्यालय हिंदी के प्रचार-प्रसार और उपयुक्‍त आधुनिक शिक्षण उपकरण विकसित करने में सराहनीय कार्य कर रहा है।
    • सम्‍मेलन केंद्रीय हिंदी संस्‍थानकी भी सराहना करता है कि वह उपयुक्‍त पाठ्यक्रम और कक्षाओं का संचालन करके विदेशियों और देश के गैर हिंदी भाषी क्षेत्र के लोगों के बीच हिंन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहा है।

    संदर्भ



  • "जब साथ आए दो प्रधानमन्त्री" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "मॉरीशस के प्रधानमन्त्री थे आयोजक" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "इन्दिराजी का वह ओजस्वी भाषण" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "विश्व हिन्दी सम्मेलन फिर लौटा मॉरीशस" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "सुदूर त्रिनीदाद में प्रवासी भारतीयों के बीच" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "यादगार हुई हिन्दी को राजभाषा बनाये जाने की स्वर्ण जयन्ती" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

  • "इक्कीसवीं सदी का पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन" (एचटीएम). विश्व हिन्दी. अभिगमन तिथि: २००७.

    1. "विश्व हिन्दी सम्मेलन : संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी के लिए अब समयबद्ध कार्रवाई" (एचटीएम). मेरीखबर.कॉम. अभिगमन तिथि: २०१२.

    इन्हें भी देखें

    बाहरी कड़ियाँ

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    प्रस्तुति- हुमरा असद, अमन कुमार 
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    • पीओऍडिट .po भाषा फाइलों के हिन्दी अनुवाद के लिये एक ऑफलाइन औजार है। इसका इण्टरफेस हिन्दी में भी उपलब्ध है।

    Plug-ins and Extensions

    हिन्दी के लिये उपयोगी फायरफॉक्स एक्सटेंशन

    (इनके प्रयोग से इन्टरनेट उपयोग करते समय किसी भी टेक्स्ट बक्से में हिन्दी लिख सकते हैं)

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    विविध

    इन्हें भी देखें

    पत्रकारिता की शाखाएं

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    मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
    पत्रकारितामें घटनाओं का लिखित रूप में वर्णन करने के लिये बहुत सी शैलियों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें "पत्रकारिता शैलियाँ"कहते हैं।समाचार पत्रोंऔर पत्र-पत्रिकाओं में प्रायः विशेषज्ञ पत्रकारों द्वारा लिखे गए विचारशील लेख प्रकाशित होते है जिसे "फीचर कहानी" (रूपक) का नाम दिया गया है। फीचर लेख ज़्यादातर लम्बे प्रकार के लेख होते है जहाँ सीधे समाचार सूचना से अधिक शैली पर ध्यान दिया जाता है। अधिकतर लेख तस्वीर, चित्र या अन्य प्रकार के "कला"के साथ संयुक्त किये जाते हैं। कभी-कभी ये मुद्रण प्रभाव या रंगो से भी प्रकशित किये जाते है।
    एक पत्रकारके लिए रूपक (फीचर स्टोरी) की लिखाई अन्य सीधे समाचार सूचना की लिखाई से कई ज़्यादा श्रमसाध्य हो सकती है। एक तरफ जहां उन पर कहानीके तथ्यों को सही रूप से इकट्ठा और प्रस्तुत करने का भार हैं वही दूसरी तरफ कहानी को पेश करने के लिये एक रचनात्मक और दिलचस्प तरीका खोजने का दबाव है। लीड (या कहानी के पहले दो अनुछेद) पाठक का ध्यान खींचने और लेख के विचारो को यथार्थ रूप से प्रकट करने में सक्षम होना चाहिए।
    २० वी सदी के अंतिम छमाही से सीधे समाचार रिपोर्टिंग और फीचर लेखन के बीच की रेखा धुंधली हो गई हैं। पत्रकारों और प्रकाशनों आज अलग-अलग दृष्टिकोण के साथ लेखन पर प्रयोजन कर रहे है। टॉम वोल्फ, गे टलेस, हंटर एस. थॉम्पसन आदि इन उदाहरणों मे से कुछ है। शहरी और वैकल्पिक साप्ताहिक समाचार पत्रों इस विशिष्टता को और भी धुंधला कर रहे है। कई पत्रिकाओं में सीधी खबर से ज्यादा फीचर लेख पाए जाते है।
    कुछ टेलीविज़नसमाचार प्रदर्शनों ने वैकल्पिक स्वरूपों के साथ प्रयोग किया, और इस वजह से कई टेलीविज़न प्रदर्शनों को पत्रकारिता के मानकों के अनुसार न होने के वजह से समाचार प्रदर्शन नहीं माना गया।

    अनुक्रम

    एम्बुश पत्रकारिता

    धात सम्पादककला को अक्रमक रूप से सम्पादको द्वारा कार्याकुशल केइअ (KIA) जाथा है इन लोगो मे लिके जो सामान्या रूप से सम्पादाको से साम्ना नहि करथे पर इस्के समर्थन मे ये केह्ते थे कि ये एक मात्रा उपया है और अफ्सर है विश्यु पर तिपन्नि देना और उन्पर जान्छ करना। इस काला को सम्पादको द्वारा तेज़निन्दा मिल्थि थि क्युन्कि उन्का मानना था कि ये अनाइतिक और सान्सानिकेगेज़ है। इस क्ला के पथ प्रदर्शक है मिके वाल्लचे (Mike Wallace) जो इस्को ६० मिन्तो (minutes) पे येह धात कला का प्रादर्शन कर्थे थे। उस्के बाद अन्य सम्पादको द्वरा बि इस कला का प्रादर्शन किया जाथा था ओ'रिलेय फाच्तोर् (O'Riley factor) कार्यक्राम मे जिन्के निर्देशक है गेरल्द रिवेरा (Gerald Rivera) और अन्य T.V सम्पाद्को द्वरा जान्छ मै इस्को सम्पादाको द्वारा उस अयाक्ति को किसि तराह सुन पाना छाहे वोह माध्य्म शारिरिक अघात को स्म्पादक द्वरा दिखाया जाता तब तक कि निरन्तर उत्तर ना मिले।

    सेलिब्रिटी पत्रकारिता

    सेलिब्रिटी पत्रकारिता, पत्रकारिताकी वो शैलि है जो २०वी सदी से प्रमुखता मे आयी। इसे लोग पत्रकारिताभी काहा जाता है। यह लोगो के निजी जीवन पर केंद्रित है, मुख्य रूप से हस्तियो, फिल्मऔर रंगमंच अभिनेता, संगीतकलाकार, माँडल और फोटोग्राफर, मनोरंजन उध्योग मे अन्य उल्लेखनीय लोग और राजनेताओं जो सुर्खियों में रहना चाहते हैं । अखबार गपशप स्तंभकार और गपशप पत्रकाओ के प्रांत बार,सेलिब्रिटी पत्रकारिता, राष्ट्रीय एनक्वायर तरह राष्ट्रीय अखबार समाचार पत्रो का ध्यान केंद्रित हो गया है। पीपल और यू एस वीकली जैसे पत्रकाओ, सिंडिकेटेड टेलीविजन नाटको जैसे - एनटरटेनमेंन्ट टूनाईट, इनसाईड एडीशण, दी इनसाईडर, एक्सेस हॉलीवुड और अतिरित्त केबल नेटवकर्स जैसे कि ई, ए एन्द ई नेटवर्क और जीवनी चैनल और हज़ारों वेबसाईटो के कई अन्य टीवी प्रस्तुतियो। अधिकांश अन्य समाचार मीडिया हस्तियो और लोगो मे से कुछ कवरेज प्रदान करते है। हाल के वर्षो मे, मीडिया यह हस्तियो पर रिपोर्ट के रूप मे बहुत ही रास्ते मे विभिन्न शाही परीवारो के सदस्यो को सूचना दी गई है अभिनेताओ या नेताओ के रूप मे हालाकि एक ही हमेशा नही। रॉयल्टी का समाचार कवरेज शाही परिवारो के सदस्यो के जीवन की झलक पर अधिक केंद्रित किया गया। सूत्रो का कहना है कि रॉयल्टी पर इस तरह की रिपोर्ट है जैसे - दी टेलीग्राफ, दी डेली मेल और प्रकाशनो जो रॉयल्टी पर विशेष रूप से रिपोर्ट करते है जैसे कि रॉयल सेंट्रल। सेलिब्रिटी पत्रकारिता, फीचर लेखन से अलग है, इसमे उन लोगो पर केंद्रित करता है जो पहले से ही मशहूर है या विशेष रूप से आकर्षक है और ज़्यादातर उन पीढी हस्तियो को शामिल करते है जो अनैतिक व्यवहार का उपयोग करने मे अक्सर कवरेज प्रदान करते है। पापाराज़ी, संभावित शर्मनाक तस्वीरे प्राप्त करने के लिए लगातार हस्तियो का पालन करे जो फोटोग्राफर, सेलिब्रिटी पत्रकारिता चिहित करने के लिए आए है।

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    यह पत्रकारिता का एक उभरता प्रकार है। कन्वर्जेन्स पत्रकारिताप्रिंट, फोटो और वीडियो जैसे विभिन्न रूपों के पत्रकारिताओं को एक भाग में जोड़ता है।

    गोंजो पत्रकारिता

    Independence Seaport Museum 224
    गोंजो पत्रकारिता, अमेरिकाके लेखन हंटर एस थॉम्पसन द्वारा लोकप्रिय पत्रकारिता का एक प्रकार है जो फियर एन्द लोतिंग इन लास वेगस, फियर एन्द लोतिंग ऑन दी कामपेन ट्रेल ७२, दी केनटुकी डरबी इज़ डिपरेवड और अन्य किताबो और कहानियो का लेखन है। गोंजो पत्रकारिता अपनी असरदार शैली, असभ्य भाषा और पारंपरिक पत्रकारिता लेखन रूपो और सीमा शुल्क के लिए प्रकट उपेक्षा की विशेषता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात, पत्रकार की पारंपरिक निष्पक्षता कहानी मे ही विसर्जित दिया जाता है। नई संवाददाता के रूप मे और रिपोर्ताज एसे थॉम्प्सन राउल ड्यूक के रूप मे कभी कभी एक लेखक सरोगेट का उपयोग करते हुए, एक पहली हाथ, भागीदारी के नज़रिए से लिया जाता है। गोंजो पत्रकारिता लोकप्रिय संस्कृति, खेल, राजनीतिक , दार्शनिक और साहित्यिक स्रोतो से ड्राइंग, एक विशेष रूप से कहानीपर एक बहु अनुशासनिक परिप्रेक्ष्य पेश करने के लिए प्रयास करता है। गोंजो पत्रकारिता को उदार स्टाइल दिया गया है। यह इस तरह के रॉलिंग स्टोन पत्रिका के रूप मे लोकप्रिय पत्रिकाओ कि एक विशेषता बनी हुई है। यह नई पत्रकारिता और ऑन लाइन पत्रकारिता के साथ आम मे एक अच्छा सौदा है।

    खोजी पत्रकारिता

    खोजी पत्रकारिता जानकारी का एक प्राथमिक स्रोत है।[1][2][3]धात सम्पादक कला को अक्रमक रूप से सम्पादको द्वारा कार्याकुशल केइअ (KIA) जाथा है इन लोगो मे लिके जो सामान्या रूप से सम्पादाको से साम्ना नहि करथे पर इस्के समर्थन मे ये केह्ते थे कि ये एक मात्रा उपया है और अफ्सर है विश्यु पर तिपन्नि देना और उन्पर जान्छ करना। इस काला को सम्पादको द्वारा तेज़ निन्दा मिल्थि थि क्युन्कि उन्का मानना था कि ये अनाइतिक और सान्सानिकेगेज़ है। इस क्ला के पथ प्रदर्शक है मिके वाल्लचे (Mike Wallace) जो इस्को ६० मिन्तो (minutes) पे येह धात कला का प्रादर्शन कर्थे थे। उस्के बाद अन्य सम्पादको द्वरा बि इस कला का प्रादर्शन किया जाथा था ओ'रिलेय फाच्तोर् (O'Riley factor) कार्यक्राम मे जिन्के निर्देशक है गेरल्द रिवेरा (Gerald Rivera) और अन्य T.V सम्पाद्को द्वरा जान्छ मै इस्को सम्पादाको द्वारा उस अयाक्ति को किसि तराह सुन पाना छाहे वोह माध्य्म शारिरिक अघात को स्म्पादक द्वरा दिखाया जाता तब तक कि निरन्तर उत्तर ना मिले।

    नई पत्रकारिता

    नइ पत्रकारिता: १९६० और १९७०'स के लिख्ने के तरीके को नइ पत्रकारिता कहा गया है। तोम वोल्फे (Tom Wolfe) ने इस्का नाम्करन किया था १९७३ मे।
    कइ तरिके है जैसे, सहिथ्यक शिक्शन, आप्सि बाथ छीथ, अप्ने कुद के विछार और हर दिन कि हर एक जानकरि,या फिर लोगो का काहानिया बनाना, लोगो को अप्नि कहानि बथाना, यहा सब हि नइ पत्रकारिता के अन्छ है।शुरु मे ये थोदा अव्यारिक लग्ता है पर नइ पत्रकारिता रिपोर्टिंग (reporting) के सारे नियमो का पाल्न कर्थे हुऐ सहि जान्करि देथा हे और लेकक हमारे प्रमुकिय जान्कार्क होथे है। किर्दार कि बाथ जाने के लिये पत्रकार उन्से तरह-तरह कि बाथे पुछ्थे हे, जैसे वे कैसे मेहसूस कर रहे है, वे क्या सोछ रहे है, इथ्यादि। अप्ने नैइ सोछ के कार्न नइ पत्रकारिता हर छिज़ को अप्ने अन्दर समेथे हुए पुरानि नियमो को थोद्थे हुए आगे बद्था है और इस तरह् कि पत्रकरिता को ह्म लेखन, या किताब लेखन के इस्थमाल कर्थे है। वोल्फे(Wolfe) का मन्ना है कि कइ ऐसे लेखक है जिन्के कार्य को नइ पत्रकारिता के अन्दर माना गया है, जैसे कि, नोर्मन मिल्लेर(Norman Mailer), हुन्तेर स थोम्प्सोन (Hunter S Thompson), जोअन दिदिओन (Joan Didion), त्रुमन चपोते (Truman Capote) , गेओर्गे प्लिम्प्तोन (George Plimpton) और गय तलेसे (Gay Talese)

    विज्ञान पत्रकारिता

    विज्ञानपत्रकारों को विस्तृत, तकनीकी और कभी कभी शब्दजाल से लड़ी जानकरी को दिलचस्प रिपोर्ट में बदलकर समाचार मीडियाके उपभोगताओं की समझ के आधार पर प्रस्तुत करना होता है।
    वैज्ञानिक पत्रकारों को यह निश्चय करना होगा कि किस वैज्ञानिक घटनाक्रम में विस्तृत सुचना की योग्यता है। साथ ही वैज्ञानिक समुदाय के भीतर होने वाले विवादों को बिना पक्षपात किये और तथ्यों के साथ पेश करना चाहिए।[4]विज्ञान पत्रकारिता को भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्‍लोबल वॉर्मिंग)[5]जैसे विषयों पर वैज्ञानिक समुदाय के भीतरी मतबेधो को अतिश्योक्तिपूर्ण ढंग से पेश करने के लिए आलोचित किया गया है।

    खेल पत्रकारिता

    Pascal vs Hopkins 5437
    खेल मानव व्यायामी प्रतियोगिता के कई पहलुओं को सम्मिलित करता है। साथ ही अकबरो, पत्रिकाओं, रेडिओ और टेलीविज़न समाचारप्रसारणजैसे पत्रकारिता उतपादो का अभिन्न अंग है। जहाँ कुछ आलोचकों खेल पत्रकारिता को सही मायने में पत्रकारिता नहीं मानते, वही पशिचमी संस्कृतिमें खेल की प्रमुखता ने प्रतिस्पर्धात्मक खेलों पर पत्रकारों के ध्यान को व्यायोचित रूप दिया है। इसमें एथलीटों और खेलके कारोबार पर भी ध्यान दिया गया है।

    सन्दर्भ


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