

कुछ देशों में समाचारपत्रों का प्रसार और प्रभाव घटा है
हैदराबाद में गत सप्ताह 16वें वर्ल्ड एडिटर्स फोरम और 62वें वर्ल्ड न्यूज़पेपर कांग्रेस के लिए विश्व भर के बड़े समाचार पत्रों के जो संपादक और मालिक जमा हुए थे, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि अनेक कारणों से समाचार पत्रों की घटती लोकप्रियता और कम होती प्रसार संख्या से कैसे निपटा जाए.
वर्ल्ड एडिटर फोरम में तो पूरा एक सत्र ही पत्रकारिता और समाचार पत्रों के भविष्य पर केन्द्रित था और वक्ताओं ने जो कुछ कहा उससे स्पष्ट था कि इस अहम और संवेदनशील मुद्दे पर उनके विचार बंटे हुए हैं.लेकिन यह बात सभी ने मानी की विश्व के अधिकतर देशों और विशेषकर अमरीका और यूरोप में समाचार पत्रों का प्रसार और प्रभाव घट रहा है. लेकिन भारत, चीन और ब्राज़ील सहित कुछ देशों में मामला उसके बिलकुल उलट है और वहां प्रसार बढ़ रहा है.
इस पर पत्रकारिता की दुनिया की कुछ जानी मानी हस्तियों ने अपनी राय व्यक्त की.
मेरी दृष्टि से तो समाचार पत्रों का भविष्य अच्छा ही है क्योंकि आप छपे हुए समाचार पत्र के बिना एक अच्छी पत्रकारिता की कल्पना भी नहीं कर सकते. समाचार पत्र न हों तो फिर पत्रकारिता ही खतरे में पड़ जाएगी
ज़ैवियर विडाल फ़ोल्क, अध्यक्ष वर्ल्ड एडिटर्स फ़ोरम
वहीं टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रधान संपादक जयदीप बोस ने कहा, ''पत्रकारिता का भविष्य तो है लेकिन उसका अंदाज़ बदलना होगा. मैं यह नहीं मानता कि नागरिक पत्रकारिता या ब्लॉग्स या ऐसी ही नई चीज़ें क्लासिक पत्रकारिता को ख़त्म कर सकती हैं. नई पीढ़ी आ रही है और हमें यह देखना है की हम नई तकनीक का उपयोग करते हुए किस तरह समाचार पत्रों को नए पढने वालों के लिए आकर्षक बना सकते हैं.''
पत्रकारिता का भविष्य तो है लेकिन उसका अंदाज़ बदलना होगा. हमें यह देखना है की हम नई तकनीक का उपयोग करते हुए किस तरह समाचार पत्रों को नए पढने वालों के लिए आकर्षक बना सकते हैं
जयदीप बोस, प्रधान संपादक, टाइम्स ऑफ़ इंडिया
लेकिन उनका कहना था कि हो सकता है की 10 वर्षों में यहाँ भी वही स्थिति उत्पन हो जाए.
इस समय तो जिस तरह साक्षरता बढ़ रही है, लोगों की आमदनी बढ़ रही है और इंग्लिश भाषा पढ़ने वालों की संख्या बढ़ रही है. उस हिसाब से तो समाचार पत्रों की प्रसार संख्या भी बढती रहेगी.
बंगलादेश के स्टार न्यूज़पेपर के सीईओ और प्रकाशक महफूज़ अनाम ने कहा, ''अगर आज समाचार पात्र कमज़ोर पड़ गए हैं और उनका भविष्य अँधेरे में दिखाई दे रहा है तो इसके लिए हम सम्पादक और पत्रकार ही जिम्मेवार हैं, क्योंकि हम ने ही अपने माध्यम पर भरोसा छोड़ दिया है.''
उन्होंने कहा, ''समाचार पत्रों की सबसे ख़राब हालत अमरीका में है और उससे हमें यह सीख मिलती है की गत 40 वर्षों में वो कौन सा काम था जो समाचार पत्रों को नहीं करना चाहिए था.''
साउथ एशिया फ्री मीडिया असोसिएशन के अध्यक्ष और 'साउथ एशिया'के संपादक इम्तियाज़ आलम ने पाकिस्तान के समाचार पत्रों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहां इनका प्रसार पहले से ही कम है क्योंकि वहां साक्षरता कम है.
उन्होंने कहा कि अब तो टीवी चैनलों ने रही सही कसर भी तोड़ दी है और नई पीढ़ी अधिकतर इन्टरनेट की और देख रही है.
अब 24 घंटे पुरानी ख़बर के लिए कोई समाचार पत्र का इंतज़ार क्यों करेगा जबकि वो ख़बर पहले ही टीवी चैनल पर आ चुकी हो, उस पर बहस हो चुकी हो.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पड़गांवकर ने कहा, ''इंटरनेट और मोबाइल के बावजूद भारत और दक्षिणी एशिया में समाचार पत्रों का भविष्य उज्ज्वल है. विशेष कर भारत, चीन, जापान और विएतनाम जैसे कई देश हैं जहाँ इनकी प्रसार संख्या बढ़ रही है.''
उन्होंने कहा, ''यह भी सही नहीं है की भारत में 19-20 वर्ष के युवा समाचार पत्र नहीं पढ़ते. यह पश्चिमी देशों की राय है. भारत में हर चीज़ बढ़ रही है. साक्षरता के चलते आगामी 15 वर्षों में समाचार पत्र और फैलेंगे. अंग्रेजी से ज़्यादा, भारत की प्रांतीय भाषाओं में वृद्घि होगी.''
जबकि मलयालम दैनिक मध्यम के संपादक अब्दुल रहमान का कहना था, ''केरल में शत प्रतिशत साक्षरता है और अभी इन्टरनेट या टीवी का ज़्यादा प्रभाव समाचार पत्रों पर नहीं पड़ा है लेकिन पत्रिकाओं पर ज़रूर पड़ा है. इस समय समाचार पत्रों को इन्टरनेट की तुलना में टीवी न्यूज़ चैनलों से ज़्यादा खतरा है.