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मीडिया लेखन (टीवी-रेडियो) की चुनौतियां और तकनीक

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 प्रस्तुति-  प्रियदर्शी किशोर / धीरज पांडेय

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उमेश चतुर्वेदी।मीडिया के लिए लेखन साहित्यिक लेखन से अलग है। साहित्यिक लेखन में जहां शब्दजाल रचे जाने की लेखक के सामने स्वतंत्रता होती है। वह अपने शब्दों के विन्यास में अपनी भावनाओं को बांधकर एक कसी हुई कथा लिख सकता है। लेकिन निश्चित तौर पर उसका अपना निश्चित पाठक वर्ग होगा। पत्रकारिता की भाषा में जिसे लक्षित समूह यानी Target Audience कहा जाता है, उसके बारे में आम अवधारणा है कि पत्रकारिता के पाठक या दर्शक वर्ग की समझ साहित्यिक पाठक वर्ग की तुलना में कहीं ज्यादा सामान्य होती है। लिहाजा माना जाता है कि वह गंभीर और संष्लिष्ट भाषा को पचा नहीं पाएगा। इसलिए सहज भाषा का इस्तेमाल करने की सीख हर अनुभवी मीडियाकर्मी हर नए मीडियाकर्मी को देता है।
सहजता के नाम पर एक तर्क बोलचाल की भाषा का भी दिया जाता है। सहज भाषा का यह प्रवाह जब तक संप्रेषण को आसान बनाता रहे, तब तक इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता। लेकिन इसके भी अपने खतरे हैं। अपनी हिंदी में तो यह खतरा कुछ ज्यादा ही बढ़ रहा है। यहां बोलचाल के नाम पर ना सिर्फ अंग्रेजी के उन शब्दों के प्रयोग भी धड़ल्ले से हो रहे हैं, जिनके लिए हिंदी के सहज शब्द उपलब्ध हैं। दुनिया में हर भाषा दूसरी भाषाओं की शब्द संपदा को अपनी जरूरत के मुताबिक अभिव्यक्ति को प्रवाहमान बनाने के लिए अपनाती रहती है। लेकिन उनकी शर्त बस इतनी सी होती है कि वे दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपनाकर उन्हें अपनी भाषिक संस्कृति में ढाल लेती हैं। उन्हें अपने व्याकरणिक नियमों में बांधती है और उन्हें अपनी परंपरा और संस्कृति में ऐसे रचाती-खपाती हैं, जिन पर बाहरी का मुलम्मा नजर भी नहीं आता। हिंदी ने भी कुछ सालों पहले तक इसी तरह विदेशी भाषाओं के शब्दों को अपनाया और उन्हें रचाते-खपाते रही। लेकिन पिछले कुछ साल से यह परंपरा टूट रही है। अब हिंदी के नए अगुआ अंग्रेजी के शब्द स्वीकार तो कर रहे हैं। लेकिन उन्हें खपाते नहीं, बल्कि अंग्रेजी के व्याकरणिक विन्यास को भी पूरी दबंगई से स्वीकार कर रहे हैं। ऐसा भाषिक अनाचार शायद ही दुनिया में कहीं और नजर आए।
अपने देश में टेलीविजन का विस्तार आपाधापी के साथ उदारीकरण के दौर में हुआ, लिहाजा यहां टीवी सामग्री निर्माण की आधारभूत सैद्धांतिकी विकसित नहीं हुई। चुकि यूरोप और अमेरिका में टेलीविजन पचास क दशक में ही आ गया, लिहाजा वहां एक सैद्धांतिकी ना सिर्फ विकसित हुई है, बल्कि वह कामयाबी के तौर पर कार्य भी कर रही है। लेकिन यह भी सच है कि आज के दौर में टेलीविजन न्यूज रूप में खबरों का दबाव बढ़ा है, इसलिए सैद्धांतिकी कई बार प्रसारण के दबाव में पीछे रह जाती है। क्यांेकि कई खबरों की उम्र बहुत कम होती है, फिर भी टीवी सामग्री निर्माण की मान्य सैद्धांतिक निम्न है-
1. सबसे पहले विषय की तलाश
2. शूटिंग, इंटरव्यू, बाइट लेना
3. शूटिंग के बाद उचित विजुअल/बाइट का सेलेक्शन (चयन)
4. स्पेशल इफेक्ट की तैयारी, जरुरी ग्राफिक्स का निर्माण
5. समग्री के लिए स्क्रिप्ट लेखन
6. तैयार स्टोरी को डिजिटल फॉर्म में तैयार करना
7. डिजिटल स्टोरी को अपनी साइट, सिस्टम में प्रकाशित करना, नेट पर अपलोड करना
चूंकि टेलीविजन जनसंचार का सबसे लोकप्रिय व सशक्त माध्यम है। लिहाजा इसमें ध्वनियों के साथ-साथ दृश्यों का भी ना सिर्फ समावेश होता है, बल्कि उस पर जोर होता है। इसके लिए समाचार लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शब्द व पर्दे पर दिखने वाले दृश्य में समानता हो और कहीं दोनों बेमेल नजर नहीं आएं।
टेलीविजन खबरों के विभिन्न चरण :
टेलीविजन में कोई भी सूचना निम्न चरणों या सोपानों को पार कर दर्शकों तक पहुँचती है –
• फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज
• ड्राई एंकर
• फ़ोन इन
• एंकर-विजुअल
• एंकर-बाइट
• लाइव
• एंकर-पैकेज
जाहिर है कि हर चरण के लिए लेखन की प्रक्रिया अलग होती है। फ्लैश में वन लाइनर या दो लाइनों में खबर पेश की जाती है। ड्राई एंकर का मतलब कि खबर को एंकर सिर्फ जुबानी पढ़कर सुनाए। ऐसा इसलिए होता है कि तब तक या तो विजुअल नहीं आए होते हैं या फिर जरूरी तैयारी नहीं होती है। इस बीच संवाददाता से संपर्क होता है तो उससे फोन पर खबर ली जाती है। इसे फोन इन या फोनो कहा जाता है। इस बीच विजुअल आ जाता है। तब विजुअल के जरिए खबर की जानकारी एंकर देता है। उसे एंकर विजुअल कहा जाता है। फिर घटनास्थल से पीड़ित या खबर बनाने वाली बाइट आ जाती है। तब उसकी बाइट को एंकर पेश करता है। उसे एंकर बाइट कहा जाता है। फिर हो सकता है कि तब तक वहां लाइव प्रसारण देने वाली वैन पहुंच गई हो। इसलिए रिपोर्टर से सीधे घटना की खबर ली जाती है। इसे लाइव कहा जाता है। आखिर में पैकेज बनाया जाता है। जिसमें ये सारे तत्व होते हैं। पैकेज के दो उदारहरण निम्नलिखित हैं-
उदाहरणार्थ-एक टेलीविजन स्क्रिप्ट
एंकर
रेल यात्रियों को नए साल में रेलवे की तरफ से राहत की सौगात मिलेगी..अब यात्रियों को बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनो में भी पसंद का खाना पसंदीदा समय पर मिलेगा…. इस ई-कैटरिंग सेवा की शुरूआत दिसंबर के आखिरी हफ्ते से शुरू हो जाएगी.इसके लिए रेलवे दो टोल फ्री नंबर जारी करेगा..जिस पर यात्री फोन या एसएमएस करके अपनी पसंद का खाना अपनी सीट पर मंगवा सकेगा.

रोल पैकेज
वीओ 1
बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनों में यात्रा करने वाले यात्रियों को अब स्टेशन पर उतर कर खाने के लिए भटकना नहीं होगा….. GFX IN नए साल में सभी 143 बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनों में ई-कैटरिंग की सुविधा शुरू कर दी जाएगी..रेलवे इसके लिए दो टॉल फ्री नंबर के साथ साथ इंटरनेट पर भी टिकट बुकिंग के समय फूड बुकिंग की भी सुविधा शुरू करेगा.GFX OUT..फिलहाल दिल्ली से चलने वाली 6 ट्रेनों में इसकी शुरूआत दिसंबर में कर दी जाएगी.
बाईट-अधिकारी
वीओ2
ई-कैटरिंग की सुविधा के लिए कुछ शर्ते भी हैं. GFX IN सिर्फ कंफर्म टिकट वाले यात्रियों को हीं ये सुविधा मिलेगी.. यात्री 18001034139 और 1204383892 नंबर पर फोन करके खाना बुक कर पाएंगे. फोन से बुक कराते वक्त यात्रियों को अपना पीएनआर बताना होगा. इसके बाद पीएनआर की जांच करने के बाद यात्री को मेन्यू बताया जाएगा और उसे कब खाना चाहिए ये पूछा जाएगा.ऑर्डर बुक होने पर यात्री के फोन पर मैसेज आ जाएगा..और मेल आईडी पर ईमेल चला जाएगा..रेलवे के टॉल फ्री 139 नंबर पर भी खाना बुक किया जा सकेगा.GFX OUT रेलवे की इस सेवा का यात्रियों ने स्वागत किया है..
बाईट- यात्री
वीओ3
दरअसल खाना लेने के लिए ट्रेन से उतरते वक्त जल्दबाजी में कई बार यात्रियों के साथ अनहोनी भी हो जाती है..कई बार उनकी ट्रेन तक छूट जाती है.लिहाजा रेल मंत्रालय ने यात्रियों की सुविधा के लिए ई-कैंटरिंग की व्यवस्था शुरू करने का फैसला लिया है.
रेडियो सामग्री निर्माण
अमेरिका और यूरोप में टेलीविजन के पहले से ही रेडियो काम कर रहा है, लिहाजा वहां रेडियो निर्माण की तकनीक और प्रविधि एक ही सैद्धांतिकी के तहत विकसित की गई है। उसका तरीका भी मोटा-मोटी टीवी सामग्री निर्माण की ही तरह होता है। सिर्फ अंतर इतना होता है कि रेडियो में पूरा जोर आवाज यानी ऑडियो प्रोडक्शन पर होता है, जबकि टेलीविजन में विजुअल एक अतिरिक्त अंग होता है। टेलीविजन चूंकि दृश्य माध्यम है, लिहाजा वहां विजुअल इफेक्ट, ग्राफिक्स, के जरिए प्रोडक्शन को प्रभावशाली बनाने की कोशिश होती है, जबकि रेडियो में आवाज के मॉड्यूलेशन यानी सही उतार-चढ़ाव के जरिए नाटकीयता डालकर प्रभाव डालने और बढ़ाने की कोशिश की जाती है। इसकी मोटी-मोटी रूपरेखा निम्नलिखित होती है-
1. विषय का चुनाव
2. जरूरी व्यक्तियों, विषेषज्ञों से रेडियो इंटरव्यू
3. इंटरव्यू और आवाज की रिकॉर्डिग के बाद सही बाइट और आवाज की छंटाई
4. स्क्रिप्ट लेखन
5. स्क्रिप्ट के मुताबिक रिकॉर्डिंग
6. ऑडियो और जरूरी बाइट के साथ स्क्रिप्ट के मुताबिक संपादन
7. तैयार स्टोरी को डिजिटल फॉर्मेट में बदलकर इंटरनेट या वेबसाइट पर लोड करना
ये तो हुई कार्यक्रम निर्माण और उसके लिए लेखन की बात..रेडियो के लिए समाचार लेखन कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण कार्य है। चूंकि रेडियो श्रव्य माध्यम है, लिहाजा इसमें शब्द एवं आवाज का महत्व होता है। रेडियो एक रेखीय माध्यम है। रेडियो समाचार की संरचना उल्टा पिरामिड शैली पर आधारित होती है। उल्टा पिरामिड शैली में समाचर को तीन भागों बाँटा जाता है-इंट्रो, बॉडी और समापन। इसमें तथ्यों को महत्त्व के क्रम से प्रस्तुत किया जाता है, सर्वप्रथम सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण तथ्य को तथा उसके उपरांत महत्त्व की दृष्टि से घटते क्रम में तथ्यों को रखा जाता है।
रेडियो समाचार-लेखन के लिए बुनियादी बातें :
• समाचार वाचन के लिए तैयार की गई कॉपी साफ़-सुथरी ओ टाइप की हुई होनी चाहिए ।
• कॉपी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
• पर्याप्त हाशिया छोडा़ जाना चाहिए।
• अंकों को लिखने में सावधानी रखनी चाहिए।
• संक्षिप्ताक्षरों और ज्यादातर कठिन संयुक्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाना चाहिए।
यहां एक बात और जाहिर करना चाहूंगा कि लेखन चूंकि एक कला है और जिस तरह हर कलाकार की अपनी शैली, अपनी रचनात्मकता होती है, उस तरह हर मीडियाकर्मी की अपनी शैली होती है। अखबारी लेखन में स्वर्गीय आलोक तोमर ने अपनी रचनात्मकता की काफी धमक महसूस कराई। हिंदी में टेलीविजन खबरों के लेखन में अपने लंबे रचनात्मक अनुभव से कह सकता हूं कि अंशुमान त्रिपाठी जैसा टीवी खबर का लेखक शायद ही कोई होगा।
उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रिंट और टेलीविज़न मीडिया में लम्बा अनुभव है. उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से प्रशिक्षण प्राप्त किया है.

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