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Written by sidhi Bat | ||||
Tuesday, 31 May 2011 09:30 | ||||
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() लोकतंत्रको जीवंत और गतिशील बनाए रखने के लिए स्वंतंत्र प्रेस अति आवश्यक है।लेकिन दुर्भाग्य यह है कि लगातार सरकार और औघोगिक घराने प्रेस कीस्वतंत्रता को बाधित करने का काम कर रहे हैं। अखबारों की विश्वसनियताप्रायोजित समाचारों, लांबिग और स्टिंग आपरेशन में फंस गया है। देश कीपत्रकारिता मिशन के रूप में शुरू होकर प्रोफेशन के रास्ते अब कामर्शियल मेंतब्दील हो गई है। इसीलिए मीडिया और पत्रकारों को ध्यान में रखते हुए तीसरेप्रेस आयोग की जरूरत है। ये विचार वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी का है। वह प्रभाष परंपरा न्यासद्वारा आयोजित तीसरे प्रेस कमीशन के औचित्य विषय पर बोल रहे थे। कार्यक्रमका आयोजन प्रज्ञा संस्थान ने किया था।रामशरण जोशी ने जो दलील और तर्क दिये उससे तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत की बात साफतौर पर समझ में आती है. जोशी जी तर्क देते हैं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में दोप्रेस आयोग का गठन किया जा चुका है. पहले प्रेस आयोग का गठन1952 में किया गया थाजबकि दूसरे प्रेस आयोग का गठन देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी ने1978 में किया था.78 में गठित प्रेस आयोग की रिपोर्ट1982 में आ गयी थी. पहले और दूसरेप्रेस आयोग की रपट में दिये गये सुझावों का हवाला देते हुए रामशरण जोशी ने कहा किइनमें से अधिकांश महत्वपूर्ण सुझाव नहीं माने गये लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकताकि इन आयोगों के गठन की कोई जरूरत ही नहीं थी. रामशरण जोशी का कहना है कि पहले औरदूसरे प्रेस आयोग के बीच26 साल का अंतराल था. लेकिन अब दूसरे प्रेस आयोग कीरिपोर्ट आये29 साल बीत गये हैं.। ऐसे में प्रेस की कार्यशैली में व्यापक बदलाव आयेहैं, जिसे देखते हुए तीसरे प्रेस आयोग के गठन की जरूरत है.मार्केट स्टेट बनाम नेशन स्टेट का हवाला देते हुए रामशरण जोशी ने कहा कि दूसरेप्रेस आयोग ने ही यह सिफारिश की थी कि अखबारी घरानों को पूंजीपति घरानों से अलगचिन्हित किया जाए. उस आयोग में यह सुझाव भी दिया गया था कि बोर्ड आफ ट्रस्ट का गठनकिया जाना चाहिए ताकि समाचार विचार और विज्ञापन के बीच बढ़ते असंतुलन को रोका जासके. दूसरे प्रेस आयोग ने पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के पुनर्गठऩ की सिफारिश कीथी और राष्ट्रीय विज्ञापन नीति बनाने की सिफारिश की थी. लेकिन इतना वक्त बीत जानेके बाद भी इस दिशा में कोई ठोस का नहीं किया जा सका है. जोशी जी ने कहा कि अगरईमानदारी से देखा जाए तो1952 से लेकर अब तक प्रेस सामंतों ने अपनी सरहदों काविस्तार ही किया है, वे अधिक शक्तिशाली हुए हैं और भारतीय राष्ट्र राज्य को ललकारनेकी हैसियत में आ गये हैं.रामशरण जोशी ने तीसरे प्रेस आयोग की दलील देते हुए कहा कि पहले दूसरे आयोग केगठन, सुझाव और परिणामों के परिप्रेक्ष्य में तीसरे प्रेस आयोग के गठन की बात करनीचाहिए. श्री जोशी ने कहा कि अब परंपरागत भारतीय प्रेस इंडियन मीडिया के रूप मेंस्थापित हो चुका है ऐसे में बावन से अब तक सत्तावन साल के मीडिया इतिहास को देखतेहुए तीसरे प्रेस आयोग के गठन की जरूत है जिसमें न केवल प्रिंट मीडिया बल्किइलेक्ट्रानिकऔर वेब मीडिया को भी शामिल किये जाने की जरूरत है. तीसरे प्रेस आयोग परचर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार जवारलाल कौल, देवदत्त, अवधेश कुमार, गोपालकृष्ण और मनोज मिश्र ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इन सुझावों के साथ तैयारदस्तावेज 12 जून की बैठक में रखा जाएगा।प्रभाष जोशी परंपरा न्यास ने आगामी12 जून को इसी मसले पर आगे बात करने के लिएदिल्ली के आईटीओ पर एक बड़ी बैठक का आयोजन किया है जिसमें स्वेच्छा से कोई भीपत्रकार शामिल हो सकता ह. न्यास का कहना है कि वह तीसरे प्रेस आयोग की मांग को आगेबढ़ायेगा और एक ज्ञापन सरकार को नहीं बल्कि संसद को सौंपने की तैयारी कर रहा हैताकि हम सबसे बड़ी पंचायत से कह सकें कि कैसे मीडिया को प्रेस बनाये रखने के लिएतीसरे प्रेस आयोग की जरूरत है. जुलाई में इंदौर में प्रभाष जोशी को याद करने के लिएएक दो दिवसीय सम्मेलन का भी आयोजन किया जा रहा है जिसमें इस मांग को जोर शोर सेउठाया जाएगा। ब्यूरो रिपोर्ट सीधीबातडॉटकॉम
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