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Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
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न्यू मीडिया के विविध प्रसंग

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प्रस्तुति- कृति शरण



'न्यू मीडिया'संचार का वह संवादात्मक (Interactive)स्वरूप है जिसमें इंटरनेट का उपयोग करते हुए हम पॉडकास्ट, आर एस एस फीड, सोशल नेटवर्क (फेसबुक, माई स्पेस, ट्वीट्र), ब्लाग्स, विक्किस, टैक्सट मैसेजिंग इत्यादि का उपयोग करते हुए पारस्परिकसंवाद स्थापित करते हैं। यह संवाद माध्यम बहु-संचार संवाद का रूप धारण कर लेता है जिसमें पाठक/दर्शक/श्रोता तुरंत अपनी टिप्पणी न केवल लेखक/प्रकाशक से साझा कर सकते हैं, बल्कि अन्य लोग भी प्रकाशित/प्रसारित/संचारित विषय-वस्तु पर अपनी टिप्पणी दे सकते हैं। यह टिप्पणियां एक से अधिक भी हो सकती है अर्थात बहुधा सशक्त टिप्पणियां परिचर्चा में परिवर्तित हो जाती हैं। उदाहरणत: आप फेसबुक को ही लें - यदि आप कोई संदेश प्रकाशित करते हैं और बहुत से लोग आपकी विषय-वस्तु पर टिप्पणी देते हैं तो कई बार पाठक-वर्ग परस्पर परिचर्चा आरम्भ कर देते हैं और लेखक एक से अधिक टिप्पणियों का उत्तरदेता है।
न्यू मीडिया वास्तव में परम्परागत मीडिया का संशोधित रूप है जिसमें तकनीकी क्रांतिकारी परिवर्तन व इसका नया रूप सम्मलित है।
न्यू मीडिया संसाधन
न्यू मीडिया का प्रयोग करने हेतु कम्प्यूटर, मोबाइल जैसे उपकरण जिनमें इंटरनेट की सुविधा हो, की आवश्यकता होती है। न्यू मीडिया प्रत्येक व्यक्ति कोविषय-वस्तु का सृजन, परिवर्धन, विषय-वस्तु का अन्य लोगों से साझा करने का अवसर समान रूप से प्रदान करता है। न्यू मीडिया के लिए उपयोग किए जाने वाले संसाधन अधिकतर निशुल्क या काफी सस्ते उपलब्ध हो जाते हैं।
न्यू मीडिया का भविष्य
यह सत्य है कि समय के अंतराल के साथ न्यू मीडियाकी परिभाषा और रूप दोनो बदल जाएं। जो आज नया है संभवत भविष्य में नया न रह जाएगा यथा इसे और संज्ञा दे दी जाए। भविष्य में इसके अभिलक्षणों में बदलाव, विकास या अन्य मीडिया में विलीन होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
न्यू मीडिया ने बड़े सशक्त रूप से प्रचलित पत्रकारिता को प्रभावित किया है। ज्यों-ज्यों नई तकनीक,आधुनिक सूचना-प्रणाली विकसित हो रही है त्यों-त्योंसंचार माध्यमों व पत्रकारिता में बदलाव अवश्यंभावी है।
वेब पत्रकारिता
इंटरनेट के आने के बाद अखबारों के रुतबे और टीवी चैनलों की चकाचौंध के बीच एक नए किस्म की पत्रकारिता ने जन्म लिया। सूचना तकनीक के पंख पर सवार इस माध्यम ने एक दशक से भी कम समय में विकास की कई बुलंदियों को छुआ है। आज ऑनलाइन पत्रकारिता का अपना अलग वजूद कायम हो चुका है। इसका प्रसार और प्रभाव करिश्माई है। आप एक ही कुर्सी पर बैठे-बैठे दुनिया भर के अखबार पढ़ सकते हैं। चाहे वह किसी भी भाषा में या किसी भी शहर से क्यों न निकलता हो। सालों और महीनों पुराने संस्करण भी महज एक क्लिक दूर होते हैं।
ऑनलाइन पत्रकारिता की दुनिया को मोटे तौर पर दो भागों में बांट सकते हैं। १. वे वेबसाइटें जो किसी समाचार पत्र या टीवी चैनल के वेब एडिशन के रूप में काम कर रही हैं। ऐसी साइटों के अधिकतर कंटेंट अखबार या चैनल से मिल जाते हैं। इसलिए करियर के रूप में यहां डेस्क वर्क यानी कॉपी राइटर या एडिटर की ही गुंजाइश रहती है।
२. वे वेबसाइटें जो न्यूजपोर्टल के रूप में स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं। यानी इनका किसी चैनल या पेपर से कोई संबंध नहीं होता। भारत में ऐसी साइटों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। काम के रूप में यहां डेस्क और रिपोर्टिंग दोनों की बराबर संभावनाएं हैं। पिछले दिनों कई ऐसे पोर्टल अपनी ऐतिहासिक रिपोर्टिंग के लिए चर्चा में रहे।
अगर आप खेल, साहित्य, कला जैसे किसी क्षेत्र विशेष में रुचि रखते हैं, तो ऐसी विशेष साइटें भी हैं, पत्रकारिताके क्षितिज को विस्तार दे सकती हैं।
स्टाफ के स्तर पर डॉट कॉम विभाग मुख्य रूप से तीन भागों में बंटा होता है।
जर्नलिस्ट : वे लोग जो पोर्टल के कंटेंट के लिए जिम्मेदार होते हैं।
डिजाइनर : वेबसाइट को विजुअल लुक देने वाले।
वेब डिवेलपर्स/प्रोग्रामर्स : डिजाइन किए गए पेज की कोडिंग करना, लिंक देना और पेज अपलोड करना।
इंटरनेट पत्रकारिता में वही सफल हो सकता है, जिसमें आम पत्रकार के गुणों के साथ-साथ तकनीकी कौशल भी हो। वेब डिजाइनिंग से लेकर साइट को अपलोड करने तक की प्रक्रिया की मोटे तौर पर समझ जरूरी है। एचटीएमएल और फोटोशॉप की जानकारी इस फील्ड में आपको काफी आगे ले जा सकती है। आपकी भाषा और लेखन शैली आम बोलचाल वाली और अप-टु-डेट होनी चाहिए।
यह एक फास्ट मीडियम है, यहां क्वॉलिटी के साथ तेजी भी जरूरी है। कॉपी लिख या एडिट कर देना ही काफी नहीं, उसे लगातार अपडेट भी करना होता है।
वेब पत्रकारिता लेखन व भाषा
वेब पत्रकारिता, प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में आधारभूत अंतर है। प्रसारण व वेब-पत्रकारिता की भाषा में कुछ समानताएं हैं। रेडियो/टीवी प्रसारणों में भी साहित्यिक भाषा, जटिल व लंबे शब्दों से बचा जाता है। आप किसी प्रसारण में, 'हेतु, प्रकाशनाधीन, प्रकाशनार्थ, किंचित, कदापि, यथोचित इत्यादि'जैसे शब्दों का उपयोग नहीं पाएँगे। कारण? प्रसारण ऐसे शब्दों से बचने का प्रयास करते हैं जो उच्चारण की दृष्टि से असहज हों या जन-साधारण की समझ में न आएं। ठीक वैसे ही वेब-पत्रिकारिता की भाषा भी सहज-सरल होती है।
वेब का हिंदी पाठक-वर्ग आरंभिक दौर में अधिकतर ऐसे लोग थे जो वेब पर अपनी भाषा पढ़ना चाहते थे, कुछ ऐसे लोग थे जो विदेशों में बसे हुए थे किंतु अपनी भाषा से जुड़े रहना चाहते थे या कुछ ऐसे लोग जिन्हें किंहीं कारणों से हिंदी सामग्री उपलब्ध नहीं थी जिसके कारण वे किसी भी तरह की हिंदी सामग्री पढ़ने के लिए तैयार थे। आज परिस्थितिएं बदल गई हैं मुख्यधारा वाला मीडिया आनलाइन उपलब्ध है और पाठक के पास सामग्री चयनित करने का विकल्प है।
इंटरनेट का पाठक अधिकतर जल्दी में होता है और उसे बांधे रखने के लिए आपकी सामग्री पठनीय, रूचिकर व आकर्षक हो यह बहुत आवश्यक है। यदि हम ऑनलाइन समाचार-पत्र की बात करें तो भाषा सरल, छोटे वाक्य व पैराग्राफ भी अधिक लंबे नहीं होने चाहिएं।
विशुद्ध साहित्यिक रुचि रखने वाले लोग भी अब वेब पाठक हैं और वे वेब पर लंबी कहानियां व साहित्य पढ़ते हैं। उनकी सुविधा को देखते हुए भविष्य में साहित्य डाऊनलोड करने का प्रावधान अधिक उपयोग किया जाएगा ऐसी प्रबल संभावना है। साहित्यि क वेबसाइटें स्तरीय साहित्यका प्रकाशन कर रही हैं और वे निःसंदेह साहित्यिक भाषा का उपयोग कर रही हैं लेकिन उनके पास ऐसा पाठक वर्ग तैयार हो चुका है जो साहित्यिक भाषा को वरियता देता है।
सामान्य वेबसाइट के पाठक जटिल शब्दों के प्रयोग व साहित्यिक भाषा से उकता जाते हैं और वे आम बोल-चाल की भाषा अधिक पसंद करते हैं अन्यथा वे एक-आध मिनट ही साइट पर रूककर साइट से बाहर चले जाते हैं।
सामान्य पाठक-वर्ग को बाँधे रखने के लिए आवश्यक है कि साइट का रूप-रंग आकर्षक हो, छायाचित्र व ग्राफ्किस अर्थपूर्ण हों, वाक्य और पैराग्राफ़ छोटे हों, भाषा सहज व सरल हो। भाषा खीचड़ी न हो लेकिन यदि उर्दू या अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का उपयोग करना पड़े तो इसमें कोई बुरी बात न होगी। भाषा सहज होनी चाहिए शब्दों का ठूंसा जाना किसी भी लेखन को अप्रिय बना देता है।
हिंदी वेब पत्रकारिता में भारत-दर्शन की भूमिका
इंटरनेट पर हिंदी का नाम अंकित करने में नन्हीं सी पत्रिका भारत-दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1996से पहली भारतीय पत्र-पत्रिकाओं की संख्या लगभग नगण्य थी। 1995 में सबसे पहले अँग्रेज़ी के पत्र, 'द हिंदू'ने अपनी उपस्थिति दर्ज की और ठीक इसके बाद 1996 में न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित भारत-दर्शन ने प्रिंट संस्करण के साथ-साथ अपना वेब प्रकाशन भी आरंभ कर दिया। भारतीय प्रकाशनों में दैनिक जागरण ने सबसे पहले 1997 में अपना प्रकाशन आरंभ किया और उसके बाद अनेक पत्र-पत्रिकाएं वेब पर प्रकाशित होनेलगी।
हिंदी वेब पत्रकारिता लगभग 15-16 वर्ष की हो चुकी है लेकिन अभी तक गंभीर ऑनलाइन हिंदी पत्रकारिता देखने को नहीं मिलती। न्यू मीडिया का मुख्य उद्देश्य होता है संचार की तेज़ गति लेकिन अधिकतर हिंदीमीडिया इस बारे में सजग नहीं है। ऑनलाइन रिसर्च करने पर आप पाएंगे कि या तो मुख्य पत्रों के सम्पर्क ही उपलब्ध नहीं, या काम नहीं कर रहे और यदि काम करते हैं तो सम्पर्क करने पर उनका उत्तर पाना बहुधा कठिन है।
अभी हमारे परम्परागत मीडिया को आत्म मंथन करना होगा कि आखिर हमारी वेब उपस्थिति के अर्थ क्या हैं? क्या हम अपने मूल उद्देश्यों में सफल हुए हैं? क्या हम केवल इस लिए अपने वेब संस्करण निकाल रहे है क्योंकि दूसरे प्रकाशन-समूह ऐसे प्रकाशन निकाल रहे हैं?
क्या कारण है कि 12 करोड़ से भी अधिक इंटरनेट के उपभोक्ताओं वाले देश भारत की कोई भी भाषा इंटरनेट पर उपयोग की जाने वाली भाषाओं में अपना स्थान नहीं रखती? मुख्य हिंदी की वेबसाइटस के लाखों पाठक हैं फिर भी हिंदी का कहीं स्थान न होना किसी भी हिंदी प्रेमी को सोचने को मजबूर कर देगा कि आखिर ऐसा क्यों है! हमें बहुत से प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे और इनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने होंगें।
न्यू मीडिया विशेषज्ञ या साधक?
आप पिछले १५ सालों से ब्लागिंग कर रहे हैं, लंबे समय से फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब इत्यादि का उपयोग कर रहे हैं जिसके लिए आप इंटरनेट, मोबाइल व कम्प्यूटर का प्रयोग भी करते हैं तो क्या आप न्यू मीडिया विशेषज्ञ हुए? ब्लागिंग करना व मोबाइल से फोटो अपलोड कर देना ही काफी नहीं है। आपको इन सभी का विस्तृत व आंतरिक ज्ञान भी आवश्यक है। न्यू मीडिया की आधारभूत वांछित योग्यताओं की सूची काफी लंबी है और अब तो अनेक शैक्षणिक संस्थान केवल 'न्यू मीडिया'का विशेष प्रशिक्षण भी दे रहे हैं या पत्रकारिता में इसे सम्मिलित कर चुके हैं।
ब्लागिंग के लिए आप सर्वथा स्वतंत्र है लेकिन आपको अपनी मर्यादाओं का ज्ञान और मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता की सीमाओं का भान भी आवश्यक है। आपकी भाषा मर्यादित हो और आप आत्मसंयम बरतें अन्यथा जनसंचार के इन संसाधनों का कोई विशेष अर्थ व सार्थक परिणाम नहीं होगा।
इंटरनेट पर पत्रकारिता के विभिन्न रूप सामने आए हैं -
अभिमत - जो पूर्णतया आपके विचारों पर आधारित है जैसे ब्लागिंग, फेसबुक या टिप्पणियां देना इत्यादि।
प्रकाशित सामग्री या उपलब्ध सामग्री का वेब प्रकाशन - जैसे समाचारपत्र-पत्रिकाओं के वेब अवतार।
पोर्टल व वेब पत्र-पत्रकाएं (ई-पेपर और ई-जीन जिसे वेबजीन भी कहा जाता है)
पॉडकास्ट - जो वेब पर प्रसारण का साधन है।
कोई भी व्यक्ति जो 'न्यू मीडिया'के साथ किसी भी रूप में जुड़ा हुआ है किंतु वांछित योग्यताएं नहीं रखता उसे हम 'न्यू मीडिया विशेषज्ञ'न कह कर 'न्यू मीडिया साधक'कहना अधिक उपयुक्त समझते हैं।
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आचार संहिता
प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचारपत्रों; समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है। ऐसी संहिता बनाना एक सक्रिय कार्य है जिसे समय और घटनाओं के साथ कदम से कदम मिलाना होगा।
निमार्ण संकेत करता है कि प्रेस परिषद् द्वारा मामलों के आधार पर अपने निर्णयों के जरिये संहिता तैयार की जाये। परिषद् द्वारा जनरूचि और पत्रकारिता नीत...
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पत्रकारिता का उद्देश्य
पत्र- पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए यानी जिस परिवर्तन की जरूरत है, इन सब पर पत्रकार को नजर रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य सच्ची घटनाओं पर प्रकाश डालना है, वास्तविकताओं को सामने लाना है। इसके बावजूद यह आशा की जाती है कि वह इस तरह काम करे कि ‘बहुजन हिता...
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रेडियो का इतिहास
24 दिसंबर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियोऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।
इससे पहले जे सी बोस ने भारत में तथा मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीकाबेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एकसाथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन ...
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Manish Nimade
Manish Nimadeबहुत उत्तम जानकारी है धन्यवाद साहेब

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· Reply· 13 February 2015 at 11:48
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Madan Chaudhary
Madan Chaudharyउमदा जानकारी।

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· Reply· 23 October 2015 at 16:33
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गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क -
गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क (एनएनएन) नया इंटरनेट आधारित समाचार और फोटोआदान - प्रदान की व्‍यवस्‍था गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्‍य देशों की समाचार एजेंसियों कीव्‍यवस्‍था है
अप्रैल, 2006 से कार्यरत एनएनएन की औपचारिक शुरूआत मलेशिया के सूचना मंत्री जैनुद्दीनमेदिन ने कुआलालंपुर में 27 जून 2006 को की थी। एनएनएन ने गुटनिरपेक्ष समाचार एजेंसियोंके पूल (एनएएनपी) का स्‍थान लिया है, जिसने पिछले 30 वर्ष गुटनिरपेक्ष देशों के बीचसमाचार आदान प्रदान व्‍यवस्‍था के रूप ...
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यूनाइ‍टेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया-
यूनाइटेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया की स्‍थापना 1956 के कंपनी कानून के तहत 19 दिसम्‍बर, 1959 को हुई। इसने 21 मार्च, 1961 से कुशलतापूर्वक कार्य करना शुरू कर दिया। पिछले चारदशकों में यूएनआई, भारत में एक प्रमुख समाचार ब्‍यूरो के रूप में विकसित हुई है। इसनेसमाचार इकट्ठा करने और समाचार देने जैसे प्रमुख क्षेत्र में अपेक्षित स्‍पर्धा भावना को बनाएरखा है।
यूनाइटेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया की नए पन की भावना तब स्‍पष्‍ट हुई, जब इसने 1982 में पूर्ण रूपसे हिंदी तार

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