रेणु से प्रेम
भारत यायावर
प्रेम क्या है? एक लगाव ही तो है ।एक समर्पण ।सबकुछ खो देने का भाव । त्याग और निष्ठा की निष्कंप दीपशिखा । मन- प्रांतर को आलोकित करती हुई । जब भाव की ऐसी स्थिति में व्यक्ति लम्बे समय से जी रहा हो ,तब सवाल तो उठता है ।
कुछ हमदर्द सवाल उठाते हैं कि मन नहीं ऊबता ? रेणु की एक कहानी है, 'उच्चाटन '। व्यक्ति है और उसका मन है तो कभी-कभी उच्चाटन तो होगा ही । उच्चाटन होता है अपनी जीवन-स्थितियों से ऊब जाने पर या अपने सुख के आधार को खो देने पर ।
प्रेम एक अद्भुत मायाजाल है । जो उसमें फँसा, फँसकर निकल नहीं पाया । दिन-रात बेचैनी और तड़प ! अपने को बंधा हुआ महसूस करना । आजादी, सुविधा और सुख का तिरोहित हो जाना । नहीं भाई,नहीं !
हर आदमी चाहता है कुछ सुख मिले ।सुख पाने के लिए वह शादी करता है । नौकरी करता है । सुख के लिए ही वह जीता है ।
सुख क्या है?
जो हमारे अनुकूल हो वह सुख है ।
हमारी कामना की पूर्ति से प्राप्त आनन्द ही सुख है ।
सुविधा से रहना,
चैन की नींद सोना,
आरामदेह जीवन जीना,
सुख है ।
सुख वह अनुभूति है जो तन- मन को अच्छा लगे ।
लेकिन प्यार के पथ पर चलने वाले को सुख कहाँ?
मैं रेणु को चाहता हूँ और पाने की खोज में भटकता रहता हूँ । उनसे विमुख न हो जाऊँ, इसलिए निराला की इस प्रार्थना को संकल्प की तरह मन में धारण किए रहता हूँ :
सुख का दिन डूबे डूब जाए
तुमसे न सहज मन ऊब जाए
खुल जाए न मिली गाँठ मन की
लुट जाए न उठी राशि धन की
धुल जाए न आन शुभानन की
सारा जग रूठे रूठ जाए
उलटी गति सीधी हो न भले
प्रति जन की दाल गले न गले
टाले न बान यह कभी टले
यह जान जाए तो खूब जाए
निराला का यह गीत एक कामना है । इस कामना में मैं अपना स्वर भी मिलाना चाहता हूँ । सुख का दिन डूबे अर्थात तिरोहित हो जाए ,कोई चिंता नहीं, रेणु से मेरा मन कभी न ऊबे! जो मन की डोर में रिश्ते की गाँठ पड़ी है, वही मेरे जीवन के धन की राशि है, वही मेरा शुभ आनन है, वह रहे! पूरा जग मुझसे रूठ जाए, कोई चिंता नहीं । और , यह जान भी चली जाए तो कोई बात नहीं ।
रेणु को मैंने पाया है ।पर इसके लिए मुझे कितना भटकना पड़ा है! कितने दुर्गम मार्ग पर चलना पड़ा है । फिर भी मैंने पूरी तरह से उन्हें आत्मसात कहाँ किया है ? लेकिन अब तक मन नहीं ऊबा है, भले ही सुख के अनेक मुहूर्तों की तिलांजली देनी पड़ी है ।