Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

अजी विचार तो करने दीजिए /रवि अरोड़ा

$
0
0




अजी विचार तो करने दीजिये

बच्चों की शादी में कितने लोगों को बुलाना है , अक्सर यह हिसाब लगाता हूँ । खुले दिल से भी सूचि बनाऊँ तो दो तीन हज़ार लोगों से ऊपर नाम नहीं जा पाते । वैसे तो लगभग इतने लोग और भी होंगे जिनसे कभी वास्ता नहीं रहा मगर मैं उन्हें भलीभाँति जानता हूँ । जो मुझे नहीं जानते मगर मैंने उन्हें कभी न कभी कभी-कहीं न कहीं देखा है, एसे लोगों की संख्या भी चार पाँच हज़ार तो अवश्य होगी । स्कूल कालेज के अनजान चेहरे , तमाम शिक्षक , रिक्शा वाले, दिहाड़ी मज़दूर और जीवन में कभी जिनसे वास्ता पड़ा, पाँच छः हज़ार तो वे भी ज़रूर होंगे । राजनीति, फ़िल्मे और तमाम सामाजिक लोग जो मुझे नहीं जानते मगर मुझे उनके बारे में मालूम है , एसे लोगों को भी चार पाँच हजार तो मान ही लो । जीवन में कभी सुने हुए नामों को भी जोड़ लूँ तब भी पूरी फ़ेहरिस्त पच्चीस हज़ार को पार नहीं कर पाएगी । यानि यही है मेरी दुनिया । यही है मेरा संसार । तो क्या इतनी सी संख्या के बल पर मैं कह सकता हूँ कि मुल्क के एक सौ तीस करोड़ लोगों को मैं जानता हूँ  , उनके दुःख-सुख समझता हूँ , उनकी तकलीफ़ महसूस कर सकता हूँ ? अब यदि फिर भी मैं कहूँ कि मैं कर सकता हूँ तो यक़ीनन मैं साथ उठाने-बैठाने लायक़ आदमी नहीं हूँ । जिसे अपने रहनुमाओं पर यक़ीन ही नहीं उससे कोई वास्ता ही क्यों रखा जाये ?

मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर कल जो हज़ारों प्रवासी मज़दूर पहुँचे , उनमें से किसी को मैं नहीं जानता । जिन्होंने कल पुलिस की लाठियाँ खाईं , उनमे से कोई भी मेरा अपना नहीं था । दो दिन पहले गुजरात के सूरत शहर में रोटी के लिए हंगामा करने वालों से भी कभी वास्ता नहीं पड़ा । दिल्ली अथवा आसपास के इलाक़े से पैदल ही अपने गाँव और क़स्बों के लिए सैंकड़ों किलोमीटर के सफ़र पर चल पड़े लोगों को मैंने देखा अवश्य मगर उनमे से एक का नाम भी मुझे नहीं पता । आनंद विहार बस अड्डे पर दुत्कारे गये हज़ारों लोगों की तो मैंने शक्ल भी नहीं देखी । पाँच रूपल्ली की पूड़ी सब्ज़ी के लिए आजकल एक के ऊपर चढ़ने वाले कौन हैं इसका तो मुझे अंदाज़ा तक नहीं है । पता नहीं कहाँ तक सत्य है मगर अख़बार में पढ़ा कि ये तमाम लोग जो इन दिनो ठोकरें खा रहे हैं , इनकी संख्या कम से कम चालीस करोड़ है । यानि एक तिहाई हिंदुस्तान । इनसे दो गुने तो इनके परिवार वाले भी ज़रूर होंगे । कोई बड़ा आदमी तो यह भी बता था कि इन चालीस करोड़ लोगों में से बारह करोड़ का काम धंधा अब छिन सा गया है। आख़िर कौन हैं ये लोग ? हमारे क्या लगते हैं ? क्यों हम इनकी चिंता करें ? कम से कम मैं क्यों करूँ ?

वैसे मेरा ख़याल है कि देश को चलाने वाले तो ज़रूर इन लोगों को जानते होंगे । सुबह शाम वे इन लोगों की ही तो बातें करते हैं । सारी योजनाएँ इन्हीं के लिए ही तो बनाते हैं । उनकी चिंता में ही तो घुले जाते हैं । मैंने कई बार उन्हें कहते सुना है कि यही लोग असली हिंदुस्तान हैं । बड़े साहब को मैंने कई बार टीवी पर ‘एक सौ तीस करोड़-एक सौ तीस करोड़’ कहते भी सुना हैं । इसका मतलब वे इन्हें अपनो में गिनते भी होंगे । उनके सम्बोधन में बार बार ‘मेरे प्यारे देशवासियों’ शब्द मैंने अपने कानों से सुना है । मुझे पक्का यक़ीन है कि उन्होंने जिन्हें ‘प्यारे’ कहा उनमे ये लोग भी होंगे । मुझे मालूम है कि हमारा देश चलाने वाले बहुत क़ाबिल हैं । सब कुछ पहले से ही जान जाते हैं । पहचान जाते हैं कि भीड़ लगाने वालों में से कौन किस धर्म का है ? उनके किस विरोधी ने साज़िशन यहाँ भीड़ जमा कराई है ? हुनरमंद भी ख़ूब हैं , हज़ारों की भीड़ को टीवी पर देख कर ही पता लगा लेते हैं कि किसके हाथ में थैला है और किसके हाथ में नहीं है ? भला इनकी नज़र से ये दो तिहाई आबादी कैसे बचेगी ? अब आप उतावले मत होईए , थोड़ा धीरज रखिये । जब मेरी तरह इन लोगों को जानते ही नहीं तो क्यों इनका ज़िक्र आते ही चिल्लाने लगते हैं ? उन्हें थोड़ा विचार तो करने दीजिये । कभी सुना नहीं कि सब्र का फल मीठा होता है ?

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>