प्रस्तुति - आकांक्षा गुप्ता /सुरभि
न्यूज़मैन @ वर्क
लेखक —
लक्ष्मी प्रसाद पंत
प्रकाशक —
वाणी प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य — 225 ~
.......... किताब गली
दो दशक लंबी पत्रकारिता के अनुभवों को वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत ने किताब "न्यूजमैन @ वर्क'में आवश्यक संवेदनशीलता के साथ पेश किया है। पत्रकारिता की चुनौतियों को समझने के लिहाज से ये जरूरी किताब है...
ऐसे बनती हैं खबरें!
खबरें चुनने, संपादन और अंततः प्रकाशन — इस प्रक्रिया को लेकर आम पाठक के मन में किस्म-किस्म के विशिष्टाग्रह और धारणाएं हैं। इन पर चर्चा से इतर, ज्यादातर पत्रकार सुबह से आधी रात तक न्यूजरूम में किस कदर आतुरता (जिसमें संयम का पूरा घोल भी मिला होता है) के साथ सक्रिय रहते हंै - इसकी कल्पना भी तब तक संभव नहीं है, जब तक वहां कुछ वक्त ना बिता लिया जाए।
साहित्यिक मैग्जीन "कथादेश'से पत्रकारिता शुरू करने वाले, वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत ने न्यूजरूम की सोच, कार्यवाही और कार्रवाई का रोचक आख्यान "न्यूजमैन @ वर्क'में पेश किया है। वे इस धारणा को गलत बताते हैं कि पत्रकार संवेदनहीन होता है। इस संदर्भ में पंत, रॉबर्ट फ्रॉस्ट की एक उक्ति का हवाला देते हैं- "खबर लिखते वक्त अगर पत्रकार की आंखों में आंसू नहीं हैं तो पढ़ते वक्त पाठकों की आंखें भी सूखी रहेंगी।'
दैनिक भास्कर के राजस्थान संपादक लक्ष्मी प्रसाद पंत ने किताब में अपने दो दशक से भी अधिक लंबे न्यूजरूम जीवन का जीवंत दस्तावेज पेश किया है। इसमें ऐसी कई घटनाएं विस्तार के साथ दर्ज की गई हैं, जिन्होंने पाठकों के अंतस्थल को झिंझोड़ दिया था। इनमें मानवीय मूल्यों की बात है, व्यवस्थागत् लापरवाही के चलते हुई त्रासदी का बयान है, धर्म के नाम पर हिंसा की आग भड़कने की दास्तान भी है।
पंत की भाषा में रवानगी है। वे पाठकों को प्रभावित करने के लिए शब्दों का गैर-जरूरी खर्च नहीं करते। उनका खबरनामा पढ़ते हुए, गुजरा वक्त साफ दिखने लगता है। समाचारों की अंतर्कथा पढ़ते हुए आप भावुक होंगे, कई बार क्रोधित और कभी खुद को असहाय भी पाएंगे - ऐसा होने पर ही हम जान पाते हैं कि खबरें सिर्फ इकट्ठी नहीं कर ली जातीं। उन्हें जीना और उनके साथ जूझना भी पड़ता है। ये किताब ना सिर्फ पत्रकारिता के छात्रों के लिए सबक है, बल्कि जो पाठक समाचार जगत की चुनौतियां समझना चाहते हैं- उनके लिए भी संग्रहणीय है।
● *चण्डीदत्त शुक्ल*