Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

रवि अरोड़ा की नजर में

$
0
0



गर नापते गजों में ही हैं

रवि अरोड़ा
हालाँकि मैं ऊँचा सुनता हूँ मगर पता नहीं क्यों आजकल मुझे करोड़ों लोगों के भिनभिनाने की आवाजें सी सुनाई दे रही हैं। आप भी ज़रा कान लगाइए । क्या यह मेरा वहम है या वाक़ई लोग बाग़ अब अपने ग़ुस्से को रोक नहीं पा रहे और भिनभिना रहे हैं ? इक्का दुक्का ख़बरें भी तो पता चली हैं कि भीड़ अब रोके नहीं रुक रही और लोग भूखे मरने की बजाय लड़ने पर उतारू हो गये हैं । कोई बता रहा था कि ये लोग करोड़ों की तादाद में हैं जो कोरोना-वोरोना कुछ नहीं मानते । इनके लिए तो भूख से बड़ा कोई जिन्न नहीं । वे लोग पैदल अपने घर जा रहे थे मगर हमने उन्हें जाने नहीं दिया । वे बाल-बच्चों के लिए दाल-दलिये का इंतज़ाम करने को घर से निकले तो हमने लाठियाँ फटकार दीं । अब पूरा सवा महीना हो गया उन्हें यह सब झेलते झेलते , शायद इस लिए ही अब भिनभिना रहे हों। कोई बता रहा था कि ये सब ग़रीब-गुरबा मजूर हैं । अरे आज तो एक मई है , इन मजूरों का ही दिन । इसी दिन तो हम उन्हें बताते हैं कि आप हमारे कितने ख़ास हो।

पड़ोसी डरा रहा था कि तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं । यह बीमारी तो पता नहीं हमारा कुछ बिगाड़ पाएगी अथवा नहीं मगर उसके ख़ौफ़ से पूरी लुटिया ज़रूर डूब जाएगी । उधर अंतराष्ट्रीय श्रम संघटन वाले अलग डरा रहे हैं कि कोरोना महामारी से देश में चालीस करोड़ लोग ग़रीबी के चक्र में फँस सकते हैं । इनमे नब्बे फ़ीसदी अनौपचारिक क्षेत्र के कामगार होंगे । एक अख़बार बता रहा था कि दुबई समेत पश्चिमी एशिया के अनेक देशों में क़रीब एक करोड़ भारतीय श्रमिक वापिस घर लौटने को अपना बोरिया-बिस्तर बांधे बैठे हैं । सरकार भी कह रही है कि पिछले एक महीने में बेरोज़गारी दर 9 से बढकर 31 फ़ीसदी हो गई है । अब ये सभी मजूर लोग अब भिनभिनाएँ भी लगें तो चिंता होना स्वाभाविक है ।

कहीं पढ़ा था कि देश में दो सौ से अधिक श्रम क़ानून हैं । कम्यूनिस्ट पार्टियाँ ही नहीं अन्य तमाम राजनीतिक दलों की भी अपनी ट्रेड यूनियन हैं। लॉकडाउन न होता तो मज़दूर दिवस पर इन सभी ने आज रैलियाँ की होतीं , जुलूस निकाले होते मगर क्या वजह कि इन मजूरों के पक्ष में किसी ट्रेड यूनियन का कोई बयान अब तक नहीं आया ? ठीक है कि ये सभी लोग असंघटित क्षेत्र से हैं और अपनी कमाई का एक हिस्सा लेवी के रूप में यूनियन को नहीं देते मगर हैं तो फिर भी ये लोग मज़दूर ही ? और फिर आप ही तो सारे साल चिल्लाते हो- बोल मजूरे हल्ला बोल-बोल किसाना हल्ला बोल । अब जब इनका साथ देने का समय आया तो आप लोग ही नहीं बोल रहे ?

बेशक सरकार सबको काम नहीं दे सकती । सबको हमेशा रोटी भी नहीं दी जा सकती मगर करोड़ों बदहाल लोगों को घरों में क़ैद भी कब तक किया जा सकता है ? अब कह रहे हैं कि सबको घर भेजने का इंतज़ाम करेंगे मगर कोई इनसे पूछे कि यह काम पहले क्यों नहीं किया ? तब तो कोरोना के मामले अब के मुक़ाबले दस फ़ीसदी भी नहीं थे । जो काम अब हो सकता है , वह तब क्यों नहीं हो सकता था ? अब कह रहे हैं कि सड़क मार्ग से पहुँचाएँगे । देशभर में करोड़ों लोगों की बिना ट्रेन के आवाजाही क्या इन हालात में सम्भव है ? यह भी कह रहे हैं कि पहले सबके स्वास्थ्य की जाँच करेंगे अथवा गंतव्य पर पहुँचते ही चौदह दिन का कवारंटीन किया जाएगा । क्या मुट्ठीभर संसाधनों से यह सब किया जा सकता है ? पता नहीं कौन लोग एसी हवाई योजनाएँ बनाते हैं और कौन उन्हें मंज़ूरी देता है ? श्रमिक दिवस पर भी इन करोड़ों श्रमिकों के लिए कोई राहत भरी ख़बर नहीं सुना सके ? दुरूह सरकारी आँकड़ों, हवाई शगूफ़ों और लम्बे चौड़े भाषणों से कोई कब तक पेट भरेगा ? मजबूरी में आदमी भिनभिनाएगा तो सही । डर लगता है कि कहीं बात भिनभिनाने से आगे बढ़ गई तो ?  अब साहब लोग भी तो कमाल कर रहे हैं । नापते गजों में हैं और फाड़ते फ़ुटों में भी नहीं ।।


🤦‍♂😜👍🏻🙏🏻😅🤣😝


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>