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चुनांचे / रवि अरोड़ा की नजर में

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शराब के घोड़े और चतुर

रवि अरोड़ा

लीजिए मेरे शहर में भी आज से शराब की दुकानें खुल गईं । लाइनें लग गईं और सच्चे और कर्मठ नागरिकों की तरह हज़ारों देशभक्तों ने शांति से पंक्तिबद्ध होकर मुल्क के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । मेरे मन में भी बड़ी इच्छा हुई कि जाकर इन कोरोना योद्धाओं को प्रणाम करूँ और ताली-थाली बजा कर उनका आभार व्यक्त करूँ मगर  दुर्भाग्य एसा कर नहीं सका । हालाँकि पूरा विश्वास था कि बेशक मैं आलस कर गया मगर हमारी सरकार इतनी कठोर हृदय नहीं है वह ज़रूर आज पुष्पवर्षा करके इन रणबाँकुरों को धन्यवाद ज्ञापित करेगी । मगर हाय रे पत्थर दिल नेताओं , तुमसे इतना सा काम भी न हुआ ? अरे ज़रा देखो तो सही किस प्रकार अपनी जान की परवाह न करके ये कोरोना योद्धा एक एक बोतल के लिए आज दिन भर एक दूसरे पर चढ़े । कोई कल रात से लाइन में लगा है और किसी की आँख ही लाइन में खुली । ज़रा बताइये दिन भर भूखे रहने का यह काम क्या इन्होंने केवल अपने लिए किया ?  क्या यह हम सबका फ़र्ज़ नहीं था कि अन्य वारियर की तरह आज इन शराबी भाईयों का भी जाकर अभिनंदन करते ?

सचमुच हम लोग बहुत पाखण्डी हैं । बिना शराब और शराबियों के देश चला नहीं सकते और जनसभाओं में शराब को सामाजिक बुराई बताते फिरते हैं । हर साल मद्यनिषेध विभाग का बजट घटाते जाते हैं और इसके उलट शराब से राजस्व वसूली का लक्ष्य तीस-पैंतीस परसेंट बढ़ा देते हैं । सात सौ करोड़ रुपया प्रतिदिन शराब की बिक्री से कमाते हैं और समाज को शराब की बुराइयाँ समझाने के लिए ज़िला वार पच्चीस रूपया रोज़ भी ख़र्च नहीं करते । इन पच्चीस रूपयों से ही स्कूल कालेजों में मद्यनिषेध पर भाषण प्रतियोगिताएँ होनी हैं , रैलियाँ निकलनी हैं , इन्हीं से सिनेमाघरों में चलचित्र प्रदर्शित होने हैं , शहरों में होर्डिंग, वॉल राइटिंग और पोस्टर लगने हैं । अख़बार में छपा था कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में मद्यनिषेध के प्रचार के लिए जिलों को जो राशि आवंटित की गई वह आबकारी विभाग ने ही ख़र्च की और वह भी शराबियों से मिली राशि से । फिर पता नहीं क्यों शराब की बुराइयाँ गिनाने वाला यह विभाग अब तक हर राज्य में चल रहा है और हज़ारों लोगों के वेतन का बोझ जनता पर लादा जा रहा है । अरे भाई खुल कर क्यों नहीं कहते कि हे शराबियों तुम्हारे बिना हमारा काम नहीं चल सकता । हमारी कुल आमदनी का एक चौथाई तो तुम्हारी ही जेब से आता है । देश-प्रदेश तुम ही चला रहे हो और बेशक लॉकडाउन में तुमने चालीस दिन शांति से काट लिए मगर तुम्हारे बिना हमें एक एक दिन काटना मुश्किल हो गया । हे शराबी भाई हमारी अर्थव्यवस्था के तुम ही खेवनहार हो । हम मंदिर-मस्जिद तो सालों के लिए बंद कर सकते हैं मगर तुम्हारे ‘पूजाघर’ खोले बिना अब हम एक दिन भी नहीं रह सकते । भाड़ में गया कोरोना-वोरोना , ठेका है तो दुनिया है तुम्हारी भी और हमारी भी ।

संविधान लिखने वालों ने पता नहीं क्यों मद्यनिषेध के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी धारा 47 के तहत राज्यों को दी थी । यह तो शुक्र है कि कुछ ही वर्षों में हमारी राज्य सरकारों को समझ आ गया कि हर चौराहे पर गांधी जी कि तस्वीर के साथ ‘ शराब शरीर और आत्मा दोनो  नाश कर देती है ‘ जैसे स्लोगन के होर्डिंग लगाना फ़िज़ूलखर्ची है और अब अधिकांश राज्य एसे कामों पर पैसे नहीं लुटाते । पता नहीं गुजरात, बिहार, मिज़ोरम और नागालैंड जैसे राज्यों को अब तक यह बात समझ क्यों नहीं आ रही और वे अभी भी अपने यहाँ शराबबंदी किये बैठे हैं ? चलिये कोई बात नहीं हरियाणा की तरह इनके भी जल्दी हाथ जलेंगे और ये लोग भी शराब की शरण में आ जायेंगे । उधर, शराब की दुकानें खुलने पर आज जो सोशल मीडिया पर दिन भर शराबियों का मज़ाक़ उड़ा, उससे मेरा मन हैरत में है । अरे भाई या तो हम शराब के बिना व्यक्ति, समाज व देश चलाना सीखें या फिर शराब और शराबियों को कोसना व मद्यनिषेध जैसे पाखंड बंद करें । सीधी सी बात है या तो घोड़ा-घोड़ा बोलें या चतुर-चतुर । यह घोड़ा चतुर-घोड़ा चतुर क्या लगा रखी है ?

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