अटल बिहारी वाजपेयी से मेरी पहली मुलाकात उस समय हुई जब मैं लोकसभा सचिवालय में काम करता था। मैं जिस शाखा में काम करता था उसके कारण मुझे सांसदों से संसद के अधिवेशन के दिनों में मिलना हो ही जाया करता था।
अटल जी के अलावा प्रकाशवीर शास्त्री, हीरेन मुकर्जी, डॉ राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये चिंतामणि पाणिग्रही आदि से किसी न किसी मुद्दे को लेकर मिलना हो ही जाया करता था। उस समय की ये मुलाकातें दिनमान में मेरे बहुत काम आयीं।
अटल जी और हरकिशन सिंह सुरजीत न केवल दिनमान में ही मेरे लिए उपलब्ध रहा करते थे बल्कि आकाशवाणी के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भी मिल जाया करते थे।
1983 में मैं न्यूयॉर्क में था। मुझे पता चला अटल जी वहाँ भाषण करने वाले हैं। मैं भी पहुंच गया। भाषण की समाप्ति पर उन्होंने दूर से मुझे देख लिया। मिलने पर बोले, यहां कैसे। मैं ने तपाक से जवाब दिया, आपसे मिलने के लिये। उनकी बेसाख्ता हंसी से सभी लोगों के कान हमारी तरफ हो गये।
अगले दिन हम लोग न्यूजर्सी में फिर मिले, हम दोनों। बाद में दिल्ली में तो उनसे मिलना जुलना होता ही रहता था। यह थे हमारे प्रिय अटल जी। उन की अविस्मरणीय यादों को नमन।