सरदार हुकम सिंह लोकसभा के तीसरे अध्यक्ष ( Hon. Speaker) थे। पहले श्री मावलंकर थे और दूसरे श्री अय्यंगार।
सरदार हुकम सिंह अकाली पार्टी की टिकट पर जीत कर आये थे। 1957 अय्यंगार साहब के लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद जब उपाध्यक्ष चुनने की बारी आई तब प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सुझाव दिया कि यह पद विपक्ष को दिया जाना चाहिए। बहुत नामों पर चर्चा होने के बाद सहमति सरदार हुकम सिंह के नाम पर बनी।उसी समय उनके बैठने का स्थान भी तय हो गया जो विपक्षी बेंच की पहली सीट थी यानी प्रधानमंत्री के ठीक सामने वाली सीट है। उपाधयक के चुनाव को लेकर अभी भी उस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। सरदार हुकम सिंह संविधान सभा के सदस्य रह चुके थे और दूसरे वह खासे धीर गंभीर थे। थे और दूसरे, तब के अकाली नेता मास्टर तारा सिंह के साथ पंडित जी के सौहार्दपूर्ण संबंध थे। लिहाज़ा सरदार हुकम सिंह सर्वसम्मति से लोकसभा के उपाध्यक्ष चुने गये। कुछ समय बाद अकाली पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया लेकिन जल्दी ही मास्टर तारा सिंह ने उस समझौते को तोड़ दिया लेकिन सरदार हुकम सिंह कांग्रेस में ही बने रहे। 1962 में वह लोकसभा अध्यक्ष चुने गये और उसके बाद राजस्थान के राज्यपाल।लोकसभा की कार्यवाही के संचालन पर उन्होंने कहा था कि हमारी संसद बेहतर काम करती है। मैं ने उनके बहुत से यात्रा संस्मरण अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किये हैं जो उस समय धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान तथा और कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे।