ग्रेटर कैलाश के रवींद्र घरभरण निवास के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में पूर्व केन्द्रीय मंत्री नंदिनी सत्यपति के साथ शीला व टी .पी. झुनझुनवाला, रवींद्र व पद्मा घरभरण और त्रिलोक दीप व श्रीमती दीप।
मॉरिशस के पहले हाई कमिश्नर रवींद्र घरभरण (दायें) औऱ बायें हैं संस्कृतिकर्मी टी.पी. झुनझुनवाला और बीच में त्रिलोक दीप। घरभरण साहब और उनकी विदुषी धर्मपत्नी पद्मा घरभरण सांस्कृतिक कार्यों में बहुत रुचि लिया करते थे। शायद ही कोई ऐसा माह बीतता हो जब टी. पी. भाई साहब और उनकी पत्रकार धर्मपत्नी शीला झुनझुनवाला को याद न किया जाता हो। उनके साथ मैं भी हो लेता था दोनों का मेहमान बनकर । बाद में रवींद्र घरभरण मॉरिशस के उपराष्ट्रपति भी बने।
मॉरिशस के पहले प्रधानमंत्री सर शिवसागर राम गुलाम से जब भी मुलाकात हुई वह वहां के हाई कमिश्नर रवींद्र घरभरण के निवास पर। जब भी मॉरिशस से कोई बड़ा नेता आता वह मुझे बुलाना नहीं भूलते। एक दिन सुबह उनका फ़ोन आया कि चचा(राम गुलाम को वे लोग चचा कहकर संबोधित करते हैं) शाम को मेरे घर आ रहे हैं समय पर पहुंच जाना, उनसे आप की विशेष मुलाकात तय की गई है। इधर मैं श्री घरभरण के निवास पर पहुंचा उधर चचा पहुंच गये। हमें अलग कमरे1में बिठा दिया गया। औपचारिक दुआ सलाम के बाद उन्होंने बोलना शुरू1कर दिया।कहा कि 'भारत हर मॉरिशस वासी के लिए एक तीर्थस्थान है। इसकी पुण्य भूमि की रज अपने माथे पर लगा कर हम गौरव का अनुभव करते हैं।' 12 मार्च 1968 को मॉरिशस स्वाधीन हुआ था। अपने पैरों पर खड़ा होने में भारत की हर सरकार से हमें पूर्ण सहायत मिली। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि स्वाधीनता के मार्ग में हमारे ही कुछ देशवासियों ने व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास किया लेकिन हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कड़ियां इतनी मजबूत थीं कि विरोधियों के सभी प्रयास विफल हो गये।'बातचीत तो इतनी लंबी हो गयी कि श्री घरभरण को आ कर कहना पड़ा कि चचा से मिलने वालों की कतार बहुत लंबी है। पूरी बातचीत फिर कभी।
: सरदार हुकम सिंह लोकसभा के तीसरे अध्यक्ष ( Hon. Speaker) थे। पहले श्री मावलंकर थे और दूसरे श्री अय्यंगार।सरदार हुकम सिंह अकाली पार्टी की टिकट पर जीत कर आये थे। 1957 अय्यंगार साहब के लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद जब उपाध्यक्ष चुनने की बारी आई तब प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सुझाव दिया कि यह पद विपक्ष को दिया जाना चाहिए। बहुत नामों पर चर्चा होने के बाद सहमति सरदार हुकम सिंह के नाम पर बनी।उसी समय उनके बैठने का स्थान भी तय हो गया जो विपक्षी बेंच की पहली सीट थी यानी प्रधानमंत्री के ठीक सामने वाली सीट है। उपाधयक के चुनाव को लेकर अभी भी उस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। सरदार हुकम सिंह संविधान सभा के सदस्य रह चुके थे और दूसरे वह खासे धीर गंभीर थे। थे और दूसरे, तब के अकाली नेता मास्टर तारा सिंह के साथ पंडित जी के सौहार्दपूर्ण संबंध थे। लिहाज़ा सरदार हुकम सिंह सर्वसम्मति से लोकसभा के उपाध्यक्ष चुने गये। कुछ समय बाद अकाली पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया लेकिन जल्दी ही मास्टर तारा सिंह ने उस समझौते को तोड़ दिया लेकिन सरदार हुकम सिंह कांग्रेस में ही बने रहे। 1962 में वह लोकसभा अध्यक्ष चुने गये और उसके बाद राजस्थान के राज्यपाल।लोकसभा की कार्यवाही के संचालन पर उन्होंने कहा था कि हमारी संसद बेहतर काम करती है। मैं ने उनके बहुत से यात्रा संस्मरण अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किये हैं जो उस समय धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान तथा और कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे।
अटल बिहारी वाजपेयी से मेरी पहली मुलाकात उस समय हुई जब मैं लोकसभा सचिवालय में काम करता था। मैं जिस शाखा में काम करता था उसके कारण मुझे सांसदों से संसद के अधिवेशन के दिनों में मिलना हो ही जाया करता था। अटल जी के अलावा प्रकाशवीर शास्त्री, हीरेन मुकर्जी, डॉ राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये चिंतामणि पाणिग्रही आदि से किसी न किसी मुद्दे को लेकर मिलना हो ही जाया करता था। उस समय की ये मुलाकातें दिनमान में मेरे बहुत काम आयीं। अटल जी और हरकिशन सिंह सुरजीत न केवल दिनमान में ही मेरे लिए उपलब्ध रहा करते थे बल्कि आकाशवाणी के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भी मिल जाया करते थे। 1983 में मैं न्यूयॉर्क में था। मुझे पता चला अटल जी वहाँ भाषण करने वाले हैं। मैं भी पहुंच गया। भाषण की समाप्ति पर उन्होंने दूर से मुझे देख लिया। मिलने पर बोले, यहां कैसे। मैं ने तपाक से जवाब दिया, आपसे मिलने के लिये। उनकी बेसाख्ता हंसी से सभी लोगों के कान हमारी तरफ हो गये। अगले दिन हम लोग न्यूजर्सी में फिर मिले, हम दोनों। बाद में दिल्ली में तो उनसे मिलना जुलना होता ही रहता था। यह थे हमारे प्रिय अटल जी। उन की अविस्मरणीय यादों को नमन।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में शिक्षा मंत्री जस्टिस एम. सी. छागला का इंटरव्यू लेते हुए। वह कहा करते थे कि जब भी कहीं संकट पैदा होता है तो कटाई हमारे मंत्रालय की हो जाती है। अब आप ही बताएं कि अगर बच्चों को शिक्षित नहीं करेंगे तो मुल्क की तरक्की कैसे होगी। छागला साहब लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में भी शिक्षा मंत्री रहे लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना विदेश मंत्री बनाया।
एम्स में खान अब्दुल गफ्फार खान की मिज़ाज़पुर्सी और सेहत की जानकारी लेने के साथ साथ स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की यादें भी ताज़ा कीं। फ्रंटियर गांधी के नाम से विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान ने तब बताया था कि वह विभाजन के खिलाफ थे। अपनी इस साफगोई के चलते उन्हें कई बरस पाकिस्तान की जेलों में काटने पड़े। उनसे हुई यह बातचीत दिनमान में प्रकाशित हुई थी।
1969 में लद्धाख के दौरे के दौरान चांगला चुशुल भी गये। यह स्थान चीन की सीमा के साथ लगा है। साथ में खड़े हैं नवभारत टाइम्स के समाचार संपादक पंडित हरिदत्त शर्मा तथा सेना के मेजर अहलुवालिया।
तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन को अपनी पुस्तकें भेंट करते हुए। उनके राष्ट्रपति बनने पर भी मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा। क्या वे दिन थे।
रघुवीर सहाय द्वारा दिनमान के संपादक का कार्यभार संभालने से पहले वात्स्यायन जी ने अपने कक्ष में उस समय ऑफिस में मौजूद संपादकीय सहकर्मियों से उनकी विधिवत मुलाकात करायी।बाएं से जवाहरलाल कौल, नेत्रसिंह रावत, योगराज थानी, जितेंद्र गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, श्रीमती शुक्ला रुद्र और त्रिलोक दीप
रघुवीर सहाय द्वारा दिनमान के संपादक का कार्यभार संभालने से पहले वात्स्यायन जी ने अपने कक्ष में उस समय ऑफिस में मौजूद संपादकीय सहकर्मियों से उनकी विधिवत मुलाकात करायी।बाएं से जवाहरलाल कौल, नेत्रसिंह रावत, योगराज थानी, जितेंद्र गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, श्रीमती शुक्ला रुद्र और त्रिलोक दीप
"मनोहर श्याम जोशी अपनी मस्ती, ज़िंदादिली, बेबाकी और फक्कड़पन के लिए भी जाने जाते रहे हैं। दिनमान में भी अपने सहयोगियों के साथ ऐसे क्षणों में वह देखे जाया करते थे। इस तरह के एक अवसर पर उनकी पुरानी यादों और लतीफों का आनंद लेते हुए राम सेवक श्रीवास्तव, त्रिलोक दीप, मनोहर श्याम जोशी, योगराज थानी, श्रीकांत वर्मा और जितेंद्र गुप्त।"
Edited version of a rare album photo of Trilok Deep
दिनमान से मनोहर श्याम जोशी के विदाई समारोह के अवसर पर स्टाफ के करीब करीब सभी लोग।कुर्सी पर बैठे बाएं से श्रीकांत वर्मा, जितेंद्र गुप्त, मनोहर श्याम जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और श्रीमती शुक्ला रुद्र। खड़े हुए बाएं से योगराज थानी, रमेश वर्मा, राम सेवक श्रीवास्तव, अमर चंद, त्रिलोक दीप, श्यामलाल शर्मा, महेश्वरदयालु गंगवार, जवाहरलाल कौल, मदन गोपाल चड्ढा, सत्यपाल शास्त्री, प्रेमनाथ प्रेम तथा विश्वम्भर श्रीवास्तव
डालमिया ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज के चेयरमैन श्री संजय डालमिया को आज श्री त्रिलोक दीप जी ने अपनी दो पुस्तकें - पाकिस्ताननामा (आंखों देखा पाकिस्तान) और वे दिन वे लोग, भेंट कीं। पकिस्ताननामा दीप जी ने संजय डालमिया जी को और वे दिन वे लोग पुस्तक महान साहित्यकार स्वर्गीय श्री सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'जी को समर्पित की है। इस बहाने श्री डालमिया को करीब एक घंटा सुनने का मौका मिला । बड़े सरल और मिलनसार व्यक्ति हैं डालमिया जी। दीप जी के साथ कौटिल्य प्रकाशन से श्री कमल नयन पंकज और दीप जी के परम मित्र श्री जस्विन जस्सी भी मौजूद थे। मुझे भी जाने का मौका मिला इसके लिए दीप जी को एक बार फिर दिल से धन्यवाद।
नमस्कार।
सभी टिप्पणियों के साथ श्वेत श्याम शानदार दुर्लभ फोटो भी हैं, जिसे मैं संलग्नक नहीं कर पा रहा हूं। फ़ेसबुक में Trilok Deep के वाल पर सभी फोटो और टिप्पणियां सजीव शेयर है।