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राष्ट्रपति ज्ञानीजैल सिंह और त्रिलोकदीप

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ज्ञानी ज़ैल सिंह के साथ मेरी खासी करीबी थी। पंजाब में भी उनसे मिला करता था, दिल्ली में भी, राष्ट्रपति भवन में भी और अवकाश प्राप्त करने के बाद उनके सर्कुलर रोड के निवास पर भी। कुछ विशेष और निजी मुलाकातें होती थीं तो कभी कभी अन्य लोगों के साथ भी।
एक बार देखा कि ज्ञानी ज़ैल सिंह दिल्ली के कनॉट प्लेस के गलियारे में अकेले घूम रहे हैं। न उनके साथ उनकी पार्टी का कोई साथी है और न ही कोई सुरक्षा कर्मचारी।उनसे मेरी अचानक मुलाकात होने पर लगा वह कुछ अचकचा गये। मैं भी उनके साथ हो लिया। बोले, तुम्हारे पास दूसरा कोई काम नहीं। मैंने उत्तर दिया आपके साथ घूमना और बतियाना भी तो मेरा काम है। कचोटने पर बोले कि एक तो मैं खुली हवा लेना चाहता था, विंडो शॉपिंग का लुत्फ उठना चाहता था और दूसरे यह देखना चाहता था कि कुर्सी न रहने पर बन्दे की कैसी हैसियत रह जाती। इस समय मेरे पास कोई पद नहीं इसलिए लोग अगल बगल से निकल जाते हैं औऱ मुझे अपनी औकात बता जाते हैं। तुम मुझे क्यों पकड़े हुए हो। अच्छा मेरे साथ टहलना भी तो कोई तुम्हारी स्टोरी नहीं है, कह कर मेरी तरफ देखते हुए हंस दिये।

एक प्रसंग और याद आ रहा है। डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल मेरी धर्मपत्नी की सर्जरी होनी थी। सर्जरी करने वाली डॉक्टर की टीम में एक डॉ. मंजीत कौर थी जो ज्ञानी ज़ैल सिंह की बेटी हैं। उनसे अपनी पत्नी की सेहत के साथ साथ राष्ट्रपति जी के बारे में भी चर्चा हुई। अपनी पत्नी के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद ज्ञानी ज़ैल सिंह से भेंट करने पर भी बात हुई। उन्होंने जल्दी ही राष्ट्रपति के साथ मेरी भेंट तय कर दी। देखते ही बोले, तुम खुद फ़ोन नहीं कर सकते थे। मैंने उन्हें समझाया, अब आप देश के राष्ट्रपति हैं सी .पी .में टोही घुमक्कड़ी करने वाले ज्ञानी जी नहीं। वह हंस दिये साथ में डॉ. मंजीत कौर भी।

हमारी वह मुलाकात खासी लम्बी चली। इसमें मैंने उनसे प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मतभेदों के चलते जब उनसे पूछा कि जिस राजीव गांधी को आपने कई परंपराओं को ताक पर रख उन्हें तुरंत प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी अब यह दुराव क्यो। एक शातिर राजनीतिक की तरह उन्होंने बताया था कि  शपथ दिलाना उस वक़्त की ज़रूरत थी।अब भी  हमारे उनके साथ कोई निजी मतभेद नहीं, हम दोनों एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते हैं, झगड़ा उसूलों को लेकर है।हो सकता है वह प्रधानमंत्री हैं मेरी बातें उन्हें अच्छी न लगती हों, मैं भी राष्ट्रपति हूं, मुझे भी तो उनकी कुछ बातों को लेकर परेशानी हो सकती है। अलावा इसके उनके दूसरे कार्यकाल, ब्लू स्टार ऑपरेशन, पंजाब की राजनीति जैसे तमाम मुद्दों पर खुल कर चर्चा हुई थी। इस काफी लंबे इंटरव्यू को पूर्व राष्ट्रपति के विचारों के तौर पर छापा गया।राष्ट्रपति के पद, उसकी गरिमा ,उसकी मर्यादा, प्रोटोकॉल का मैंने पूरा ध्यान रखा। बावजूद इसके मेरे मित्र अनिल माहेश्वरी ने अपनी एक टिप्पणी में इसे एक अच्छा इंटरव्यू कहा था। धन्यवाद अनिल जी।


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