मनमोहन सिंहृ- अशोक विहार से पीएम हाउस तक
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का आजकल एम्स में इलाज चल रहा हैं। उन्होंने इस शहर में कामयाबी की अनेक बुलंदियों को छूआ है। दिल्ली में संभवत: उनका पहला अपना घर अशोक विहार में था। वे जब रिजर्व बैक आफ इंडिया के गवर्नर बनकर मुंबई भी गए तो वे दिल्ली आने पर अपने निजी घर में ही ठहरते थे। डा. मनमोहन सिंह की पुत्री दमन सिंह ने अपनी किताब ‘स्ट्रिकटली पर्सनल: मनमोहन और गुरुशरण’ में लिखा है कि उस घर ( अशोक विहार) को उनके माता-पिता ने बनवाया था। अशोक विहार के घर में मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी पुत्री डा.उपेन्द्र कौर और उनके पति विजय तंखा भी रहे हैं। डा. उपेन्द्र कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में पढ़ा रही हैं। उनके इस घर पर 1984 मेें हमले की कोशिश हुई थी। वे तब RBI के governor थे।
मनमोहन सिंह की लाइबेयरी में कौन सी किताबें
देश के दस वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे डा.मनमोहन सिंह ने सन 2014 में प्रधानमंत्री पद छोड़ने के तुरंत बाद 7, लोक कल्याणा मार्ग ( तब रेसकोर्स रोड) स्थित प्रधानमंत्री आवास को खाली कर दिया था। फिर वे ढाई एकड़ में फैले 3, मोतीलाल नेहरु मार्ग के बँगले में शिफ्ट हो गए थे। इसी 3, मोतीलाल नेहरु मार्ग के बँगले में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शीला दीक्षित रहती थीं। ये बँगला सच में खासमखास है। ये जामुन और इमली के पेड़ोंसे अटा हुआ है। डा. मनमोहन सिंह के करीबी कहते हैं कि वे जहां पर भी रहे वहां वे अपनी एक लाइब्रेयरी अवश्य बना लेते हैं। उनके इस आवास में भी एक समृद्ध लाइब्रेयरी है। इसमें अर्थशास्त्र, राजनीति गवर्नेस, बैकिंग आदि विषयों की सैकड़ों पुस्तकें रखी हैं। उनका अधिकतर समयअपनी लाइब्रेयरी के पास ही गुजरता है। वे दिनभर पढ़ते-लिखते हैं।
जब डा.मनमोहन सिंह पढ़ाते थे डी. स्कूल में
पूर्व प्रधानमंत्री डा, मनमोहन सिंह ने स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (डी स्कूल) में 1969 से 1971 तक पढ़ाया। वे अपनी क्लास लेने के बाद इधर की लेडी रतन टाटा लाइब्रेयरी में बैठकर पढ़ना पसंद करते थे। डा. मनमोहन सिंह लाइब्रेयरी में घंटों ही बैठा करते थे। एक बात और कि वे भी डी स्कूल की कैफेटरिया में जाकर कॉफी-चाय पीना पसंद करते थे। वहां पर उस दौर में डा.अर्मत्य ‘आर्गुमेंटेटिव इंडियन’ सेन, प्रो. ए.एम.खुसरों, प्रो. सुखमय चक्रवर्ती, डा. मृणाल दत्ता चौधरी डा. ए. एल नागर जैसे आदरणीय अध्यापक आकर बैठा करते थे। इधर के कैफेटरिया में अध्यापकों और उनके छात्रों के बीच सारगर्भित चर्चाएं अखंड ज्योति की तरह जारी रहती है। डी स्कूल कैफेटेरिया में कड़क चाय और उम्दा कॉफी के साथ लजीज मटन डोसा, सामान्य डोसा, समोसा वगैरह मिलता है। इधर मिलने वाली सभी डिशेज का स्वाद दिव्य होता होता है। इसलिए पेट पूजा करते हुए बातचीत का आनंद भी दोगुना हो जाता है। इधर होने वाली बहसों में मतभेद भी होते हैं,पर संवाद मर्यादित रहते हैं। आखिर ये डी स्कूल है। इससे डा. मनमोहन सिंह जैसे ज्ञानी,सुसंस्कृत और अध्यापक जुड़े रहे हैं।