अखिलेश श्रीवास्तव
सवेरे लगभग सात बजे एक अनजान नम्बर से फोन आया। बात करने पर पता चला कि कविनगर गाजियाबाद से कोई उमेश कुमार नामक व्यक्ति बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि वह किसी निजी स्कूल में अध्यापक हैं। आगे उन्होंने बताया कि उनके स्कूल में कक्षा सात की हिन्दी की पुस्तक में मेरी कहानी 'श्रम की खुशी'पढ़ाई जा रही है। कहानी उनको इतनी पसंद आई कि उन्होंने फोन पर बात करना जरुरी समझा। मैं ने सूचना देने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया क्योंकि यह बात मेरी जानकारी मे नहीं थी।
यह कम से कम आठवां प्रकरण है जब मेरी जानकारी के बगैर मेरी रचना स्कूलों के पाठ्यक्रम में पढ़ाए जाने की सूचना दूसरों से मिली है। इसके अतिरिक्त भी जाने कितनी जगहों पर यह गोरखधंधा चल रहा है। कहीं मेरी कविता, कहीं मेरी कहानी, कहीं मेरी एकांकी तो कहीं मेरा लेख बगैर मेरी अनुमति के पढ़ाया जा रहा है। सिर्फ महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड ने ही अपनी कक्षा 6, 7और 8 की पाठ्यपुस्तकों मे मेरी रचनाओं को शामिल करने से पहले अनुमति ली थी , पुस्तकों की एक-एक प्रति भी भेजी और बकायदा रायल्टी भी देते हैं। बाकी सभी प्रकाशकों ने विभिन्न पत्रिकाओं में छपी रचनाओं को चुरा लिया है। दो प्रकाशकों को मैं ने नोटिस भी भेजा लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। अब बताइए ऐसे ड़कैतों के लिए क्या किया जाय ः