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वायरस से कतरा कतरा जिंदगी / अनीता दिनेश

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एक इंसान के तौर पर कतरा कतरा तो हम पहले से ही मर रहे थे । कल हमने खुद को पूरी तरह मार दिया है । हम इस देश के पढ़े लिखे कहलायें जाने वाले लोग मनुष्य के तौर पर मर चुके है । हमारी अपनी सोच खुद के परिवार को सुरक्षित रखकर संतुष्ट है पर शायद ये नहीं समझ रहे है ,वैसा भी सच नहीं है कितने दिन बंद करके बैठोगे खुद को और अपने बच्चों को ।

आज नहीं तो कल बाहर तो निकलना ही है और यक़ीन मानो इस वायरस का सबसे बड़ा शिकार भी मध्यम वर्ग को ही होना है ,भले ही खुद को लोन लिए दसवी मंज़िल के फ़्लैट और गाड़ी को देख कर दिल ही दिल में इसी को विकास समझ बैठे हों ।हम एक ऐसे देश में रह रहे है जहाँ मेहनतकश व्यक्ति की ग़ैरत और आत्मसम्मान को तो रोज़ ही कुचला जा रहा था ।

 कल तो वो लोग जो एक ट्रेन में बैठकर अपनी मंज़िल जाने की जद्दोजहद में थे ट्रेन उनपर ही बैठ गयी । हमारी दी हुयी रोटियाँ तक वो छोड़ गए जैसे कह गए “ लो अपनी रोटियाँ भी रख लो तुम्हारी रोटियाँ तुम्हीं को मुबारक । उनके जीने पर उनके जीवन की परवाह ना करने वाले इतिहास पुरुष और उनके जस्ट विधायक ख़रीद कर मसीहा बने नेता जी का दिल द्रवित हो उठा “ तुरंत पाँच लाख रुपए और हवाई जहाज से शव की घर वापसी ।

कितनी अच्छी तक़दीर थी इन बेचारों क़ी भी जीते जी जो एक एक पैसे को तरस रहे थे और जिनको घर जाने को ट्रेन और बस मयस्सर तक ना थी ,उनके लिए आज हवाई सेवा उपलब्ध हो गयी लाश की क़ीमत पाँच लाख रुपया अलग ।ज़िंदा गरीब दो कौड़ी का और उसकी लाश लाखों की । गरीब की लाश उसके जीवन से ज़्यादा क़ीमती है ।

 रात दिन टेलिविज़न पर चिल्लाचौथी देखने वालों की प्रजाति भी अलग ही होती है ऐसे ही एक सज्जन जो खुद दो महीने से लॉकडाउन का हवाला देकर घर में ढुके सैनेटाईज़र से दोनो वक़्त नहा रहे है बोले अरे ! इन को समझ में नहीं आता ये अगर घर चले गए तो सारी इंडस्ट्री कैसे चालू होंगी ।ये अनपढ़ इतना भी नहीं समझते कि इकॉनमी को ठप्प कर देना चाहते है ?

ख़ैर कुछ बातों की ब्रह्मांड में आवृत्ति होती है अगले दिन ऑफ़िस से मेल आ गयी काम पर आयें ।उनकी पत्नी पति की चिंता में व्याकुल हो उठी ,ये कौन सा तरीक़ा है ?ये कम्पनी वालों के लिए इंसान के जान की क़ीमत ही नहीं है ?कल को इनको कुछ हो गया तो हमारे बच्चे क्या करेंगे । इतना ज़रूरी है ऐसी आफ़त में कम्पनी चलाना । जाते जाते एक जज साहब तक बोल गए इस देश का क़ानून अमीरो के साथ खड़ा है ।

 लगता है कोई है जो चाहता है की इस देश से ग़रीबी तो जा ना पायी अब गरीब ही चला जाए तो खुद की पीठ ठोकने का एक मौक़ा तो बढ़ जाएगा । ये खुद की पीठ ठोकने की बीमारी भी अजब होती है । खुद की पीठ ठोकना काफ़ी असाध्य और दुरूह कार्य है विरले सिद्ध पुरुष ही कर पाते है पर पीठ ठोंकते - ठोंकते कब दिल बाहर निकल कर गिर जाता है हवा भी नहीं लगती । ये मेरे जीवन का अनुभव है कि आदमी कितना भी अहसान फ़रामोश हो पर उसका दिल ऐसा नहीं होता ।

दिल मददगार को चुपके से दुआ ज़रूर दे जाता है । बाद में तुम्हारे मुँह से कितनी भी बद्दुआ निकले । पर गरीब मेहनतकश आदमी का दिल ऐसा नहीं होता , शरीर और आत्मा तीनो ही दुआयें देती है । कल फल ख़रीदते समय एक बहुत ही सामान्य सा व्यक्ति को कई दर्जन केले ख़रीदते देख पूछा “ भैया इतने केले का क्या करोगे ये तो ख़राब हो जाएँगे गर्मी है ? जवाब मिला “ साहब बहुत पैसे वाला आदमी तो हूँ नहीं पर आदमी तो हूँ ना ,इतने लोग पैदल घर जा रहे है ना पैसा है ना दाना पानी खाना खिलाने की तो हैसियत है नहीं हमारी दो दो केले दे दूँगा दिल को तसल्ली मिल जाएगी।

सामान्य सा व्यक्ति पर दिल कितना बड़ा । धरती पर इंसानियत इन्ही से ज़िंदा है ।ये सोशल डिस्टेनसिंग शब्द तो मुझे बिलकुल ही समझ नहीं आता बचपन से पढ़ाया गया था “मैन इस आ सोशल ऐनिमल “ पर इस सोशल डिस्टेन्सिंग ने हमको पूरा ऐनिमल बना दिया । जो भय मीडिया ने हमारे अंदर बो दिया है उसने हमें सिर्फ़ खुद के लिए सोचने वाला ऐनिमल बना दिया है । मानवीय भावनाओं से रहित जानवर । फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग सही वर्ड था ।

कम से कम हम अपनी इंसानियत को तो ना मार देते । कल उत्तरांचल की एक तस्वीर देखी लिखा था “ कवारेंटिन सेंटर “ फूस की बनी मड़ई थी । जीवन के एक साल  बितायें है वहाँ रात में खिड़की से देखो तो बाघ और तेंदुआ दिखता था । ख़ैर भगवान अंदर बैठे व्यक्ति की रक्षा करे ।

ANI बताता है की देश की सेन्सिटिविटी ऐरोप्लेन क्लास के लिए थोड़ी अलग है कल Singapore से उड़ी एक फ़्लाइट में सिर्फ़ एक व्यक्ति आया । देश के लिए हर एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है चाहे उड़ानलागत घाटे में जायें ।

इतने में कई ट्रेनें चल जाती पर लेबर की आदत ख़राब नहीं करनी है । पैदल चलकर स्टैमिना बिल्ड होगा तभी तो वो हम हिंदुस्तानी वाला गाना गाते हुए न्यू इंडिया का निर्माण करेगा । ये सब मास्टर स्ट्रोक ही है वो बात अलग है जब कई मास्टर स्ट्रोक लग जाते है तो दिमाग़ भन्ना जाता है । अंत में आपके रिश्तेदार और नातेदार और मित्र अगर अहमदाबाद में रहते हो तो उनको कॉल कर ले क्योंकि फोन पर बात करने से कोरोंना वायरस नहीं फैलता ।

 हालाँकि वहाँ केरल से डॉक्टर बुलायें जा रहे है । देश के नीचे लटका एक राज्य जहाँ की पढ़ी लिखी सरकार और जनता ने देश को ये बता दिया कि मुसीबत कितनी भी बड़ी हो बेहतर प्लानिंग उसको सम्भाल लेती है । समस्याएँ इवेंट क्रियेट करने से नही बल्कि ग्राउंड रीऐलिटी को समझ कर प्लानिंग से होती है अन्त में एक बात और बचपन से सुना था पापा को हर वक़्त एक बात जो वो कहते थे “ इंसान को अपने कर्म हमेशा अच्छे रखने चाहिए क्योंकि कभी ना कभी इनका परिणाम इंसान के सामने आता ज़रूर है ।

कल तो सरकार ने भी बोल ही दिया करोना के साथ जीना सीख ले । इतना लम्बा लॉक डाउन आशा है कुछ तो सिखा ही गया होगा हम सब को । एक शब्द में “ जो बोओगे वही काटोगे “ और छोटा हो या बड़ा काटना तो सबको है । खुद मुझको भी । बस इतनी मेहरबानी करना की घर में रहना क्योंकि यदिसरकारी अस्पताल पहुँच गए तो वो बरसते फूल बहुत याद आएँगे ।

ईश्वर करे सभी सुरक्षित रहे वो आदमी भी सुरक्षित रहे जिसके बीमार होने की अफ़वाह पर लोग ख़ुशियाँ मना रहे है । इसी लिए सनातन धर्म के मूल में ये बात रची बसी है कि इंसान ताक़त के घमंड में इतनी भी अति ना करे की लोग जाने के बाद दिखावे के लिए ही सही अफ़सोस ना जतायें ।

यह पोस्ट अनीता दिनेश का लिखा हुआ है।


सही सलामत।।
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