जुलाई, 1977 में विएना में ऑस्ट्रिया के चांसलर (प्रधानमंत्री) ब्रूनो क्रेइस्की के साथ। उस समय भारत में जनता पार्टी की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे मोरारजी भाई देसाई तथा विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।ऑस्ट्रिया और भारत के1संबंधों के बारे में उनका बहुत ही साफ नज़रिया था। उनका मानना था कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके देश में किस पार्टी की सरकार है और कौन प्रधानमंत्री है, वह इसलिए कि दो देशों के बीच संबंध जनाधारित होते हैं और उसी लक्ष्य को ध्यान में रख कर सरकारें नीतियां तय करती हैं। उन दिनों विएना में संयुक्तराष्ट्र का मुख्यालय बन रहा था। जब मैंने उनसे पूछा कि पहले से न्यूयॉर्क और जिनेवा दो मुख्यालय हैं तीसरे की क्या जरूरत थी उन्होंने बताया कि बावजूद उन दो मुख्यालयों के आज भी विएना में यू .एन .के बहुत से ऑफिस हैं। उन सब को एक जगह इकट्ठा करने से खर्च भी बचेगा औऱ efficiency भी बढ़ेगी। उनसे और भी कई विषयों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रिया पूर्व और पश्चिम के बीच सेतु का काम करता है, इसलिए सभी देशों के साथ उसके मधुर संबंध हैं।मुझे वहां यह भी बताया गया की अपने घर जाने के बाद अगर प्रधानमंत्री को किसी काम से बाहर जाना पड़े तो वह अपनी कार खुद ड्राइव करते हैं जिसे उसी दिन शाम मैंने अपनी आंखों से देखा और हाथ हिलाकर उनका अभिवादन भी किया।इतना ही नहीं रात को' जब मैंने उनके घर फ़ोन लगया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आयी 'क्रेइस्की,'में भौचक रह गया। अपना परिचय दिया। वह पहचान गए और उसके बाद कुछ और मुद्दों पर बात हुई। सचमुच यह है लोकतंत्र की सही दिशा और सोच।
जुलाई, 1977 में विएना में ऑस्ट्रिया के चांसलर (प्रधानमंत्री) ब्रूनो क्रेइस्की के साथ। उस समय भारत में जनता पार्टी की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे मोरारजी भाई देसाई तथा विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।ऑस्ट्रिया और भारत के1संबंधों के बारे में उनका बहुत ही साफ नज़रिया था। उनका मानना था कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके देश में किस पार्टी की सरकार है और कौन प्रधानमंत्री है, वह इसलिए कि दो देशों के बीच संबंध जनाधारित होते हैं और उसी लक्ष्य को ध्यान में रख कर सरकारें नीतियां तय करती हैं। उन दिनों विएना में संयुक्तराष्ट्र का मुख्यालय बन रहा था। जब मैंने उनसे पूछा कि पहले से न्यूयॉर्क और जिनेवा दो मुख्यालय हैं तीसरे की क्या जरूरत थी उन्होंने बताया कि बावजूद उन दो मुख्यालयों के आज भी विएना में यू .एन .के बहुत से ऑफिस हैं। उन सब को एक जगह इकट्ठा करने से खर्च भी बचेगा औऱ efficiency भी बढ़ेगी। उनसे और भी कई विषयों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रिया पूर्व और पश्चिम के बीच सेतु का काम करता है, इसलिए सभी देशों के साथ उसके मधुर संबंध हैं।मुझे वहां यह भी बताया गया की अपने घर जाने के बाद अगर प्रधानमंत्री को किसी काम से बाहर जाना पड़े तो वह अपनी कार खुद ड्राइव करते हैं जिसे उसी दिन शाम मैंने अपनी आंखों से देखा और हाथ हिलाकर उनका अभिवादन भी किया।इतना ही नहीं रात को' जब मैंने उनके घर फ़ोन लगया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आयी 'क्रेइस्की,'में भौचक रह गया। अपना परिचय दिया। वह पहचान गए और उसके बाद कुछ और मुद्दों पर बात हुई। सचमुच यह है लोकतंत्र की सही दिशा और सोच।