बीच का रास्ता नहीं होता
रवि अरोड़ा
प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की कविता है- बीच का रास्ता नहीं होता । वामपंथी विचार के लोग इस कविता को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं । अरसे तक मैं भी इस कविता पर मुग्ध रहा मगर अब मैं मानता हूँ कि वो भारतीय ही क्या जो बीच का रास्ता न निकाल ले । रिश्वत देकर अपना काम निकलना और हर मौक़े पर कोई न कोई जुगाड़ फ़िट कर लेना बीच का रास्ता ही तो है। अब आज की ही स्थिति देखिये । बड़मानस के चलते सुहागिनों को क़ायदे से आज बरगद के पेड़ के पास जाकर उसकी पूजा करनी चाहिये थी । मगर लॉकडाउन में घर से बाहर निकल नहीं सकतीं तो बड़ के पेड़ की टहनी तुड़वा कर घर मँगवा ली और पूजा संपन्न कर ली । किसी को इस बात से लेना देना नहीं कि बरगद के औषधीय गुणों के कारण ही उसे ऋषि-मुनियों ने पूजनीय बताया था । बात क़ायदे से हमारे पल्ले पड़े इसलिए ही उसे सत्यवान-सावित्री की कथा से जोड़ा गया । हम इस पेड़ की रक्षा करें इसलिए ही उसका एक दिन निर्धारित किया गया मगर हुआ उसका उलटा । आज तमाम पार्कों और खुले स्थानों पर लगे बरगद के पेड़ बुरी तरह नुच गए । कोई गहने बनाने के लिए उसके पत्ते ले गया तो किसी ने पूजा के लिए उसकी टहनियाँ काट लीं । कई बार तो लगता है कि किसी भी समस्या का समाधान ढूँढने की हमारी कला और जुगाड़मेंट की हमारी इसी विधि ने ही आज हमें वहाँ लाकर खड़ा किया है , जहाँ हमें चहुँओर समस्याएँ ही समस्याएँ दिख रही हैं ।
महात्मा बुद्ध भारतीय मानस को भली भाँति समझते होंगे । शायद इसलिए ही उन्होंने मध्यमार्ग को उत्तम मार्ग बताया । उनकी सीख का असर है अथवा हम पहले से ही एसे थे , जो बीच में ही रहना पसंद करते हैं । ना आगे बढ़ कर कुछ नया करना और न पीछे रह कर सबसे अलग थलग पड़ जाना , यही हमारी नीति है । बीच की स्थिति में हम बेशक भेड़-बकरी जैसे हो जायें मगर रहेंगे हम बीच में ही । अब बीच में रहना है तो वही सब करना होगा जो आगे चल रहे लोग कर रहे हैं । जैसा कोई कह दे चुपचाप वैसा ही कर दो । कोई सवाल नहीं कोई शंका नहीं । मूर्तियों के पूजन ने मंदिर विशाल कर दिए और साक्षात भगवान का रूप दरिद्र नारायण आदमी बौना । पुरोहित लकड़ी की तख़्ती पर लक्ष्मी-गणेश और राहू-केतु बैठा दे तो हम उसके पीछे पीछे एक धागा अर्पित कर दोहरा देते हैं- वस्त्रम्-उपवस्त्र समर्पयामि। कभी सोचते ही नहीं कि किसे बेवक़ूफ़ बना रहे हैं । पुरोहित हर बात का ‘ उपाय ‘ बता देता है । यह है तो वह दान करो और फ़लाँ समस्या है तो फ़लाँ उपाय कर लो । हर चीज़ का जुगाड़ है और हर समस्या से निकलने का बीच का रास्ता है ।
अब कोरोना वायरस से भी हम एसे ही डील कर रहे हैं जैसे सरकार से करते हैं । कुछ ले देकर और कोई बीच का रास्ता निकाल कर ही हम लॉकडाउन से निपटना चाहते हैं । हमारे जुगाड़ और बीच का रास्ता निकालने की तमाम ख़बरें और तस्वीरें आजकल सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं । कहीं निर्धारित गोले में अपनी चप्पलें रख कर हम झुंड बना कर बैठे हैं तो कहीं एक सीट छोड़कर बैठने के निर्देश का इस तरह पालन कर रहे है कि निर्धारित ख़ाली सीट का आदर करते हुए किसी सीट पर दो दो लोग बैठे हैं । टीवी स्क्रीन पर अवतरित हुए हमारे नेता भी पता नहीं किसे बेवक़ूफ़ बनाते हैं मुँह की बजाय गले में मास्क लटका लेते हैं । पता नहीं हमारी समझ में क्यों नहीं आ रहा कि यह महामारी कोई भगवान नहीं है जो धागे को वस्त्र समझ कर हमारी भेंट स्वीकार कर लेगी । यह क़ोविड 19 है जो किसी इलाज से ही जाएगी और हमारे सारे जुगाड़ और बीच के रास्ते उसके समक्ष फ़ेल हैं ।
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