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दिल्ली में गामा पहलवान, लाहौर में मंटो के साथ
कुश्ती और अखाड़ों का जब भी जिक्र होगा तो गामा पहलवान का नाम बड़े आदर भाव से लिया जाएगा। गामा दिल्ली जब भी आए तो वे सब्जी मंड़ी में घंटाघर के पास, रोबिन सिनेमा के करीब, अब भी आबाद खलीफा बद्री के अखाड़े में अवश्य पहुंचे। अपने जीवनकाल में ही दंतकथाओं का पात्र बन गए गामा के साथ उनके छोटे भाई और बेहतरीन पहलवान इमामबख्श और दो-तीन चेले भी हुआ करते थे। 22 मई 1878 को अमृतसर में जन्में गामा का 23 मई 1960 को लाहौर में निधन हो गया था। गुरु हनुमान बताते थे कि गामा उनके शक्ति नगर स्थित अखाड़े में दिल्ली आने पर आते थे। दिल्ली में 1947 से पहले पंचकुईया रोड का मुन्नी पहलवान का अखाड़ा भी बहुत मशहूर हुआ करता था। इनके अलावा छोटे-मोटे अखाड़े तो अनेक थे ही। इस बीच, अजीब संयोग है कि लाहौर के एक कब्रिस्तान में मंटो और गामा बिलकुल साथ साथ चिर निद्रा में हैं ।
दिल्ली में गामा पहलवान आमतौर पर तब ही आते थे जब उन्हें जामा मस्जिद के पास तिकाना पार्क में होने वाले दंगलों में भाग लेने के लिए इतिहादी दंगल कमेटी आमंत्रित करती थी। इनमें देश भर के मशहूऱ पहलवान भाग लेते रहे हैं। पर इस बात के प्रमाण नहीं मिलते कि गामा दिल्ली के दंगल में कभी जोर-आजमाइश के लिए उतरे हों। दरअसल वे एक शर्त पर लड़ते थे। उनकी शर्त होती थी कि जो पहलवान उनके भाई को चित कर देगा उससे वे दो-दो हाथ करेंगे। हालांकि गामा दिल्ली के दंगल में आकर उभरते हुए पहलवानों को कुछ गुर अवश्य दे दिया करते थे। बहरहाल गामा को साक्षात देखने के लिए दिल्ली टूट पड़ा करती थी। वे किसी सुपर स्टार से कम नहीं थे। दिल्ली मेें तब कुदे सिया बाग में खलीफा चिरंजी भी दंगल करवाते थे।
किसे बचाया था गामा ने 1947 में
देश बंटा तो गामा को भारत छोडना प़डा। वे दुखी मन से लाहौर चले गए। लाहौर में सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। तब गामा और उनके भाई ने अपनी जान को जोखिम में डालकर हिन्दुओं और सिखों को दंगाइयों से बचाया। कहते हैं कि गामा ने भारत का रुख कर रहे कुछ
परिवारों की महिलाओं को ओढ़ने को चादरें भी दी थी। गामा ने कहा था की काश हमारा जिस्म और बड़ा होता तो उसकी नाप के कपड़े बड़े होते,जो ज़्यादा लोगों के काम आते। गामा ने दंगाइयों को चेतावनी दी थी कि उसके मोहल्ले के हिंदुओं-सिखों को कोई हाथ भी लगाएगा तो उसे गामा छोडेगा नहीं। गामा महीनों अपनी गली की रखवाली करते रहे। अफसोस किगामा का अंतिम वक़्त आर्थिक तंगी में गुजरा। जब इसका बात की जानकारी उद्योगपति जी.डी.बिड़ला को मिली तो उन्होंने गामा को हर महीने 500 रुपए पेंशन भेजनी चालू कर दी थी।