1975 के बाद 1980 और 1983 में भी पश्चिम जर्मनी जाने के अवसर मिले। 1980 की यात्रा 24 सिंतबर से 7 अक्टूबर तक रही। मुख्य उद्देश्य था बुँदेस्टाग यानी संसद की निम्न सदन के चुनाव कवर करना। दूसरे कई देशों के पत्रकारों को भी न्योता गया था। उनकी मदद के लिये गाइड की व्यवस्था थी।
जब मैं अपने होटल के कमरे में दाखिल हुआ तो क्या देखता हूं कि सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का चुनावी लिटरेचर एक टेबल पर पड़ा है। उलट पुलट कर देखने से पता चलता है कि तीन प्रमुख पार्टियों सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एस पी डी), क्रिस्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सी डी यू) तथा फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफ डी पी) का अपना अपना चुनावी घोषणा पत्र है।
सरसरी निगाह से तीनों पर नज़र मारता हूं तो सभी ने खासे दिलकश और लुभाने वादे किये हैं। उस शाम सभी पत्रकारों ने अपना अपना परिचय देने में ही बिताई। मेरे साथ बांग्लादेश का पत्रकार हो लिया। जहां भी मैं जाता मेरे साथ या पीछे पीछे हो लेता। नाम मैं उसका भूल रहा हूं। मेरी गाइड के साथ वही चिपका खड़ा हुआ है।
अगले दिन सुबह एक प्रेस कांफ्रेंस हुई जिस में सभी आमंत्रित पत्रकारों के साथ स्थानीय पत्रकार भी शामिल हुए। जर्मन चुनाव प्रमुख ने चुनावी कार्यक्रम का विस्तृत ब्यौरा दिया। उसके बाद सवाल जवाब का सेशन चलता रहा। ज़्यादातर सवाल चुनावी व्यवस्था को लेकर थे या किन्हीं नेताओं के चुनाव न लडने या लड़ने को लेकर भी हुए।
चाय पर अनौपचारिक बातचीत में कुछ जर्मन पत्रकार भी मिले जो भारत रह आये थे या चुनाव के अवसर पर गए थे। उन्होंने बताया चुनाव तो मोटे तौर पर हर लोकतंत्री देश में एक जैसे होते हैं लेकिन चुनावी व्यवस्थाओं में फर्क होता है। उनका मानना था कि भारत और ब्रिटेन में सारा का सारा मतदान प्रत्यक्ष प्रणाली से होता है जबकि जर्मनी में दोहरी प्रणाली है अर्थात 50 फीसदी प्रत्यक्ष प्रणाली से औऱ 50 प्रतिशत अनुपाती प्रतिनिधित्व प्रणाली से। इस प्रणाली का लाभ यह है कि हर वोट का वजन औऱ कीमत होती है। यहां वही पार्टी या गठबंधन विजयी करार दिया जाएगा जिसे 50 फीसद वोट प्राप्त हुए होंगे और पांच प्रतिशत से कम मत पाने वाली पार्टी को संसद में जगह नहीं मिलेगी।
एक प्रश्न के उत्तर में उस जर्मन पत्रकार ने यह भी बताया कि आप लोगों को यह पेचीदा प्रणाली लग सकती है लेकिन हमारे लिए तो यही सच्ची और सही लोकतांत्रिक है। आप स्वयं अपनी आंखों से देख लेंगे कि वोटिंग खत्म होने के बाद कितनी जल्दी रिजल्ट आने शुरू जो जाते हैं। फिर हंसते हुए बोले हमें चुनावी नतीजों के लिए कई दिनों या हफ़्तों तक इंतजार नहीं करना पड़ता।
नतीजे आने के अगले ही दिन बहुमत वाली पार्टी प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी साथी पार्टी के नाम का ऐलान करने के साथ अपने एजेंडे की रूपरेखा भी बता देगी। फिर यह कहते हुए लेट्स हेव ए गिलास ऑफ बियर लेकर आगे बात करते हुए बोले, अभी अभी तो आप आये हो अपनी आंखों से चुनाव देखो औऱ मज़ा लो। मोटी मोटी बातें मैं ने आपको बता दी हैं। लगता था उसे फिर कुछ याद हो आया। बोला, जहां तक मेरी जानकारी है प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जर्मन चुनाव प्रणाली अपनाने का मन बना लिया था लेकिन उनकी अपनी जनता पार्टी ने ही उनका साथ नहीं दिया था।
बेशक़ इस जर्मन पत्रकार से प्राप्त जानकारी पूरा चुनावी परिदृश्य जानने के लिए काफी थी। उस प्रेस कांफ्रेंस में मैंने किसी दूसरे भारतीय पत्रकार को तलाशने की कोशिश की लेकिन कोई नहीं दीखा अलबत्ता जर्मन