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AJIT jogi.ki yaad me / shishir soni

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तब अजीत जोगी मुख्यमंत्री थे। मैं दैनिक भास्कर दिल्ली में विशेष संवाददाता था। मैंने एक खबर लिखी, "सीबीआई ने चार्जसीट किया तो जोगी का जाना तय..."खबर रायपुर लैंड करते ही मेरा मोबाइल बजा। शिशिर जी नमस्कार, जोगी साहेब बात करेंगे - नरेश कुमार की आवाज थी। नरेश तब जोगी के राजनीतिक सलाहकार थे। उसके बाद आवाज थी जोगी जी की - ये क्या लिखा है आपने। कौन सीबीआई मुझे चार्जसीट कर रही है और मैं कहाँ जा रहा हूँ ? आप इस खबर को रोकें। ये गलत खबर है। मैंने कहा खबर तो चली गई। रुक नहीं सकती। तब अजीत जोगी अपने रौ के नेता थे। अखबार के दफ्तर में भी उनके खबरी होते थे। तभी तो मेरी खबर छपने से पहले ही उन्हें पता चली।

श्यामाचरन शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल जैसे नेताओं को पानी पिलाकर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने थे। सोनिया गांधी से बेहद करीब रहे। इतने करीबी की मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद जोगी को सीधे सीएम बनाकर सोनिया गांधी ने उन्हे रायपुर भेज दिया था। वे चाहते तो सीधे भास्कर के चेयरमैन स्वर्गीय रमेश चंद अग्रवाल जी से बात कर सकते थे, लेकिन उन्होंने मुझे साधने के प्रयास में कुछ आड़ी तिरछी बात कर दी। मैंने फोन बंद कर दिया। उन्होंने बाद में रमेश जी को फोन मिलाया था क्या बात हुई मुझे आज तक नहीं पता, लेकिन वो खबर तब प्रमुखता से छपी थी। उसके बाद मेरे रिश्ते जोगी जी से खराब हो गए। दिल्ली आयें तो कोई बात मुलाकात नहीं। सब बन्द।

हमारे बीच बातचीत की शुरुआत रेणु भाभी ने कराई। जोगी जी की पत्नी डॉक्टर रेणु जोगी तब दिल्ली के अस्पताल में जोगी जी की सेवा में थी। जोगी जी का भारी सड़क एक्सिडेंट हुआ था। उसी के बाद वे व्हील चेयर पर रहे। बात मुलाकात बढ़ी। हमारी दोस्ती प्रगाढ़ हो गई। वे मुझे अच्छी तरह समझ गए। फिर खुल गए।    बेतकल्लुफ्फी से राजनीतिक, गैर राजनीतिक, पारिवारिक हर तरह की सलाह वो गाहे बगाहे लिया करते थे। सलाह मानते भी थे। मैं बिना लागलपेट के साफ साफ बात करता था, जो उन्हें अच्छा लगता था।

उन दिनों वीसी शुक्ल से उनकी ठनी हुई। राजनीति तक तो ठीक है मगर घर में इकलौते बेटे की शादी हो और वीसी शुक्ल जैसे कद्दावर नेता को न्यौता न जाए ये उपयुक्त नहीं, मैंने जोगी जी को बिना मांगे सलाह दिया। वे चौंके, पूछा आपको कैसे पता चला कि उनको न्यौता नहीं गया। जरूर गया होगा। मैंने कहा, नहीं गया मेरी शुक्ल जी से फोन पर बात हुई उनसे पूछा कि अमित की शादी में आप आ रहे हैं न... उन्होंने छूटते ही कहा, मुझे कार्ड किसने दिया? जोगी जी से इसे तुरंत correct करने को कहा। जोगी जी ने बात मानी। अगले दिन रेणु भाभी और अमित खुद कार्ड लेकर वीसी शुक्ल जी को सम्मान के साथ बुलाने गए। वो शादी में भी आये।

अभी ताबियत खराब होने और अस्पताल में भर्ती होने के पहले दो दिन तक बातें हुई। वे बेहद प्रसन्न थे। कुछ ही दिनों पहले कहा था मेरी उम्र चालीस के बाद ठहर गई है। मैं खुद के अंदर चालीस बरस सा ऊर्जा महसूस करता हूँ।

खैर, जोगी जी से मेरी आखिरी बात। उनकी सालों सेवा करने वाले उनके कई निजी सुरक्षाकर्मियों में से एक ने फोन कर कहा, साहेब बात करेंगे। फिर उधर से खनकती हुई आवाज आई, और शिशिर भाई सब ठीक है दिल्ली में? मैंने अपनी बेहतरीन आत्मकथा पूरी कर ली है। उसमें वो सब कुछ है जो अब तक किसी को नहीं पता। रेणु को भी नहीं। अब आप ये सलाह दीजिये की किस publication से छपवाया जाए? मैंने कहा, हिंदी और अंग्रेज़ी दोनो में penguine से छपवाया जायेगा। वो बोले वाह, बढ़िया सुझाव है। अभी प्रूफ रीडिंग चल रही है। उसके बाद सॉफ्ट कॉपी आपको भिजवाता हूँ। आप भी देख लेना। मैंने कहा बिल्कुल, बहुत बधाई आपको। मैंने चुटकी भी ली, मगर रेणु भाभी ने जो आप पर पुस्तक लिखी है उससे कम बिक्री होने दूंगा। वो ठठाकर हँसे। बोले लॉकडाउन खुलता है तब दिल्ली आता हूँ। मगर नियति को कुछ और मंजूर था। बार बार मौत से जीत कर लौटे योद्धा इस बार हार गए। अस्पताल से वापिस न लौट सके।

छत्तीसगढ़ के कण-कण में अजीत जोगी वर्षों तक अपने होने का एहसास कराएंगे।

जमीन से जुड़े इस नेता को मेरा सलाम

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