गांव से ही निकलेगा जीत का रास्ता
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अजीब खौफ था। सबकुछ बंद कर दिया गया। अच्छी बात है। हौले से हदस निकल रहा है। चरैवेति चरैवेति। कोरोना अब सम्हलकर जीना सीखा देगा। धीरे धीरे सब खुल रहा है। हम सामान्य जीवन की तरफ बढ रहे हैं।
इस दौरान मजदूरों के साथ सबसे अधिक अनर्थ हुआ। अंतहीन दुर्दशा की तस्वीरें विह्वल करती रहीं। सब कर्मयोगी थे। कांपता हृदय पुकारता रहा, कर्मयोगियों के साथ वक्त को न्याय करना चाहिए। मजदूरों की दारुण दशा सभ्यता को वर्षों रुलाती रहेगी। रोकर ही सही हमें सबक सिख लेना चाहिए।
खबर है कि मजदूरों की वापसी का रुझान खत्म हो रहा है। ज्यादातर जैसे तैसे गांव पहुंच गए। जो रास्ते में हैं, उनके सुरक्षित वापसी की कामना है। इनके जरिए गांवों तक शहर की एक से एक कहानियां पहुंच रही है। ज्यादातर दिल दहलाने वाली, तो कुछ ज्योति कुमारी जैसो की लोमहर्षक कहानियां भी हैं। जीत की ये कहानियां ही भविष्य की इबारत लिखेंगी।
कर्मयोगियों की कहानियों के तनाव के बीच बचपन में रटी एक कविता लब पर भिनी सी मुस्कान ले आई। गुनगुना रहा हूं। हो सके तो आप भी सुनिए - एक चिडिया के बच्चे चार। घर से निकले पंख पसार। उत्तर से दक्षिण हो आए। पूरब से पश्चिम हो आएं। घर लौटकर बोले। मां ! देख लिया जग सारा। सबसे अच्छा-सबसे उत्तम है घर हमारा।
इन कविता में हमारे सनातन संस्कार सन्निहित हैं। इसे भूलकर हम शहरों की भुलभुलैया में जा फंसे। अच्छा है, सामर्थ्यवान लोग गांव लौटे हैं। साथ में संकल्प लौटा है। खुद को आबाद करने का संकल्प। गांव को गरीबी से निकालने का संकल्प। इनकी सफलता की संभवना पर अभी सवाल नहीं। मजदूरों का गांव-घर सच में सबसे उत्तम साबित होने जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कहे मुताबिक भारत के भविष्य की इबारत अब गांव से लिखी जानी है। अगर ऐसा होता है, तो अद्भूत होगा। भारत में कुल 6.28,221 गांव हैं। इनमें से दो-चौथाई भी उठ खडे हुए। ये आत्मनिर्भर बनने की धुन में लग गए, तो गरीबी को घुन लगा देंगे। दुनिया का भविष्य भारत की मुट्ठी में होगा।
कोरोना विपदा से सबसे ज्यादाग्रस्त उत्तर प्रदेश रहा। उत्तर प्रदेश के लोग सदियों से दूर देश जाने और बसने के आदी हैं। उनमें से कई त्रिनिदाद, फिजी, सूरीनाम में बसकर रह गए। उनके पास वापसी का विकल्प नहीं था। पीढियों से मुंबई-दिल्ली-मद्रास-कोलकाता को आबाद करने में लगे उत्तर प्रदेश में 1.07,753 गांव हैं। इन गांवों में पहली बार लोग बड़ी संख्या में शहर देखकर लौट आए हैं।
अगर गांव लौटे ये लोग राज्य की अर्थव्यवस्था की ताकत बन गए, तो कल्पना कीजिए। नोएडा- ग्रेटर नोएडा की जरुरत कम हो जाएगी। क्या से क्या हो जाएगा। इसी तरह गरीबी की मार झेल रहे बिहार में 45,100, तो झारखंड में 32,623 गांव हैं। इनदोनों राज्यों की गांवों में महानगरों से भागकर सबसे ज्यादा लोग लौटे हैं। इनके पास शहरों की आबादी के कई गुण हैं। अपनी तरक्की के लिए उनका इस्तेमाल गांवों में होना है। आंध्र प्रदेश में 55,429 और महाराष्ट्र में 44,198 हैं। इनको सिर्फ मजदूर नहीं रहना है। अपने गांव की सूरत बदलनी है। इसके लिए सरकार को खड़ा रहना होगा।
उलट पलायन से इन हरेक गांव तक शहरों की कहानियां पहुंची है। उनके कथित विकास का सलीका पहुंचा है। जान बचाकर लौटते लाखों कर्मयोगियों ने एक एक पग पार करते हुए कुछ करने की जिद ठानी है। ऐसी ही जिद बंटवारे के समय पश्चिम पंजाब, सिंध , पूर्वी बंगाल और बलूचिस्तान से लौटे लोगों ने कभी ठानी थी। उसका असर हुआ। सत्तर साल का इतिहास है कि विकट हालत में फंसे ज्यादातर परिवारों की हालत में जमीन- आसमान का बदलाव आ गया।
इसबार यह जिद गांव में रहने की है। गांव में फिर से बसने की है। जिद की चली तो गांव आबाद होगा। उसे विकसित होने से कोई रोक नहीं सकेगा। नकारात्मक बात करें तब भी इनमें से सब न सही कुछ ही अपनी जिद पर अमल करने में सफल हुए, तो यह कोरोना गांवों के लिए उपहार बन जाएगा।
वैसे भी गांव के उदय के मिसाल की कमी नहीं है। देश में अन्ना हजारे के रालेगन सिद्धि से लेकर बहुतेरे तपस्वियों के गांव हैं। वहां के मजदूरों ने तप से तस्वीर बदल दी है। गांव को स्वावलंबी बनाया है। जाहिर है शहरी हवा पानी पीकर लौटे मजदूरों में व्यापार और पेशेवर कामकाज के तरीकों की खास सुध होगी। यह गांव को आत्मनिर्भर बनने में रोल मॉडल बन सकता है।
ऐसा नहीं कि सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। पत्रकार के धर्म का पालक हूं। जब तब आलोचना के हथियार पर शान चढाए रहना पसंद है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कभी गांव, गरीब और मजदूर के दर्द की बात करते हैं, तो मुझ जैसे अखझ को भी लुभा लेते हैं। तब लगता है कि चलो, कोई तो है जो पूंजीपतियों की निर्मम कैद में फंसे लोगों को बचाने की सोचता है। खुलकर बोलता है। उस दिशा में पहल करते हुए नजर आ रहा होता है।
प्रधानमंत्री ने हाल ही में कोरोना की परेशानियों के पार मजबूती खडे होने के लिए आत्मनिर्भर भारत की बात की है। इसके लिए उन्होंने गांव के विकास को मूलभूत जरुरत के रुप में परिभाषित किया है। इसके लिए एकीकृत ‘ई-ग्राम स्वराज पोर्टल एवं मोबाइल एप’ और ‘स्वामित्व योजना’ का शुभारंभ किया है।
‘ई-ग्राम स्वराज’ पोर्टल औऱ एप ग्राम पंचायत के डिजिटलीकरण में महती भूमिका निभाएगा। अगर सरकार की चली। अंबानी जैसों के जिओ की नजर से बचे, तो यह एप गांवों के विकास योजनाओं को तैयार करने और कार्यान्वयन में मदद करेगा। यह पोर्टल विकास योजनाओं के समय पर पूरा होने की निगरानी और संबंधित अधिकारी की जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।
श्री नरेन्द्र मोदी का दावा है, ‘पिछले पांच वर्षों में लगभग 1.25 लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड के माध्यम से जोड़ा गया है, जबकि पहले यह संख्या मात्र 100 ही थी। इसी तरह साझा सेवा केंद्रों (कॉमन सर्विस सेंटर) की संख्या 3 लाख का आंकड़ा पार कर गई है।
दावे की सत्यता को पत्रकारीय मापदंड पर कसा जाना बाकी हैं। फिर भी गांवों से जुड़े ये आंकडे सुहावने हैं। प्रधानमंत्री ने सच ही कहा है, भारत का भविष्य संवरेगा। गरीबी का अभिशाप मिटेगा। पंचायतों की प्रगति से राष्ट्र और लोकतंत्र की तरक्की सुनिश्चित होगी।