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रवि अरोड़ा की नजर me.......






कोरोना मईया की जय

रवि अरोडा


उन दिनो मेरी उम्र आठ या दस साल रही होगी कि अचानक एक दिन तेज़ बुखार आ गया । अगले दिन तक शरीर पर कुछ दाने भी निकल आये । मुझे देखने आई पड़ौस की एक मौसी ने बताया कि बच्चे को माता आई है । उन्ही की सलाह पर मुझे डाक्टर को नहीं दिखाया गया और अगले पाँच-सात दिन मेरे तड़पते और शरीर खुजाते हुए ही गुज़रे । शरीर पर कोई कपड़ा पहन नहीं सकता था अतः सारा सारा दिन नंगे बदन एक कोने में बैठा रहता था । एक हफ़्ते बाद अचानक घर में उत्सव जैसा माहौल दिखाई दिया । पता चला कि मेरी माँ ने शीतला माता का व्रत रखा हुआ है और आज शाम को उसके समापन पर आस पड़ौस में पकवान बना कर भेजे जाएँगे । माँ ने बताया कि यह सब मेरे लिए ही किया जा रहा है और आज के बाद मेरे शरीर पर उग आये फफोले सूख जाएँगे और मैं ठीक हो जाऊँगा । इत्तफ़ाक़ देखिये कि दो चार दिन बाद मैं ठीक भी हो गया । बस फिर क्या था । मेरे बाद सभी छोटे बहन भाइयों को माता और छोटी माता हुई और हर बार पूरी यही प्रक्रिया दोहराई गई । आज जब पता चलता है देश के गाँव देहात में कोरोना माई के व्रत रखे जा रहे हैं और महिलायें सामूहिक रूप से माई के गीत गा रही हैं तो अपने बचपन के दिन याद आते हैं । मेरी माँ , मौसियाँ और बुआएँ भी तो हर जानी अनजानी मुसीबत से इसी विश्वास के ज़रिये ही निपटती थीं । बेशक उनका यह विश्वास मेरी पीढ़ी का जीवन ख़तरे में डाल देता था मगर यह मुल्क तो सदियों से यूँ ही चलता आया है और पता नहीं कब तक एसे ही चलेगा ।

हालाँकि नौवें दशक में माता यानि चिकन पॉक्स व छोटी माता अर्थात मिज़ल्स का टीका विकसित हो गया और उसके बाद जन्मे बच्चों को उसका बूस्टर इंजेक्शन भी लगने लगा मगर हमारी पीढ़ी तो इस जानलेवा ख़तरे से टोटकों के सहारे ही बाहर आई । आज सारी दुनिया जानती है कि चिकन पॉक्स कोई माता वाता नहीं वरन वेरीसेल्ला जोस्टर वायरस है और अचानक गर्मी बढ़ने से उत्पन्न होता है तथा यह भी थूक, खाँसी और छींक के माध्यम से एक से दूसरे में फैलता है । बेशक हमारे दौर की माँओं ने इसे बेहद हल्के से लिया मगर आम तौर पर दो से दस साल तक की उम्र के बच्चों में फैलने वाला यह वायरस जान लेवा भी हो सकता है । देश भर में सालाना न जाने कितने बच्चों की इससे मौत होती है ।

भारतीय मानस को समझ सकूँ इतनी बुद्धि मुझमे नहीं है । मुझे तो बस इतना पता है कि भय दूर करने के लिये हम अनजाने सहयोगी गढ़ लेते हैं । अपने तमाम देवी देवता हमने यूँ ही तैयार किये हैं । फ़लाँ मुसीबत है तो फ़लाँ देवता और फ़लाँ समस्या है तो फ़लाँ देवी । बादलों में भी शक्लें ढूँढने वाले हम लोग पैटर्न बनाने में सिद्धस्त हैं । अज्ञानता का विकल्प हमने इन्हीं पैटर्न को बनाना सीख लिया है । यही वजह है कि तमाम भूत-प्रेत अनपढ़ों और ग़रीबों के ही दिमाग़ पर क़ब्ज़ा करते हैं । यही हमने चिकन पॉक्स के साथ किया था । हमें जब लगा कि गर्मी से यह दाने शरीर पर पड़ते हैं तो हमने गर्मी के विलोम शीतलता के नाम पर ही शीतला माता गढ़ ली और लगे हाथ उसे दुर्गा का रूप भी बता दिया । कोई बड़ी बात नहीं कि भारतीय मानस अब कोरोना के साथ भी यही करे ।

अख़बार में छपा कि पलामू में क़ोरोना माई का व्रत रखने से वैजयन्ती देवी नाम की एक चालीस वर्षीय महिला की मौत हो गई । कोरोना माई के गीत गाती महिलायें तो सोशल मीडिया पर मँडरा ही रही है । छठ पूजा जैसे साजो सामान के साथ भव्य पूजन भी टीवी पर दिखाया जा रहा है । बस कुछ दिन और इंतज़ार कीजिये कोरोना माई मेरे और आपके मोहल्ले में भी पूजी जाती दिखेगी । कोई समाज जो हर मुसीबत के पीछे ईश्वर का कुपित होना और हर समस्या का समाधान ईश्वर को मनाने में ही ढूंढ़ता हो तो उसमें कोरोना को माई तो बना ही दिया जाएगा। जो समाज समस्या के आरम्भ और उसके समाधान में अपनी कोई भूमिका तय ही न करता हो वहाँ कोरोना जैसी माई का पूजा जाना भी तो लाज़िमी ही है । तो चलिये हम सब भी मिल कर जयकारा लगायें-कोरोना मईया की जय ।





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