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गीतकार भरत व्यास को याद करतें हुए / रत्न भूषण

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चलते चलते...

जरा सामने तो आओ छलिये...

अच्छा होगा कि हम पहले गीतकार पंडित भरत व्यास के लिखे कुछ सदाबहार फिल्मी गीतों के बारे में जान लें, इससे आगे की बात और उनके कद को समझने में आसानी होगी...
ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हों हमारे करम..., फ़िल्म-दो आंखें बारह हाथ।
आ लौट के आ जा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं..., फ़िल्म- रानी रूपमती।
आधा है चंद्रमा रात आधी रह न जाए तेरी मेरी बात आधी... , फ़िल्म-नवरंग।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो..., फ़िल्म-संत ज्ञानेश्वर।
तन के तम्बूरे में दो सांसों की तार बोले जय सियाराम राम..., फ़िल्म-जनम जनम के फेरे।
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार..., फ़िल्म-बूंद जो बन गयी मोती।
सारंगा तेरी याद में नैन हुए बेचैन..., फ़िल्म-सारंगा।
जीवन में पिया तेरा साथ रहे हाथों में तेरे मेरा हाथ रहे..., फ़िल्म-गूंज उठी शहनाई।
हम इन गीतों के अलावा एक गीत और बता देते हैं, जो फ़िल्म जनम जनम के फेरे का है और उसके बोल हैं जरा सामने तो आओ चलिए, छुप छुप छलने में क्या राज है...। यह गीत भी बेहद सुरीला और मुग्ध करने वाला है। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत और श्रवणीय हो गया है।
फ़िल्म जनम जनम के फेरे आई थी सन 1957 में। यह एक भक्ति फ़िल्म थी, जिसमें काम किया था बी एम व्यास, निरुपा राय, मनहर देसाई, एस एन त्रिपाठी, लीला मिश्रा, अमर पांडेय, सतीश व्यास, कांता कुमारी, महिपाल, कृष्ण कुमारी, चंपकलाल, मलय सरकार आदि ने। कहानी कुछ इस प्रकार है। एक निःसंतान, धार्मिक जोड़ा खुश हो जाता है, जब ईश्वर उनकी प्रार्थना सुनते हैं और उसे एक पुत्र, रघु की प्राप्ती होती है। दोनों माता-पिता बन जाते हैं, लेकिन रघु बड़ा होकर नास्तिक हो जाता है। इस म्यूजिकल हिट फिल्म के निर्माता सुभाष देसाई थे, जो मनमोहन देसाई के बड़े भाई थे। फ़िल्म का पूरा नाम जनम जनम के फेरे यानी सती अन्नपूर्णा था। इसे निर्देशित किया था मन्नू देसाई ने। संगीत एस एन त्रिपाठी का था।
इस फिल्म के गीत लिखे गए और रिकॉर्ड भी हुए। जनम जनम के फेरे, इनसे ना कोई बचे रे..., तू है या नहीं भगवान..., तन के तम्बूरे में दो सांसों के तार बोले..., रंगबिरंगे फूलों की झूमे रे डालियां... आदि गीत, लेकिन जब फ़िल्म को लेकर बैठक हुई तो इसकी पटकथा लिखने वाले मन्नू देसाई, जो निर्देशक भी थे, ने सिचुएशन के हिसाब से एक और गीत रखने की बात की तो संगीतकार एस एन त्रिपाठी ने कहा, आप जाकर व्यास जी को सिचुएशन समझा दीजिये। वे लिख देंगे।
मन्नू देसाई जब भरत व्यास के घर पहुंचे, तो वहां का माहौल उन्हें कुछ ठीक नहीं लगा। औपचारिक बात होने के बाद व्यास जी ने ही पूछा, बताइए क्या काम आ गया? देसाई ने कहा कि कहानी में जहां दोनों पति पत्नी एक दूसरे की तलाश में हैं, वहां के लिए एक गीत की जरूरत है जिसका भाव यह हो कि मेरे लिए हे भगवान तुम कहां छिपे हो। कुछ करो हमारे लिए। यह लुका छिपी का खेल क्यों कर रहे हो?
देसाई की बात सुनने के बाद व्यास जी ने रूखे अंदाज़ में कहा, मैं कोई गीत नहीं लिखूंगा। जो है उसी से काम चलाइये।
लेकिन यह सिचुएशन के हिसाब से जरूरी है? देसाई ने कहा, यह सुनते ही भरत व्यास गुस्से में लाल हो गए और उन्हें तुरंत वहां से जाने को कहा और निकल गए कमरे से बाहर।
देसाई कुछ समझ नहीं पाए, फिर वह उठने को हुए, तभी उनकी पत्नी ने उन से कहा, आप अभी जाइए, वे कुछ वजह से परेशान हैं। आप शाम में गीत ले जाइयेगा।
देसाई ने उनकी बात सुनी और निकल गए।
शाम में भरत व्यास ने गीत लिख दिया, जिसके बोल थे, जरा सामने तो आओ छलिये, छुप छुप छलने में क्या राज़ है, यूं छुप ना सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की ये आवाज़ है...
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो
ऐसा कभी ना हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ के
सुख से कभी ना सो सकता
हमें डरने की जग में क्या बात है
जब हाथ में तिहारे मेरी लाज है
यूं छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है...
इस पूरे गीत को संगीतकार एस एन त्रिपाठी ने धुन में पिरोया और लता मंगेशकर और रफी से गवाया। फिर इस गीत की शूटिंग हुई। वैसे तो फ़िल्म के सभी गीतों को लोगों ने पसंद किया, लेकिन जो सर्वाधिक सुना जाने वाला गीत था, वह था, ज़रा सामने तो आओ छलिये...। इस गीत ने उस वर्ष बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
अब वह बात कि आखिर मन्नू देसाई के साथ भरत व्यास ने ऐसा व्यवहार क्यों किया? ऐसा करने की वजह क्या थी? वजह यह थी कि उनके पुत्र ने बोर्ड की परीक्षा दी थी, जिसमें परिणाम संतोषजनक नहीं आया था, इसलिए वे उस पर गुस्सा हुए और डांटा था। यह क्रम कुछ दिनों से चल रहा था, तो एक दिन लड़का घर से भाग गया और महीनों नहीं आया। वे हर जगह पूछ कर थक गए, लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चला। इस कारण उनका मूड ठीक नहीं रहता था। सच तो यह था कि तब वे लड़के को लेकर व्याकुल रहने लगे थे। उनके मन की व्यथा को गीत को पूरा पढ़ या सुनकर समझा जा सकता है, तो इस तरह इस सदाबहार गीत की रचना हुई...
-रतन

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