चीन हमारा पड़ोसी था, है और रहेगा। इसको कोई बदल नहीं सकता। अगर कोई नया PM बनता है, और बहुत उम्मीद के साथ उस पड़ोसी देश के साथ विरासत में मिले जटिल बॉर्डर विवाद को सुलझाने के लिए बारबार दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, मुलाकातें करता है, परंपरा से हट कर स्वागत करता है, तो वह बुरा क्या करता है! अगर इन सबके बावजूद वह इतनी नापाक हरकत करता है, तो दोष उस पड़ोसी शासनाध्यक्ष में है। जिसने प्रयास किया उसमें नहीं। कोई भी व्यक्ति सफलता की उम्मीद के साथ ही दोस्ती के हाथ बढ़ाता है। कामयाबी मिलना और न मिलना भविष्य के गर्त में होता है। यह पहले कहाँ पता होता है कि उसके द्वारा किये जा रहे वे प्रयास फ़लीभूत होंगे कि नहीं। यह तो दूसरे पक्ष के भीतर की सोच पर भी निर्भर करता है। वहीं अगर कामयाबी मिल गयी होती तो शायद ये सवाल न उठते। वैसे भी डिप्लोमेसी का कोई निर्धारित खाँचा नहीं होता। और अगर यह मान भी लिया जाय कि उसके निर्धारित मानदंड होते हैं, तो पूर्ववर्ती सरकारों ने उन मानदंडों का पालन करते हुए भी चीन से सीमा विवाद सुलझाने में कौन सी कामयाबी पाई ! मोदी प्रयोगधर्मी हैं और यह बुरा भी नहीं है। वक्त के साथ डिप्लोमेसी के तौर -तरीकों में देश-दुनिया में बराबर परिवर्तन होते रहे हैं।
प्रयास का नतीजा किसी को पता होता है क्या ? प्रयास महत्वपूर्ण होता है। सेनाएं लड़ती हैं, एक जीतता है- एक हारता है। हारने वाले को पता होता है क्या ? नेहरू को पता था क्या ? वह भी गए थे चीन। हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे थे। फिर क्या हुआ ? 1962 का युद्ध और उसी के गम में बेचारे 1964 में स्वर्ग सिधार गए। उन्होंने चीन पर भरोसा किया, तो क्या बुरा किया। अपने वक्त में उन्होंने भी देश की भलाई के लिए ही दोस्ती की पींगे बढ़ाने की कोशिश की। कोई उसकी भी आलोचना कैसे कर सकता है।
हमें यह भी बराबर याद रखना चाहिए कि हम कभी भी पड़ोसी चेंज नहीं कर सकते। अपनी आर्म्ड फोर्सेज को उसके मुकाबले खड़ा करने की लगातार कोशिश करना और बातचीत के जरिए सीमा विवाद का स्थायी समाधान ढूढ़ने के लिए हद से आगे जाकर अगर मोदी ने प्रयास किया है, तो यह कहीं भी देश की गौरवशाली परंपरा के खिलाफ नहीं है। दोनों काम लगातार जारी रहने चाहिए ही, जब तक सफलता न मिल जाए। मित्रता का हाथ बढ़ाने का मतलब यह कदापि नहीं कि LAC पर हमने सैनिकों के हाथ बाँध दिए है। आलोचना करने वाले लोगों को हमारी सेना द्वारा 44 दिन से LAC पर मुकाबिल खड़े ही नहीं रहने, बल्कि आगे बढ़ आए चीनियों को पीछे ढकेल कर शहादत प्राप्त करने की घटना से भी समझ लेना चाहिए, जिसमें दुश्मन देश के 43 सैनिकों के मारे जाने की भी खबर विदेशी मीडिया ने दी है।
जय हिंद।