जीवन का मध्यान्ह अंगड़ाइयां ले रहा था। मेरी तमाम खूबियों और खामियों के साथ दिल्ली का कुरुक्षेत्र मेरे आगत की प्रतीक्षा में था। ...जब जब सूर्य अपने शबाब में होता है तब तब मेरे इर्द गिर्द एक बवंडर उठता है , जो मुझे अपनी झकोर के साथ अचीन्हें अजाने कुरुक्षेत्र के बीच निहत्थे ला खड़ा करता है , ऐसा कई कई बार हुआ है।
यह 1989 का अप्रैल माह था , तारीख़ भी शायद 22 -23 अप्रैल रही होगी। मैं बांदा के अपने साथी विवेक सिंह के साथ शाम के समय दैनिक वीर अर्जुन के संपादक श्री अनिल नरेंद्र के साथ था। मकसद था , झांसी के भास्कर अखबार के प्रोप्राइटर श्री महेश अग्रवाल जी के लिए एक 16 पेज के अख़बार की प्रिंटिंग आदि का कोटेशन लेना।
...यह सब चल ही रहा था कि बात दैनिक वीर अर्जुन के इतिहास और वर्तमान की चल पड़ी। ...मैंने कहा , जहां अटल बिहारी वाजपेई जैसे विद्वान सम्पादक रह चुके हों आपके पिताश्री के नरेंद्र जी जैसे तेजस्वी संपादक हों। ...आप जैसे युवा संकल्पशील योजनाकार और अखबार के वाहक हों , राजीव गांधी जैसे जिनके मित्र हों। ...बात क्या है ... 'वीर अर्जुन 'में वह रौनक नहीं !
-क्या बताएं यहां ज़िम्मेदार, लगनशील , अच्छे आदमी नहीं मिलते।
- ज़िम्मेदार, लगनशील , अच्छा आदमी आप के सामने है !
- आप इन्स्ट्रैटेड हैं क्या ?
- अपना तो काम ही यही है।
समय की एक झकोर ने 1 मई 1989 से वीर अर्जुन के साथ गाँठ बाँध दी। शुरूआती दिन नार्थ एवेन्यू में बीते , वहीं डेरा पड़ा। बांदा के सांसद भीष्मदेव दुबे जी के यहां। यहां अरुण खरे पहले से थे। हम लोग गणेश गुप्त की अगुआई में यहां डटे थे। दुबे जी बड़े सज्जन थे। फिर भी जो ऊंच नीच होती हम लोग लीडर गणेश को ही बनाये रखते थे।
यह विश्वास के घात प्रतिघात का दौर था
समय की मथानी दिल्ली जी राजनीति को बड़े प्रेम से मथ रही थी। पांच साल पहले 1984 में रिकॉर्ड तोड़ सफलता पाने वाली कांग्रेस 1989 में औंधे मुंह आ गिरेगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। 1977 में पहली बार विपक्ष ने एक होकर कांग्रेस को सत्ता से उतारा था और 1989 में भी फिर से वही प्रयोग हुआ और एक बार फिर कांग्रेस सत्ता से विमुख हो गई।
विश्वनाथ प्रताप सिंह जो 1988 में राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री थे। उनके पॉलिटिकल मूव ने तत्कालीन राजनीति का नक्शा ही बदल दिया। राजीव गांधी ने जैसे ही उनका विभाग बदला, उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया और बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का आरोप लगा दिया। इस आरोप की आग इतनी तेजी से फैली कि कांग्रेस के पास उस पर काबू पाने का कोई साधन ही नहीं था। इस बीच, सिंह ने विपक्षी दलों को एक करने का काम अंजाम दिया। जनता पार्टी, लोकदल (अ) और लोकदल (ब) ने मिलकर जनता दल का गठन कर लिया और फिर कई अन्य दलों को मिलाकर राष्ट्रीय मोर्चा गठित कर लिया गया। मोर्चे का बीजेपी के साथ कुछ सीटों का तालमेल भी हुआ। कम्युनिस्ट पार्टियों की हमदर्दी भी मोर्चे के साथ ही थी और देखते ही देखते पूरा विपक्ष एकजुट हो गया।
चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस को 197 सीटें मिलीं लेकिन राजीव गांधी ने यह कहकर सरकार बनाने से इनकार कर दिया कि हमें विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है।
साल 1989 में देश में नौवां लोकसभा चुनाव संपन्न हुआ। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन, सरकार बनाने की जगह पार्टी ने विपक्ष में बैठने की ठानी। विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के दसवें प्रधानमंत्री बनें। ये ही भारत में गठबंधन सरकारों के दौर की शुरुआत थी। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में बैठे। बोफोर्स घोटाले से लेकर एलटीटीई और श्रीलंका सरकार के बीच गृह युद्ध तक कई मोर्च पर राजीव सरकार बुरी तरह से घिर चुकी थी। सरकार में वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने वाले वीपी सिंह ही राजीव गांधी के कट्टर आलोचन बनकर उभरे। 1989 में दो चरण में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए। लोकसभा की 525 सीटों के लिए 22 नवंबर और 26 नवंबर 1989 को मतदान हुआ।
कांग्रेस को रोकने के लिए पहली बार लेफ्ट के साथ आई थी भाजपा
किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इसी के साथ पहली बार देश में कांग्रेस का एकछत्र राज टूटा। राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को सरकार बनाने के न्योता दिया। लेकिन कांग्रेस ने विपक्ष में बैठने का फैसला लिया। जनता दल और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की मदद से नेशनल फ्रंट की सरकार बनी। वी पी सिंह प्रधानमंत्री चुने गए। यह पहली बार था जब कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए विचारों की विविधता के बावजूद भी दक्षिणपंथी पार्टी भाजपा और वामपंथी पार्टियां एक साथ आई थी। लेफ्ट और भाजपा ने नेशनल फ्रंट सरकार को बाहर से समर्थन दिया। इसी के साथ गठबंधन सरकारों का लंबा दौर शुरु हुआ जो कि साल 2014 में मोदी लहर की बदौलत टूटा।
राष्ट्रीय मोर्च के सबसे बड़े घटक जनता दल ने चुनाव में 143 सीटें जीतीं। कांग्रेस के खाते में 197 सीटें आईं। भारतीय जनता पार्टी ने 85 सीटें जीतीं। माकपा और भाकपा ने क्रमशः 33 और 12 सीटें जीतीं। निर्दलीय और दूसरे छोटे दलों ने 59 सीटें जीतीं। भारतीय सोशलिस्ट कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक सीट आई। जनता पार्टी की जमानत जब्त हो गई। ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने तीन सीटें जीतीं। वीपी सिंह प्रधानमंत्री और देवीलाल उपप्रधानमंत्री बनें। वीपी सिंह मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके पिछड़े वर्गों के मसीहा बन गए।
इस चुनाव में कांग्रेस की तरफ से 502 प्रत्याशी मैदान में थे। जबकि जनता दल ने 241 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था। भारतीय जनता पार्टी ने 224 प्रत्याशियों को टिकट दिया था। सीपीएम ने 62 उम्मीदवार और सीपीआई ने 54 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।
भाजपा का भारतीय राजनीति में उभार था 1989 का चुनाव
नौवां लोकसभा चुनाव सही मायने में भारतीय राजनीती में भाजपा का उभार था। 1984 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई थी, वहीं इस चुनाव में पार्टी के खाते में 85 सीटें आईं थी। इस चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी ने पहली बार नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की । हालांकि, वीपी सिंह की सरकार ज्यादा लंबी नहीं चली और गठबंधन की राजनीति देश को स्थिर सरकार देने में नाकाम रहीं। 11 महीने में ही वीपी सिंह के नेतृत्व वाली नेशनल फ्रंट की मिलीजुली सरकार ने सदन में विश्वास मत खो दिया और वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।
दिल्ली की बहरूपिया संस्कृति और राजनीतिक चाल चलन के हालचाल जानने से पहले अपने क्रीड़ास्थल यानी ' 1989 के वीर अर्जुन 'के हाव भाव , संस्कार , सरोकार , नायक प्रतिनायक ...यस सर , नो सर , थैंक यू सर के पेचोख़म को समझना जरूरी हैं। इससे पहले क्रीड़ास्थल और टीम संरचना को जान लेते हैं -
-दैनिक वीर अर्जुन
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प्लेइंग कैप्टन --अनिल नरेंद्र
टीम -इंद्रदेव अवस्थी,नवोदित,सुरेंद्र कुमार अरुण खरे,सीमा किरण,रोहन सिंह ,अनीश अहमद खान ,असरार खान , रमेश खन्ना , अश्वनी कुमार भारद्वाज , लोकेश शर्मा , कृष्णदेव पाठक हामिद अली, संजय बोरा, रमाशंकर , विश्वभर शुक्ल अब्बास,रामेश्वर ,पुरुषोत्तम बज्र ,रमेश राजपूत ,बी के जैन , तेजा ,पंडित जी...
....याद कर के सभी शूरवीरों के नाम आएंगे , डेस्क ,रिपोर्टिंग अंदर बाहर कोई छूटेगा नहीं। सब का सम्मान के साथ चरित्र चित्रण होगा। वादा है।
पूरा वृत्तांत जल्द ही आप की सेवा में /...मेरे आसपास के लोग किताब का अंश