दिल्ली में P U.Camp College से 1959 में बी.ए.(ऑनर्स) राजनीति में पास होने के बाद डिग्री लेने के लिए पूर्वी पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ गया जहां पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति श्री एन. वी.गाडगिल के करकमलों से डिग्री प्राप्त कर बेहद खुशी हुई। तब उपकुलपति थे श्री ए .सी.अग्निहोत्री। एन. वी. गाडगिल कुलपति के साथ साथ पंजाब के राज्यपाल भी थे। चंडीगढ़ पूरी तरह निर्मित नहीं हुआ था। महत्वपूर्ण सरकारी भवनों के अलावा कुछ सेक्टर ही कार्यरत था। बेशक़ शहर था बहुत खूबसूरत। है तो अब भी लेकिन वह बुनियादी और शुरुआती सौंदर्य कहां।
पूर्वी पंजाब मैंने इसलिए लिखा क्योंकि पूरा पंजाब तो दिल्ली से लेकर अटक दरिया तक हुआ करता था। 1947 में विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब तो पाकिस्तान के पास चला गया यानी वाघा बॉर्डर से लेकर अटक दरिया तक। जिन पांच नदियों सतलुज,ब्यास, रावी, ,चिनाब और झेलम से युक्त पंजाब हुआ करता था उसकी दो नदियां भी उसके कब्जे में चली गईं। अब हमारे पास जो पंजाब बचा था वह वाघा बॉर्डर से दिल्ली की सीमा तक था। वाघा गांव दोनों तरफ है। मैंने दोनों वाघा देखे हैं। कुछ बरसों बाद हमारे यहां पंजाबी सूबा को लेकर आन्दोलन शुरू हो गया और अकाली नेता संत फतेह सिंह ने पहले और मास्टर तारा सिंह ने बाद में अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आमरण अनशन कर आत्मदाह की धमकी दे दी। ऐसी स्थिति को टालने के लिए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकम सिंह की सहायता ली गयी। एक संसदीय समिति गठित की गई जिस की सिफारिशों के आधार पर पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब राज्य बनाया गया तथा हिंदी भाषी क्षेत्र को नया राज्य हरियाणा का नाम दिया गया। 1 नवंबर, 1966 को हरियाणा एक अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया। उसके बाद पंजाब के आगे से पूर्वी शब्द हट गया।