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वह लाजवाब स्पिनर
पता नहीं कि दिल्ली क्रिकेट को चलाने वालों ने फिरोजशाह कोटला में राजेन्द्र गोयल की स्मृति में कोई शोक सभा आयोजित की या नहीं,पर दिल्ली क्रिकेट में उनके साथ खेले या सहयोगी रहे कोच गुरुचरण सिंह और कमेंटेटर रवि चतुर्वेदी रोहतक जा रहे है उनके परिवार के साथ संवेदना व्यक्त करने के लिए। ये सबको पता है कि बुद्ध की तरह शांत स्वभाव के राजेन्द्र गोयल ने रणजी ट्राफी में सबसे ज्यादा विकेट चटकाई थीं। पर ये कम लोगों को मालूम है कि खब्बू ऑफ स्पिनर राजेन्द्र गोयल ने दस साल तक दिल्ली की रणजी ट्रॉफी में नुमाइंदगी की थी। 1963-64 से 1973-74 तक। राजेन्द्र गोयल की गेंदों पर रन बनाना बच्चों का खेल नहीं था, उनकी धुनाई करने का तो सवाल ही नहीं होता। वे बल्लेबाजों को हमेशा बांधकर रखते थे। उनका गेंदों पर नियंत्रण कमाल का होता था। वे पहली बाल से लाइन और लेंथ पकड़ लिया करते थे।
चूंकि उन्हें स्टेट बैंक ने नौकरी दे दी थी,इसलिए वे यहां पर ही शिफ्ट कर गए थे। इसलिए राजेन्द्र गोयल दिल्ली से खेलने लगे। तब तक दिल्ली टीम में बिशन सिंह बेदी भी आ गए थे। दोनों खब्बू स्पिनर और दोनों अपनी कला के उस्ताद। लेकिन विकेट लेने में बेदी से आगे ही रहते थे गोयल। माफ करें तटस्थ क्रिकेट समीक्षकों का तो यहां तक कहना है कि वे बेदी से बेहतर थे। बेदी की पिटाई कसकर होती थी। गोयल को पीटने के लिए बल्लेबाजों को तकनीकी रूप से बहुत सक्षम होना होता था।
पर क्रिकेट मैदान से बाहर भी एक खेल साठ और सत्तर के दशकों में दिल्ली क्रिकेट के बेताज बादशाह राम प्रकाश मेहरा के निगरानी में चलता था। उन्हें लाटू शाह कहते थे। वे लाहौर से दिल्ली में आकर बसे थे। उन्होंने पंजाब में खूब क्रिकेट खेली भी थी। पदौदी हाउस में रहा करते थे। कहने वाले कहते हैं कि उनके दिल्ली क्रिकेट पर नियंत्रण करते ही पंजाबी पृष्ठभूमि के खिलाड़ियों को तरजीह मिलने लगी। गैर-पंजाबी खिलाड़ी अपने को अलग-थलग महसूस करने लगे।
इसी के चलते मंसूर अली खान पटौदी जैसा भारतीय क्रिकेट का बड़ा स्टार दिल्ली को छोड़कर हैदराबाद चला गया। पदौदी दिल्ली के कप्तान थे। वे हैदराबाद से हमेशा बतौर खिलाड़ी ही खेले। उनका भी राम प्रकाश मेहरा से पंगा रहने लगा था। वे एक बार यहां से गए तो फिर उन्होंने दिल्ली क्रिकेट का मुंह नहीं देखा। वे हैदराबाद कीटीम से अपने मित्र एम.एल.जयसिम्हा की कप्तानी में खुशी-खुशी खेलते रहे। वहां उन्हें अपने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मित्र और भारतीय टीम के साथी अब्बास अली बेग भी मिल गए।
पदौदी के बाद हिन्दू कॉलेज के छात्र रहे शानदार बल्लेबाज रमेश सक्सेना ने भी दिल्ली को अलविदा कह कर बिहार का रुख कर लिया। वे भारतीय टीम से 1967 मेें खेले। और फिर दिल्ली क्रिकेट में बढ़ती सियासत से परेशान राजेन्द्र गोयल ने हरियाणा से रणजी ट्रॉफी खेलने का मन बना लिया। इस तरह दिल्ली क्रिकेट के फैन एक बेहतरीन गेंदबाज की गेंदबाजी को देखने से वंचित रह गए। कोई उन्हें तब रोक लेता।