Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

भूटान की फुटानी / ऋषभ देव शर्मा

$
0
0



संपादकीय

भूटान : पानी पर पाबंदी!

भारत और भूटान के रिश्तों पर असर डालने वाली यह खबर काफी चिंताजनक रही  कि कोरोना संक्रमण का तर्कहीन आधार लेकर भूटान अपने देश से भारत के असम राज्य में आने वाले पानी को रोक रहा है। इससे इलाके के हजारों किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती थी। लेकिन यह सुखद है कि अंततः दोनों पक्षों ने इसका खंडन कर दिया है और अब स्थिति सामान्य है। लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि यह समस्या असल में क्या थी।

 उल्लेखनीय है कि अब तक भारत और भूटान के रिश्ते बेहद सद्भाव और आत्मीयता पूर्ण रहे हैं। लेकिन इस खबर से उन पर  भी खतरे का मानसून मँडराता दिखने लगा था।

असम के बक्सा जिले के किसान जाने कब से फसल बुवाई के मौसम में कालानदी के पानी पर निर्भर रहे हैं। वे शायद कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि कभी उन्हें ऐसा दिन देखना पड़ेगा कि भूटान उन्हें इस पानी से वंचित कर दे। लेकिन अचानक यह खबर आई  कि कोविड-19 के संक्रमण के भय के हवाले से भूटान सरकार ने देश के भीतर 'बाहरी'लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा है। साथ ही, भारतीय किसानों को भूटान से निकलने वाली नदियों के पानी का इस्तेमाल करने से रोक दिया है। ऊपर से देखने पर यह बहुत छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन इसके असर की गहराई का अनुमान लगाने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि असम में बक्सा जिले के 26 से ज्यादा गाँवोँ के 6,000 से ज्यादा किसान सिंचाई के लिए भूटान से आए वाले पानी पर ही निर्भर हैं। आज नहीं, बल्कि 1953  से स्थानीय किसान अपने धान के खेतों की सिंचाई भूटान से निकलने वाली नदियों के पानी से करते रहे हैं। अगर आज भूटान कोरोना की दुहाई देकर अचानक यह  पानी रोक दे तो इससे बक्सा के किसान सकते में आऍंगे ही। उन्हें तो शायद याद ही न रहा हो कि यह पानी 'पराया'है! अचरज है कि प्रशासन का ध्यान भी कभी इस ओर नहीं गया, ताकि विधिवत कोई जल संधि कर ली जाती। अथवा इस पराये पानी का कोई तो विकल्प तलाशा जाता। इसीलिए यह खबर भी आई कि बक्सा के किसान पानी रोके जाने के भूटान सरकार के फरमान के विरोध में प्रदर्शन कर  रहे हैं। उन्होंने  रोंगिया-भूटान सड़क को जाम भी किया।  इसी से दोनों पक्ष सजग हुए और पानी रोके जाने का खंडन किया। सफाई यह भी दी गई कि पानी नदी का रास्ता अवरुद्ध होने से रुक गया था। यानी पानी रुका अवश्य था, पर रोका नहीं गया था।

इसके बावजूद विचारणीय यह भी है कि भूटान को इसके लिए बाध्य करने वाला कोई करार तो है नहीं। परंपरा चली आ रही है कि हर साल बरसात के मौसम में स्थानीय किसान भारत-भूटान सीमा पर समद्रूप जोंगखार इलाके में प्रवेश करते हैं और काला नदी के पानी को डोंग (बाँध) बना कर अपने खेतों में लाकर सिंचाई करते हैं। लेकिन परंपरा तो आपसदारी से चलती है, बाध्यकारी नहीं होती।

सयाने बताते है कि भूटान और  भारत के आपसी संबंध कभी भी तनावपूर्ण नहीं रहे हैं।  भूटान जाने के लिए भारतीयों को पासपोर्ट की भी जरूरत नहीं पड़ती है और दोनों देशों में एक-दूसरे  के पर्यटकों का सदा हार्दिक स्वागत होता आया है। लेकिन कुछ समय से भूटान का मिजाज कुछ बदला-बदला नज़र आने लगा है। शायद वह कमाई के नए साधनों की खोज में है। जैसे कि इस साल भूटान की सरकार ने फैसला किया था कि अब से भारतीय पर्यटकों को भी विदेशी पर्यटकों की तरह शुल्क भरना पड़ेगा। अगर कल को असम के किसानों के लिए पानी पर पाबंदी सचमुच लग जाए,तो?

यों, उचित यही होगा कि केंद्र सरकार तुरंत भूटान की सरकार के सामने इस मुद्दे को उठाए और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए पानी का करार प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।  000


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>