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चमगादड़ों के झुंड उन प्रधानमंत्रियों के घरों में
ये ख्वाबों भी डब्ल्यू आर.मुस्टो ने नहीं सोचा होगा कि वे लुटियन दिल्ली की जिन सड़कों के दोनों तरफ पेड़ लगवा रहे हैं, वे आगे चलकर हजारों चमगादड़ों को पनाह देंगे। मतलब ये देश के सर्वशक्तिमान हस्तियों के पड़ोसी के रूप में रहेंगे। मुस्टो नई दिल्ली के निर्माण के वक्त यहां के बागवानी विभाग के प्रमुख थे। उनकी देखऱेख में पेड़ 1920 के बाद लगने शुरू हुए थे। अब ये सब लगभग 100 बरस के हो रहे हैं।
जाहिर है, ये अर्जुन, अशोक,इमली, पीपल वगैरह के पेड़ बुजुर्ग हो चुके हैं। ये घने हैं। इन्हीं जनपथ, मोतीलाल नेहरु मार्ग, कामराज मार्ग, तीस जनवरी मार्ग वगैरह पर लगे पेड़ों पर हजारों चमगादड़ रहते हैं। ये रतजगा करने के बाद दिन में सोने के मूड में होते हैं।
सड़कों से गुजरने वाले ट्रैफिक के कोलाहल से बेपरवाह ये विश्राम कर रहे होते हैं। इन्हें आप चाहें तो पेड़ों पर लटका हुआ देख सकते हैं। अगर आपके पास दूरबीन हो तो आप इनकी गतिविधियों पर बेहतर तरीके से नजर रखने में कामयाब होंगे।
ये झुंड़ों में और उन पेड़ों पर रहना पसंद करते हैं जिनके आसपास पानी आसानी से उपलब्ध हो जाए। लुटियन दिल्ली के पेड़ों में रहने वाले चमगादड़ों को इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के पास पानी मिल जाता है। दिल्ली की चमगादड़ों पर लंबे समय से नजर रखने वालों का कहना है कि गर्मियों में इन्हें बड़ा कष्ट होता है। जब चालीस डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चला जाता है तब ये बार-बार अपने पंख फड़फड़ाते हैं।
जनपथ और मोतीलाल नेहरू मार्ग तो मानो इनके दिल के बहुत करीब है। इधर लगे पेड़ों में ये असंख्य हैं। दो पूर्व प्रधानमंत्रियों क्रमश: डा. मनमोहन सिंह के 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग और डा. आई.के.गुजराल ( अब स्मृति शेष) के 6 जनपथ स्थित बंगलों में लगे पेड़ों में भी ये सैकड़ों की संख्या में हैं। जिस बंगले में डा. मनमोहन सिंह रहते हैं, उसमें ही शीला दीक्षित रहा करती थीं।
दिल्ली में फलभक्षी चमगादड़ें तथा कीटभक्षी चमगादड़ें है। फलभक्षी देख और सूंघ कर अपना भोजन तलाश करते हैं जबकि कीटभक्षी चमगादड़ों की आंखें नहीं होती हैं। दोनों ही चमगादड दिशाज्ञान के लिए ध्वनि तरंगों का सहारा लेते है।
अगर हम लुटियन दिल्ली से निकलकर रोशनआरा बाग, दरियागंज के पर्दा बाग या तालकटोरा गार्डन चलें तो इधर भी सौ-सौ साल पुराने बुजुर्ग पेड़ों में चमगादड़ों ने डेरा बसाया हुआ हैं। ये तुगलकाबाद,फिरोजशाह कोटला और पुराना किला के आसपास के खंडहरों में भी खुशी-खुशी से रहते हैं।
क्यों इन्हें छायादार पेड़ों के अलावा पुराने डरावने खंडहरों में रहना पसंद हैं? इनमें दिनभर आराम करने के बाद येरात के अंधेरे में अपने कामकाज के लिए निकलते हैं इस बात से बेपरवाह कि आजकल दिल्लीऔर दुनिया में कोरोना वायरस को फैलाने के लिए इनकी भी थू-थू हो रही है। हालांकि इन अशुभ समझे जाने वाले चमगादड़ों का दिल्ली शिकार नहीं करती।