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Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
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आलसी और लिजलिजे नौकरशाहों को htao-भगाओ

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दोस्तों,
देश के शीर्षस्थ सैन्य कमांडरों/जनरलों/योद्धाओं से मेरे द्वारा समय-समय पर लिए गए साक्षात्कारों के संग्रह वाली मेरी नई पुस्तक 'रक्षा तंत्र'प्रकाशन के लिए प्रकाशक को सुपुर्द की जा चुकी है। पूरी संभावना है कि अगले माह के मध्य में यह मार्केट में आ जायेगी। इसका भी प्रकाशन देश के एक नामचीन प्रकाशक द्वारा किया जा रहा है।


पुस्तक के कुल 25 साक्षात्कारों में से एक साक्षात्कार जो मैंने 2013 में लिया था, उसका छोटा पार्ट मैं यहाँ सांझा कर रहा हूँ। देखिए 7 साल पहले लिया गया पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश का वह साक्षात्कार आज भी कितना प्रासंगिक है-


सवाल - पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में भारत की मौजूदा राष्ट्रीय रक्षा नीति को आप किस नजरिए से देखते हैं ?
जवाब- देश की नेशनल सेक्युरिटी का ढांचा पूरी तरह विचित्र है। तीनों सेनाएं रक्षा मंत्रालय से अलग-थलग हैं। क्योंकि रक्षा मंत्रालय ब्यूरोक्रेट्स (IAS) से भरा पड़ा है।

 इन नौकरशाहों को न तो देश की रक्षा जरूरतों और चुनौतियों की जानकारी है और न ही वे किसी सैन्य अधिकारी से पूछते ही हैं। जानकारी के अभाव में उनके पास कोई दूरगामी रक्षा नीति बनाने की समझ नहीं है। चूँकि इस मामले में वे सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों की मदद भी नहीं लेते, इसलिए देश के पास इस बावत कोई लांग टर्म डिफेंस पॉलिसी नहीं है।

सवाल- तो देश के रक्षा तंत्र का काम कैसे चल रहा ?

जवाब- लांग टर्म डिफेंस पॉलिसी नहीं है इसीलिए उन्हें हर घटना... चाहें वह loc पर पाकिस्तान के दुःसाहस की हो या लद्दाख और अरुणांचल प्रदेश में चीनी सेना के घुसपैठ की, तंत्र को एक 'सरप्राइज'की तरह लगती है। ये इनसे निपटने के लिए घटनावार यानी कि रोजमर्रा फैसले लेते हैं। रोजमर्रा के जरूरी फैसले भी सालोंसाल लंबित रहते हैं। उन्हें कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि उन चीजों से, उन समस्याओं से वे सीधे मुकाबिल नहीं हैं। इसका सीधा असर तो सेनाओं पर होता है, क्यों कि मोरचे पर वे होती हैं।

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