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रवि अरोड़ा की नजर से....




विकास दुबे कानपुर वाला

रवि अरोड़ा

सन 2010 में कुछ पत्रकार मित्रों के साथ उज्जैन स्थित महाकाल के दर्शन हेतु गया था  । सुबह का समय था और मंदिर परिसर में अच्छी ख़ासी भीड़ थी मगर एक स्थानीय पत्रकार की बदौलत हमें मंदिर प्रवेश में कोई दिक्कत नहीं हुई । कुछ नेता टाइप लोग व अधिकारी भी महाकाल के दर्शनार्थ वहाँ आये हुए थे और मंदिर परिसर में वीआईपी लोगों के लिये निर्धारित सुविधाओं का लाभ उठा रहे थे।  देश के तमाम बड़े मंदिरों के लिए लम्बी क़तार और धक्के खाने तथा आधे अधूरे दर्शन करने की दिक्कत झेलते केवल सामान्य लोग ही दिखे । आज सुबह जैसे ही पता चला कि आठ पुलिस कर्मियों का हत्यारा कुख्यात विकास दुबे महाकाल मंदिर में पकड़ा गया है , मंदिर का पूरा नक़्शा दिमाग़ में घूम गया । विकास दुबे जिस प्रकार सुबह सात बजे से नौ बजे तक दो घंटे मंदिर परिसर में निर्बाध घूमता रहा, उससे स्पष्ट हो रहा है कि वहाँ उसका सहयोगी कोई प्रभावी व्यक्ति अवश्य है । ढाई सौ रुपए की वीआईपी टिकिट के बावजूद सामान्य व्यक्ति की तरह उसने मंदिर में यदि प्रवेश पाया होता तो दर्शन के पाँच मिनट के भीतर बाहर ठेल दिया गया होता । यूँ भी सावन के महीने में ज़बरदस्त भीड़ के चलते मंदिर प्रशासन किसी को इतनी देर परिसर में टिकने ही नहीं देता । फिर वह कैसे वह वहाँ घूमता रहा ?

पाँच लाख के इनामी विकास दुबे ने जिस तरह से अपने आप को देश के जाने माने मंदिर में गिरफ़्तार करवाया है उसके अनेक अर्थ निकल रहे हैं । बेशक इससे उत्तर प्रदेश पुलिस का निकम्मापन सामने आया मगर यह भी साबित हुआ कि पूरी व्यवस्था ही विकास दुबे जैसे लोगों के साथ खड़ी है । अपने घर के निकट शिवला गाँव में वह दो दिन रहा और फिर फ़रीदाबाद पहुँच गया तथा बाद में जिस प्रकार सड़क मार्ग से मध्यप्रदेश पहुँचा , इससे साबित होता है कि पुलिस छः दिन से उसकी तलाश के नाम पर केवल झख ही मार रही थी । दिन में यदि सड़कों पर चैंकिंग होती है तो वह हाथ क्यों नहीं आया और रात में जब कर्फ़्यू रहता है तो फिर आठ सौ किलोमीटर दूर वह कैसे पहुँच गया ? उधर, लखनऊ नम्बर की जिस गाड़ी से वह उज्जैन गया उस पर हाई कोर्ट लिखा था । मंदिर परिसर में दो वक़ील भी उसके साथ हिरासत में लिए गए जो उसे सरेंडर करवाने आए थे । पता नहीं यह इत्तफ़ाक़ है या कुछ और कि महाकाल थाने के प्रभारी प्रकाश वास्कले को कल रात ही हटाया गया और उनकी जगह अरविंद तोमर को चार्ज दिया गया । बताया गया कि डीएम एसपी ने भी कल रात ही मंदिर का मुआयना किया था और बंद कमरे में बैठक भी की । चर्चा तो यह भी है कि मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से विकास दुबे के सम्बंध हैं हालाँकि स्थानीय पुलिस ने मामले को अपनी नज़र से देखते हुए एक शराब माफ़िया को हिरासत में लिया है जो विकास का मित्र बताया गया है । अब बताइये इस पूरे घटनाक्रम में शहीद हुए पुलिस कर्मियों के पक्षधर भी कहीं आपको दिखते है ?

हालाँकि मुझे पूरी उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस मुठभेड़ के नाम पर विकास को ठोक देगी मगर उसने अवसर गँवा दिया । वैसे उसके पास अभी भी कई टोटके हैं और भागने का प्रयास करते हुए दिखा कर अथवा उसे छुड़ाने के प्रयास को विफल करने के नाम पर भी वह एसा कर सकती है । जेल में बंद किसी शातिर अपराधी से भी वह यह काम करा सकती है । एसा मैं यूपी पुलिस के पुराने ट्रेक रिकार्ड को देखते हुए ही कह रहा हूँ । सच्चाई यह भी है कि विकास ज़िंदा रहा तो यक़ीनन उसके फ़ोन की डीटेल्स भी सामने आएँगी, जो पुलिस के लिए भी आत्मघाती होंगी। पुलिस कर्मियों की हत्या के गवाह और सबूत न होने के कारण उसकी ब्रेन मैपिंग भी अदालत करवा सकती है और इससे भी विकास के सहयोगी कई सफ़ेदपोश भी बेनक़ाब हो सकते हैं । अब आप जानते ही हैं कि पुलिस यूपी की है तो कुछ न कुछ नाटकीय तो कर ही सकती है  ।

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