व्यंग्य
धोबी और उसके गधे की कहानी
सुभाष चंदर
प्रिय पाठको, आज आपको एक धोबी और उसके गधे की कहानी सुनाता हूं। धोबी का नाम आप कुछ भी रख लीजिए। वैसे भी उसका नाम बदलता रहता है। हर पांच सालों में बदलता है। रही बात गधे की तो उसका नाम क्या और गांव क्या। वह तो कल भी गधा था और आगे भी गधा ही रहेगा । खैर हमें नाम से क्या मतलब। मतलब तो काम से है ना। तो हुज़ूर, धोबी का काम था-गधे पर कपड़े लादना और गधे का काम था बिना ना नुकर किए उस बोझे को ढोना। धोबी का मानना था कि गधे पर जितना बोझ लदेगा, गधा उतना ही ठीक रहेगा । सो वह गधे पर जमकर बोझ लादता। गधा चुपचाप काम करता , धोबी की लदाई प्रक्रिया में अपना योगदान देता, खूब बोझा ढ़ोता। सुबह-सुबह उसका काम शुरू हो जाता । वह धोबी को मय बोझ लादकर घाट की ओर प्रस्थान करता।
सच कहें तो वहां घाट-वाट जैसा कुछ था नहीं। एक बड़ा सा गड्ढ़ा था जिसमें काले रंग की शक्ल का कोई द्रव पदार्थ था जो उसे घाट का नाम रख लेने की सुविधा प्रदान करता था। जब तक उस गड्ढे में जल रहता तब तक धोबी उसे तालाब कहता। उसके किनारों पर, पाटों पर कपड़ों को पटकते हुए घाट की महिमा के गीत गाता। जब धूप पड़ती, पानी को सूखने की बीमारी लग जाती, कीचड़ की उत्पत्ति के लक्षण दिखाई देने लगते। धोबी कीचड़ में से नमी सीखने का अभियान चलाता। जब वहां सिर्फ सूखी मिट्टी बचती तो गड्ढे में दो-चार पत्थर फेंककर अपना सात्विक किस्म का आक्रोश प्रकट करता और फिर किसी गड्ढे के घाट बनने की प्रक्रिया का साक्षी बन जाता। यानी जब तक गड्ढे में पानी होता,धोबी धोबी होता। जमकर कपड़ों का मैल निकालता। कमीजों-पैंटों को हल्का करता।पानी सूखते ही दूसरे भरे गड्ढे का सदुपयोग करता। साल दर साल यह सिलसिला चलता रहता।
जहां धोबी पीछे-पीछे उसका गधा। गधा था तो बोझ भी था। धोबी लदाई विद्या में मास्टर था। तरह-तरह से बोझ लादता, खूब बोझ लादता। बोझ जब काफी बढ़ जाता तो गधा अपनी आदत के विपरीत कभी-कभी खिसिया भी जाता। घाट दर घाट बदलने की यह प्रक्रिया उसे ऊबाती। हर बार बढ़ता बोझ उसे थकाता। हाल यह हुआ कि बढ़ते बोझ से गधा काफी परेशान रहने लगा। बोझ तो भी कम नहीं था।
धोबी ने उस पर दुनिया भर का बोझा लाद रखा था। पहले सिर्फ महंगाई का बोझा था। गधा उससे ही परेशान था। फिर धोबी ने उस पर जीपें लाद दीं। उसके पीछे-पीछे प्रतिभूतियों से लेकर यूरिया खाद तक लदती चली गयी। यहां तक कि जानवरों के चारे की भारी-भारी बोरियां भी लद गयीं। कभी ट्रांसफरों के टनों कागज लद जाते तो कभी चिपचिपाता शीरा गधे की पीठ को गीला कर देता। किस्सा कोताह ये कि वजन था कि कम होने का नाम ही नहीं लेता था।
गधा बेचारा हलकान था। कई बार तो उसका मन करता कि वह इस धोबी के बच्चे पर दुलत्तियों की कला का प्रदर्शन कर के दिखा दे। पर वह ऐसा कर नहीं पाता था। उसके पास रोने और भुनभुनाने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। वह धोबी से कई बार रंभाक्रिया के तहत शिकायत भी दर्ज कराता। बोझ के कारण पीठ पर हुए जख्म दिखाता। खुरों में पड़े छाले दिखाता। उससे प्रार्थना करता कि वह उस पर कुछ तो रहम करे ,उसका वजन कम करे। मगर धोबी हर बार उसे कुछ और समझाता । उसकी शिकायत के पत्तों पर अपना तुरुप का पत्ता फेंक देता। कभी कहता कि देखो हम और तुम शुरू से ही एक हैं। हमारी जाति एक है। हमारा धर्म एक है। तुम मुझ से दूर जाओगे तो विधर्मी जाति का कोई और धोबी तुम्हारे ऊपर ज्यादा वजन लाद देगा। कभी कहता कि तुम्हारे गधेत्व की रक्षा करने में सिर्फ मैं ही सक्षम हूं। मैं जब तक हूं ,तब तक तुम्हारा गधात्व है।मेरे हटते ही तुम्हारी पहचान चली जाएगी। तुम्हारे लिए जरूरी है कि तुम अपना गधापन बरकरार रखो। अपनी पहचान बनाए रखो । उसी में तुम्हारी गति है।वरना तुम कहीं के नहीं रहोगे।इतना सुनकर गधा घबरा जाता। उस पर अपनी पहचान जाने का डर हावी हो जाता । वह भूल जाता कि उसे शिकायत क्या थी। धोबी यह देखकर खुश होता ।वाह उसके आगे एक मुट्ठी घास और डाल देता।
अबकी बार गधा पूरी तरह मान जाता, आखिर गधा जो था। बात न मान कर अपनी व अपने पुरखों की मिट्टी थोड़े ही खराब कराता। और फिर न भी मानता तो कहां जाता। धोबियों की दुनिया में तो सब धोबी ही थे। उनका धर्म ही गधे पर वजन लादना था। फिर धर्म का निर्वाह कौन ठलुआ नहीं करता ?
सो किस्सा-कोताह ये हुजूर, कि आजकल अपना गधा जो है, वह काफी हलकान हो चुकाहै। बुढ़ापे में इतना बोझ ढोने के कारण उसका शरीर घिसता जा रहा है। उसके पेट और पथरीली सड़क की दूरी मिट चुकी है। अब तो वह दुलत्ती विज्ञान के जाने-बूझे समीकरण भी हल नहीं कर पाता। हां, वह कभी कभी सोचता जरूर है कि धोबी को दुलत्ती का प्रसाद चढ़ाएगा जरूर। पर आज नहीं कल ? वह बस सोचता ही है अौर यह जो कल है, कमबख्त कभी आता ही नहीं।
हुजूर! अब आप से एक सवाल-सच बताइए?
क्या आप इस धोबी और गधे को पहचानते हैं? पहचानते हैं तो बताइए कि गधे का यह कल कब आएगा? सच हुजूर! गधा बड़ा परेशान है। गधा है ना ।
M .9311660057