सुरक्षा परिषद में पुनः प्रवेश
भारत वैसे तोसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 'स्थायी'सदस्यता का दावेदार है। लेकिन उसके लिए सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाना ज़रूरी होगा। इसलिए फिलहाल आठवीं बार एक बार फिर 'अस्थायी'सदस्य के रूप में वहाँ भारत का प्रवेश अच्छी खबर है। आगामी 17 जून को यह खबर पक्की भी हो जाएगी। गौरतलब है कि एशिया-प्रशांत खंड में 2021-22 के कार्यकाल के लिए भारत इस अस्थायी सीट के लिए अकेला उम्मीदवार है। इसे इस कारण ज़्यादा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है कि इस अवधि में भारत संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की कारस्तानियों के प्रति निश्चिंत रह सकेगा। जानकारों के मुताबिक अब पाकिस्तान वहाँ कश्मीर मुद्दा नहीं उठा पाएगा। अब जबकि यह अस्थायी सदस्यता लगभग तय ही है, भारत ने अपनी कार्य योजना भी घोषित कर दी है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ठीक ही इस विषय पर ज़ोर दिया है कि देश ऐसे समय में एक “सकारात्मक वैश्विक भूमिका” निभा सकता है, जब कोविड-19 वैश्विक महामारी और इसके गंभीर आर्थिक प्रभाव पूरी दुनिया की एक असाधारण परीक्षा लेने जा रहे हैं। यानी, आगामी समय में उभरने वाली नई वैश्विक अर्थ व्यवस्था के स्वरूप निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए भारत तैयार है। कहना न होगा कि कोरोना उत्तर काल में नए आर्थिक और कूटनैतिक समीकरण बनने जा रहे हैं, जिनमें कोई भी शक्ति भारत की उपेक्षा करके आगे नहीं बढ़ना चाहेगी। भारत और अमेरिका की नई नज़दीकियाँ भी उन पर तयशुदा असर डालेंगी ही।
स्मरणीय है कि इस समय सुरक्षा परिषद में सदस्यों की संख्या 15 निश्चित है। इनमें 5 सदस्य स्थायी हैं और 10 अस्थायी सदस्य देशों को दो वर्ष के लिए चुना जाता है। स्थायी सदस्यों में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस एवं ब्रिटेन शामिल हैं। इनके अलावा विश्व में क्षेत्रीय संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से 2-2 साल के लिए 10 अस्थायी सदस्य 'क्षेत्रीय'आधार पर चुने जाते हैं।
इनमें अफ्रीकी समूह, एशिया-प्रशांत समूह, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियन समूह, पश्चिमी यूरोपीय और अन्य समूह हैं। इंडोनेशिया का कार्यकाल पूरा होने से खाली होने जा रही एशिया-प्रशांत समूह की सीट पर एकमात्र भारत ने अपना दावा पेश किया हुआ है। यह सुनिश्चित इसलिए है कि भारत के इस दावे को चीन और पाकिस्तान सहित 55 देशों के एशिया-प्रशांत समूह ने जून 2019 में सर्वसम्मति से समर्थन दे रखा है। संयुक्त राष्ट्र के चुनाव नियमों के तहत यदि सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य मतदान में भाग लें, तो भारत को कम से कम 129 वोट प्राप्त करने होंगे। समूह का समर्थन मिलने के कारण यह लक्ष्य भारत के लिए सहज साध्य होगा, ऐसा माना जा रहा है।
भारत के लिए जो सुविधाजनक है, पाकिस्तान को तो उससे असुविधा होनी ही है। जनवरी 2021 से शुरू 2 वर्ष उसे घुटन भरे प्रतीत हो सकते हैं, क्योंकि इस अवधि में वह अपने आका चीन के साथ मिल कर कश्मीर मुद्दे के लिए इस अंतरराष्ट्रीय मंच का वैसा दुरुपयोग नहीं कर पाएगा, जैसा करने की उसकी फितरत बन गई है। पाकिस्तान की नींद शायद यह सोच कर भी उड़ी हुई हो कि भारत वहाँ ऐसे विषयों पर चर्चा करा सकता है जिनसे पाकिस्तान का फजीता होता हो।
लेकिन भारत एक ज़िम्मेदार और परिपक्व लोकतंत्र है। बदले या ईर्ष्या से संचालित होना हमारा स्वभाव नहीं। इसीलिए भारत ने अपनी प्राथमिकताओं का ज़िक्र करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि हमारा ज़ोर "प्रगति के नवीन अवसर, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया, बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण एवं समस्याओं के समाधान के लिए मानव स्पर्श को ध्यान में रखकर प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने"पर रहेगा।
शुभमस्तु! 000