#रिज़र्वबैंक के #इतिहास में पहली बार खजाना खोलकर पौने दो लाख करोड़ रुपयों से ज़्यादा रुपये सरकार को देने पर अपनी मुंडी हिलाने वाले इस शख़्स को उतनी मशहूरियत नहीं मिल रही है, जितनी मिलनी चाहिये। इट्स ग्रॉसली अनफेयर!! भाई जी का नाम शक्तिकांत दास है । आर बी आई के मौजूदा गवर्नर हैं। उनकी हाँ के बिना आरबीआई से सरकार दस रुपये भी नही निकाल सकती है। इन्होंने इतनी बड़ी रकम ऐसे दे दी जैसे उनकी ख़ाला जी के मेहर में आई हो।
● इस मे खास बात क्या है? अगर सरकार की अंटी ढीली होती है, और रिज़र्व बैंक का काम ही है उसे बचाना!! बात इतनी सरल नहीं है। इतनी ही सरल होती तो इनके पहले के दो गवर्नर इत्ती बड़ी नौकरी पर लात मारकर नहीं जाते ।
● गवर्नर रघुराम_राजन ने मना किया और कहा कि रिज़र्व में से नल्ली लगाने की बजाय उन भगोड़ों से वसूलो जो बैंकों से इससे तिगुना-चौगुना पैसा खाकर पतली गली से निकल लिए हैं। नीरव - विशाल मोदी और मेहुल चौकसी जैसे कुछ तो प्रधानमंत्री के जहाज़ में बैठकर गए, उनके साथ ग्रुप फ़ोटो उतरवा के विदा हुए । वसूली तो दूर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन डिफाल्टर "राष्ट्रभक्तों"के नाम उजागर करना ही देशहित विरुध्द बता दिया। रघुराम राजन इस्तीफा देकर चले गए।
● मोदी जिन्हें छांटकर लाये थे उन गवर्नर उर्जित_पटेल ने भी आर बी आई की जमा तिजोरी को फालतू में खोलने से मना कर दिया और रंग बिरंगे नोटों पर अपने दस्तखत देखने का मोह त्याग नौकरी छोड़ कर चले गए । आरबीआई के ही डिप्टी गवर्नर #विमल_आचार्य ने भी रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता से खेलने और उसकी बांह मरोड़ने पर आपत्ति जताई थी ।
● इन शक्तिकांत बाबू को मशहूर करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि इन्हें आर बी आई के खजाने में सेंध लगाने के जिस काम के लिए लाया गया था - भक्तिभाव के साथ वह काम किया । राजा का बाजा बजाया और मन्दी का बैंड बजाती अर्थव्यवस्था के असर से डगमगाते धन्ना सेठों के मुनाफों की छीजती गड्डियों में आरबीआई के ढेर की टेक लगा दी ।
● इन्हें इसलिए भी मशहूर करना जरूरी है ताकि यहां से रिटायरमेंट के बाद जब ये किसी अम्बानी या अडानी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में मुलाजिमत करते और अपने हिस्से के मांस का भोग लगाते दिखें तो आप इन्हें पहचान सकें ।
● इतिहास में एमए की शैक्षणिक योग्यता वाले शक्तिकांत बाबू जब अर्थशास्त्र की सर्वोच्च योग्यता वाले इस पद पर विराजे थे तब से ही यह आशंकायें जताई जा रहीं थीं कि भाई इतिहास रचेगा - खुद आरबीआई को भी इतिहास बनाकर मानेगा । बन्दा दाद का हकदार है कि वह सारी आशंकाओं पर खरा उतरा ।
● मन्दी का सरल मतलब बाजार में माल का न बिकना और नतीजे में उनकी उत्पादक इकाइयों में संकट खड़ा होना है । जाहिर है इसकी वजह लोगों की जेब मे खरीदने की क्षमता का घटना है । जिसकी वजह बेरोजगारी, खेती किसानी का संकट, मजदूर कर्मचारियों की सिकुड़ती आमदनी और जिंदा रहने पर होने वाले खर्च का बढ़ जाना है । मगर बजाए इन चारों मोर्चों को संभाल कर क्रयशक्ति बढ़ाने के सिर्फ कारपोरेट को रियायतें देना एक नया अर्थशास्त्र है जिसे मोदीनोमिक्स कहते हैं । शक्तिकांत बाबू को इसलिए भी मशहूर करना चाहिए कि उन्होंने "सारी पढ़ाई एक तरफ - मोदिनोमिक्स एक तरफ"को अपना सूत्र वाक्य बनाया।#