Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

एक अद्भुत बल +वीर का अवसान / विशी सिन्हा



*****************************
एक किंवदंती का अवसान
*****************************

2012 का लंदन ओलिंपिक्स भारतीय खेल प्रेमी इस वजह से याद करते हैं कि जीते गए मेडल्स की संख्या (अलग-अलग स्पर्धाओं में भारत ने कुल 6 पदक जीते थे) के मामले में यह भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. लेकिन भारतीय ओलिंपिक्स इतिहास में सर्वाधिक गौरवशाली प्रदर्शन करने वाली और सर्वाधिक स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम पिछले ओलिंपिक्स (बीजिंग 2008) में क्वालीफ़ाई करने में असफल रही थी और इस बार लंदन ओलिंपिक्स में वापसी के बावजूद अपने सभी मैच हारकर आखिरी (12वें) स्थान पर रही थी. इसी लंदन ओलिंपिक्स में ओलिम्पिक खेलों के इतिहास की कहानी एक प्रदर्शनी द्वारा बताई गयी जिसमें 16 महानतम खिलाड़ियों की कहानी शामिल की गई और उन खिलड़ियों को मनुष्य की ताक़त, मेहनत, लगन, जुनून और उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया. इन 16 आइकॉनिक खिलाड़ियों की सूची में हॉकी की दुनिया से सिर्फ एक खिलाड़ी था जो इस सूची में शामिल इकलौता भारतीय खिलाड़ी भी था, नाम था – बलबीर सिंह सीनियर, जिन्होंने अपना स्वर्णिम ओलिम्पिक सफर इसी लंदन में 64 वर्ष पूर्व शुरू किया था. हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में से एक बलबीर सिंह सीनियर ने 95 वर्ष की अवस्था में आज सुबह मोहाली के फ़ोर्टिस हॉस्पिटल में जब आखिरी सांस ली तो खेलप्रेमियों द्वारा उन्हें बिसरा चुके एक ज़माना हो चला था. वे पिछले बीस दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे और हस्पताल में भर्ती थे. शायद पेले भी हमारे देश से होते तो उन्हें अब तक हम बिसरा चुके होते.

10 ऑक्टूबर 1924 को जालंधर में जन्में बलबीर सिंह दोसांझ के पिता दलीप सिंह दोसांझ स्वतन्त्रता सेनानी थे. बलबीर का बचपन मोगा में गुजरा. सातवें जन्मदिन पर बलबीर को उनके पिता ने पहली हॉकी स्टिक दी और हॉकी स्टिक से बलबीर का अटूट नाता जुड़ गया. शुरू-शुरू में बलबीर या तो फुल-बैक की पोजीशन पर खेलते थे या गोलकीपर के रूप में. 10 वर्ष की उम्र में मोगा में आयोजित एक जूनियर टूर्नामेंट में बलबीर के कज़िन की टीम में एक खिलाड़ी के चोटिल होने पर सेंटर-फॉरवर्ड की पोजीशन खाली थी और कोई अतिरिक्त खिलाड़ी मौजूद नहीं था तो बलबीर को ही केंटर-फॉरवर्ड की पोजीशन पर उतार दिया गया. बलबीर ने उस मैच में कई गोल किए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

सिख नेशनल कॉलेज लाहौर से खेलते हुये बलबीर ने कॉलेज टीम को फ़र्स्ट डिवीजन में प्रोन्नति दिलवाई. खालसा कॉलेज के हॉकी कोच हरबैल सिंह की नजर बलबीर के खेल पर पड़ी और वे बलबीर के चमत्कारिक स्किल्स से इतना प्रभावित हुये कि उन्होने बलबीर को सिख एनशनल कॉलेज लाहौर छोडकर खालसा कॉलेज अमृतसर जॉइन करने का ऑफर दिया. इस तरह बलबीर खालसा कॉलेज अमृतसर की टीम में शामिल हुये, हॉकी कोच हरबैल सिंह के मार्गदर्शन और सतत प्रैक्टिस से उनका खेल निखारता चला गया और जल्दी ही वे कॉलेज हॉकी टीम के कैप्टन बन गए. उनकी कप्तानी में खालसा कॉलेज की टीम अपराजेय बन गयी और 1942 से 1945 तक ऑल-इंडिया चैंपियन रही.

उन दिनों पंजाब पुलिस के आईजी रहे सर जॉन बेनेट बलबीर के खेल से इस कदर मुतमईन हुये कि अपने ऑफिसर्स को निर्देश दिया कि बलबीर का पुलिस में चयन हर हाल में सुनिश्चित किया जाय. बलबीर तो पुलिस से चिढ़ते थे क्योंकि पुलिस तो उनके पिता और दूसरे स्वतन्त्रता सेनानियों को जेल भिजवाने और अत्याचार करने के लिए जिम्मेदार थी, सो कॉलेज पूरा होते ही वे 1945 में भागकर  दिल्ली पहुँच गए और सीपीडब्ल्यूडी की टीम जॉइन कर ली. लेकिन एक दिन बलबीर ने पुलिस ऑफिसर्स को हथकड़ियों के साथ अपने दरवाजे पर मौजूद पाया. उन्हें अरेस्ट कर जालंधर लाया गया और बेनेट के सामने प्रस्तुत किया गया. बेनेट ने दो-टूक पूछा – “पंजाब के लिए हॉकी खेलोगे या जेल जाना पसंद करोगे?” बलबीर ने हॉकी खेलना चुना. बलबीर के पंजाब टीम में शामिल होने के फौरान बाद 1946 में टीम ने नेशनल टूर्नामेंट में 14 वर्ष बाद विजय हासिल की. इसी वर्ष बलबीर सिंह दोसांझ ने मॉडेल टाउन, लाहौर निवासिनी सुशील से विवाह कर लिया.

अविभाजित पंजाब की टीम ने अली दारा के नेतृत्व में और बलबीर सिंह तथा शाहज़ादा शाहरुख़ जैसे दक्ष खिलाड़ियों की मौजूदगी में अगले वर्ष भी नेशनल टूर्नामेंट जीत लिया. लेकिन वो देश विभाजन का वर्ष था.  मुंबई से लौटकर टीम जब लाहौर पहुँची तो स्थिति बेकाबू हो चुकी थी. अली दारा – जो आगे चलकर पाकिस्तान हॉकी टीम के कैप्टन बने – ने खुद अपनी गाड़ी से बलबीर को मॉडल टाउन स्थित उनकी पत्नी के घर सुरक्षित पहुंचाया. शाहज़ादा शाहरुख़ ने भी कई हॉकी खिलाड़ियों को लाहौर के दंगों की विभीषिका के बीच न सिर्फ शरण दी, वरन उनका सकुशल भारत पहुँचना भी सुनिश्चित किया. विस्तार से वो क़िस्सा फिर कभी. यहाँ बस इतना और कि सरहद द्वारा अलग कर दिये जाने के बावजूद अली दारा और शाहज़ादा शाहरुख़ से बलबीर सिंह सीनियर की मित्रता ताउम्र क़ायम रही.

देश विभाजन के बाद बलबीर सिंह अपनी पत्नी के साथ लुधियाना आ गए. पंजाब पुलिस में काम करना जारी रखा. 1948 के लन्दन ओलिंपिक खेलों के फाइनल मैच में विम्बले स्टेडियम में मेजबान ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ दो गोल कर भारत को 4-0 से विजय दिलाने और स्वर्ण पदक जीतने में बलबीर सिंह ने अहम भूमिका निभाई. आजादी मिलने के तुरंत बाद मिले इस स्वर्ण पदक ने विश्व स्तर पर देश की पहचान स्थापित करने का काम किया. हेलसिंकी (1952) ओलिंपिक खेलों के फाइनल में नीदरलैण्ड्स के खिलाफ अकेले पाँच गोल कर किसी ओलिंपिक फाइनल में सर्वाधिक व्यक्तिगत गोल का रिकॉर्ड बनाया जो आज भी अक्षुण्ण है. इससे तुरंत पहले सेमीफाइनल में भी बलबीर सिंह सीनियर ने ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ हैट-ट्रिक लगाईं थी. हेलसिंकी (1952) में उपकप्तान रहे बलबीर सिंह की कप्तानी में मेलबर्न (1956) में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता था. मेलबर्न में पहले मैच के दौरान ही बलबीर सिंह के हाथ में फ्रैक्चर आ गया था, लेकिन चोट की वजह से टीम से गैरहाजिरी के दौरान कहीं टीम का मनोबल न गिर जाय, इस वजह से उन्होंने हाथ टूटने की बात न किसी को बताई और न ही कोई पट्टी वगैरह बंधवाई, बल्कि टूटे हाथ के दर्द के साथ ही वे खेलते रहे. पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने  बिना कोई गोल खाये 38 गोल दागे. मेलबर्न ओलिंपिक्स में स्वर्ण पदक जीतकर बलबीर सिंह सीनियर ने गोल्डन हैट-ट्रिक पूरी की यानि लगातार तीन ओलिम्पिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए. और भारतीय हॉकी टीम ने लगातार छठां स्वर्ण पदक हासिल किया.

एक खिलाड़ी के रूप में अपनी सेवाएँ देने के बाद बलबीर सिंह सीनियर ने एक कोच/मैनेजर के रूप में भी भारतीय हॉकी को अनवरत योगदान देते रहे. भारतीय हॉकी टीम के नाम सिर्फ एक वर्ल्ड कप है – 1975 का क्वालालम्पुर वर्ल्ड कप. और इस वर्ल्ड चैम्पियन टीम के कोच थे – बलबीर सिंह सीनियर.

1957 में जब बलबीर सिंह सीनियर को पद्मश्री से सम्मानित किया गया तो वे पहले खिलाड़ी बने जिन्हें भारतीय सरकार द्वारा इस नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया. उन्होने हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलिंपिक्स में भारतीय ओलिम्पिक दल का ध्वजवाहक बन नेतृत्व किया था. 1982 में जब नई दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन हुआ तो बलबीर सिंह सीनियर के हाथों हीं मशाल प्रज्जवलित की गई थी.

कुछ छोटे – छोटे क़िस्से गौरतलब हैं -

अक्टूबर 1962 चीन युद्ध के समय बलबीर सिंह सीनियर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के पास पहुँचे और कहा मेरे पास चाइना वार फेयर फ़ंड में योगदान करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है ये तीन ओलिम्पिक स्वर्ण पदक हैं जिन्हें मैं आपको सौंपता हूँ. बलबीर सिंह सीनियर की जिद देखकर मुख्यमंत्री कैरों ने उनसे मेडल ले लिए. बलबीर सिंह सीनियर के जाने बाद कैरों ने अपने मीडिया एडवाइजर को तीनों मेडल्स दे दिए और उन्हें वॉर फेयर फंड में भेजने के बजाय अपने पास रखने को कह दिया. जब हालात सामान्य हो गए तो कैरों ने बलबीर सिंह सीनियर को बुलाकर मेडल्स वापस कर दिये और गुजारिश की कि वह भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं करेंगे.

भारतीय हॉकी टीम में पंजाब के खिलाड़ियों का प्रभुत्व हमेशा ही रहा है. 1975 हॉकी वर्ल्ड कप की भारतीय टीम में सात सदस्य सिख थे. टीम में नारे लगते थे “जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल”, लेकिन टीम में हर धर्म के खिलाड़ी थे, तो कोच बलबीर सिंह सीनियर ने इस नारे की मनाही कर रखी थी और एक नया नारा दिया था - “जो बोले सो है, भारत माता की जय”.

1985 में स्पोर्ट्स म्यूजियम में रखने के लिए स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) पटियाला को अपने 36 मेडल, 120 तस्वीरें और ओलंपिक के 2 ब्लेजर सौंपे थे, जिसमें 1956 मेलबर्न ओलिंपिक्स के दौरान भारतीय हॉकी कैप्टन और कंटिन्जेंट फ्लैगबीयरर के रूप में पहनी गई ब्लेज़र (संलग्न चित्र) भी शामिल थे. लंदन ओलिम्पिक खेल (2012) में सम्मानित होने वाले खिलाड़ियों को अपना कलेक्शन डिस्प्ले करना था तब बलबीर सिंह सीनियर ने डिस्प्ले के लिए अपने मेडल साई से मांगे तो पता चला कि वे म्यूजियम से गुम हैं. आजतक न तो मेडल्स/ब्लेज़र का पता चला और न ही ये कि बलबीर सिंह सीनियर की ये धरोहर कैसे गुम हुई और इस गुमशुदगी के लिए ज़िम्मेदार कौन था.

#Tribute #BalbirSinghSr #OlympicLegend
#IndianHockey #GoldenHattrick
#GreatesHockeyPlayers #GreatestSportspersons
#Remembering Balbir Singh Sr.

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>