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रवि अरोड़ा की नजर से....


कारगिल विजय दिवस और दौड़ते लड़के

रवि अरोड़ा

गाँव-देहात से अक्सर गुज़रना होता है । सुबह हो या शाम, यहाँ तक कि भरी दुपहरी ही क्यों न हो , जवाँ लड़कों के समूह सड़कों पर दौड़ते दिख ही जाते हैं । मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि ये लड़के फ़ौज में भर्ती होने की गरज से पसीना बहा रहे हैं । कड़ी मेहनत, जान का जोखिम और बहुत अधिक वेतन न होने के बावजूद सेना में भर्ती होना आज भी देहाती युवाओं का पहला ख़्वाब होता है । मैंने कई बार रोक कर इन युवाओं से बात भी की है और हर बार इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि देशवासियों में सैनिक के प्रति सम्मान उनके इस क्रेज़ का सबसे बड़ा कारण है । इन युवाओं का मानना होता है कि फ़ौजी जीते जी तो अपने परिवार को गौरवान्वित करते ही हैं और यदि शहीद भी हुए तो पूरे ख़ानदान और गाँव का नाम ऊँचा होता है । कई बार सोचता हूँ कि एसी गौरवशाली परम्पराओं से आने वाले इन सैनिकों की जान की क़ीमत क्या हमारे देश के नेता वाक़ई समझते हैं ? क्या उन्हें इस बात का अहसास होता है कि अपने अहं की संतुष्टि के लिए वे कई बार एसे फ़ैसले भी ले लेते हैं जिनकी भारी क़ीमत हमारे जवानों को चुकानी पड़ती है ?

देश आज कारगिल विजय दिवस मना रहा है । आज ही के दिन 21 साल पहले भारतीय जवानों ने पीठ में छुरा घोंपने वाले पाकिस्तान को धूल चटाई थी । पीठ में छुरा इसलिए कि फ़रवरी 1999 में भी तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई दोस्ती के संदेश सहित बस लेकर लाहौर गए थे और पाकिस्तान से उनकी गलबहियों को छः महीने भी नहीं बीते थे कि घुसपैठियों के नाम पर पाकिस्तान ने छद्म हमला कर दिया । साफ़ ज़ाहिर था कि जिस समय वाजपेई लाहौर में दोस्ती का पैग़ाम दे रहे थे उसी समय पाकिस्तान कारगिल युद्ध की तैयारी कर रहा था । सवाल यह है कि हर बार धोखा देने वाले पाकिस्तान से फिर किस आशा में मोदी जी अचानक वहाँ के प्रधानमंत्री की नातिन की शादी में शरीक होने अचानक चले गये ? क्या उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और स्वयं अपने आदर्श पुरुष वाजपेई को मिले धोखे से कोई सबक नहीं लिया ? स्वयं मोदी जी की लाहौर यात्रा के नौ महीने बाद जब यही धोखा उन्हें उरी में सैन्य मुख्यालय पर कायरना हमला के रूप में मिला तब ही क्यों उन्होंने पाकिस्तान का मूल स्वभाव समझा और उससे दूरी बना ली ? अब यही कुछ चीन के साथ सम्बंधों में भी नहीं हो रहा है ? जिस प्रकार जवाहर लाल नेहरु चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई के हिंदी चीनी भाई भाई के नारे के धोखे में आकर अपनी 43 हज़ार किलोमीटर ज़मीन 1962 के युद्ध में गँवा बैठे उसी प्रकार मोदी जी भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को झूला झुलाते हुए गलवाँ घाटी में घुसपैठ करवा बैठे । साफ़ दिख रहा है कि चेन्नई के निकट महाबली पुरम में मोदी जी जिस समय शी जिनपिंग का स्वागत कर रहे थे , उसी समय चीन भारत की भूमि पर घुसपैठ की तैयारी में जुटा रहा होगा ।

बेशक मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने सर्जिकल स्टाइक़ कर पाकिस्तान को सबक़ सिखा दिया है और चीन के प्रति भी कोई नरमी नहीं दिखाई जा रही है मगर न जाने क्यों मोदी जी की भाषा में चीन के प्रति वह सख़्ती नहीं है जो पाकिस्तान को लेकर रहती है । आज अपने मन की बात कार्यक्रम में इक्कीस साल पहले के कारगिल युद्ध को लेकर तो उन्होंने कई बार पाकिस्तान का नाम लिया मगर चीन से आजकल चल रहे विवाद के बावजूद उसका नाम फिर नहीं लिया । हैरानी इस बात पर भी है कि चीन द्वारा भारतीय भूमि पर क़ब्ज़े और बीस जवानों की शहादत के बावजूद मोदी जी ने चीन को यह कह कर भी क्लीन चिट दे रखी है कि भारत की एक इंज भूमि पर भी किसी का क़ब्ज़ा नहीं है । चीन से युद्ध की आशंका के मद्देनज़र भारत की तैयारियों, भारतीय सैन्य शक्ति और अपने जवानों के पराक्रम पर कोई शुबह न होने के बावजूद यह डर तो मन में फिर भी लगा ही रहता है कि सड़कों पर दौड़ते दिखने वाले ये युवक कहीं किसी नेता की मूर्खता अथवा अहं की बलि न चढ़ जायें । एसे लोग जो अपना हाथ जलवाए बिना आग का चरित्र ही न समझ पाते हों , उनसे एसी तमाम आशंकाएँ रहती भी तो हैं ।

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