Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

फ्रंटियर मेल की रोचक दास्तां

$
0
0
एक थी फ्रंटियर मेल

रूठी प्रेमिका को मनाने के लिए करते थे फ्रंटियर मेल की सवारी

संजय सिंह
ब्रिटिश इंडिया यानी कि अविभाज्य भारत के दौर में एक ट्रेन हुआ करती थी- फ्रंटियर मेल। उस दौर में यह एक गजब की ग्लैमरस और एलीट क्लास की द्रुतगामी ट्रेन थी। रेलवे के किस्से कहानियों पर अगर यकीन करें तो यह ट्रेन हनीमून पर जाने वाले धनाढ्य नवविवाहित जोड़ों की पहली पंसद हुआ करती थी। रेलवे सर्किल में उस समय यह बात बहुत ही मजे लेकर कही-सुनी जाती थी कि अगर किसी की प्रेमिका रूठी हो तो उसे फ्रंटियर मेल की सैर करानी चाहिए। लम्बी और सुखद यात्रा में वह खुद-ब-खुद पिघल जाएगी और प्रेमी के आगोश में होगी।
फ्रंटियर मेल ब्रिटिश शासन काल में भारत की एकमात्र ऐसी ट्रेन थी- जिसे भारत के साथ साथ ब्रिटेन में भी बराबर की लोकप्रियता प्राप्त थी। वैसे इस ट्रेन का मुकाम पेशावर से बाम्बे (अब मुम्बई) तक था। लेकिन इस ट्रेन से दिल्ली से लाहौर, रावलपिंडी, झेलम और पेशावर जाने वाले यात्रियों की भी भारी तादात थी। तब यह सबसे लम्बी दूरी की ट्रेन थी और 2335 किलोमीटर की यात्रा मात्र 50 घंटे में पूरी करती थी। वह भी तब जब मीटर गेज की यह ट्रेन छुकछुक करते इंजन यानि कि भाप इंजन से चलती थी। वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ और इसी के साथ पाकिस्तान का उदय हुआ तो ‘फ्रंटियर मेल’ भारत के हिस्से में रह गई। 14 अगस्त 1947 से इस ट्रेन ने बाम्बे और अमृतसर के बीच संचलन शुरू किया। आजादी के बाद भी लम्बे समय तक इस ट्रेन की लोकप्रियता बनी रही। दिल्ली में यह ट्रेन नई दिल्ली और दिल्ली जं. दोनों ही स्टेशनों पर जाती थी। लेकिन बाद में इसका संचनल नई दिल्ली से कर दिया गया।
इस ट्रेन का शुभारम्भ ‘बाम्बे-बड़ौदा एंड सेन्ट्रल इंडिया रेलवे कम्पनी (बीबीएंडसीआईआर) ने एक सितम्बर 1928 को किया था। तब देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग कम्पनियां रेलवे का संचलन करती थीं। फ्रंटियर मेल की विशेषता और लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लंदन के टाइम्स समाचार पत्र में वर्ष 1930 में इसकी विशेषता का बखान हुआ था। पत्र में इस ट्रेन को दुनिया की प्रमुख ट्रेनों में शुमार किया था। इंग्लैंड से हिंदुस्तान आने वाले अंग्रेज अधिकारियों और ब्रिटिश पत्रकारों की यह पसंदीदा ट्रेन तो थी ही, यात्रा के लिए सर्वाधिक सुलभ और खास ट्रेन थी। इंग्लैंड या यूरोप से आने वाले अंग्रेज अधिकारी वहां से पानी के जहाज से भारत के बलार्ड पीर मोल स्टेशन तक आते थे। यह स्टेशन बाम्बे के पास था। फिर वहां से फ्रंटियर मेल में सवार होकर अपने गंतव्य तक जाते थे। चाहे उन्हें दिल्ली जाना हो, बाम्बे, अमृतसर या लाहौर, या फिर रावलपिंडी और पेशावर..फ्रंटियर मेल से बेहतर विकल्प कोई नहीं थी। इसलिए इस ट्रेन को काफी लक्जीरियस बनाया गया था।
शुरुआत में इस ट्रेन में तीन श्रेणियों- प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और इंटर श्रेणी के कोच लगते थे। बाद में एक कोच वातानुकूलित श्रेणी का लगने लगा था। वस्तुत: यह भारत की प्रथम ऐसी ट्रेन थी, जिसमें वातानूकूलित कोच लगने का गौरव प्राप्त हुआ था। तब आज के जैसे एसी संयंत्र तो होते नहीं थे, तो बर्फ के केज वाले कूलरों का प्रयोग कर कोच को ठंडा किया जाता था। रास्ते के स्टेशनों पर कूलरों में बर्फ डाले जाते रहते थे।
अपने वक्त की सर्वाधिक लम्बी दूरी की तीव्रगामी इस ट्रेन की एक विशेषता इसकी समयबद्धता भी थी। एक बार यह ट्रेन सिर्फ 15 मिनट लेट हुई थी तो रेल कम्पनी के ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारी तलब कर लिए गए थे। आलम यह था कि इस ट्रेन के संचलन समय से लोग अपनी घड़ियां मिलाते थे। वर्ष 1930 से 1940 तक इस ट्रेन में छह कोच लगते थे, जिसमें से एक डाइनिंग कार हुआ करता था। फ्रंटियर मेल की उस समय की क्षमता 450 यात्रियों की थी। हालांकि डाइनिंग यानि कि रेस्टोरेंट  कार का उपयोग प्रमुखत: वातानुकूलित, प्रथम और द्वितीय श्रेणी के ही यात्री करते थे। इसके लिए उन्हें अलग से भुगतान नहीं करना पड़ता था, क्यों कि इसका चार्ज उनके टिकट में ही जुड़ा होता था। इंटर या तृतीय श्रेणी के यात्री अगर रेस्टोरेंट कार में खाते-पीते थे तो उन्हें उसका अलग से भुगतान करना होता था। रेस्टोरेंट कार का नाम ‘क्वीन आफ राजपूताना’ था। दरअसल उस समय राजस्थान प्रांत का नाम राजपूताना था, जिसमें अविभाजित भारत के वे हिस्से भी थे, जो इस समय पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में है। राजपूताना स्टेट के नाम पर रेस्टोरेंट कार का नामकरण हुआ था। फ्रंटियर मेल भारत की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसका वातानुकूलित और प्रथम श्रेणी का डिब्बा शावर और शौचालय युक्त था।
राष्ट्रीय रेल संग्रहालय, दिल्ली में वरिष्ठ शोध सहायक डी एस हंसपाल कहते हैं- ‘आजादी के बाद भी फ्रंटियर मेल से जुड़े अनेक किस्से सामने आये। पंजाब के संगरूर जिले के गांव साहनेवाल का एक बीस वर्षीय ट्यूबबेल आपरेटर धरम सिंह देओल फ्रंटियर मेल से ही भागकर मुम्बई पहुंचा था फिल्मों में हीरो बनने के लिए। जो धर्मेन्द्र नाम से सुपर स्टार बना।
फ्रंटियर मेल की यात्रा आज भी अमृतसर से मुम्बई के बीच जारी है। लेकिन सितम्बर 1996 में इस ट्रेन का नाम बदलकर ‘गोल्डेन टेम्पल एक्सप्रेस’ कर दिया गया। अकाली दल के कुछ नेता इस ट्रेन के नए नामकरण के विरोध में थे। उनका कहना था कि अगर इस ट्रेन का नाम गोल्डेन टेम्पल एक्सप्रेस किया जाय तो स्वर्ण मंदिर की पवित्रता को देखते हुए उसमें ध्रूम्रपान वर्जित किया जाय, जो कि संभव नहीं था।’’

.. तो यह थी फ्रंटियर मेल की समय सारिणी

शुरुआत में यह ट्रेन बाम्बे के कोलाबा स्टेशन से चलती थी। वर्ष 1930 में जब कोलाबा स्टेशन खत्म कर दिया गया और बाम्बे सेन्ट्रल स्टेशन का शुभारम्भ हुआ तो फ्रंटियर मेल नए स्टेशन से चलाई जाने लगी। इस ट्रेन का नम्बर 3 अप/4 डाउन था। 3 अप फ्रंटियर मेल बाम्बे सेन्ट्रल से 18.25 बजे खुलकर दूसरे दिन 20.15 बजे दिल्ली पहुंचती थी। यहां इसका ठहराव एक घंटा पांच मिनट था। 21.20 बजे दिल्ली से खुलकर यह ट्रेन गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अम्बाला, लुधियाना होते हुए अमृतसर सुबह 7.31 बजे पहुंचती थी। इस स्टेशन पर इसका ठहराव 12 मिनट था। इसके बाद इसका अगला पड़ाव लाहौर स्टेशन था। अमृतसर से लाहौर की दूरी यह एक घंटे में तयकर 8.30 बजे पहुंच जाती थी। तब अटारी रेलवे स्टेशन नहीं था। लाहौर से यह ट्रेन 9.15 बजे खुलकर गुजरांवाला, वजीराबाद जं., झेलम, रावलपिंडी, तक्षशिला, हसन अब्दाल (पंजा साहब), कैम्पबलपुर, नौशेरा जं. होते हुए रात में 21.45 बजे अपने अंतिम पड़ाव पेशावर कैंट पहुंचती थी। इसी तरह 4 डाउन फ्रंटियर मेल पेशावर से सुबह 8 बजे खुलकर इसी दिन रात में 20.00 बजे लाहौर पहुंचती थी। 21.29 बजे अमृतसर से खुलकर दूसरे दिन सुबह 8.00 बजे इसका दिल्ली आगमन होता था। बाम्बे सेन्ट्रल स्टेशन पर इसके पहुंचने का समय तीसरे दिन 11 बजे होता था।
बाम्बे सेन्ट्रल से दिल्ली तक इस ट्रेन का संचलन ‘बाम्बे बड़ौदा एंड सेन्ट्रल इंडिया रेलवे करती थी, क्यों कि यह पूरा रेल खंड इसी रेल कम्पनी के अधीन हुआ करता था। लेकिन दिल्ली से पेशावर तक का रेल खंड ‘नार्थ वेस्टर्न एंड ईस्ट पंजाब रेलवे’ कम्पनी का था, सो फ्रंटियर मेल के इस बीच की यात्रा एवं संचलन की जिम्मेदारी इस रेल कम्पनी की थी। हालांकि इस रेल कम्पनी ने भी बाम्बे से पेशावर के बीच एक अपनी अलग ट्रेन चला रखी थी, जिसका नाम पंजाब मेल था। लेकिन वह ट्रेन फ्रंटियर मेल की लोकप्रियता के पास भी नहीं फटकती थी। पंजाब मेल अपनी सुस्त चाल और खराब व्यवस्था के चलते अलोकप्रिय थी। इसे गंतव्य तक पहुंचने में 72 घंटे लगते थे, जब कि वही दूरी फ्रंटियर मेल 50 घंटे में पूरी करती थी।

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>