#ZeeDNA
उम्मीद है सुधीर देश को बताएंगे की कैसे और कौन देश का गद्दार है।
आज से कोई 28 साल पहले जब सुभाष चंद्रा जी ने ZEE टीवी को ऑन एयर किया तो वो देश में प्राइवेट सैटलाइट चैनल के पहले उद्यमी बने। जवानी में बेहद मुश्किल दौर से गुजरने वाले सुभाषजी ने जिस तरह चावल की ट्रेडिंग के पारिवारिक धंधे को न्यूज़ और मनोरंजन उद्योग में बदला....वो उपलब्धि और वो सफलता वाकई विस्मयकारी थी।
इन 28 बरसों में, देश की मीडिया में भी उन्होंने कई प्रयोग किए। न्यूज़ बुलेटिन का नया ढांचा कुछ हद तक उन्होंने ही गढ़ा। न्यूज़ रीडर से न्यूज़ एंकर बनने का नया पैमाना ZEE का ही था। हाल फ़िलहाल में युवाओं को राह दिखाने वाला उनका 'सुभाष चंद्रा शो'जहाँ हिट हुआ वहीं पहली बार न्यूज़ चैनल को सीधे राष्ट्रवाद से जोड़ने वाले भी वे पहले मीडिया मुग़ल रहे । उन्होंने सेना के शौर्य, देश की सुरक्षा और देश को सर्वोपरि रखते हुए, टीवी का न्यूज़ एजेंडा ही बदल डाला।
लेकिन पिछले महीने सुभाषजी ने मुंबई में एक ऐसी डील की जिससे उनके चाहने वाले, उन्हें टीवी के 'राष्ट्रवाद का पितामह'मानने वालों को चोट लगी।
दस्तावेज़ जाहिर करते हैं कि ज़ी न्यूज़ के संस्थापक, सुभाषजी ने मुंबई के Cuffe Parade में अपना बंगला #चीनसरकार के #वाणिज्य दूतावास को लाखों के किराये पर दिया है।
15 जून 2020 को देश के 20 जवान, #गलवान घाटी में चीन से लड़ते हुए शहीद हुए।इस शहादत के 14 दिन बाद, राष्ट्रवादी सुभाषजी ने चीन सरकार से अपने बंगले का करार किया। उस चीन से, जिसे हमारे जवानों की शहादत के बाद, कोई भी #मुंबई में छत देने को तैयार नहीं था।
#दस्तावेज़ों के मुताबिक, करार करने से पहले, सुभाष जी ने 15 जून को अपने बंगले की पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी श्री भौपती अरोटे के नाम कर दी । फिर 29 जून को चीन सरकार के साथ दो साल का उन्होंने रेंट एग्रीमेंट किया।ये खबर सबसे पहले एक #वेबपोर्टल squarefeetindia ने ब्रेक की लेकिन कई बार उनसे संपर्क करने के बाद भी सुभाषजी ने इस पोर्टल को इस करार के बारे में कोई जवाब नहीं दिया।
जो हुआ सो हुआ। सुभाष जी , या उनके नज़दीकियों से , जिस किसी से भी ये भूल हुई या किसी अन्य कारण से इस डील पर उनकी मोहर लगी, दस्तखत हुए, उस करार को अब भी तोड़ा जा सकता है। देश के सैनिक जब सीमा पर चीन से मोर्चा ले रहे हैं। जिस वक़्त राफेल को बॉर्डर पर तैनात किया जा रहा है। जिस वक़्त चीन के ऐप , चीन की कंपनियों को प्रतिबंधित किया जा रहा है , ऐसे नाज़ुक वक़्त पर राष्ट्रवादी सुभाषजी को जीवन का एक छोटा सा फैसला लेना है ।
वे देश के सांसद भी है, सजग नागरिक भी हैं , और अगर वे चीन के प्रतिनिधियों को अपने बंगले से बाहर का रास्ता दिखाते हैं तो बीजिंग को एक सशक्त सन्देश जायेगा।
सन्देश सिर्फ इतना होगा कि हिन्दुस्तानियों के लिए आज भी देश बड़ा है, दौलत नहीं।
साभार -दीपक शर्मा