#गाँधी_और_खादी 👇👇
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इन दो तस्वीरों में जो अन्तर है उस अन्तर और विभेदों को समझने वाले युवाओं का दिमाग कहीं और लगा दिया गया। अगर आप इस तस्वीर के अन्तर को नहीं समझे तो इसमें आपका कोई दोष नहीं है, व्यवस्था ने ही ऐसा मार्ग तैयार कर के आपको उस मार्ग पर भक्ती और धर्मांधता का ऐसा पट्टी बाँध कर छोड़ दिया कि न आप साहित्य पर विचार कर सकते हैं, और न ही इतिहास पर। साहित्य और इतिहास किसी भी राष्ट्र या संस्कृति के लिए जड़ के समान होती है।
मैं कोई बहुत बड़ा लेखक नहीं हूँ कि सब सही ही लिखूँगा, हो सकता है कि कुछ लोगों से वैचारिक असहमति हो, लेकिन वैचारिकी के धरातल पर यही असहमति और इस असहमति का दमन या विरोध के बजाय इसका सम्मान एक राष्ट्र को एक स्वस्थ लोकतंत्र बनाने का पहला पैमाना है। अब जो मैं बात लिखने जा रहा हूँ उम्मीद है कि उपर की भूमिका से ठीक-ठीक आप समझ लेंगे।
गाँधी एक ऐसा नाम है,एक ऐसा विचार है, एक ऐसा युग है जिसने पूरे विश्व के हर वर्ग को, हर पीढ़ी को प्रभावित किया है, पूरे विश्व के ऐसे किसी भी देश का संग्रहालय नहीं होगा जहाँ पूज्य बापू की प्रतिमा नहीं लगी हो। 'वीआर देविका', जिन्होंने महात्मा गाँधी और उनके संवाद की रणनीति पर अध्ययन किया है, कहती हैं कि- "गांधी ने खादी को आज़ादी की लड़ाई में हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. इंग्लैण्ड के सरज़मीं पर कम कपड़ों में गांधी के पहुँचने को 'वीआर देविका'मन का शरीर पर नियंत्रण के अद्भूत उदाहरण के तौर पर देखती हैं।" मुझे गाँधी और खादी से जुड़ा एक बहुत ही अद्भुत प्रसंग याद आता है कि वर्ष 1930 के गांधी के दांडी मार्च से बौखलाए इंग्लैंड के प्रधानमंत्री 'चर्चिल'और पूरी दुनिया के लिए यह पचाना मुश्किल हो रहा था कि कैसे अक्टूबर की हड्डी गला देने वाली ठंढ में एक भारतीय बहुत ही कम खादी के कपड़े पहने पानी के जहाज से इंग्लैण्ड की धरती पर उतर रहा है? उधर गांधी दुनिया को बताना चाह रहे थे कि अब हर भारतीय के मन में स्वावलंबन और आत्मसम्मान की भूख बढ़ चुकी है।
तो ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जिस खादी और चरखे के सूत्र में गाँधी ने पूरे हिन्दुस्तान को बाँधा, जो दक्षिण अफ़्रीका अपने सबसे बड़े आजादी के नायक को दुसरे गाँधी की संज्ञा दिया, कितने बौद्धिक विचारकों ने गाँधी का अनुसरण कर के समाज में एक नैतिक चेतना को सृजित किया, पूरे विश्व के काल पत्र पर पिछले दो शताब्दीयों में सबसे बड़ा हस्ताक्षर करने वाले गाँधी को उन्हीं के देश के रहनुमा क्यों ओझल कर रहे हैं? पूरे विश्व के किसी भी संग्रहालय में चरखे के साथ गाँधी दिखते हैं, लेकिन नीचे जो फोटो है उस पर चरखा भी है, खादी भी लेकिन इसके प्रणेता नहीं है। पूरा विश्व गाँधी को पढ़ रहा है, मान रहा है लेकिन उन्हीं के देश में चरखे से गाँधी को दूर करना नई नस्लों को गाँधी और चरखे की प्रासंगिकता से दूर रखना है।
#जावेद_खान "अमन"
M.A 2nd semester (आधुनिक इतिहास)
गोरखपुर विश्वविद्यालय